पूर्व सैनिकों के पुनर्वास पर गंभीरता से सामाजिक अध्ययन की जरूरत

Edited By Pardeep,Updated: 12 Aug, 2018 03:23 AM

the need for social studies seriously on rehabilitation of ex servicemen

भारत के सशस्त्र बलों के 25 लाख से अधिक वैटरंस (अनुभवी व्यक्ति) हैं, जिनमें से अधिकांश अच्छी तरह से प्रशिक्षित, प्रेरणा और आला दर्जे के कौशल से लैस नागरिक हैं, जो आगे बढ़कर राष्ट्रनिर्माण में योगदान देने को तत्पर हैं। इसमें हर साल लगभग 60,000 सैनिकों...

भारत के सशस्त्र बलों के 25 लाख से अधिक वैटरंस (अनुभवी व्यक्ति) हैं, जिनमें से अधिकांश अच्छी तरह से प्रशिक्षित, प्रेरणा और आला दर्जे के कौशल से लैस नागरिक हैं, जो आगे बढ़कर राष्ट्रनिर्माण में योगदान देने को तत्पर हैं। इसमें हर साल लगभग 60,000 सैनिकों का और इजाफा हो जाता है। वैटरन में शामिल होने वाले अधिकांश सैनिकों की उम्र 35 से 45 वर्ष के बीच की होती है। हालांकि इनमें से अधिकांश चरणबद्ध सेवानिवृत्ति की ओर अग्रसर हैं या ऐसी नौकरियों में अटके हैं, जो उनके विशिष्ट कौशल का सही तरीके से उपयोग नहीं कर सकती हैं। 

जहां तक सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाली नौकरियों का सवाल है, इसे लेकर बहुत अच्छी राय नहीं है। सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों के बीच कराए गए एक सर्वेक्षण में 84 फीसदी ने बताया कि उन्हें पुनर्वास की मौजूदा सुविधाओं से लाभ नहीं हुआ है। इसी तरह एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि वायु सेना के 82 फीसदी वैटरन को पुनर्वास में किसी भी प्रमुख संस्थान से कोई सहायता नहीं मिली। ज्यादातर सैनिकों के लिए सेवानिवृत्ति आमतौर पर जल्दी होती है, हालांकि ‘सेवानिवृत्ति’ शब्द खुद ही भ्रामक है। वास्तव में ज्यादातर सैनिकों को करियर में बदलाव से समायोजन करना पड़ता है। 

इस तरह मध्य आयु में नागरिक जीवन को संक्रमण वास्तव में पुन: सामाजीकरण की प्रक्रिया है, जो एक तनावपूर्ण काम है। उन्हें ऐसी जगह को छोडऩा पड़ता है, जो सुरक्षा का पर्याय है और एक ऐसी वर्कफोर्स में शामिल होना होता है जो अपनी बनावट में ही अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितताओं से घिरा है। अक्सर नागरिक जीवन में वापसी के बाद सेवानिवृत्त फौजी का अधिकांश समय घर पर ही गुजरता है, जिससे समायोजन की समस्याएं भी पैदा होती हैं जबकि वन रैंक वन पैंशन पर अभी भी बहस जारी है, पुनर्वास पर गंभीरता से सामाजिक अध्ययन की जरूरत है। ऐसा नहीं है कि वैटरन के लिए कोई संस्थागत चिंता नहीं है। केंद्रीय सैनिक बोर्ड के तहत काम कर रहे जिला सैनिक बोर्ड अधिकांश जिलों में हैं। ये पूर्व सैनिकों के लिए जमीनी स्तर पर सुविधाएं मुहैया कराते हैं और इनसे उन्हें फौरी व स्थायी रोजगार पाने में मदद मिलती है। 

कैंटीन स्टोर्स विभाग पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों को कैंटीन सेवाएं देना जारी रखता है, जहां उन्हें हर महीने सबसिडी वाली खाने-पीने की चीजें, घरेलू उपकरण और इस्तेमाल की चीजें खरीदने की छूट होती है। सशस्त्र बलों की स्थानीय सेवा संस्थाएं पूर्व सैनिकों को प्रशासनिक सेवाएं मुहैया कराती हैं, जबकि आम्र्ड फोर्सिज वाइव्स वैल्फेयर एसोसिएशन (ए.एफ.डब्ल्यू.डब्ल्यू.ए.) पूर्व सैनिकों की पत्नियों और बच्चों को कई प्रकार की वित्तीय और गैर-वित्तीय सहायता प्रदान करती है। वैटरन को एक्स सॢवसमैन कंट्रीब्यूटरी हैल्थ स्कीम के फायदे हासिल होते हैं, जिससे वे ई.सी.एच.एस. सिस्टम के माध्यम से कैशलैस चिकित्सा सुविधाओं का लाभ ले सकते हैं। 

प्लेसमैंट सैल, विशेष रूप से वायुसेना (जिसे संतुष्टि स्तर पर कम आंका गया है) में और सरकारी रोजगार केंद्र भी नौकरियां हासिल करने में मदद करते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में, बैंकों की तरह आरक्षण नीतियों की एक शृंखला है, जिनका सशस्त्र बलों के कर्मी लाभ उठा सकते हैं। हालांकि, इनमें से सिर्फ 16-18 फीसदी लोग वास्तव में लाभान्वित हुए हैं। यह उदासीनता एक हद तक न सिर्फ ऐसे अवसरों के बारे में जानकारी के अभाव के कारण है, बल्कि जरूरी योग्यता परीक्षाओं को पास नहीं कर पाने के कारण भी है। सैन्य बलों में भी समायोजन की व्यवस्था है, जिसमें वैटरन रक्षा सेवा इकाइयों में 100 फीसदी योगदान करते हैं। अच्छा तो यह हो कि,सरकार वैटरन के लिए नौकरियों में, खासकर केंद्रीय सुरक्षा बलों में समायोजन के मौकों का विस्तार करे। 

इधर, निजी क्षेत्र में, सैन्य कर्मियों को ज्यादातर सुरक्षा से जुड़ी नौकरियों में ही रखा जाता है। हालांकि कार्पोरेट जगत में वैटरन को बहुत सम्मान की नजर से देखा जाता है, लेकिन उन्हें अधिक योग्य उम्मीदवारों से प्रतिस्पर्धा में रखने को लेकर झिझक है। वैटरन के लिए अवसर बढ़ाना एक बुनियादी चिंता है, सरकारी रोजगार केंद्रों को प्राथमिकता के आधार पर उनके लिए नौकरी के अवसरों का पता लगाना चाहिए। सरकार को रक्षा कर्मियों के सैन्य सेवा से बाहर आते ही सार्वजनिक क्षेत्र में नई नौकरी मिल जाने की व्यवस्था करने पर भी विचार करना चाहिए। सैन्य कर्मियों को फिर से नया कौशल सिखाना बुनियादी चिंता बन जाता है। डायरैक्ट्रोरेट जनरल ऑफ रिसैटलमैंट (डी.जी.आर.) दूसरे करियर के वास्ते वैटरन की तैयारी के लिए नाममात्र का शुल्क लेता है। यह प्रतिष्ठित संस्थानों में विभिन्न पाठ्यक्रमों के आयोजन के साथ एक संक्रमण की योजना बनाने पर केंद्रित होता है। हालांकि इनमें से कई पाठ्यक्रम,उच्च गुणवत्ता के होने के बावजूद, बाजार की जरूरतों के हिसाब से प्रासंगिक नहीं हैं और सैनिकों को नागरिक संक्रमण के लिए तैयार नहीं करते हैं। 

पारिवारिक जिम्मेदारियां और सेवानिवृत्ति के बाद की योजना के चलते ऐसे पाठ्यक्रमों का बहुत ज्यादा लोग चुनाव नहीं करते हैं  (औसतन 170 सालाना, रक्षा मंत्रालय, 2016)। आदर्श स्थिति यह होगी कि डी.जी.आर. उपयोगी सर्टीफिकेट्स और पाठ्यक्रमों की जरूरतों को समझने के लिए गहराई से उद्योग के साथ मिलकर काम करे, साथ ही इन पाठ्यक्रमों की टाइमिंग उद्योग के भर्ती चक्र के साथ जुड़ी हो। ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रम उद्योग जगत के लोगों की देख-रेख में आयोजित किए जाने चाहिएं, जिससे कि उन्हें अनुभवी उम्मीदवारों को परखने का मौका मिले। इन पाठ्यक्रमों को बाजार में उपलब्ध नौकरियों की जरूरत के हिसाब से री-पैकेज किए जाने की जरूरत है, जो औद्योगिक सांझीदारों के समूह में रोजगार गारंटी देता हो। 

इस तरह की व्यवस्था में ऐसे कुशल वैटरन की सालाना उपलब्धता को सरकारी कार्यक्रमों से भी जोडऩे की जरूरत है। सरकारी मंत्रालयों और कार्यक्रमों के साथ स्ट्रैटेजिक सांझेदारी जिसमें ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्किल इंडिया’ भी शामिल हों, से वैटरन में उद्यमशीलता के साथ-साथ कौशल विकास करने में काफी मदद मिलेगी। ध्यान दीजिए कि ब्रिटेन यह काम कैसे करता है। ब्रिटिश सरकार ने आम्र्ड फोर्सिज अनुबंध (2011) में पुनर्वास सुनिश्चित करने को अपना समर्थन दिया है और इसके द्वारा सशस्त्र बलों में सेवा करने से हो सकने वाले किसी भी नुक्सान की भरपाई का वायदा किया गया है, जिसमें कर्ज लेने, हैल्थ केयर या सोशल हाऊसिंग के साथ ही उन्हें नौकरी पाने में मदद की जाती है। 

आदर्श स्थिति तो यह होगी कि सेवानिवृत्ति के बाद, वैटरन को अपने लिए मदद मांगने के लिए बेसहारा न छोड़ा जाए। सरकार को निजी क्षेत्र के साथ सांझेदारी में, नागरिक समाज में उनका पूर्ण एकीकरण सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए। प्रभावी पुनर्वास के बिना सेवा में कार्यरत जवानों के मनोबल को बनाए रखना कठिन होगा और यह प्रतिभाशाली युवाओं को सशस्त्र बलों में शामिल होने से हतोत्साहित करेगा। हम सैन्य बलों की भर्ती और प्रशिक्षण पर भारी मात्रा में जनता का पैसा खर्च करते हैं। सशस्त्र बलों से वे गरिमा के साथ विदा भी हों, यह सुनिश्चित करने में हम शायद थोड़ा और खर्च कर सकते हैं।-वरुण गांधी

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