केन्द्र और राज्यों की ‘शक्तियां’ अलग-अलग हैं

Edited By ,Updated: 20 Sep, 2020 04:29 AM

the  powers  of the center and the states are different

जी.एस.टी. टैक्सों के लिए गंभीर संघर्ष बन गया है। यहां तक कि एक महामारी से तबाह अर्थव्यवस्था के बीच जो पहले से ही एक तीव्र गति वाली ढलान पर थी। केंद्र सरकार को सरकारी कौशल का प्रदर्शन करना चाहिए था मगर उसने ऐसा नहीं किया। सरकार ने अपने इरादे प्रकट

जी.एस.टी. टैक्सों के लिए गंभीर संघर्ष बन गया है। यहां तक कि एक महामारी से तबाह अर्थव्यवस्था के बीच जो पहले से ही एक तीव्र गति वाली ढलान पर थी। केंद्र सरकार को सरकारी कौशल का प्रदर्शन करना चाहिए था मगर उसने ऐसा नहीं किया। सरकार ने अपने इरादे प्रकट किए हैं। 

केंद्र को राज्य सरकारों की मदद करनी चाहिए
*मैं क्यों कहता हूं कि केंद्र सरकार को राज्य सरकारों की सहायता के लिए आगे आना चाहिए था क्योंकि केंद्र तथा राज्य दोनों की शक्तियां बहुत ही अलग-अलग हैं। 
*केंद्र सरकार अधिकार के रूप में उधार ले सकती है। राज्य सरकारें केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति के साथ ही उधार ले सकती हैं। 
*सम्प्रभु के रूप में केंद्र सरकार अपने उधार के लिए सबसे कम दर का आदेश दे सकती है। राज्य सरकारें ऊंची दरों पर उधार लेती हैं और राज्य सरकारों के बीच यहां पर दरों में अंतर होता है। 
*केंद्र सरकार लाभांश के रूप में आर.बी.आई. का लाभ प्राप्त करने की हकदार है और हाल ही के अवसर पर आर.बी.आई. ने लाभांश घोषित करने के लिए हाथ बढ़ाया है। राज्य सरकारों के पास आर.बी.आई. के मुनाफों पर कोई दावा नहीं है। 

*केंद्र सरकार अपने घाटे का मुद्रीकरण कर सकती है यानी आर.बी.आई. को रुपया प्रिंट करने के लिए कह सकती है। राज्य सरकारों के पास ऐसी सम्प्रभु सत्ता नहीं है। 
इसलिए वित्तीय संकट के समय में केंद्र को राज्य सरकारों को मदद करनी चाहिए। 2020-21 में प्रत्येक राज्य सरकार को सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जी.एस.डी.पी.) की 3 प्रतिशत की उधार सीमा समाप्त करने की उम्मीद है। उन्होंने ज्यादा भुगतान का आग्रह किया मगर 0.5 प्रतिशत ही मिला जो राज्य सरकारें इस वर्ष इस्तेमाल करेंगी। इससे आगे की कोई भी उधारी उन शर्तों पर बोझ होगी जिन्हें पूरा करने के लिए कोई भी राज्य सरकार तैयार नहीं है विशेष कर इस वित्तीय वर्ष में। 

विश्वास पर आधारित सघन
जी.एस.टी. केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच एक सघन था जोकि वर्षों की चर्चा के बाद आया। सघन भरोसे पर आधारित था। राज्यों के पास वस्तुओं पर वैट लगाने की शक्ति है। एक कामधेनु जो राज्यों की तिजोरी भरता है। इसके अलावा कई अन्य कर भी हैं जो एंट्री टैक्स के तौर पर अपना योगदान देते हैं। इसकी वापसी के तौर पर केंद्र सरकार वायदा करती है कि जी.एस.टी. राजस्व तेजी से बढ़ेगा जब वैट ने सेल टैक्स  का स्थान ले लिया। यदि राजस्व वृद्धि प्रति वर्ष 14 प्रतिशत से कम गिरती है (पहले 5 वर्षों में) तो केंद्र सरकार इस कमी की पूर्ति के लिए उन्हें पूरी तरह से मुआवजा देगी। राज्यों की क्षतिपूर्ति करने का दायित्व कानून में लिखा गया है। मुआवजा प्रदान करने के लिए धन जुटाने का तंत्र जी.एस.टी. क्षतिपूर्ति निधि था। वित्त मंत्री और उनके अधिकारियों द्वारा सुविधाजनक रूप से इस बिंदू को अनदेखा किया गया। 

फंड किसी भी वर्ष में या 5 साल के अंत में अधिशेष या घाटे में हो सकता है। यदि यह पांच साल के अंत में अधिशेष में था, तो अधिशेष का 50 प्रतिशत केंद्र सरकार को हस्तांतरित कर दिया जाएगा। यदि यह घाटे में था तो क्या किया जाना चाहिए था? इस बिंदू पर जी.एस.टी. परिषद में विस्तार से बहस की गई विशेषकर 7वीं, 8वीं और 10वीं बैठकों में। 

तेलंगाना के माननीय मंत्री ने कहा कि मुआवजा कानून उपलब्ध करवाना चाहिए। बशर्ते कि धन मुआवजे के कोष में कम आया हो। इसे अन्य स्रोतों से जुटाया जा सकता है। सचिव ने कहा कि ड्राफ्ट मुआवजा कानून के सैक्शन-8 (1) में यह प्रावधान है कि सैस को 5 वर्षों या फिर ऐसी अवधि के लिए एकत्रित किया जा सके। इस बात को परिषद की सिफारिशों में निॢदष्ट किया गया है। उन्होंने आगे कहा कि केंद्र सरकार को मुआवजे के लिए अन्य माध्यमों से संसाधनों को बढ़ाना होगा। 5 साल से अधिक समय तक सैस जारी रखने के बाद इसे फिर से लागू किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि भुगतान के लिए बाजार उधार की संभावना सहित अन्य निर्णय मुआवजा परिषद की 8वीं बैठक (3 तारीख को आयोजित) के कार्यवृत्त का हिस्सा था और (4 जनवरी 2017) कानून 
में शामिल किए जाने की आवश्यकता नहीं है। 

परिषद इसी सुझाव पर सहमत हुई। मुआवजे के भुगतान के लिए बाजार उधार की संभावना सहित केंद्र सरकार अन्य साधनों से संसाधन जुटा सकती है। उधार लेने के लिए केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को दिए गए दो विकल्प एक धोखा हैं। चालू वित्त वर्ष के लिए प्रत्येक राज्य के राजस्व बजट में एक छेद है। उधार लेने वाले छेद को तो भर देंगे लेकिन राज्य के पूंजी खाते में एक ऋण के रूप में दिखाया जाएगा जिसे राज्य को ब्याज का भुगतान करके ऋण चुकाना होगा।-पी. चिदम्बरम

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