एक बेहतर ‘सूचित समाज’ समय की जरूरत

Edited By ,Updated: 24 Aug, 2019 12:59 AM

the need for a better  informed society  time

अपनी विभिन्न समस्याओं के बीच देश बढ़ती आकांक्षाओं की एक क्रांति देख रहा है और यह ‘क्रांति’ सूचना के निरंतर मुक्त प्रवाह की ओर देख रही है। नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में उठाए गए कुछ उग्र राजनीतिक कदमों तथा सूचना के प्रवाह पर लगाई गई कुछ...

अपनी विभिन्न समस्याओं के बीच देश बढ़ती आकांक्षाओं की एक क्रांति देख रहा है और यह ‘क्रांति’ सूचना के निरंतर मुक्त प्रवाह की ओर देख रही है। नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में उठाए गए कुछ उग्र राजनीतिक कदमों तथा सूचना के प्रवाह पर लगाई गई कुछ पाबंदियों के बाद ‘छुपी हुई बेचैनी’ पर नजर डालें।

धन्यवाद कि उन पाबंदियों में ढील दी जा रही है। घाटी में सामान्य स्थिति के सरकारी समाचारों पर मीडिया के अनुमानों का खेल जारी है। जिनको जमीनी हकीकतों बारे कुछ जानकारी है वे ‘सामान्य स्थिति के आधिकारिक दर्जे’ को स्वीकार नहीं करेंगे। इसी में अज्ञात कल की कहानी निहित है। खुशी की बात यह है कि अपनी कार्यात्मक अपंगता के बावजूद लोकतंत्र ने सामान्य लोगों के बीच आम समझ को तीखा करने में मदद की है, यहां तक कि घाटी में भी। 

सूचना प्रवाह पर प्रतिबंध
सूचना के प्रवाह पर ‘अस्थायी प्रतिबंधों’ के बावजूद राष्ट्रीय मामलों से जुड़े लोगों को इस बात की प्रशंसा करनी चाहिए कि स्वतंत्र मीडिया ‘विचारों तथा गम्भीर सूचना का एक समृद्ध बाजार’ बनाने में मदद करता है। यदि यह ऐसा करने में असफल रहता है तो यह लोगों को ‘आंशिक रूप से अंधा’ बना देता है महज इसलिए क्योंकि घाटी में बनी नई परिस्थितियों से कैसे निपटना है, इस बारे में उनकी ‘खराब समझ’ होगी। हम पत्रकार सूचना तथा संचार के व्यवसाय में हैं। यह हमारा काम है कि एक बेहतर सूचित समाज के निर्माण की प्रक्रिया में मदद करें। केवल बेहतर सूचित नागरिक ही लोकतंत्र की गुणवत्ता में सुधार तथा शासकों व नायकों के बीच विश्वसनीयता के अंतर को पाटने में मदद कर सकता है। 

सही या गलत, मैं कई बार महसूस करता हूं कि हम अभी भी एक कम सूचित लोकतंत्र में हैं, इस तथ्य पर ध्यान न देते हुए कि यह बहुत अधिक फल-फूल रहा है। लोग अपनी चुनावी शक्ति का पूरा आनंद उठाते हैं। और मेरा मानना है कि वे सरकार की किसी भी अन्य किस्म को स्वीकार नहीं करेंगे, चाहे इसकी कार्यात्मक खामियां हों, खराब कार्यप्रणाली तथा जमीनी स्तर पर सामाजिक-आर्थिक असंतुलन ही क्यों न हो। विश्वसनीय सूचना ताकत है और मीडिया कर्मियों का कार्य यह सुनिश्चित करना है, चाहे वे विकास के मुद्दे हों अथवा राजनीतिक-आॢथक व सामाजिक ङ्क्षचताएं। ये सरकार को जमीनी हकीकतों का आईना दिखाते हैं। मेरा मानना है कि भारत की पेचीदा तथा विविधतापूर्ण हकीकतों को समझने के कठिन कार्य की उचित प्रशंसा के लिए अधिकारियों को एक एक नए उन्मुखीकरण की जरूरत है। 

चिंता का मुख्य क्षेत्र
शासकों तथा नीति-निर्माताओं के लिए वरिष्ठ मीडिया स्तर पर ङ्क्षचता का हमारा मुख्य क्षेत्र शिक्षा की गुणवत्ता, सामान्य लोगों के लिए स्वास्थ्य तथा ग्रामीण लोगों के लिए पेयजल तथा अन्य मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता है। क्या मीडिया अपना कार्य सही तरह से कर रहा है? मैं तो केवल अनुमान ही लगा सकता हूं।निश्चित तौर पर देश में राजनीतिज्ञों तथा प्रशासकों के वायदों तथा कारगुजारी के बीच गम्भीर अंतर हैं। मुझे यूनेस्को की सलाह याद आती है, जिसने एक बार कहा था, ‘‘शिक्षा को जीवन के साथ जोड़ें, इसे ठोस लक्ष्यों की सहयोगी बनाएं, समाज तथा अर्थव्यवस्था के बीच एक करीबी संबंध स्थापित करें, एक ऐसी शिक्षा प्रणाली की खोज करें जो अपने आसपास की चीजों के अनुकूल हो... निश्चित तौर पर यहीं पर समाधान खोजा जाना चाहिए।’’ इस महत्वपूर्ण क्षेत्र की जमीनी हकीकतों बारे जानकार लोग जानते हैं। इस संबंध में अभी हमने बहुत लम्बा रास्ता तय करना है। 

मैंने हमेशा भारत के प्रतिष्ठित सूचना के अधिकार को सरकारी कदमों में लाल फीताशाही के बीच से लोगों की देखने की क्षमता की कसौटी से मापने का प्रयास किया है। हमें इसके परिचालन पहलुओं को इस आधार पर देखना चाहिए कि क्या आधिकारिक प्रयास लोगों के अच्छे तथा हमारे लोकतंत्र की कार्यप्रणाली में गुणवत्तापूर्ण सुधार के लिए हैं? 

कार्य की गोपनीयता
ऐसा लगता है कि सरकार को अपना कार्य गोपनीय तरीके से करना पसंद है। बेशक यह पारदर्शिता तथा जवाबदेही की सौगंध उठाती हो मगर व्यावहारिक रूप से यह जो दावे करती है उसके बिल्कुल विपरीत करती है। अपने औपनिवेशिक बुर्के में नौकरशाही निर्णय लेने तथा प्रशासन के सामान्य मामलों को भी गोपनीय रखने का प्रयास करती है। इस हेतु लोगों के नाम पर लिए गए संवेदनशील निर्णय हमें निराश करने के लिए गोपनीय रखे जाते हैं। 

सूचना के अधिकार कानून में किए गए नवीनतम संशोधनों को ही लें, जो राष्ट्रीय जांच एजैंसी को अधिक शक्तियां प्रदान करते हैं तथा इसके अधिकार क्षेत्र को भारत की सीमाओं के पार भी बढ़ाते हैं। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद को आश्वस्त किया है कि 2008 के एन.आई.ए. कानून की संशोधित धाराओं का कभी भी दुरुपयोग नहीं किया जाएगा लेकिन इनका इस्तेमाल आतंकवादी के धर्म को न देखते हुए आतंकवाद को समाप्त करने के लिए किया जाएगा। उन्होंने यह कहते हुए ‘शहरी माओवादियों’ का भी उल्लेख किया कि ‘कुछ लोग विचारधारा के नाम पर शहरी माओवाद का समर्थन करते हैं। हमें उनसे कोई सहानुभूति नहीं है।’ 

हालांकि संशोधन एन.आई.ए. को सी.बी.आई. से अधिक शक्तियां प्रदान करते हैं, जिससे किसी मामले की जांच की प्रक्रिया शुरू करने से पूर्व संबंधित राज्य सरकार से स्वीकृति लेने की निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने की आशा की जाती है। दूसरी ओर, एन.आई.ए. अब संबंधित राज्य सरकार की इजाजत के बिना किसी ‘आतंकवादी गतिविधि’ का स्व-संज्ञान ले सकती है। क्या यह संघीय भावना के खिलाफ जाता है? हां, लेकिन मोदी सरकार का अपना खुद का राष्ट्रीय एजैंडा है, जिसके व्यापक राष्ट्रीय हितों में कुछ अच्छे बिन्दू हैं। मेरी एकमात्र ङ्क्षचता यह है कि इस संशोधनों के बाद की कार्रवाई राजनीति प्रेरित न हो और इसे संविधान की संघीय भावना के खिलाफ नहीं जाना चाहिए। इसके साथ ही बदलाव लोगों को सूचना के अधिकार से इंकार न करें। हमें प्रतीक्षा करनी और देखना होगा कि कैसे वर्तमान सरकार इस संवेदनशील क्षेत्र में अपने कार्य को अंजाम देती है।-हरि जयसिंह
 

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