यूरोप में महिलाओं की अस्मिता पर भारी पड़ रही शरणार्थी समस्या

Edited By ,Updated: 11 Jan, 2016 11:56 PM

the dignity of women in europe overshadowed the refugee problem

शरणार्थी अब यूरोप के लिए भस्मासुर साबित हो रहे हैं, शरणार्थियों के खिलाफ आशंका सच साबित हो रही है, जिस यूरोपीय समाज ने शरणार्थियों को मानवाधिकार के नाम पर रहने और जीवन सक्रिय करने के लिए अवसर

(विष्णु गुप्त): शरणार्थी अब यूरोप के लिए भस्मासुर साबित हो रहे हैं, शरणार्थियों के खिलाफ आशंका सच साबित हो रही है, जिस यूरोपीय समाज ने शरणार्थियों को मानवाधिकार के नाम पर रहने और जीवन सक्रिय करने के लिए अवसर और जगह उपलब्ध कराई, उसी यूरोपीय समाज के खिलाफ शरणार्थी अपराधी बन कर लूट-पाट ही नहीं कर रहे हैं बल्कि महिलाओं को यौन हिंसा का शिकार बनाने से भी परहेज नहीं कर रहे हैं।

यूरोप के सभ्य समाज में शरणार्थियों का अपराध और खासकर महिलाओं के खिलाफ बर्बरता के स्तर को भी पार कर गया है। किसी एक यूरोपीय देश नहीं बल्कि उन सभी यूरोपीय देशों में महिलाओं के प्रति अपराध, खासकर यौन हिंसा की घटनाओं की बाढ़ आई है जिन्होंने शरणार्थियों को गले लगाया है। इस नए साल के चंद दिनों में ही सिर्फ जर्मनी में 500 से अधिक महिलाओं को यौन हिंसा का शिकार बनाया गया है। इसी तरह बैल्जियम और नार्वे में भी महिलाओं को यौन ङ्क्षहसा का शिकार बनाया गया है। 
 
यौन हिंसा की शिकार यूरोप की महिलाओं ने इसके लिए उन शरणार्थियों को जिम्मेदार और अपराधी करार दिया है जिन्हें मानवाधिकार के नाम पर दया स्वरूप यूरोप में प्रवेश दिया गया तथा जिन्हें शरणार्थी का दर्जा देकर इनके रहने और विकास के अवसर उपलब्ध कराए गए हैं।
 
शरणार्थियों के अपराध के कारण यूरोप के देशों की लोकतांत्रिक सरकारों की बड़ी फजीहत हो रही है और आम लोगों का गुस्सा उनके ऊपर टूट रहा है। जर्मनी, बैल्जियम और नार्वे जैसे देशों ने यह स्वीकार किया है कि उनकी शरणार्थी नीति अब आत्मघाती साबित हो रही है। 
 
शरणार्थियों के बढ़ते अपराध और इसके खिलाफ गुस्से के बढ़ते अनुपात के कारण उन्हें शरणार्थी नीति बदलनी पड़ सकती है। यूरोप के नागरिक संगठनों ने मांग की है कि शरणार्थी नीति में संशोधन किया जाए और अपराध में शामिल शरणार्थियों को उनके मूल देश भेजा जाना चाहिए, कथित मानवाधिकार के नाम पर इन्हें लूट-पाट और महिलाओं को यौन हिंसा का शिकार बनाने की छूट नहीं होनी चाहिए। यह सही है कि अरब और अफ्रीकी देशों से आए शरणाॢथयों के कारण यूरोप की लोकतांत्रिक व्यवस्था प्रभावित हुई है और यूरोप की मूल सांस्कृतिक व्यवस्था भी बड़े संकट में घिर गई है। 
 
यूरोप की मूल सांस्कृतिक व्यवस्था पर आयातित सांस्कृतिक व्यवस्था ने हस्तक्षेपकारी शक्ति हासिल कर रखी है। जानना यह भी जरूरी है कि शरणाॢथयों के वेश में अलकायदा, आई.एस., बोको हराम और हिजबुल्ला के आतंकवादी भी घुसपैठ कर गए हैं। फ्रांस में हाल में हुए आतंकवादी हमलों में शरणार्थी के वेश में घुसे आई.एस. के आतंकवादियों का ही हाथ था। ऐसी आपराधिक प्रवृत्ति से शरणार्थियों के लिए संकट बढऩे वाले हैं और इसके लिए शरणार्थी ही जिम्मेदार हैं।
 
यूरोप में महिलाओं की आजादी पहली प्राथमिकता होती है। महिलाओं को अपनी इच्छानुसार जिंदगी जीने की छूट होती है। महिलाएं पुरुषों की तरह खुलेपन और उदारता की राह पर गतिमान रहती हैं। वे कम कपड़े पहनती हैं, रात में क्लब जाती हैं, सार्वजनिक जगहों पर शराब का सेवन करती हैं पर यूरोपीय समाज व्यवस्था कोई आपत्ति नहीं करती है।
 
किसी सभ्य समाज व्यवस्था को अराजक, ङ्क्षहसक व शिष्टाचारविहीन शरणार्थियों के हवाले नहीं किया जाना चाहिए। अराजक, हिंसक और शिष्टाचारविहीन शरणार्थी रातों-रात या मिनटों-मिनट में न तो सभ्य बन सकते हैं, न ही अहिंसक और शिष्टाचारयुक्त हो सकते हैं। एक लंबी प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही इन लोगों को रास्ते पर लाया जा सकता है।
 
लेकिन एक यह खतरा भी है कि ऐसी प्रवृत्ति को सही रास्ते पर लाने में एक बड़ा समय लग जाएगा। ऐसी स्थिति में असभ्य, अराजक हिंसक और शिष्टाचारविहीन शरणार्थियों का समूह जो नुक्सान करेगा और जिस प्रकार से यूरोप की सभ्य समाज व्यवस्था में जहर घोलेगा उसका दुष्परिणाम कितना भयानक होगा, उसका अंदाजा भी लगाया जा सकता है। 
 
इसकी एक झांकी तो उन यूरोपीय देशों ने अभी से ही देखनी शुरू कर दी है जिन्होंने कथित मानवाधिकार के नाम पर अपने यहां अति उत्साह में शरणार्थियों को शरण दी है, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि यह देखने व समझने की कोशिश तक नहीं की गई कि अरब और अफ्रीकी देशों से जो शरणार्थियों की बाढ़ आ रही है, उसमें कितने हिंसक हैं, कितने अराजक हैं, कितने असभ्य हैं और कितने शिष्टाचारविहीन हैं, कितने आतंकवादी हैं, उनके अन्दर यूरोप की महिलाओं की उदार संस्कृति को पचा पाने की शक्ति है या नहीं। 
 
बाढ़ जब आती है तो सिर्फ अपने साथ पानी लेकर ही नहीं आती है, बाढ़ अपने साथ पानी में कई प्रकार की गाद भी लेकर आती है। अरब और अफ्रीकी देशों से जो शरणार्थियों की बाढ़ आई है उसमें कुछ सभ्य लोग भी होंगे, कुछ हिंसा विरोधी भी होंगे, कुछ तानाशाही विरोधी भी होंगे पर कुछ के हिंसक और कुछ के आतंकवादी होने की आशंका से इंकार कैसे किया जा सकता है?
 
एक बड़ा सवाल यहां यह है कि अरब और अफ्रीका से आए शरणार्थियों को असभ्य कहा जाए या नहीं, हिंसक कहा जाए या नहीं, अराजक कहा जाए या नहीं, शिष्टाचारविहीन कहा जाए या नहीं? सिद्धांत: शरणार्थियों के मानवाधिकार के पक्षों को ही ध्यान में रखा जाता है, शरणाॢथयों के पूरे समूह को भी असभ्य, अराजक, हिंसक और शिष्टाचारविहीन कहना कहीं से भी उचित नहीं है। 
 
संयुक्त राष्ट्र की संहिता भी कहती है कि शरणार्थियों के मानवाधिकार की रक्षा करना हर देश की जिम्मेदारी और बाध्यता भी है पर व्यवहार में यह देखा गया है कि असभ्य और हिंसक देशों के लिए शरणार्थियों के मानवाधिकार कोई अर्थ नहीं रखते हैं बल्कि ऐसे देश न केवल शरणार्थियों के मानवाधिकार की बल्कि सभी प्रकार के मानवाधिकार की कब्र खोदते हैं। मानवाधिकार का सम्मान तो सभ्य देश करते हैं। शरणार्थी भी वैसे देशों में जाना नहीं चाहते हैं जिन देशों में राजकता नहीं है, जिन देशों में शांति नहीं है, 
 
जिन देशों में लोकतंत्र नहीं है, जिन देशों में मानवाधिकार के प्रति कोई समर्पण नहीं है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो यही है कि सीरिया, ईराक और यमन जैसे देश से कोई शरणार्थी पाकिस्तान नहीं गया, ईरान नहीं गया, कोई शरणार्थी कतर नहीं गया, कोई मलेशिया या सऊदी अरब नहीं गया, जबकि पाकिस्तान, ईरान, मलेशिया, कतर और सऊदी अरब जैसे देश न केवल मुस्लिम देश हैं बल्कि इनके पास अथाह पैसा है और तेल-गैस की बड़ी भारी शक्ति है पर ये देश कभी भी शरणार्थियों को गले लगाने के लिए तैयार  नहीं होते हैं। ये मुस्लिम देश कट्टरता और मजहब के नाम पर कूटनीतिक स्वार्थ साधने का कोई अवसर नहीं छोड़ते हैं। एक बड़ा सवाल यह उठता है कि मुस्लिम देश खुद-मुस्लिम शरणार्थियों को गले लगाने के लिए तैयार क्यों नहीं हैं?
 
नार्वे, बैल्जियम जैसे यूरोपीय देशों ने शरणाॢथयों की यौन हिंसा से निजात पाने के लिए कई प्रकार के कोर्स शुरू किए हैं। यूरोपीय देश यह निष्कर्ष रखते हैं कि यूरोप की महिलाओं के खुलेपन से शरणार्थी के युवा वर्ग यौन हिंसा पर उतारू होते हैं। अगर शरणार्थियों में महिला सम्मान की बात जगाई जाए तो फिर शरणाॢथयों की यौन हिंसा में कमी जरूर आएगी।
 
पर यूरोप के राष्ट्रवादी और कानून के शासन में विश्वास रखने वाले लोग अलग ख्याल रखते हैं। वे कहते हैं कि शरणाॢथयों के समूह में सुधार की संभावना न के बराबर है। इनके अन्दर महिलाओं के सम्मान का भाव आना असंभव है, ये शरण लेने के साथ ही साथ लूट-पाट और महिलाओं को यौन हिंसा का शिकार बनाने के लिए अपराधी बन गए। यूरोप में शरणार्थी कानून में भी संशोधन की मांग उठी है। शरणार्थी कानून के तहत सिर्फ 3 साल तक की सजा पाए शरणार्थी को उसके मूल देश भेजा जा सकता है और यह भी देखना होगा कि संबंधित शरणार्थी को उसके मूल देश में जाने पर आफत तो नहीं आएगी? यूरोप और अमरीका को वहशी, अपराधी और आतंकवादी मानसिकता के शरणार्थियों के खिलाफ कड़ा रुख तो अपनाना ही होगा।     
 
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