Edited By Pardeep,Updated: 04 Apr, 2018 04:02 AM
किसी को भी समाचारपत्रों तथा प्राइम टाइम टी.वी. चैनल्स की सुॢखयों पर हैरानी नहीं होनी चाहिए कि संसद का वर्तमान सत्र ‘धुलने’ की ओर अग्रसर है। बेकार होने वाला यह लगातार 12वां सत्र है। दरअसल गत दो दशकों से हम प्रत्येक संसद सत्र की समाप्ति पर लगभग एक...
किसी को भी समाचारपत्रों तथा प्राइम टाइम टी.वी. चैनल्स की सुर्खियां पर हैरानी नहीं होनी चाहिए कि संसद का वर्तमान सत्र ‘धुलने’ की ओर अग्रसर है। बेकार होने वाला यह लगातार 12वां सत्र है। दरअसल गत दो दशकों से हम प्रत्येक संसद सत्र की समाप्ति पर लगभग एक जैसी सुर्खियां देखते आ रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप लोग सांसदों द्वारा काम नहीं करने के कारण निराश हो रहे हैं।
संसद के एक चुने हुए सदस्य के कार्य तथा कत्र्तव्य क्या हैं? उनके चार महत्वपूर्ण कार्य होते हैं-बजट की समीक्षा, निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के हितों की रक्षा करना, सरकार के ऊपर निगरानी रखने वाले के तौर पर कार्य करना तथा सबसे बढ़कर कानून बनाना। क्या वे उन कार्यों को कर रहे हैं जिनके लिए उन्हें चुना गया था? यह अडिय़ल रवैया अब केवल कांग्रेस नीत विपक्ष तक ही सीमित नहीं है क्योंकि जब भाजपा विपक्ष में थी तो वह भी यही कार्य कर रही थी। जहां सरकार विपक्ष को दोष दे रही है, वहीं विपक्ष उनसे सम्पर्क न बनाने के लिए भाजपा को दोष दे रहा है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 25 मार्च को कर्नाटक में एक रैली में कहा था, ‘‘संसद में मोदी सरकार के खिलाफ एक अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। गत 10 दिनों से इसे रोका जा रहा है क्योंकि सरकार डर रही है।’’ अत: यह एक-दूसरे पर दोषारोपण का खेल है। जहां राजनीतिक दल यह दावा करते हैं कि वे पहले काम करने के इच्छुक थे, वहीं यह पहले दिन से ही स्पष्ट हो गया था कि न तो सरकार और न ही विपक्ष की इच्छा इस सत्र के दौरान संसद की कार्रवाई चलने देने की है। महत्वपूर्ण है कि ऐसा पहली बार हुआ है कि मोदी सरकार को कांग्रेस, तेदेपा तथा टी.आर.एस. द्वारा अलग-अलग लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा है। अन्नाद्रमुक एक और अविश्वास प्रस्ताव लाने की धमकी दे रही है।
दोनों सदनों के अध्यक्षों ने सांसदों से सदन की कार्रवाई चलाने का आग्रह किया मगर कोई फायदा नहीं हुआ। राज्यसभा के अध्यक्ष एम. वेंकैया नायडू ने अफसोस जताया कि सदन में अव्यवस्था, अनुशासनहीनता तथा सदस्यों के दुव्र्यवहार के कारण उन्हें दुख पहुंचा है। उन्होंने सदस्यों से कई बार अपील की कि वे ‘राजनीति की गुणवत्ता’ का और क्षरण न करें। अंतत: गत सप्ताह सेवानिवृत्त हो रहे 70 सांसदों को राज्यसभा से विदाई देने में उन्हें सफलता मिल गई। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को ऐसी कोई सफलता नहीं मिली। ऊपरी सदन में केवल ग्रैच्युटी के भुगतान (संशोधन) संबंधी विधेयक 2017 ही पारित किया जा सका, जबकि लोकसभा में वित्त विधेयक 2018 के साथ-साथ अगले वित्त वर्ष के लिए 89 करोड़ के खर्चे की योजना को बिना किसी चर्चा के आधे घंटे में ही क्लीयर कर दिया गया। सदन ने विधेयक में कर प्रस्तावों के लिए 21 संशोधनों के साथ-साथ 99 सरकारी विभागों व मंत्रालयों के लिए बजटीय योजना वाले विनियोग विधेयक को ध्वनि मत से पारित कर दिया।
विपक्ष ने विभिन्न मुद्दों को लेकर सरकार को दोनों सदनों में रोका। मुख्य रूप से दक्षिण के चार प्रमुख राजनीतिक दलों-अन्नाद्रमुक, टी.आर.एस., वाई.एस.आर. कांग्रेस तथा तेदेपा, जिन्हें अन्य विपक्षी दलों का समर्थन था, ने संसद की कार्रवाई को अवरुद्ध किया। प्रतिदिन जैसे ही सदन की कार्रवाई प्रारम्भ होती, अन्नाद्रमुक के 37 सदस्य सदन अध्यक्ष के आसन तक पहुंच जाते और सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड के गठन की मांग करने लगते। टी.आर.एस. चाहती थी कि राज्य में इसके द्वारा मुसलमानों को दिया गया 12 प्रतिशत आरक्षण 9वीं सूची के अंतर्गत अधिसूचित किया जाए। राजग की सहयोगी तेदेपा गत माह अपना गठबंधन तोडऩे के बाद आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करने में और भी उग्र हो गई जैसा कि 2014 में राज्य के विभाजन के समय वायदा किया गया था। वाई.एस.आर. कांग्रेस भी यही मांग कर रही है तथा दोनों दलों ने मोदी सरकार के खिलाफ अलग से अविश्वास प्रस्ताव पेश किए हैं।
राजनीतिक तौर पर कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए यह अप्रत्याशित नहीं है जहां कांग्रेस तथा भाजपा दोनों के बीच सीधी लड़ाई है। जहां तक अन्नाद्रमुक की बात है, यह स्थानीय प्रतिस्पर्धी लड़ाई है, जो वह संसद में खेल रही है। तेदेपा तथा वाई.एस.आर. कांग्रेस के मामले में भी ऐसा ही है। एक और सत्र गंवाने से न तो सरकार को और न ही विपक्ष को कोई फर्क पड़ेगा। कृषि संकट, नीरव मोदी-पी.एन.बी. घोटाला, ईराक मुद्दा, कैम्ब्रिज एनालिटिका डाटा बिक्री, पश्चिम बंगाल तथा बिहार में रामनवमी पर हुई हिंसक झड़पों जैसे बहुत से महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। निश्चित तौर पर यह सरकार पर निर्भर करता है कि वह दोनों सदनों में कामकाज सुनिश्चित बनाए और विपक्ष तक पहुंच करे। मगर विपक्ष की भी जिम्मेदारी है कि वह चर्चा में भाग ले और सरकार का पर्दाफाश करे। वर्तमान में सरकार तथा विपक्ष के बीच संबंध पूरी तरह से टूटे हुए हैं।
सरकार को उत्तर तथा दक्षिणी राज्यों के बीच बढ़ती दरार पर भी ध्यान देना चाहिए क्योंकि दक्षिणी राज्य अपने साथ सौतेले व्यवहार की शिकायत कर रहे हैं। यदि ऐसा ही चलता रहा तो देश के लोगों का राजनीतिज्ञों में विश्वास नहीं रहेगा। वे पहले ही राजनीतिक वर्ग से निराश हो चुके हैं, जो वोटिंग मशीन पर ‘नोटा’ का बटन दबाने की बढ़ती जा रही संख्या से उनके गुस्से को प्रदर्शितकरता है। संसद लोकतंत्र का मंदिर है और यदि यह ढह गया तो लोकतंत्र भी बिखर जाएगा।-कल्याणी शंकर