कांग्रेस का ‘नेतृत्व’ बना उसका सबसे बड़ा दुश्मन

Edited By ,Updated: 13 Mar, 2020 02:01 AM

the  leadership  of congress became its biggest enemy

भारत की सबसे पुरानी पार्टी 135 वर्षीय कांग्रेस अपनी ही तबाही के रास्ते पर चल रही है। 60 वर्षों तक देश पर शासन करने वाली पार्टी के कट्टर समर्थक भी यह सोचने पर मजबूर हैं कि क्या पार्टी अपने वर्तमान नेतृत्व या फिर नेतृत्व की कमी के चलते अपना भविष्य देख...

भारत की सबसे पुरानी पार्टी 135 वर्षीय कांग्रेस अपनी ही तबाही के रास्ते पर चल रही है। 60 वर्षों तक देश पर शासन करने वाली पार्टी के कट्टर समर्थक भी यह सोचने पर मजबूर हैं कि क्या पार्टी अपने वर्तमान नेतृत्व या फिर नेतृत्व की कमी के चलते अपना भविष्य देख पाएगी। पार्टी को दिग्गजों द्वारा छोड़े जाने के क्रम में युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया भी जुड़ चुके हैं। जो यह दर्शाता है कि न तो कांग्रेस के पास स्पष्ट नेतृत्व है और न ही विभिन्न मुद्दों को लेकर यह स्पष्ट है। कांग्रेस अभिमान से भरपूर है। ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे योग्य नेता के साथ इस तरह व्यवहार करने तथा उनकी मूल मांग को मानने से इंकार करना कहीं कांग्रेस के लिए अंतिम कील साबित न हो जाए। सिंधिया के मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के दावे को ठुकराने के बाद कांग्रेस ने उन्हें राज्य सभा के लिए नामांकित करना भी गवारा नहीं समझा। 

पिछले कुछ वर्षों के दौरान सिंधिया के पार्टी छोडऩे से पहले कांग्रेस ने अनेकों पूर्व मुख्यमंत्रियों, राज्य इकाइयों के पूर्व अध्यक्षों तथा कई पूर्व केन्द्रीय मंत्रियों से हाथ धोया है, जिन्होंने पार्टी को त्याग दिया है। पूर्व मुख्यमंत्रियों में अजीत जोगी (छत्तीसगढ़), विजय बहुगुणा (उत्तराखंड), गिरधर गोमांग (ओडिशा) के साथ-साथ पूर्व राज्य अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी (उत्तर प्रदेश), भुवनेश्वर कलीता (असम), अशोक चौधरी (बिहार), अशोक तंवर (हरियाणा), बोत्चा सत्यनारायण (आंध्र प्रदेश) नेे पार्टी को छोड़ा है। 

पूर्व केन्द्रीय मंत्रियों में जयंती नटराजन (तमिलनाडु), एस.एम. कृष्णा (कर्नाटक), बेनी प्रसाद वर्मा (उत्तर प्रदेश), जी.के. वासन (तमिलनाडु), शंकर सिंह वाघेला (गुजरात), श्रीकांत जेना (ओडिशा) तथा किशोर चन्द्र देव (आंध्र प्रदेश) के नाम भी शामिल हैं। वर्तमान के मुख्यमंत्रियों में पेमा खांडू (अरुणाचल प्रदेश), एन. बीरेन सिंह (मणिपुर) ने भी पार्टी को अलविदा कहा और अब प्रमुख नेताओं में हेमंत बिस्व सरमा (असम), पूर्व मंत्री सुदीप राय बर्मन (त्रिपुरा) तथा पूर्व हरियाणा कांग्रेस प्रमुख चौधरी बीरेन्द्र सिंह के नाम भी पार्टी को छोडऩे वालों की सूची में शामिल हैं। कांग्रेस को छोडऩे वालों की एकतरफा कतार में खड़े नेताओं के कारण पार्टी में सब कुछ गड़बड़ चल रहा है। सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष हैं और कइयों का मानना है कि अपनी सीट वह अपने बेटे राहुल गांधी के बतौर अध्यक्ष वापसी तक सम्भाले हुए हैं। 

पिछले 15 वर्षों के राजनीतिक जीवन के दौरान राहुल गांधी गिरावट के दौर से गुजर रहे हैं मगर उन्होंने इन सबके बावजूद कोई सबक नहीं सीखा। ज्यादातर पार्टी नेताओं को राहुल से उम्मीदें कम हैं। मगर चापलूसी करने वाले तथा घटिया मानसिकता वाले लोग उनका कोई बदलाव नहीं ढूंढ पाए। पिछले वर्ष पार्टी अध्यक्ष के लिए चुनाव हुए मगर युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट तथा मिङ्क्षलद देवड़ा, जिनके पास पार्टी को आगे बढ़ाने की क्षमता है, ऐसे नेताओं को चुनाव लडऩे के लिए प्रेरित नहीं किया गया। कुछ अदने से नेताओं को आगे लाया गया जिनसे राहुल गांधी को कोई खतरा नहीं था। ऐसे लोग चुनाव में दो प्रतिशत मत भी नहीं जुटा पाए।

राहुल गांधी ने सार्वजनिक तौर पर घोषणा की कि वह पार्टी अध्यक्ष की दौड़ में शामिल नहीं। इससे यह प्रतीत होता है कि उनका जन्म पार्टी नेतृत्व करने के लिए ही हुआ है। सभी महत्वपूर्ण निर्णय सोनिया गांधी के निवास से लिए जाते हैं, जोकि कुछ पुराने दिग्गजों से घिरी रहती हैं, जो राहुल गांधी का विरोध नहीं चाहते। वे लोग ऐसा भी महसूस नहीं करते कि लोकसभा चुनावों में जीत का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दिया जाए। वे मोदी की जीत के पीछे उनके मुख्य राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को कारण नहीं मानते। मोदी के मुकाबले राहुल कहीं भी खड़े नहीं होते तथा लोगों के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं बचता। 

पूर्व की चकाचौंध हमेशा कायम नहीं रह सकती
सिंधिया का भाजपा का दामन थाम लेना यह दर्शाता है कि पार्टी फिर से मध्य प्रदेश में सत्ता में लौट सकती है, जहां पर भाजपा को कम माॢजन से शिकस्त मिली थी। भाजपा ने कर्नाटक में भी वापसी की और ऐसा ही राजस्थान में भी कर सकती है जहां पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तथा उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच कशमकश चल रही है। सचिन पायलट को एक परिपक्व व योग्य नेता समझा जाता है जो भविष्य में पार्टी का नेतृत्व कर सकते हैं। मगर यदि कांग्रेस पार्टी को अपना भविष्य उज्ज्वल बनाना है तो इसे आत्ममंथन करना होगा और केन्द्र में एक नया नेतृत्व लाना होगा। साथ ही क्षेत्रीय नेताओं को और सशक्त करना होगा। कांग्रेस को अपनी पूर्व की ख्याति पर निर्भर नहीं होना होगा और इसे यह भी यकीनी बनाना होगा कि पूर्व की चकाचौंध हमेशा कायम नहीं रह सकती।-विपिन पब्बी
 

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