राष्ट्र के संसाधनों पर ‘गरीब’ का पहला हक

Edited By ,Updated: 12 Apr, 2020 04:30 AM

the first right of  poor  over the resources of the nation

कोरोना वायरस का पहला पॉजीटिव केस चीन में 30 दिसम्बर 2019 को पाया गया। यह वायरस वुहान सिटी के आसपास फैल गया तथा इसने अपनी पकड़ हुबेई प्रांत तक बना ली। इसके बाद यह चीन के अन्य प्रांतों तथा दुनिया के विभिन्न देशों में फैल गया। पूरे विश्व को इसने अपनी..

कोरोना वायरस का पहला पॉजीटिव केस चीन में 30 दिसम्बर 2019 को पाया गया। यह वायरस वुहान सिटी के आसपास फैल गया तथा इसने अपनी पकड़ हुबेई प्रांत तक बना ली। इसके बाद यह चीन के अन्य प्रांतों तथा दुनिया के विभिन्न देशों में फैल गया। पूरे विश्व को इसने अपनी गिरफ्त में ले लिया। 

जनवरी 2020 की समाप्ति तक 27 देश इससे प्रभावित हो चुके थे। 12 फरवरी 2020 को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया ‘कोरोना वायरस हमारी अर्थव्यवस्था तथा हमारे लोगों के लिए एक बेहद खतरनाक हमला है। मेरा कहना है कि सरकार इस हमले को गम्भीरता से नहीं ले रही। समय पर कार्रवाई करना लाजिमी है’। 12 फरवरी तक केन्द्र सरकार ने दो महत्वपूर्ण कदम उठाए। पहला यह कि सरकार ने 17 जनवरी को कुछ देशों की यात्रा करने के खिलाफ प्रथम एडवाइजरी जारी की। दूसरा यह कि 3 फरवरी को कुछ देशों के यात्रियों को जारी ई-वीजा को निलंबित कर दिया गया। 

राहुल का कहना ठीक था
जैसे कि आशा की जा रही थी, यहां पर वह ट्रोल हुए। एक व्यक्ति सरल पटेल ने लिखा ‘हे, प्रतिभाशाली व्यक्ति क्या आपने ताजा समाचार देखा’। एक अन्य लड़की पूजा ने लिखा ‘ओह गॉड, आप भी समझ सकते हैं।’ चुटकले सुनाना बंद करें और पोगो को देखना जारी रखें। मैं अचंभित हूं कि आज सरल पटेल तथा पूजा कहां छिप कर बैठे हैं। 3 मार्च को राहुल ने एक बार फिर ट्वीट कर मांग की कि इस महामारी से निपटने के लिए ठोस संसाधनों के साथ एक एक्शन प्लान लाना चाहिए। 

14 मार्च को केन्द्र सरकार ने कार्रवाई की तथा कुछ देशों के यात्रियों को क्वारंटाइन किया, पड़ोसी देशों से लगती सभी सीमाएं बंद कर दीं। सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों पर पाबंदी लगा दी, साथ ही घरेलू उड़ानों पर भी प्रतिबंध लगा दिया और अंतत: 25 मार्च को लॉकडाऊन की घोषणा कर दी। बीती बातों को देखते हुए राहुल गांधी का कथन सही था। वह ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस गम्भीर संकट के प्रति चेताया। कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब तथा तमिलनाडु जैसे राज्यों ने केन्द्र सरकार की तुलना में तेजी से कार्रवाई की तथा अपने प्रांतों में लॉकडाऊन की घोषणा कर डाली। यह बहस निरंतर जारी रहेगी कि क्या केन्द्र सरकार को कोरोना वायरस के खिलाफ जारी जंग को देखते हुए मार्च की बजाय फरवरी में ही कड़े कदम नहीं उठा लेने चाहिए थे? 

इस आलेख को लिखने का उद्देश्य पुरानी बातों को काटना नहीं है। मेरा उद्देश्य तो यह है कि सरकार कड़े प्रभावी उपाय उठाए ताकि भारत कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में हर मोड़ पर अग्रणी रहे। लोगों की जानें तथा उनकी रोजी-रोटी बचाई जा सके। इसके साथ ही ढलान पर जा चुकी अर्थव्यवस्था का पुनरुत्थान किया जाए तथा इसे बचाया जा सके। 

कुछ कड़े कदम उठाने की जरूरत
यहां पर ऐसी बातों पर लोगों में सर्वसम्मति है जिसके तहत सरकार को कार्य करना होगा:
1. स्वास्थ्य उपचार तथा रोकथाम
2. गरीबों तथा वंचितों के लिए रोजी-रोटी का प्रबंध
3. जरूरी घरेलू आपूर्ति तथा सेवाओं का रखरखाव
4. मंदी वाली अर्थव्यवस्था का बचाव तथा इसका पुनरुत्थान

पहली बात यह है कि केन्द्र सरकार द्वारा कुछ गलत शुरूआत के बाद ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वह एकजुट होकर कार्य कर रही है। राज्य सरकारों को लॉकडाऊन की पालना करने में सख्ती से पेश आने को कह रही है। महामारीविदों तथा विपक्षी नेताओं के दबाव के अन्तर्गत इसे बढ़ाया गया है। तीव्र नतीजे देने वाले एंटी बॉडी टैस्ट को हाल ही में मान्यता दी गई। स्वास्थ्य सहूलियतों के साथ-साथ मैडीकल तथा बचाने वाले यंत्रों की उपलब्धता को बढ़ाया गया है। इस कार्य में राज्य सरकारें नेतृत्व की भूमिका निभा रही हैं मगर मंजिल अभी दूर है। 

दूसरी बात यह है कि केन्द्र सरकार बुरी तरह से असफल हुई है तथा इसने राज्य सरकारों को वित्तीय समर्थन नहीं बढ़ाया है। देश के संसाधनों पर सबसे पहला हक गरीबों तथा वंचितों का है। 25 मार्च को घोषित केन्द्र सरकार के वित्तीय एक्शन प्लान ने कई वर्गों की अवहेलना की तथा इसने प्रवासी कर्मियों को अपने शहरों तथा कस्बों को छोड़ कर अपने गांवों में जाने के लिए बाध्य किया। कई प्रवासी अपने साथ वायरस ले गए। 

गरीबों का सबसे पहला हक
गरीबों को कुछ नकदी उपलब्ध करवाने के लिए राज्य सरकारों के कदम के बावजूद ज्यादातर गरीब अभी भी खाने-पीने की वस्तुओं के बिना जीवन गुजार रहे हैं। हमें गरीबों का समर्थन करना होगा और उनके हाथों में नकदी भी देनी होगी। यह लक्ष्य भारत में 26 करोड़ परिवारों के 50 प्रतिशत तक को कवर करने का है। शहर में रहते गरीबों के लिए ऑयल मार्कीटिंग कम्पनियों की उज्ज्वला सूची तैयार की जाए। जन-धन खातों का ध्यान रखा जाए और जन आरोग्य आयुष्मान भारत स्कीम के तहत सूचीबद्ध लोगों पर भी निगाह रखी जाए। राज्य सरकारों को बी.पी.एल. सूचियों को क्रास चैक कर अंतिम सूची बनाने के लिए अधिकृत किया जाए। ग्रामीण गरीबों के लिए 2019 के मगनरेगा पे-रोल्स को शुरू किया जाए। इसके साथ-साथ जन धन खाते तथा उज्ज्वला सूची का भी उल्लेख किया जाए। 

जनजातीय क्षेत्रों में सभी परिवार कवर किए जाएं
मेरा मानना है कि राज्यव्यापी सूची (13 करोड़ परिवारों तक) तैयार की जाए। यहां पर कुछ डुप्लीकेशन के मामले हो सकते हैं मगर राष्ट्रीय आपदा में यह मायने नहीं रखता। सूचना प्रौद्योगिकी की सहायता से राज्य सरकारें इस कार्य को 5 दिनों में कर सकती हैं। 14 अप्रैल को प्रधानमंत्री मोदी फिर से राष्ट्रीय टैलीविजन पर आएं और यह घोषणा करें कि पहली किस्त के तौर पर 5000 रुपए प्रत्येक पहचान किए गए गरीब परिवार के बैंक खाते में डाल दिए जाएंगे और यदि लाभार्थी परिवार के पास बैंक खाता नहीं है तब पैसा उनके दरवाजे तक बांटा जाए। यह लागत ज्यादा से ज्यादा 65000 करोड़ आएगी। यह पूरी तरह आर्थिक रूप से न्यायोचित, सामाजिक तौर पर अनिवार्य तथा पूरी तरह से सम्भव है। उसके बाद यदि लॉकडाऊन बढ़ाया गया तब गरीब कष्ट को सह सकेगा। तभी मैंने कहा है कि राष्ट्र के संसाधनों पर गरीब का पहला हक है।-पी. चिदम्बरम

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