‘ट्रेड वार’ में चीनी अर्थव्यवस्था चरमराई

Edited By ,Updated: 13 Mar, 2019 04:17 AM

the chinese economy is trampling in  trade war

अमरीका से ट्रेड वार में उलझना अब चीन को भारी पड़ रहा है। चीन की अर्थव्यवस्था लडख़ड़ा रही है। लोहे को लोहा ही काटता है। चीन जैसे अराजक, ङ्क्षहसक और उपनिवेशिक मानसिकता के देश को अमरीका जैसी लुटेरी शक्ति ही सबक सिखा सकती थी। अमरीका को न समझने वाले बड़ी...

अमरीका से ट्रेड वार में उलझना अब चीन को भारी पड़ रहा है। चीन की अर्थव्यवस्था लडख़ड़ा रही है। लोहे को लोहा ही काटता है। चीन जैसे अराजक, ङ्क्षहसक और उपनिवेशिक मानसिकता के देश को अमरीका जैसी लुटेरी शक्ति ही सबक सिखा सकती थी। अमरीका को न समझने वाले बड़ी भूल करते हैं और इस भूल की बड़ी कीमत भी चुकाते हैं। कीमत तो आत्मघाती होती ही है, इसके अलावा अस्तित्व को भी समाप्त कर देती है। 

कभी सोवियत संघ ने अमरीका को न समझने की भूल की थी। वह तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के फेर में फंस गया था। रोनाल्ड रीगन ने सोवियत संघ को स्टार वार्स और शीत युद्ध में उलझा कर उसकी अर्थव्यवस्था को ही चौपट कर दिया था। सोवियत संघ अमरीका से बराबरी करने और शीत युद्ध में इतना डूब गया था कि उसे अपनी अर्थव्यवस्था के विध्वंस का एहसास ही नहीं रहा था। लैटिन अमरीकी देश वेनेजुएला में अचानक कम्युनिस्ट तानाशाही कायम हो गई, कम्युनिस्ट तानाशाही के तानाशाह ह्यूगो शावेज अमरीका को तहस-नहस करने की कसमें खाने लगा, उसका दुष्परिणाम क्या हुआ, आज लैटिन अमरीकी देश वेनेजुएला दिवालिया हो चुका है। उसकी अर्थव्यवस्था चौपट हो गई, भूख से तड़पते हुए लोग शरीर बेचने के लिए तैयार हैं। एक किलो चावल के लिए हत्या तक करने पर उतारू हैं। भूख से तड़पती जनता वेनेजुएला से पलायन कर ब्राजील सहित अन्य पड़ोसी देशों में नरक की किंादगी जीने के लिए विवश है। 

ईरान जैसा देश भी अमरीका के निशाने पर आने से न केवल महंगाई की मार झेल रहा है बल्कि उसकी तेल व्यापार की शक्ति भी आधी हो गई है। उत्तर कोरिया जैसा देश जो अमरीका को विध्वंस करने की धमकियां देता था वह आज अमरीकी घेराबंदी में ऐसा फंसा कि खुद वार्ता के टेबल पर बैठने के लिए बाध्य हो गया। उत्तर कोरिया के तानाशाह और अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच दो दौर की वार्ता हो चुकी है, फिर भी उसे प्रतिबंधों से मुक्ति नहीं मिली है। 

अमरीका न केवल सामरिक शक्ति में अव्वल है, कूटनीति के क्षेत्र में महाशक्ति है बल्कि उसके पास एक विशाल उपभोक्ता बाजार है, वह उपभोक्ता सामग्री स्वयं निर्माण नहीं करता, खुद अपनी जरूरतों के हिसाब से कृषि उत्पादन नहीं करता है। अमरीका अपनी जरूरत की उपभोक्ता सामग्री चीन जैसे देशों से खरीदता है और अपना पर्यावरण भी सुरक्षित रखता है। चीन अपने संसाधनों के दोहन और सस्ते श्रम के बल पर अमरीका और यूरोप के उपभोक्ता बाजार में सक्रिय रहता है। कहना न होगा कि कभी मजदूरों के हित पर खड़ी चीन की कम्युनिस्ट तानाशाही मजदूरों के दोहन पर ही अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत रखती है। 

टूटना ही था चीन का अहंकार 
आज या कल चीन पर अमरीकी हित का डंडा चलना ही था, कभी न कभी चीन की खुशफहमी तो टूटनी ही थी, कभी न कभी चीन का अंहकार तो टूटना ही था, कभी न कभी चीन की अर्थव्यवस्था को चोट तो पहुंचनी ही थी, चीन की निर्यात शक्ति खतरे में पडऩी ही थी। आखिर क्यों? चीन इतना मजबूत इच्छाशक्ति वाला देश, आखिर क्यों मजबूत चीन की अर्थव्यवस्था मरणासन्न स्थिति में पहुंच गई है? उसे फिर से निर्यात की शक्ति चाहिए। जब अमरीका ने चीन के साथ ट्रेड वार शुरू किया था, जब अमरीका ने चीन की अर्थव्यवस्था के खिलाफ  कदम उठाया था, जब अमरीका ने आॢथक मोर्चे पर चीन की घेराबंदी शुरू की थी तब चीन ने काफी फुंफकारा था। चीन ने बड़ी हेकड़ी दिखाई थी, उसमें खुशफहमी और अहंकार था। 

चीन ने ये दावे किए थे कि अमरीका की गीदड़ भभकी से वह नहीं झुकेगा, अमरीका उसकी अर्थव्यवस्था का बाल भी बांका नहीं कर पाएगा, उसकी अर्थव्यवस्था मजबूत है, उसकी अर्थव्यवस्था को कोई नुक्सान नहीं होने वाला है। उसके यहां की औद्योगिक ईकाइयां छोड़ कर अन्य देशों में जाने वाली नहीं हैं? सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि चीन ने ये दावे भी किए थे कि अगर अमरीका ने अपनी नीति नहीं बदली तो फिर उसकी नीति ही आत्मघाती साबित होगी, डोनाल्ड ट्रम्प की चीन की अर्थव्यवस्था को नुक्सान पहुंचाने की नीति अमरीका के लिए भारी पड़ेगी, अमरीका की अर्थव्यवस्था ही चरमरा जाएगी, अमरीकी बाजार के उपभोक्ताओं को अपनी जरूरत की वस्तुओं को खरीदने के लिए अत्यधिक भुगतान करना होगा, यह स्थिति डोनाल्ड ट्रम्प के लिए न केवल हानिकारक होगी बल्कि जनता के आक्रोश को जन्म देने वाली होगी। 

चीनी अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति
आज चीन की अर्थव्यवस्था की क्या स्थिति है? चीन की निर्यात शक्ति की क्या स्थिति है? ये दोनों प्रश्न बड़े महत्वपूर्ण हैं। इन दोनों प्रश्नों का विश्लेषण यह है कि चीन घाटे में है, चीन की आर्थिक शक्ति की हवा निकल रही है। डोनाल्ड ट्रम्प अपनी मूंछों पर ताव दे सकते हैं। वह यह कह सकते हैं कि उन्होंने चीन की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। चीन की हेकड़ी बंद कर दी है। उसे अमरीका की शक्ति का एहसास करा दिया है। आंकड़े यह बताते हैं कि चीन का निर्यात पिछले तीन सालों के औसत में इस साल बेहद खराब है, ङ्क्षचताजनक है, सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है।

आधिकारिक जानकारी की कसौटी पर यह बात सामने आई है कि चीन के निर्यात में करीब 21 प्रतिशत की गिरावट आई हैै। निर्यात शक्ति में जब गिरावट आएगी तो फिर अन्य क्षेत्रों में भी गिरावट आने की आशंका उत्पन्न होती है, यह आशंका सही साबित हुई है। खास कर आयात क्षेत्र में यह गिरावट देखी जा रही है। आयात क्षेत्र में लगभग 6 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है। सीधी-सी बात है कि जब निर्यात में कमी आएगी तब आयात क्षेत्र खुद-ब-खुद संकटग्रस्त होगा। दुनिया के बाजार पर नजर रखने वाले अर्थशास्त्रियों का ख्याल है कि उम्मीद से कहीं ज्यादा गिरावट देखी जा रही है। दुनिया के अर्थशास्त्रियों की नजर में चीन के निर्यात में गिरावट पूर्वानुमान के मुकाबले करीब 5 प्रतिशत ज्यादा है। 

अमरीका और चीन के बीच ट्रेड वार पिछले साल के जुलाई माह में शुरू हुआ था। चीन ने मनमानी बंद नहीं की। दुनिया के मंचों पर अमरीका के हितों पर छुरी चलाना जारी रखा तो फिर डोनाल्ड ट्रम्प ने भी अपने तरकश से तीर निकाल लिए। अब तक अमरीका ने 3 बार चीन की वस्तुओं पर टैरिफ  यानी शुल्क की बढ़ौतरी की है। अमरीका की इस नीति के खिलाफ चीन ने भी सीनाजोरी दिखाई। दुष्परिणाम यह निकला कि दोनों देशों ने एक-दूसरे के खिलाफ  अरबों डालर के नए कर लगाए हैं। 

अमरीका ने पिछले साल के सितम्बर माह में चीनी उत्पादों पर 200 अरब डॉलर के नए शुल्क लगाए थे। करीब 5 हजार से अधिक चीनी वस्तुएं ऐसी हैं जिस पर अमरीका ने नए कर लगाए हैं। चीनी उत्पादों पर 25 प्रतिशत से ज्यादा कर लगाने का अर्थ यह हुआ कि चीनी वस्तुएं महंगी होंगी। जब चीनी वस्तुएं महंगी होंगी तब दुनिया के अन्य बाजारों की वस्तुओं की मांग बढ़ेगी, दुनिया के अन्य बाजार भी प्रतिस्पर्धा में शामिल होंगे। सबसे बड़ी बात यह है कि अमरीका में जो घरेलू वस्तुओं का उत्पादन है उसे शक्ति मिलने का अवसर प्राप्त हुआ है। 

अर्थव्यवस्था का विकास रुका
चीन की अर्थव्यवस्था अब दुनिया की प्रेरक अर्थव्यवस्था भी नहीं रही है। वह अब दुनिया की सबसे बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था भी नहीं रही है। चीन की अर्थव्यवस्था भी स्थिर नहीं है। तो फिर चीन की वर्तमान अर्थव्यवस्था कैसी है? चीन की अर्थव्यवस्था उथल-पुथल वाली है, मंदी और प्रतिबंधों सहित शुल्कों की मार से दब रही है, उसका विकास और गति रुकी हुई है। चीन की अर्थव्यवस्था की विकास दर लगभग 5 प्रतिशत है जो कहीं से भी स्थिर अर्थव्यवस्था का प्रमाण नहीं है। दुनिया के अर्थशास्त्रियों का मानना है कि चीन अपनी अर्थव्यवस्था का सही चित्रण कभी करता नहीं है, उसकी अर्थव्यवस्था हमेशा झूठ और मनगढ़ंत बातों पर आधारित होती है। चीन में प्रैस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है नहीं। 

प्रैस और अभिव्यक्ति चीन की कम्युनिस्ट तानाशाही कैद में खड़ी रहती हैं। जबकि विदेशी मीडिया की भी चीन में उपस्थिति लगभग नगण्य है। इस  स्थिति में चीन की अर्थव्यवस्था का सही आकलन संभव ही नहीं हो सकता है। अर्थव्यवस्था आधारित चीन के कथन को ही स्वीकार करना पड़ता है। जबकि दुनिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं की कसौटी ऐसी नहीं है। दुनिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं के प्रति निष्पक्ष आकलन प्रस्तुत हो जाता है। जब अमरीका में मंदी आई हुई थी और अमरीकी अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी तो इसकी सूचना पूरी दुनिया को थी। दुनिया ने भी इस संकट से निकलने के लिए अपने ढंग से कोशिश की थी। 

चीनी वस्तुओं की गुणवत्ता भी एक बड़ा प्रश्न है। भारतीय बाजार में चीनी वस्तुओं का शिकंजा तो मजबूत है पर चीनी उत्पादों की गुणवता हमेशा निचले पायदान पर रहती है, जिसका नुक्सान भारतीय उपभोक्ताओं को होता है, ऐसी ही स्थिति दुनिया के अन्य उपभोक्ता बाजारों की भी है। अमरीका और चीन के बीच में जारी ट्रेड वार से दुनिया के अन्य बाजार भी प्रभावित हैं। इसलिए चीन और अमरीका के बीच जारी ट्रेड वार का समाधान जरूरी है, पर क्या चीन अपनी हेकड़ी छोडऩे के लिए तैयार है?-विष्णु गुप्त    

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