नागरिकता संशोधन कानून ने ‘संदेह के बीज’ बो दिए

Edited By ,Updated: 24 Dec, 2019 02:56 AM

the citizenship amendment act sowed seeds of doubt

यह संतोष का सर्दी का मौसम है। देश के सभी भागों में विभिन्न शहरों में आक्रोश और असंतोष व्याप्त है। विभिन्न शहरों में छात्र, नागरिक समाज के कार्यकत्र्ता और राजनेता नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं जिसके चलते दिल्ली का जामिया...

यह संतोष का सर्दी का मौसम है। देश के सभी भागों में विभिन्न शहरों में आक्रोश और असंतोष व्याप्त है। विभिन्न शहरों में छात्र, नागरिक समाज के कार्यकत्र्ता और राजनेता नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं जिसके चलते दिल्ली का जामिया मिलिया विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और लखनऊ का नदवा विश्वविद्यालय और कई जिले युद्धक्षेत्र जैसे बन गए हैं और यह सरकार के प्रति उनके आक्रोश को प्रदर्शित करता है। 

हिंसा की किसी को संभावना नहीं थी
इस कानून को लागू करने के संबंध में हिंसा की किसी को संभावना नहीं थी और इसके विरुद्ध ङ्क्षहसा के चलते गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट किया है कि यह कानून ऐसे किसी नागरिक की नागरिकता नहीं ले रहा है जो भारत में 1987 से पहले पैदा हुआ है या जिसके माता-पिता 1987 से पहले भारत के नागरिक थे। इसमें किसी को भी नागरिकता संशोधन कानून को लेकर ङ्क्षचता नहीं करनी चाहिए। सरकार ने बेंगलूर, अहमदाबाद, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के कई शहरों आदि में धारा 144 लागू की है और प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध पुलिस कड़ी कार्रवाई कर रही है। 

सभी धर्मों को समान मानने की संवैधानिक कसौटी पर खरा नहीं उतरता
किन्तु नागरिकता संशोधन कानून का तात्पर्य क्या है? क्या प्रत्येक नागरिक को अधिकरण के समक्ष पेश होना पड़ेगा और जो लोग इसमें विफल हो जाएंगे उन्हें विदेशी समझा जाएगा? नागरिकता साबित करने के लिए क्या दस्तावेज चाहिएं? यह सच है कि इस कानून से उन हिन्दू, जैन, सिख, ईसाइयों और पारसी शरणार्थियों को राहत मिली है जो भारत में विभिन्न शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं और अब उन्हें नागरिकता मिल जाएगी। किन्तु इससे श्रीलंकाई हिन्दुओं और अफगानी मुस्लिम प्रवासियों की स्थिति में बदलाव नहीं आएगा। कुछ लोगों का मानना है कि नागरिकता संशोधन कानून सभी धर्मों को समान मानने की संवैधानिक कसौटी पर खरा नहीं उतरता है। प्रश्न यह भी उठता है कि सरकार इन शरणार्थियों को कहां बसाएगी क्योंकि भारत में पहले ही जनसंख्या विस्फोट है और इन लोगों को नागरिकता देने से संसाधनों पर दबाव पड़ेगा तथा बेरोजगारी बढ़ेगी। 

प्रश्न यह भी उठता है कि क्या धार्मिक आधार पर धु्रवीकरण सत्तारूढ़ भाजपा की योजना का अंग है या नहीं। कुछ लोग जानना चाहते हैं कि क्या यह प्रदर्शन केवल मुसलमान कर रहे हैं। किन्तु पूरे देश में नागरिकता संशोधन कानून के विरुद्ध प्रदर्शन में लोगों को सरकार के प्रति अपने आक्रोश को व्यक्त करने का अवसर मिला है। 

अंतर्राष्ट्रीय दृष्टि से मोदी की छवि पर प्रभाव पड़ा
भगवा संघ भी नागरिकता संशोधन कानून के बारे में विशेषकर मुस्लिम जनता को अवगत कराने के लिए कार्यशालाएं और व्याख्यान देने की योजना बना रहा है। अंतर्राष्ट्रीय दृष्टि से मोदी की छवि पर प्रभाव पड़ा है। नागरिकता संशोधन कानून का प्रभाव यह रहा है कि जापान के प्रधानमंत्री आबे ने अपनी भारत यात्रा रद्द कर दी। अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस आदि पश्चिमी देशों ने भी इसकी आलोचना की। बंगलादेश की शेख हसीना सरकार ने भी विदेश मंत्री का भारत दौरा स्थगित किया। भारत सरकार अफगानिस्तान और बंगलादेश में मित्र सरकारों को यह समझाने का प्रयास कर रही है कि वहां की वर्तमान सरकारों ने धार्मिक उत्पीडऩ नहीं किया है। हार्वर्ड और एम.आई.टी. जैसे विश्वविद्यालयों ने पुलिस कार्रवाई की आलोचना की है। 

कुछ लोगों का मानना है कि नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर संघ की उस बड़ी योजना का अंग है जिनका उपयोग वह भारत के संविधान को बदलने का प्रयास कर रहा है। साथ ही वह लोगों को यह भी समझाने का प्रयास कर रहा है कि उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों के संरक्षण का विरोध कौन करेगा। एक शिक्षाविद् के अनुसार ‘‘भाजपा ने ऐतिहासिक दृष्टि से धार्मिक धु्रवीकरण का उपयोग एक चुनावी रणनीति के रूप में किया है और अब वह यही नीति अपनाकर कानून बना रही है और इस संबंध में नागरिकता संशोधन कानून सांकेतिक है क्योंकि इससे भारतीय नागरिक प्रभावित नहीं होते हैं। किन्तु यदि इसके साथ राष्ट्रीय जनगणना रजिस्टर को जोड़ दिया जाए तो यह सरकार का एक शक्तिशाली हथियार बन जाता है जिसका उपयोग मुसलमानों को मताधिकार से वंचित करने के लिए किया जा सकता है। 

देश में बहुसंख्यकवाद लाने का प्रतीक बन गया है यह कानून
इसका उद्देश्य पूरे देश में हिन्दू, मुसलमान धु्रवीकरण करना है जिससे भाजपा को राजनीतिक लाभ मिलेगा क्योंकि उसका मानना है कि यदि मुसलमान एकजुट होंगे तो वे कांग्रेस का समर्थन नहीं करेंगे तथापि नागरिकता संशोधन कानून ने संदेह के बीज बो दिए हैं और यह देश में बहुसंख्यकवाद लाने का प्रतीक बन गया है। एक समाजशास्त्री के अनुसार नागरिकता संशोधन कानून के अंतर्गत उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों की वापसी का अधिकार एक मूलवंशीय लोकतंत्र है जो भाजपा की हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा से मेल खाता है। 

कुछ आलोचकों का मानना है कि यह मोदी-शाह के गुजरात मॉडल की पुनरावृत्ति है जिसके अंतर्गत बांटो, धु्रवीकरण करो और लाभ उठाओ जिसके अनुसार नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय जनगणना रजिस्टर के विरुद्ध प्रदर्शन का दीर्घकालीन प्रभाव यह होगा कि गुजरात की  तरह पूरे देश में मुसलमान दोयम दर्जे के नागरिक बन जाएंगे। किन्तु संघ परिवार इसका यह कहकर प्रत्युत्तर देता है ‘‘टुकड़े-टुकड़े गैंग, शहरी नक्सलवादी और छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी जितना अधिक विरोध करेंगे हिन्दुत्व के नायक के रूप में हमारी छवि उतनी ही मजबूत होगी। यह एक नए इतिहास का निर्माण होगा जहां पर मुस्लिम वोट बैंक राजनीति को राजनीतिक आत्महत्या समझा जाएगा।’’ कुछ लोगों का मानना है कि भारत में इस बारे में बहस शुरू होनी चाहिए कि वह किस प्रकार की धर्मनिरपेक्षता चाहता है क्योंकि इसकी आड़ में धर्म पर हर तरह के हमले किए गए हैं जिसके चलते विभिन्न पंथ इस वैध बहुधार्मिक राज्य के शिकार बने हैं। 

मुसलमानों के लिए धर्मनिरपेक्षता का तात्पर्य है कि उनका पर्सनल कानून सुरक्षित नहीं है और हिन्दुओं के लिए उनकी धार्मिक प्रथाएं। ईसाई मानते हैं कि कुछ कानून उनके मिशनरी कार्य को निशाना बनाते हैं और जिनका उपयोग उनकी चर्च सेवा के विरुद्ध किया जा सकता है। वर्तमान में व्याप्त भय की मानसिकता में विपक्ष और लोगों को धर्मनिरपेक्षता के बारे में चर्चा करनी चाहिए और इस बारे में आम सहमति पर पहुंचना चाहिए कि हम भारत के लिए किस प्रकार का भविष्य चाहते हैं। संविधान में किसी शब्द के होने का तात्पर्य यह नहीं है कि वह शब्द बहस से परे हो गया है। 

कुल मिलाकर यह आवश्यक है कि केन्द्र, राज्य और सभी राजनीतिक दल नागरिकता संशोधन कानून-राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के बारे में गतिरोध दूर करने का प्रयास करें और शांति बनाए रखें। एक जीवंत लोकतंत्र नागरिकों के विरोध प्रदर्शन अथवा सभी की राय और सहमति-असहमति का सम्मान करता है। इस बड़ी राजनीतिक चुनौती के समक्ष सरकार को सभी पक्षों के साथ वार्ता शुरू करनी चाहिए और लोकतंत्र में लोगों के विश्वास को बहाल करने के लिए तालमेल स्थापित करना चाहिए। देश में राष्ट्रवाद, वर्चस्ववाद के एक नए चरण में प्रवेश कर रहा है और इसका अमल भी किया जाने लगा है। वर्तमान में व्याप्त असंतोष बताता है कि भारत का लोकतंत्र अभी भी जीवंत है और आगे बढ़ रहा है।-पूनम आई. कौशिश

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