राष्ट्र हमेशा सरदार पटेल का ऋणी रहेगा

Edited By Pardeep,Updated: 02 Nov, 2018 04:07 AM

the nation will always be indebted to sardar patel

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्र के महान स्वतंत्रता सेनानी, कुशल प्रशासक और भारत के एकीकरण के निर्माता, लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्मदिवस राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया गया। इस संबंध में सरकार ने गुजरात में नर्मदा नदी...

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्र के महान स्वतंत्रता सेनानी, कुशल प्रशासक और भारत के एकीकरण के निर्माता, लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्मदिवस राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया गया। इस संबंध में सरकार ने गुजरात में नर्मदा नदी पर निर्मित सरदार सरोवर डैम के पास उनकी 182 मीटर ऊंची प्रतिमा स्थापित की है। इससे पहले अमरीका के शहर न्यूयार्क में लिबर्टी आईलैंड में सबसे ऊंची (93 मीटर) स्टैच्यू  ऑफ लिबर्टी 28 अक्तूबर 1886 में स्थापित की गई थी। 

यह प्रतिमा फ्रांसिसियों ने अमरीका को अंग्रेजों से स्वतंत्रता हासिल करने की खुशी में भेंट की थी। चीन में महात्मा बुद्ध की 128 मीटर ऊंची प्रतिमा स्थापित की गई है। इस महान एवं गौरवमयी प्रतिमा का सरदार पटेल के जन्म दिन 31 अक्तूबर 2018 को अनावरण बड़ी श्रद्धा, सम्मान और अदबो-अदाब के साथ किया गया।  हकीकत में राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोने वाले सरदार पटेल के प्रति एक तरफ  यह भारतवासियों का आभार है तो दूसरी तरफ आगामी संसदीय चुनावों पर पैनी दृष्टि रखने वाले प्रधानमंत्री का यह अप्रत्यक्ष रूप से मास्टर स्ट्रोक भी होगा। 

सरदार पटेल एक स्पष्टवादी, कार्यकुशल, दूरदर्शी और पाक-साफ दामन के अजीम शख्सियत के लासानी योद्धा थे। वह पुख्ता इरादे के आईनी इंसान थे और उनकासलीका-ए-गुफ्तगू भी लासानी था। वह बहुत कम बोलते थे, पर जब भी बोलते थे, लोग बड़े शौक एवं इत्मीनान से सुनते थे। वह अपने हितों से राष्ट्र के हितों को हमेशा सर्वोच्च मानते थे। उनकी सहनशीलता, धैर्य और सहयोग की भावना भी काबिले-तारीफ है। वह कोरे आदर्शवाद की बजाय व्यावहारिकतावाद के पुजारी थे और सब धर्मों का सम्मान-आदर करने में वह हमेशा राष्ट्र के नेताओं में प्रथम पंक्ति में गिने जाते हैं। वह एक करिश्माई नेता थे और अर्थशास्त्र के लेखक, अति प्रसिद्ध चिंतक, चाणक्य की नीतियों को अपनाकर सफलता हासिल करने में विश्वास रखते थे। 

सरदार वल्लभ भाई पटेल के पिता ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रानी झांसी की सेना में भर्ती होकर अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ी थी। इस तरह पटेल का एक राष्ट्रवादी देशभक्त परिवार से गहरा रिश्ता है। 16 वर्ष की आयु में वह विवाह के पवित्र बंधन में बंध गए और 22 वर्ष की आयु में उन्होंने मैट्रिक पास की। 1909 में एक बहस के दौरान उन्हें एक पत्र दिया गया, उन्होंने उसे पढ़ा और जेब में डाल लिया और फिर बहस शुरू कर दी। समाप्ति पर न्यायाधीश ने पूछा इस पत्र में क्या लिखा है? सरदार ने जवाब दिया कि मेरी धर्मपत्नी के निधन का टैलीग्राम है। इस पर सभी आश्चर्यचकित रह गए। 1910 में वकालत के लिए वह इंगलैंड चले गए।

वकालत करने के बाद वह 1913 में गुजरात आ गए। उन्होंने गोधरा, आणंद और बोरसद में वकालत शुरू की और फिर अहमदाबाद चले गए। उनकी योग्यता, दक्षता और कार्यकुशलता से अति प्रभावित होकर अंग्रेज उन्हें सरकारी नौकरी देना चाहते थे। गुजरात क्लब में महात्मा गांधी द्वारा दिए गए राष्ट्र की स्वतंत्रता से संबंधित भाषण को सुनकर वह इतने प्रभावित हुए कि उनके साथ चलने को तैयार हो गए और 1916 से लेकर 1948 तक वह उनके अति अनुशासित शिष्य बन गए। राष्ट्र के तीन महान पुरुष  डा. राजेन्द्र प्रसाद, पंडित जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल एक ही समय पटना, इलाहाबाद-प्रयागराज और अहमदाबाद म्यूनिसिपल कमेटियों के प्रैजीडैंट रहे। 

गुजरात में ब्रिटिश सरकार द्वारा किसानों पर अधिक टैक्स लगाने से किसान परेशान हो गए। पहले खेड़ा और फिर बारडोली में सरदार पटेल ने किसानों की उचित और न्यायसंगत मांगों को मनवाने के लिए जबरदस्त आंदोलन चलाया। सरकार झुक गई, किसानों की मांगें स्वीकार कर ली गर्ईं। इस तरह पटेल को सरदार की उपाधि से विभूषित किया गया। इससे समूचे भारत में सरदार पटेल की प्रशंसा होने लगी। 1921 के असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को साथ लेकर देश का दौरा किया और सरदार पटेल की हिम्मत से 3 लाख से अधिक लोगों को कांग्रेस संगठन का सक्रिय सदस्य बनाया गया और 15 लाख रुपए की राशि एकत्रित करके महात्मा जी के चरणों में रखी, ताकि स्वतंत्रता की लड़ाई बाखूबी चलती रहे। इसके अलावा सरदार पटेल ने आजादी की लड़ाई के लिए चलाए गए आंदोलनों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। 

मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने अंग्रेजों के साथ मिलकर एक तरफ  पाकिस्तान की मांग तेज कर दी और दूसरी तरफ मुसलमानों में खुलकर साम्प्रदायिकता का जहर भरना शुरू कर दिया। सदियों की गुलामी के बाद 1946 में ब्रिटिश हुकूमत ने भारत छोडऩे का फैसला कर लिया। उस समय भारत में एक ब्रिटिश इंडिया, दूसरा स्वतंत्र रियासतें और तीसरा पांडीचेरी, चंद्र नगर पर फ्रैंच सरकार का कब्जा था। गोवा और कुछ अन्य हिस्सों पर पुर्तगालियों का नियंत्रण था। कांग्रेस समूचे राष्ट्र को एक रखना चाहती थी, जबकि मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान की जिद पर अडिग थे। 16 अगस्त 1946 को जिन्ना ने डायरैक्ट एक्शन डे मनाने का फैसला किया जिससे सारे भारत, विशेष करके बंगाल, उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत और पंजाब के कई इलाकों में जबरदस्त दंगे हो गए। हजारों लोगों को अपनी कीमती जानें गवानी पड़ीं। 

1945 में जापान और जर्मनी की पराजय के बाद सुभाष चंद्र बोस द्वारा बनाई गई आजाद ङ्क्षहद फौज के बहुत सारे सैनिक और तीन जरनैल पकड़  लिए गए, जिन पर लाल किले में मुकद्दमा चला और सहगल, ढिल्लों, शाह नवाज को मौत की सजा सुनाई गई। इन सबको बचाने के लिए महात्मा गांधी के कहने पर पंडित नेहरू ने प्रतिष्ठित वकीलों की कमेटी गठित की, जिनमें पंडित नेहरू, तेज बहादुर सप्रू, कैलाश नाथ काटजू, भोला भाई देसाई, दलीप सिंह टेकचंद और आसफ  अली को सदस्य बनाया गया। पंडित जी 30 वर्षों के बाद वकील का कोट पहनकर कोर्ट में हाजिर हुए। सरदार पटेल की कोर्ट में दी गई दलीलें बड़ी कारआमद साबित हुईं और सभी को बाइज्जत बरी कर दिया गया। उस समय सारे भारत में यह नारा बुलंद था.. ‘गली-गली से आई आवाज सहगल, ढिल्लों, शाह नवाज।’ 

आखिर 3 जून 1947 को भारत को बांटने का फैसला ले लिया गया और बंटवारे पर सबसे पहले सरदार पटेल ने हस्ताक्षर किए, जबकि गांधी, नेहरू, मौलाना आजाद, सैफुद्दीन किचलू, सरहदी गांधी अब्दुल गफ्फार खान बंटवारे के खिलाफ  थे। हकीकत में साम्प्रदायिकता का जहर इतना ज्यादा फैल चुका था कि देश को इक_ा रखना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन हो चुका था। वास्तविकता को जानते हुए पटेल ने ऐसा कदम उठाया। अंग्रेजों ने भारत छोडऩे से पहले प्राचीन गौरवमयी भारत के दो टुकड़े ही नहीं किए बल्कि 565 स्वतंत्र रियासतों के राजा-महाराजाओं को भी खुली छूट दे दी कि वे अपनी रियासतों का विलय भारत, पाकिस्तान में करने या फिर आजाद रहने का फैसला करें। बंटवारे के परिणामस्वरूप पाकिस्तान और भारत में जबरदस्त दंगे हुए, जिनमें 10 लाख से ज्यादा लोग मारे गए और 2 करोड़  के करीब लोगों को पलायन करना पड़ा। शरणार्थियों के लिए इंतजाम करना भी एक अति मुश्किल काम था, परंतु भारत सरकार ने सरदार पटेल के नेतृत्व में कोई कसर नहीं छोड़ी। 

15 अगस्त 1947 में स्वतंत्रता के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस सत्तासीन हुई और सरदार पटेल को गृहमंत्री एवं उप प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। 565 स्वतंत्र रियासतों का भारत में विलय करना एक बड़ा ही कठिन परंतु दिलचस्प और हैरतअंगेज कारनामा था। सरदार पटेल ने 5 जुलाई को सभी राजा-महाराजाओं से अनुरोध किया कि वे अपनी रियासतों का विलय भारत में कर दें। सबसे पहले पंजाब के वर्तमान मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के पिता महाराजा यादविंद्र सिंह ने अपनी रियासत पटियाला का भारत में विलय करने का फैसला लिया। फिर उड़ीसा के 23 राजाओं को मिलकर सरदार पटेल ने कहा कि कुएं के मेंढक मत बनो, महासागर में आ जाओ...। इस तरह भारत की सदियों पुरानी इच्छा पूरी हुई। फिर नागपुर के 38 राजाओं ने अपनी रियासतों का भारत में विलय कर दिया। काठियावाड़ में 250 रियासतें थीं, जिनमें कई राजे केवल 20-20 गांवों के मालिक थे। उन सभी ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी रियासतों को भारत में मिला दिया। 

परंतु त्रावणकोर, भोपाल, हैदराबाद, जूनागढ़, जोधपुर और जम्मू-कश्मीर के राजाओं और नवाबों ने देश के लिए मुश्किल पैदा कर दी। भोपाल का नवाब जिन्ना का दोस्त था और वह कुछ रियासतों को पाकिस्तान में मिलाना चाहता था परंतु जल्दी ही त्रावणकोर और भोपाल के राजा व नवाब ने सरदार पटेल का कहना स्वीकार कर लिया परंतु जोधपुर का राजा हनवंत सिंह, जिसकी रियासत का क्षेत्रफल बहुत ज्यादा था, जिन्ना के कहने पर पाकिस्तान के साथ मिलना चाहता था। सरदार पटेल और वी.पी. मैनन जोधपुर में उसके उमेद भवन पहुंच गए। सरदार पटेल ने महाराजा को हर तरह की सुविधा देने का वायदा किया पर उसका अडिय़ल रवैया परेशानी का सबब बना हुआ था परंतु किंवदंती के अनुसार मेज पर रखी पिस्टल को सरदार पटेल ने उठाकर महाराजा की तरफ  तान कर कहा कि आज दो सरदारों में से केवल एक जिंदा रहेगा, बेहतर यह है कि आप विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दें और महाराजा ने तुरंत हस्ताक्षर कर दिए। 

जूनागढ़ के नवाब ने जिन्ना के कहने पर अपनी रियासत का विलय पाकिस्तान में कर दिया जबकि रियासत में 80 प्रतिशत हिंदू आबादी थी। लोगों ने जबरदस्त आंदोलन शुरू कर दिया और नवाब डर के मारे जहाज में अपने कुत्तोंं और कुछ रानियों को लेकर कराची चला गया, जबकि जल्दी-जल्दी में कई रानियां यहां छोड़ गया। फिर जूनागढ़ के भारत में विलय पर मतदान हुआ जिसमें 91 प्रतिशत लोगों ने भारत के हक में वोट दिए। हैदराबाद उस समय भारत की सबसे बड़ी खुशहाल रियासत थी। नवाब ने भारत में विलय की बजाय रजाकारों को खुला छोड़ दिया। जिन्होंने एक विशेष समुदाय के लोगों का कत्ल करना शुरू कर दिया।

पंडित नेहरू यूरोप की यात्रा पर थे तो सरदार पटेल ने कार्यवाहक प्रधानमंत्री होने के नाते हैदराबाद पर कार्रवाई कर दी और उसे अढ़ाई दिन में भारत में मिला लिया। जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान ने 22 अक्तूबर 1947 में पहले कबाइलियों और फिर फौज से हमला कर दिया। 24 अक्तूबर को महाराजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर में विलय के लिए अनुरोध किया और 26 अक्तूबर को आखिर भारत में विलय कर दिया गया। रात को पंडित नेहरू, सरदार पटेल और रक्षा मंत्री बलदेव सिंह ने जम्मू-कश्मीर को सुरक्षित रखने के लिए सेना भेजने का फैसला किया। पठानकोट से जम्मू तक बड़ी फौजी गाडिय़ों के चलने के लिए सरदार पटेल के नेतृत्व में 8 दिन में सड़क का निर्माण कर दिया गया। भारतीय सैनिकों की बहादुरी के आगे पाकिस्तानी फौज भागने लगी परंतु अचानक लड़ाई बंद कर दी गई, जो आज भी समस्या का कारण बनी हुई है। 

सरदार पटेल के नेतृत्व में रियासतों को भारत में मिलाना एक रक्तविहीन क्रांति थी और भारत के इतिहास में बहुत बड़ा इंकलाब था। वहीं इटली और जर्मनी का एकीकरण करने के लिए अत्यधिक परेशानियों का सामना करना पड़ा था। अमरीका में अब्राहम ङ्क्षलकन के नेतृत्व में उत्तरी और दक्षिणी अमरीका को साथ रखने के लिए एक जबरदस्त जंग लगी, जिसमें हजारों लोग मारे गए थे। सरदार पटेल की कूटनीति और दक्षता, योग्यता के कारण इतिहास में उनकी बिस्मार्क  से तुलना की जाती है। जिसने 39 स्वतंत्र रियासतों को इकट्ठा करके आज के जर्मनी का निर्माण किया। 

सरदार पटेल की सिफारिश पर डा. भीमराव अंबेदकर को संवैधानिक समिति की लेखाकार कमेटी का चेयरमैन नियुक्त किया गया। उन्होंने राष्ट्र को ठीक ढंग से चलाने के लिए प्रशासनिक सेवाओं को प्रारम्भ किया। पंडित नेहरू, सरदार पटेल के कामों को अलग-अलग करके आंकना एक बहुत बड़ी ऐतिहासिक भूल होगी क्योंकि वे दोनों ही महात्मा गांधी के शिष्य थे और गांधी जी की जुबां से निकला हुआ एक-एक शब्द उनके लिए कानून था। राष्ट्र सरदार पटेल के इस महान कार्य के लिए सदा ऋणी रहेगा। उनकी प्रतिभा को विश्व प्रसिद्ध शायर अल्लामा इकबाल का यह शे’र स्पष्ट करता है...हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है। बड़ी मुश्किल से होता है, चमन में दीदावर पैदा।-प्रो. दरबारी लाल पूर्व डिप्टी स्पीकर, पंजाब विधानसभा

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