सबसे चंगा ‘सी.एस.आर.’ का धंधा

Edited By ,Updated: 29 Mar, 2021 04:31 AM

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भारत के आयकर विभाग के सर्वोच्च अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर बताया कि सी.एस.आर. (निगमित सामाजिक दायित्व) के नाम पर बरसों से इस देश में बड़े घोटाले हो रहे हैं। उन्होंने मेरे सहयोगी रजनीश कपूर से पूछा कि आपने ब्रज में इतने सारे जीर्णोद्धार के, इतने...

भारत के आयकर विभाग के सर्वोच्च अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर बताया कि सी.एस.आर. (निगमित सामाजिक दायित्व) के नाम पर बरसों से इस देश में बड़े घोटाले हो रहे हैं। उन्होंने मेरे सहयोगी रजनीश कपूर से पूछा कि आपने ब्रज में इतने सारे जीर्णोद्धार के, इतने प्रभावशाली तरीके से कार्य किए हैं, इसमें अब तक कितने करोड़ रुपए खर्च कर चुके हैं? रजनीश ने कहा कि 18 वर्षों में लगभग 23 करोड़ रुपए। 

यह सुनकर वे अधिकारी उछल पड़े और बोले, इतना सारा काम केवल 23 करोड़ में। उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ। तब बोले कि मेरे पास एेसी स्वयंसेवी संस्थाआें की एक लम्बी सूची है जिनका सालाना बजट कई सौ करोड़ रुपए से लेकर हजार करोड़ रुपए तक है। लेकिन इनमें से ज्यादातर एन.जी.आे. एेसी हैं जिनके पास जमीन पर दिखाने को कुछ भी उल्लेखनीय नहीं है। ये सारा गोलमाल देश के बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों द्वारा टैक्स बचाने के लिए किया जाता है। लेकिन अब मोदी सरकार ने निर्देश दिए हैं कि एेसा फर्जीवाड़ा करने वालों पर लगाम कसी जाए। 

दरअसल जब से यह कानून बना कि एक सीमा से ऊपर उद्योग या व्यापार करने वालों को अपने मुनाफे का कम से कम 2 फीसदी सामाजिक कार्यों पर खर्च करना अनिवार्य होगा, तब से ज्यादातर औद्योगिक घरानों ने धर्मार्थ ट्रस्ट या एन.जी.आे. बना लिए और सी.एस.आर. का अपना फंड इनमें ट्रांसफर करके टैक्स बचा लिया। इनमें से कुछ ने इस फंड से सामुदायिक सेवा के अनेक तरह के कार्य किए और आज भी कर रहे हैं। पर ज्यादातर ने इस फंड का उपयोग अपने फायदे के लिए ही किया। मसलन अगर किसी उच्च अधिकारी या मंत्री से कोई बड़ा फायदा लेना था तो उसकी पत्नी या बच्चों के बनाए एन.जी.आे. को बिना जांचे-परखे उदारता से दान दिया और कभी उस पैसे के इस्तेमाल का हिसाब नहीं मांगा। 

न यह जाकर देखा कि क्या यह पैसा वाकई उस काम में खर्च हुआ जिसके लिए यह दिया गया था? स्पष्ट है कि जब उद्देश्य दान की शक्ल में रिश्वत देने का था तो उनकी बला से वह एन.जी.आे. उस पैसे से कुछ भी करे। नतीजतन इन मंत्रियों और अधिकारियों के परिवारों ने सैमीनार, शोध, सर्वेक्षण, वृक्षारोपण, शिक्षा प्रसार, स्वास्थ्य सेवाएं, पेयजल व महिला सशक्तिकरण जैसे लोकप्रिय मदों के तहत झूठे खर्चे दिखाए और उस पैसे से खुद मोटा वेतन और तमाम भत्ते लिए और गुलछर्रे उड़ाए। 

यह क्रम जैसा यू.पी.ए. सरकार में चल रहा था वैसा ही आज भी चल रहा है। जो एन.जी.आे. निष्ठा से, समर्पण से, पारदर्शिता से और गंभीरता से अपने उद्देश्यों के लिए रात-दिन जमीनी स्तर पर ठोस काम करती हैं उन्हें सी.एस.आर. का अनुदान लेने में चप्पलें घिसनी पड़ती हैं। तब जाकर उन्हें चूरन चटनी की मात्रा में अनुदान मिलता है। पर जो एन.जी.आे. अनुदान के पैसे पर गुलछर्रे उड़ाती है और जमीन पर फर्जीवाड़ा करती हैं उन्हें करोड़ों रुपए के अनुदान बिना प्रयास के मिल जाते हैं। 

इनसे कोई नहीं पूछता कि तुमने इतने पैसे का क्या किया? इसकी अगर आज ईमानदारी से जांच हो जाए तो सब घोटाला सामने आ जाएगा। सी.एस.आर. फंड को खर्च करने का तरीका बड़ा व्यवस्थित है। हर कम्पनी में, चाहे निजी हो, चाहे सार्वजनिक, सी.एस.आर. का काम देखने के लिए एक अलग विभाग होता है। जिसके अधिकारियों का यह दायित्व होता है कि वे किसी एन.जी.ओ. से आने वाले प्रस्तावों का, उनकी गुणवत्ता और उपयोगिता का गम्भीरता से मूल्यांकन करें। यदि वे संतुष्ट हो तभी अनुदान स्वीकृत करें। 

अनुदान देने के बाद उस एन.जी.आे. के काम पर तब तक निगरानी करें जब तक कि वह अपना उद्देश्य पूरा न कर ले। 25 लाख तक के अनुदान के मामलों में प्राय: यह सावधानी बरती जाती है। पर जो बड़ी मात्रा में मोटे अनुदान दिए जाते हैं, उसमें प्रस्ताव की गुणवत्ता का मूल्यांकन गौण हो जाता है क्योंकि उनकी स्वीकृति के निर्देश मंत्री, मंत्रालय के उच्च अधिकारी या प्रतिष्ठान के अध्यक्ष से सीधे आते हैं और मूल्यांकन की कार्रवाई तो महज खानापूर्ति होती हैं। सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में सी.एस.आर. के लिए एक सलाहकार समिति बनाने का भी प्रावधान होता है, जिसमें नियमानुसार एेसे अनुभवी और योग्य सदस्य मनोनीत किए जाने चाहिएं जिनका सामाजिक सेवा कार्यों का गहरा अनुभव हो। पर अधिकतर मामलों में ऐसा नहीं होता। 

केंद्र और राज्यों में सत्तारूढ़ दल के कार्यकत्र्ता या उनसे जुड़े संगठनों के कार्यकत्र्ता इन समितियों में नामित कर दिए जाते रहे हैं और आज भी किए जाते हैं। इनका उद्देश्य ईमानदारी से समाज सेवा करना नहीं बल्कि अपने चहेतों की स्वयंसेवी संस्थाआें को अनुदान दिलवाकर अपना उल्लू सीधा करना होता है। यही कारण है कि सी.एस. आर. का बजट तो बहुत खर्च होता है पर उसकी तुलना में जमीन पर काम बहुत कम दिखाई देता है। जब राजनेताआें से इस विषय पर बात करो तो उनका कहना होता है कि हमारे कार्यकत्र्ता बरसों हमारे पीछे झंडा लेकर दौड़ते हैं। इस उम्मीद में कि जब हम सत्ता में आएंगे तो उन्हें कुछ आर्थिक लाभ होगा। इसलिए हमारी मजबूरी है कि हम इन कार्यकत्र्ताआें को एेसी कम्पनियों में पद देकर उपकृत करें। 

यह तर्क राजनीतिक दृष्टि से ठीक हो सकता है पर समाज की दृष्टि से ठीक नहीं है। इस देश का यह दुर्भाग्य है कि आम आदमी को लक्ष्य करके उसका दु:ख-दर्द दूर करने के लिए तमाम योजनाएं और कार्यक्रम चलाए जाते हैं पर उनका एक अंश ही उस आम आदमी तक पहुंचता है। बाकी रास्ते में ही सोख लिया जाता है। सी.एस.आर. की भी यही कहानी है।-विनीत नारायण 
    

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