रघुराम राजन और राकेश मोहन के मामले में मोदी सरकार की आलोचना ‘गलत’ थी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Jul, 2017 11:51 PM

the criticism of the modi government on rakesh mohan was wrong

अधिकतर लोग मुझे आलोचक मानते हैं या फिर कम से कम यह मानते हैं.....

अधिकतर लोग मुझे आलोचक मानते हैं या फिर कम से कम यह मानते हैं कि मैं मोदी सरकार का समर्थक नहीं हूं। दोनों ही व्याख्याओं से मेरा कोई झगड़ा नहीं। फिर भी मैं खुद को  ऐसे बहिर्मुखी और संतुलित पत्रकार के रूप में देखता हूं जो कि कत्र्तव्यवश ही निष्पक्ष होने को मजबूर है। कुछ ही पलों में आप समझ जाएंगे कि मैंने अपने स्तम्भ की शुरूआत इस प्रकार क्यों की है? 

हाल ही के दिनों में दो तथ्य मेरे ध्यान में आए हैं जो भारतीय रिजर्व बैंक की गवर्नरशिप की मोदी सरकार द्वारा हैंडलिंग को देखने के मीडिया और वास्तव में व्यापक जनसमूह के तरीके को बदल देंगे। वर्तमान अवधारणा यह है कि रघुराम राजन को दूसरी कार्यावधि से इंकार करना मोदी सरकार की कृतघ्नता तथा अन्यायपूर्ण व्यवहार था। कुछ लोगों ने तो यहां तक दलील दी कि रघुराम को जबरदस्ती बाहर का रास्ता दिखाया गया था। थोड़े से लोग ऐसे भी हैं जो रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर राकेश मोहन को गवर्नर  बनाए जाने को लेकर सरकार की आलोचना करते हैं। बहुत से लोगों का मानना है कि आर.बी.आई. के गवर्नर पद के लिए वह सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हैं। 

इस बात पर मुझे किसी प्रकार का जोर देने की जरूरत नहीं कि रघुराम राजन के साथ कथित दुव्र्यवहार के लिए सरकार की कितनी किरकरी हुई है। राकेश मोहन की कथित अनदेखी ने इतना ध्यान नहीं खींचा, हालांकि जानकार लोग उनके मामले में भी बहुत अधिक मुखर होकर आलोचना कर रहे थे। ऐसे में यही आभास होता है कि दोनों ही मामलों में अपमान गलत और अन्यायपूर्ण था। अति सम्मानजनक सूत्रों ने मुझे बताया है कि राजन को 2 वर्ष का कार्य विस्तार प्रस्तुत किया गया था। असली समस्या यह थी कि वह शिकागो यूनिवर्सिटी से अपने अवकाश को विस्तार दिए जाने की अनुमति हासिल नहीं कर पाए थे। ऐसे में उन्हें इस अमूल्य कार्यविस्तार से वंचित होना पड़ा। यदि वह अपने पद पर बने भी रहते तो यूनिवर्सिटी से केवल उन्हें 8 माह का ही अतिरिक्त अवकाश उपलब्ध होना था।

ऐसे में हर कोई इस बात को समझ सकता है कि सरकार को क्यों यह फैसला लेना पड़ा कि इतनी मात्र अवधि से काम चलने वाला नहीं। यदि राजन को कार्य विस्तार दिया गया होता और वह 8 माह बाद पद छोड़ कर चलते बनते तो आर.बी.आई. के प्रबंधन को लेकर बहुत बड़ी अनिश्चितता पैदा हो जाती। ऐसे में सरकार ने नया गवर्नर नियुक्त करने का रास्ता चुना। 

इस रोशनी में देखा जाए तो यह स्पष्ट है कि राजन के साथ किसी प्रकार का दुर्व्यवहार नहीं हुआ था और इस मुद्दे पर सरकार को जो आलोचना झेलनी पड़ी वह पूरी तरह अन्यायपूर्ण एवं गलत थी। इसके अतिरिक्त ये विवरण थोड़े से लोगों को विदित थे लेकिन इनकी कभी भी सम्पूर्ण रिपोर्टिंग नहीं हुई, हालांकि गत सितम्बर में न्यूयार्क टाइम्स को दिए साक्षात्कार में राजन ने इन तथ्यों की ओर स्पष्ट संकेत किया था। उस अखबार ने लिखा था: ‘‘राजन ने कहा कि वह सरकार के साथ तीन वर्ष के पूरे कार्यकाल के लिए सेवारत रहने के मुद्दे पर समझौते पर नहीं पहुंच सके थे और इसी विफलता के कारण उन्हें अलविदा लेनी पड़ी।’’ 

अब हम राकेश मोहन के मुद्दे पर आते हैं। मुझे अत्यंत भरोसेयोग्य सूत्रों से पता चला है कि सरकार ने उन्हें रिजर्व बैंक का गवर्नर बनाने के लिए उन तक पहुंच की थी और सरकार को बेहद उम्मीद थी कि वह इस अनुरोध को स्वीकार कर लेंगे। दुर्भाग्यवश एक बिल्कुल ही व्यक्तिगत और मार्मिक समस्या ने उन्हें सकारात्मक प्रतिक्रिया देने से रोक लिया। इस प्रकरण के अधिक विवरणों में जाना शोभनीय नहीं होगा परंतु इस बात की मैं पुष्टि कर सकता हूं कि उन्होंने सरकार से निवेदन किया था कि उनके नाम पर विचार न किया जाए। हालांकि यह पद उनके करियर का चरम बिन्दु होना था लेकिन उन्होंने बहुत ही सलीकेपूर्ण ढंग से इंकार कर दिया था। 

फिर भी मैं इतना अवश्य कह सकता हूं कि सरकार ने भरसक प्रयास किए थे कि राकेश मोहन ऐसी स्थिति में आ जाएं कि इस पद को स्वीकार कर लें। खेद की बात है कि ऐसा सम्भव न हो सका। इसलिए मैं एक बार फिर कहना चाहूंगा कि राकेश मोहन की अनदेखी के नाम पर सरकार की जो आलोचना की गई है वह भी गलत और अन्यायपूर्ण है। मैंने इन दोनों तथ्यों का प्रसंग इसलिए प्रस्तुत किया है क्योंकि वे सरकार को बिल्कुल ही अलग रोशनी में उजागर करते हैं क्योंकि बहुत से लोग अब तक सरकार को ही कटघरे में खड़ा करते आए हैं और मैं भी इस मुद्दे पर सरकार के बहुत से आलोचकों में से एक था। 

आज यह विवरण आपके साथ सांझा करके मैंने अपनी आत्मा का बोझ हल्का किया है। वैसे सरकार ने ढेर सारे बढिय़ा काम किए हैं और मैं उन कामों की भी आलोचना करता रहा हूं। मेरे समूचे रवैये में कोई यू-टर्न नहीं है। लेकिन निष्पक्षता का तकाजा है कि मैं सरकार को भी इसका बनता श्रेय जरूर दूं। इन दोनों ही मामलों में सरकार के आलोचक और विरोधी गलत थे। अन्य किसी प्रकार की टिप्पणी मैं नहीं करना चाहूंगा। 

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!