सोने की चिडिय़ा आज गरीबी के पिंजरे में है

Edited By ,Updated: 17 Oct, 2021 05:13 AM

the golden bird is in the cage of poverty today

दुनिया भर में गरीबी दूर करने के लिए किए जा रहे प्रयासों के संबंध में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 17 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस मनाया जाता है। भारत लंबे समय से गरीबी का दंश झेल रहा है। स्वतंत्रता पूर्व से लेकर स्वतंत्रता

दुनिया भर में गरीबी दूर करने के लिए किए जा रहे प्रयासों के संबंध में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 17 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस मनाया जाता है। भारत लंबे समय से गरीबी का दंश झेल रहा है। स्वतंत्रता पूर्व से लेकर स्वतंत्रता पश्चात भी देश में गरीबी का आलम पसरा हुआ है। गरीबी उन्मूलन के लिए अब तक कई योजनाएं बनीं, कई प्रयास हुए, गरीबी हटाओ चुनावी नारा बना और चुनाव में जीत हासिल की गई लेकिन इन सब के बाद भी न तो गरीब की स्थिति में सुधार हुआ और न गरीबी का खात्मा हो पाया। 

सत्ता हथियाने के लिए गरीब को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया गया तो सत्ता मिलने के बाद उसे अपने हाल पर छोड़ दिया गया। इसलिए गरीब आज भी वहीं खड़ा है जहां आजादी से पहले था। आज भी सवेरे की पहली किरण के साथ ही गरीब के सामने रोटी, कपड़ा और मकान का संकट खड़ा हो जाता है। यह विडंबना ही है कि सोने की चिडिय़ा के नाम से पहचाने जाने वाले देश का भविष्य आज गरीबी के कारण भूखा-नंगा दो जून की रोटी के जुगाड़ में दरबदर की ठोकरें खा रहा है। 

देश में कितनी गरीबी है, इस बारे सबसे चॢचत आंकड़ा अर्जुन सेनगुप्ता की अगुवाई वाली एक समिति का है। इस समिति ने कुछ साल पहले यह अनुमान लगाया था कि देश की 77 फीसदी आबादी रोजाना 20 रुपए से कम पर गुजर बसर करने को मजबूर है। सरकार के अनुसार गरीब की परिभाषा यह है कि शहरी क्षेत्र में प्रतिदिन 28.65 रुपए और ग्रामीण क्षेत्र में 22.24 रुपए कम से कम जिसकी आय है, वे सब गरीबी रेखा में सम्मिलित हैं। आज जहां महंगाई आसमान छू रही है, क्या 28 और 22 रुपए में एक दिन में तीन वक्त का पेट भर खाना खाया जा सकता है? क्या यह गरीबों का मजाक नहीं है? सांख्यिकीय आंकड़ों के अनुसार 30 रुपए प्रतिदिन की आय कमाने वाला भी गरीब नहीं है। 

गरीबी केवल पेट का भोजन ही नहीं छीनती, बल्कि कई सपनों पर पानी भी फेर देती है। लेकिन हमारे नेता गरीबी को लेकर अभी भी संजीदा नहीं हैं। हम भारत को ‘न्यू इंडिया’ तो बनाना चाहते हैं पर गरीबी को मिटाना नहीं चाहते। हमारे प्रयास हर बार अधूरे ही रह जाते हैं क्योंकि हमने कभी सच्चे मन से इस समस्या को मिटाने की कोशिश की ही नहीं की। गरीबी की बीमारी जब तक भारत को लगी रहेगी, तब तक इसका विकासशील से विकसित बनने का सपना पूरा नहीं हो सकता। वास्तव में गरीबी इतनी बड़ी समस्या नहीं है जितनी बढ़ा-चढ़ा कर उसे हर बार बताया जाता है। सच तो यह है कि गरीबों के लिए चलने वाली दर्जनों सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें मिल ही नहीं पाता, जिसका एक कारण अज्ञानता का दंश भी है। 

दरअसल, गरीबी बढऩे का प्रमुख कारण जनसंख्या में लगातार अनियंत्रित तरीके से वृद्धि हुई है। जिस सीमित जनसंख्या को ध्यान में रखकर विकास का मॉडल व योजनाएं बनाई गईं हर बार जनसंख्या वृद्धि ने उनमें बाधा उत्पन्न की है। वस्तुत: विकास धरा का धरा रह गया। किसी भी सरकार की यह नैतिक जिम्मेदार होती है कि नागरिकों को पौष्टिक एवं गुणवत्तापूर्ण आहार उपलब्ध कराए। शादी व अन्य समारोहों में भोजन की बर्बादी को लेकर कानून बनाने व उसके सफल क्रियान्वयन की आवश्यकता है। गरीबों को रोजगार उपलब्ध करवा कर उनके बच्चों के लिए शिक्षा के उचित प्रबंध के साथ ही गरीबों की स्वच्छ जल, भूमि, स्वास्थ्य व ईंधन तक पहुंच सुनिश्चित की जानी चाहिए। 

किसी भी गरीबी उन्मूलन रणनीति का एक आवश्यक तत्व घरेलू आय में बड़ी गिरावट को रोकना है। राज्य प्रायोजित गरीबी और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को सही सोच के साथ लागू किया जाना चाहिए। हालांकि पूर्ण लाभ पाने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण प्रदान करने में सक्षम सामाजिक बुनियादी ढांचे के निर्माण की आवश्यकता है। देश में कृषि उत्पादन पर्याप्त नहीं है। गांवों में आॢथक गतिविधियों का अभाव है। इन क्षेत्रों की ओर ध्यान देने की जरूरत है। सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा पर अधिक निवेश किए जाने की जरूरत है ताकि मानव उत्पादकता में वृद्धि हो सके। हमें आॢथक वृद्धि दर को बढ़ाने की आवश्यकता है, जो जितनी अधिक होगी, गरीबी का स्तर उतना ही नीचे चला जाएगा।-देवेन्द्रराज सुथार
 

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