Edited By ,Updated: 14 Sep, 2019 12:46 AM
लम्बे समय बाद किसी विरोधी पक्ष द्वारा सड़कों पर उतर कर आर्थिक हालात की ओर देश का ध्यान दिलाने की बात ने हलचल पैदा की है। देश के सत्ताधारी पक्ष की ओर भी उंगली किए जाने ने ध्यान खींचा है। देश की अर्थव्यवस्था को धक्का देने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री डा....
लम्बे समय बाद किसी विरोधी पक्ष द्वारा सड़कों पर उतर कर आर्थिक हालात की ओर देश का ध्यान दिलाने की बात ने हलचल पैदा की है। देश के सत्ताधारी पक्ष की ओर भी उंगली किए जाने ने ध्यान खींचा है। देश की अर्थव्यवस्था को धक्का देने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह द्वारा बताए पांच नुक्तों के कारण भी विरोध उभरता दिखाई दिया है। जो कुछ इन दिनों विरोधी आवाज में सुनाई दिया है, उसे खंगालना जरूरी है।
कांग्रेस पार्टी ने अपनी एक महत्वपूर्ण बैठक में विचार करते हुए देश में आर्थिक मंदी के विरोध में देश भर में पार्टी द्वारा सड़कों पर उतरने की घोषणा की है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी तथा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं को अब सोशल मीडिया से निकल कर सड़कों पर आना चाहिए।
यह भी महत्वपूर्ण है कि सोशल मीडिया के महत्व के बावजूद जब लोग सड़कों पर उतरते हैं या उन्हें इकट्ठे होकर विचार करने का मौका मिलता है तो उसके परिणाम दूरगामी होते हैं। कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं में यह घोषणा किसी तरह का जोश भर सकती है या नहीं, कहा नहीं जा सकता लेकिन बिगड़ रही अर्थव्यवस्था बारे देश में एक व्यापक समझ बन सकती है। अब यहां महत्वपूर्ण यह भी है कि कांग्रेस ने इस मामले बारे केन्द्र सरकार के निष्क्रिय होने का हवाला भी दिया है। इस हवाले से भी विरोधी पक्ष ने मजबूती पकड़ी है और हलचल नीचे तक सुनाई देने लगी है।
डा. मनमोहन सिंह के पांच नुक्ते
सभी मसलों के मद्देनजर पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह का केन्द्र सरकार को पांच सूत्रीय कार्यक्रम दिया जाना भी बहुत अधिक ध्यान की मांग करता है। सारी दुनिया जानती है कि 1991 में वित्तमंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान डा. मनमोहन सिंह ने कैसे देश को आर्थिक संकट से उबारा था। वह आर.बी.आई. के गवर्नर भी रह चुके हैं। विश्व भर में उनकी आर्थिक विशेषज्ञ के तौर पर मान्यता है। उन्होंने केन्द्र सरकार पर उंगली उठाई है कि जी.एस.टी. को तर्कसंगत ढंग से लागू न करने तथा नोटबंदी जैसे फैसलों के कारण ही देश की अर्थव्यवस्था गिरी है तथा आगे और भी ज्यादा गिर सकती है। उन्होंने कुछ नुक्ते केन्द्र सरकार को लागू करने को कहा है जिससे देश की अर्थव्यवस्था को बचाया जा सकता है।
डा. मनमोहन सिंह पहले तो जी.एस.टी. को पुनर्मूल्यांकन करके अपनाने की जरूरत पर जोर देते हैं। वह कहते हैं कि हालांकि थोड़े समय के लिए टैक्स का नुक्सान हो सकता है मगर इसे तर्कसंगत बनाया जाना बहुत जरूरी है। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्र में खपत बढ़ाने पर जोर दिया है। साथ ही यह भी कहा है कि कृषि क्षेत्र पर ध्यान केन्द्रित करते हुए काम करने की जरूरत है। कृषि बाजारों को ‘फ्री’ करने से पैसा लोगों के पास आएगा जिससे उनकी खरीद शक्ति बढ़ेगी। कर्ज की जो कमी है, उसे दूर किया जाए। कपड़ा, आटो, इलैक्ट्रानिक्स उद्योगों को ऊपर उठाने की जरूरत है। इन क्षेत्रों में ही रोजगार के अधिक अवसर हैं।
सरकार को उन क्षेत्रों में आसान कर्जे देने की जरूरत है, जो नौकरियों से जुड़े हुए हैं। इन क्षेत्रों का पुनरुत्थान होना चाहिएं और इन्हें आसानी से कर्जे मिलने चाहिए। उन्होंने कहा कि विशेष कर एम.एस.एम.ई. को कर्ज मिलना चाहिए। ऐसे ही अमरीका तथा चीन के बीच छिड़े व्यापार युद्ध को देखते हुए उन बाजारों की अंतर्राष्ट्रीय बाजार के तौर पर पहचान करनी चाहिए, जिनमें भारत अपने उत्पाद आसानी से पहुंचा सकता हो।
जागेंगे तो तीन वर्षों में सुलझा लेंगे संकट
अब आवश्यक है कि किसी बड़े आर्थिक विशेषज्ञ के इस बयान से देश के औद्योगिक बाजार में तेजी भी आई हो और समर्थन भी मिला हो। इस बयान के आर्थिक मायने भी हैं और राजनीतिक भी। लोगों ने डा. मनमोहन सिंह के समय की विकास दर को आज की विकास दर से मापना शुरू कर दिया है। फिर यह भी कि उनके संकेतों पर सरकार के कदमों में तेजी आ भी जाए तो भी देश को स्थिर होते तीन-चार साल लग जाने हैं। आज हमारी सरकार को, हमारे वित्त मंत्री को बेशक यह राजनीतिक लग सकता है और जैसे हाल ही में वित्त मंत्री द्वारा उनकी सलाह को नगण्य जैसी समझने की ओर संकेत दिया गया था, वह अब विरोधाभासी दिखाई देने लगा है।
यदि देश के ऐसे मरहले पर पहुंचने के कारणों पर एक हल्की-सी नजर डालते हैं तो देखते हैं कि जैसे पिछले समय में रियल एस्टेट के क्षेत्र में ब्रेक लगी तो ईंटें, स्टील अथवा इलैक्ट्रानिक्स के क्षेत्र में भी ब्रेक लग गई। कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस क्षेत्र भी संकट में गिर गया। उससे जुड़े उद्योग भी प्रभावित हुए। कृषि क्षेत्र में किसानों को फसल की कीमत नहीं मिल रही, बेरोजगारी पिछले 45 सालों का रिकार्ड तोड़ गई। यदि पांच रुपए के बिस्कुट की खरीददारी बंद हो जाए तो स्थिति का अंदाजा खुद ही लगा लें। कहां पहुंच गए हैं हम। लोगों की जेब में पैसा नहीं है, इसका उपाय होना चाहिए। संकट मनुष्य की शक्ति के सामने लम्बा नहीं हो सकता, जरूरत केवल जागने तथा हिम्मत करने की है।-देसराज काली (हरफ-हकीकी)