‘बजट में शिक्षा पर अधिक ध्यान देने की जरूरत थी’

Edited By ,Updated: 05 Feb, 2021 05:06 AM

the budget needed more attention on education

देश में कोविड महामारी का सर्वाधिक खराब तथा दीर्घकालिक प्रभाव शिक्षा पर पड़ा है और पड़ेगा विशेषकर स्कूली शिक्षा पर। स्कूल 9 महीनों से भी अधिक समय तक बंद रहे हैं तथा धीरे-धीरे इनके खुलने पर

देश में कोविड महामारी का सर्वाधिक खराब तथा दीर्घकालिक प्रभाव शिक्षा पर पड़ा है और पड़ेगा विशेषकर स्कूली शिक्षा पर। स्कूल 9 महीनों से भी अधिक समय तक बंद रहे हैं तथा धीरे-धीरे इनके खुलने पर उनमें विद्यार्थियों की संख्या में काफी कमी देखी जा रही है। 

भौतिक कक्षाओं से मजबूर अप्रत्यक्ष कक्षाओं की ओर जाने में विशेषकर गरीब तथा निम्न, मध्यम वर्ग के विद्याॢथयों को चोट पहुंचाई है। अधिकतर स्मार्ट फोन्स अथवा लैपटाप खरीदने में असमर्थ हैं। इसके अतिरिक्त अधिकांश सरकारी स्कूलों में ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने के लिए विशेषज्ञता अथवा स्रोत नहीं हैं। महामारी के दौरान वास्तव में साधन सम्पन्न तथा साधन रहित लोगों के बीच दूरी और बढ़ा दी है। धीरे-धीरे शिक्षण संस्थानों के फिर से खुले से यह भी खुलासा हुआ है कि महामारी के कारण बड़ी संख्या में विद्यार्थी स्कूलों को छोड़ भी चुके हैं। इसके कारण अभिभावकों की नौकरियां जाना, प्रवास, परिवार की आय में योगदान देने के लिए स्कूली विद्यार्थियों को जबरन मजदूरी के कामों में लगाना  तथा शिक्षा जारी रखने केलिए स्रोतों की उपलब्धता न होना हो सकते हैं। 

स्कूली शिक्षा तथा साक्षरता दर को पहुंचे इस झटके का दीर्घकालिक प्रभाव देश के विकास तथा वृद्धि पर हो सकता है। इस महत्वपूर्ण तथ्य पर विचार करते हुए ऐसी आशा की जा रही थी कि केंद्रीय बजट में शिक्षा पर अधिक ध्यान दिया जाएगा तथा इसके लिए बेहतर आबंटन किया जाएगा। दुर्भाग्य से इसमें शिक्षा के लिए आबंटन में वास्तव में कमी की गई है। 

जहां वित्त वर्ष 2021-22 के लिए बजट राशि में 99311.52 करोड़ रुपए की वृद्धि की गई है, गत वर्ष के मुकाबले वृद्धि के परिमाण में जबरदस्त कमी की गई है। जहां पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष के लिए संशोधित अनुमानों ने वित्त वर्ष 2019-20 की संख्या के मुकाबले प्राथमिक माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा के लिए आबंटन में लगभग 18 प्रतिशत की वृद्धि दिखाई है, आगामी वित्तीय वर्ष के लिए बजटीय आंकड़े केवल 4.7 प्रतिशत की वृद्धि दिखाते हैं। सरकार द्वारा उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने के दावों के बावजूद बजटीय आंकड़े संकेत देते हैं कि गत वर्ष 21 प्रतिशत के मुकाबले चालू वित्त वर्ष के लिए खर्च में वृद्धि मात्र 3 प्रतिशत हुई है। 

दरअसल स्कूली शिक्षा के लिए सरकार के महत्वांकाक्षी कार्यक्रम समग्र शिक्षा अभियान के लिए बजटीय आबंटन कहीं कम 31050 करोड़ रुपए हैं जो गत वर्ष 38751 करोड़ रुपए था। मिड-डे मील के लिए आबंटन गत वर्ष के 12900 करोड़ रुपए के संशोधित अनुमानों के मुकाबले  कम करके 11500 करोड़ रुपए तक कम कर दी गई है। कुल राष्ट्रीय शिक्षा अभियान, जिसमें अध्यापक शिक्षा भी शामिल है, के लिए आबंटन में कमी करके 38860 करोड़ रुपए से 31300 करोड़ रुपए कर दिया गया है। एक ऐसे समय में जब महामारी के बाद के संकट से निपटने के लिए बच्चों की सुरक्षित स्कूल वापसी तथा अध्यापकों के प्रशिक्षण को सुनिश्चित करने के लिए सरकार को स्कूल, विशेषकर सरकारी  स्कूलों के निर्माण की जरूरत थी, सरकार ने शिक्षा क्षेत्र के लिए आबंटन में कटौती कर दी है। 

विडम्बना यह है कि इस साल नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एन.ई.पी.) भी पारित की गई है जिसमें इस वर्ष से शुरू होकर अगले 10 वर्षों के दौरान सरकारी खर्च दोगुना करने की बात कही गई है मगर वित्त मंत्री ने केवल एन.ई.पी. के अंतर्गत ‘15000 स्कूलों को मजबूत बनाने’ की ही बात की है। यह देश के कुल स्कूलों का केवल लगभग एक प्रतिशत है। और इन एक प्रतिशत स्कूलों में केंद्रीय विद्यालय शामिल हैं जिनके लिए आबंटन को कुछ बढ़ा कर 6437 करोड़ रुपए से 6800 करोड़ रुपए किया गया है। ऐसी ही वृद्धि नवोदय विद्यालयों के लिए आबंटन में की गई है। इन स्कूलों को पहले ही सामान्य सरकारी स्कूलों की तुलना में विशेषाधिकार या सुविधा सम्पन्न माना जाता है। संयोग से सरकार ने 150 सैनिक स्कूल जोडऩे की बात कही है मगर वे भी निजी तथा गैर-सरकारी संगठनों के सहयोग से। संभवत: ऐसा पहली बार है कि ऐसे स्कूल निजी सहयोग के साथ खोले जाएंगे। 

बजट प्रस्तावों के बारे में काफी कुछ लिखा गया है तथा अधिकतर विशेषज्ञों ने अधिकांश प्रस्तावों को अच्छा बताया है। यद्यपि निजी करों में कोई वृद्धि नहीं की गई है, अधिकतर लोगों ने राहत महसूस की है कि कोविड राहत के नाम पर कोई अतिरिक्त कर नहीं लगाया गया। निश्चित तौर पर महामारी के कारण सर्वाधिक प्रभावित शिक्षा क्षेत्र पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए था। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने 103,673.66 करोड़ रुपयों  की मांग की थी लेकिन उसे केवल 93224 करोड़ रुपए प्राप्त हुए। यह अधिक बजटीय समर्पण का पात्र था।-विपिन पब्बी
 

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