बजट ऐसा नहीं था जैसी हमने ‘कामना’ की थी

Edited By ,Updated: 23 Feb, 2020 04:26 AM

the budget was not as we wished

भारत के सबसे प्रतिष्ठित उद्योगपति माने जाने वाले तथा सी.आई.आई. के पूर्व अध्यक्ष व फोब्र्स मार्शल के को-चेयरमैन नौशाद फोब्र्स का कहना है कि यह बजट ऐसा नहीं जैसी हमने कामना की थी। नौशाद ने कहा कि बजट से पहली दिक्कत इस बात की है कि यह अर्थव्यवस्था...

भारत के सबसे प्रतिष्ठित उद्योगपति माने जाने वाले तथा सी.आई.आई. के पूर्व अध्यक्ष व फोब्र्स मार्शल के को-चेयरमैन नौशाद फोब्र्स का कहना है कि यह बजट ऐसा नहीं जैसी हमने कामना की थी। नौशाद ने कहा कि बजट से पहली दिक्कत इस बात की है कि यह अर्थव्यवस्था द्वारा झेली जा रही परेशानियों की संवेदनशीलता को भांपने में नाकाम रहा है। यदि बजट ने ऐसा किया होता तब इसने कुछ सही कदम उठाने की नींव रखी होती। हालांकि इसके मंदी की संवेदनशीलता तथा असफलता को अपनाने से मतलब है कि यह आम बजट ही था। यह ऐसा बजट नहीं था जिसकी देश ने जरूरत समझी थी। कड़े निर्णय लेने के लिए इसमें कमी दिखाई देती है। 

‘द वायर’ को दिए गए 50 मिनट के इंटरव्यू के दौरान नौशाद ने मुझसे कहा कि आश्चर्यजनक बात तो यह है कि उद्योगपतियों के साथ प्रधानमंत्री तथा वित्त मंत्री की हुई बैठकों से यह साफ पता चलता है कि उन दोनों ने माना है कि अर्थव्यवस्था परेशानियां झेल रही है। इसके लिए परामर्श की जरूरत है तथा उनको गौर से सुना जाना चाहिए तथा उसका संज्ञान लेना चाहिए। हालांकि बजट में ऐसा कोई भी रवैया नहीं देखा गया। फोब्र्स ने कहा कि सबसे अहम कदम जो वित्त मंत्री ने नहीं उठाया, वह यह था कि सरकार ने 3 लाख करोड़ रुपया पब्लिक तथा प्राइवेट सैक्टर उद्यमों, सोशल सैक्टर स्कीमों तथा राज्य सरकारों को नहीं दिया जिनका सरकार पर बकाया था। यदि ऐसा किया होता तो तत्काल रूप से उपभोग में तेजी आ गई होती। इस कारण मांग, उत्पादकता तथा वृद्धि में कुछ खास नहीं हुआ। 

फोब्र्स ने माना है कि इस कदम ने आधिकारिक वित्तीय घाटे को 3.5 प्रतिशत से शायद 5 अथवा 5.5 प्रतिशत बढ़ा दिया है। मगर सरकार का खर्चा दिखाया गया है जोकि आधिकारिक वित्तीय घाटा आंकड़े का हिस्सा नहीं है। इसका खुलासा आफ बजट खर्चे की सूची में हुआ है। यह कोई ज्यादा ङ्क्षचता की बात नहीं। हम जानते हैं कि वास्तविक घाटा 3.5 प्रतिशत से ज्यादा है। इसके नतीजे में आज जो हालात उभर कर आए हैं वे वित्त मंत्री की पारदर्शिता के कारण हैं। (क्योंकि पहली बार निर्मला सीतारमण ने आफ बजट खर्चे को माना है) मगर वित्तमंत्री को पारदर्शिता का लाभ नहीं मिला। 

वास्तविक घाटा ज्यादा है जोकि सरकार की आशा के विपरीत है 
दूसरी बात यह है कि हम सब जानते हैं कि वास्तविक घाटा ज्यादा है जोकि सरकार की आशा के विपरीत है जैसा कि वह मानती है। यदि आप 3 लाख करोड़ रुपए शामिल करोगे जिसका भुगतान नहीं किया गया तो सरकार की इस बात के लिए आलोचना की जाएगी। ऊंचे घाटे के कारण अर्थव्यवस्था के प्रवाह के लिए लाभ प्राप्त होने चाहिए थे, मगर ऐसा महसूस नहीं किया गया। इस कारण एक बार फिर सरकार की उसके ऊंचे वित्तीय घाटे के लिए आलोचना हुई है मगर अर्थव्यवस्था को इसका लाभ नहीं मिला। 

यह देखना होगा कि इंफ्रास्ट्रक्चर पर एक लाख करोड़ कैसे खर्च किया जाएगा
हालांकि फोब्र्स ने यह माना कि निवेश पर जोर बनाकर अर्थव्यवस्था में वृद्धि लाने की सरकार की रणनीति नजर आती है मगर बजट के आंकड़े यह दर्शाते हैं कि इस रणनीति पर ज्यादा पैसा नहीं डाला गया। यह देखना होगा कि इंफ्रास्ट्रक्चर पर एक लाख करोड़ कैसे खर्च किया जाएगा। फोब्र्स ने माना है कि सम्प्रभु धन कोष को प्रोत्साहन मिलने से विदेशी निवेश उत्पन्न होगा। भारतीय प्राइवेट सैक्टर की प्रतिक्रिया को जांचने से पूर्व पी.पी.पी. आर्किटैक्चर पर और ज्यादा स्पष्टता दरकार थी। 

सरकार के 2.1 लाख करोड़ के विनिवेश लक्ष्य पर बोलते हुए कहा कि यदि यह संभव हुआ तो यह संशय वाली बात होगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार को जरूरत है कि वह अपनी रणनीति तथा सेल योजनाओं के प्रति ईमानदार दिखे। इसको उन्होंने निजीकरण का नाम दिया। रणनीतिक बिक्री न केवल भ्रामक है बल्कि सरकार को इस प्रकार के निजीकरण के लिए सही रणनीतियां अपनाने से दूर रहना होगा। उन्होंने कहा कि सरकार को वह करने की जरूरत है जिसको पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तथा अरुण शोरी ने किया था जब उन्होंने सफलतापूर्वक कई पब्लिक सैक्टर यूनिट्स (पी.एस.यू.) का निजीकरण किया था। सरकार को अलग से एक मंत्रालय या विभाग स्थापित करना होगा जोकि पूरी प्रक्रिया को संभाल सकता हो। इसके लिए सरकार के पास एक निष्ठावान मंत्री भी होना चाहिए। 

जब तक ऐसा नहीं होता तब तक आप 2.1 लाख करोड़ के विनिवेश लक्ष्य को पाने की नहीं सोच सकते। सरकार को कम से कम राजनीतिज्ञों तथा नौकरशाहों के निर्णयों में मनमानी की भूमिका को कम करना होगा। सरकार को एक बोर्ड सिस्टम अपनाना होगा जो जाने-पहचाने नियमों के आधार पर कार्य करे। मनमाने निर्णयों के लिए बनाए गए विवेक से भ्रष्टाचार बढ़ता है।-करण थापर                
                 

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