इरादा तो ‘हां’ कहने का था

Edited By ,Updated: 02 Aug, 2020 02:14 AM

the intention was to say yes

बोलते समय हम सब एक प्रभाव बनाना चाहते हैं। फिर भी यहां एक सरल नियम है जिसे बहुत से लोग भूल जाते हैं। यह नियम हमारे द्वारा बनाई गई धारणा को कमजोर कर सकता है। यह सिर्फ वही नहीं है जो आप कहते हैं कि इसका प्रभाव होगा बल्कि यह इस तरह भी है कि आप इसे कैसे...

बोलते समय हम सब एक प्रभाव बनाना चाहते हैं। फिर भी यहां एक सरल नियम है जिसे बहुत से लोग भूल जाते हैं। यह नियम हमारे द्वारा बनाई गई धारणा को कमजोर कर सकता है। यह सिर्फ वही नहीं है जो आप कहते हैं कि इसका प्रभाव होगा बल्कि यह इस तरह भी है कि आप इसे कैसे कहते हैं। मैं शर्त लगाने के लिए तैयार हूं कि आप जो इसे कैसे कहते हैं वह अक्सर अधिक महत्वपूर्ण होता है। 2 अलग-अलग घटनाओं ने मुझे पिछले हफ्ते इस बारे सोचने के लिए कहा। पहला राहुल गांधी का ब्लॉग था कि भारतीय लोगों से सच्चाई को छिपाना एक राष्ट्रविरोधी काम है। यह एक विश्वसनीय तर्क है और राजनीतिक रूप से चतुर भी है क्योंकि यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ताकत पर चोट करता है जोकि हाल ही में दिए गए उनके बयान को लेकर है। 

यह सब जग-जाहिर है कि जब मोदी ने कहा था कि, ‘‘न तो हमारी सीमा में कोई घुसपैठ हुई है और न ही कोई घुसपैठ कर रहा है।’’ जोकि पूरी तरह सच्चाई नहीं थी। लद्दाख के कई स्थानों पर चीनी भारतीय क्षेत्र में हैं। यहां तक कि जहां वे पीछे हट गए वहां संदेह था कि वह भारतीय क्षेत्र को पूरी तरह से छोड़ चुके हैं। मोदी के भ्रमित कथन को सत्य को छिपाने के प्रयास के रूप में समझा जाता है।  इसी बात से उनकी 56 इंच की मजबूत छवि को कम करने के साथ-साथ राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के उनके वायदे को भी कम कर देता है। 

इन जुड़वां लक्ष्यों के साथ राहुल गांधी मोदी पर प्रहार करना चाहते हैं मगर हमें यह पढऩा होगा कि उन्होंने वास्तव में क्या कहा था तथा क्या यह अपनी बात कहने का एक प्रभावशाली तरीका है? क्या यह प्रधानमंत्री के अंत: विरोधों की तुलना में अपने स्वयं के अपरिपक्व तरीके को प्रकट नहीं करता है? अगर आप चाहते हैं कि मैं झूठ बोलूं कि चीनियों ने हमारे देश में प्रवेश नहीं किया है तो मैं झूठ नहीं बोलूंगा। मैं बस यह नहीं करूंगा। अगर मेरा पूरा करियर नर्क में चला जाए तो भी मुझे परवाह नहीं। मैं झूठ नहीं बोलूंगा। राजनीतिक तौर पर यदि मुझेयह महंगा भी पड़े तब भी मुझे कोई परवाह नहीं। इसके बाद मेरा राजनीतिक भविष्य खत्म हो जाए उसकी भी मुझे परवाह नहीं। ‘मगर जहां तक भारतीय क्षेत्र का संबंध है मैं सच्चाई कह कर रहूंगा’। 

अगर राहुल गांधी ने ध्यान से विचार किया होता कि वह क्या कहना चाहते हैं और उन्होंने अधिक गौरव के साथ ऐसा किया है कि वे अधिक वयस्क  और कम किशोर लग सकते हैं। राहुल प्रधानमंत्री को बेनकाब करना चाहते थे मगर उन्होंने खुद को ही उजागर कर दिया। अगला उदाहरण बहुत भिन्न है। यह कुछ कहने की इच्छा  तथा उन लोगों को परेशान न करना जोकि इसके निशाने पर हैं, के बीच तोड़े जाने का मामला है। इसे मैं 2 टेबलों के बीच में घिरने वाला कह सकता हूं। मुझे समझाने दो।

यह कहा गया है कि रथिन रॉय ने सरकार के साथ मतभेद के कारण सार्वजनिक वित्त और नीति के राष्ट्रीय संस्थान के निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने बिजनैस स्टैंडर्ड में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के जुलाई बजट 2019 के बाद एक लेख लिखा जिसमें उन्होंने खुलासा किया कि सीतारमण के राजस्व और व्यय के आंकड़े गलत हैं। इससे वित्त मंत्रालय नाराज हो गया। शायद यही कारण है कि उन्हें प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद से हटा दिया गया। जब इसका गठन सितम्बर में हुआ था। ऐसी भी बातें आईं कि रॉय से यह कहा गया है कि वह समाचार पत्रों तथा टैलीविजन चैनलों पर सरकार की आलोचना के बारे में न बोलें। मगर जब उनसे हाल ही में एक इंटरव्यू में पूछा गया तो रॉय रिपोर्टों की पुष्टि करने और सरकार को परेशान न करने के बीच में फंस कर रह गए।

यह पूछे जाने पर कि क्या उनके लेख ने पहले सरकार को नाराज किया था? इस पर उन्होंने कहा, ‘‘यदि आपका प्रश्र यह है कि कुछ लोग दुखी थे तब मेरा जवाब निॢववाद रूप से हां है।’’ लेकिन जब यह सवाल किया गया कि दूसरे विचारों के बारे में किसने बताया तब उन्होंने कहा कि ‘‘हो सकता है कि मुझे भी पता न हो। मुझे नहीं पता कि सटीक तिमाही कहां से आई? मैंने जो सुना वह दिल से सुना।’’ जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें कुछ मीडिया आऊटलैट्स से बात नहीं करने के लिए कहा गया है तो उन्होंने इसी तरह की अस्पष्टता के साथ उत्तर दिया, ‘‘मुझे कभी-कभी यह बताया गया था कि मैंने जिस विशेष संगठन से बात की थी वह एक नहीं था, जो मुझे सरकार में कई सकारात्मक प्रशंसा दिलाएगा।’’ 

दोनों उदाहरणों में इरादा हां कहने का था लेकिन संदेश जो दिया गया वह भ्रम था। कुछ लोग रथिन रॉय की दुविधा को समझ गए होंगे, लेकिन बहुतों को शायद लगा कि वह नहीं जानते कि वह क्या कहना चाहते हैं। तो अब क्या आपको मेरी बात सही लगी? जब आप सार्वजनिक रूप से बोलते हैं, तो आपको यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता होती है कि आप क्या कह रहे हैं? लेकिन यह बात भी होती है कि यह कैसे कही जाए अन्यथा आपके संदेश को वह प्रतिक्रिया नहीं मिल सकती जिसकी आप उम्मीद करते हैं।-करण थापर 
 

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