बजट में ‘एक-दो आना’ झूठ मिला देने की पुरानी परम्परा

Edited By ,Updated: 07 Feb, 2020 01:10 AM

the old tradition of mixing  one or two  lies in the budget

आपने सोलह आने सच के बारे में सुना होगा लेकिन अगर सोलह आने झूठ का नमूना देखना है तो इस साल बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा खेती और किसान के बारे में की गई सोलह घोषणाओं को देख सकते हैं। बजट भाषण के शुरू में ही एक-दो नहीं, 16 घोषणाएं सुनकर...

आपने सोलह आने सच के बारे में सुना होगा लेकिन अगर सोलह आने झूठ का नमूना देखना है तो इस साल बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा खेती और किसान के बारे में की गई सोलह घोषणाओं को देख सकते हैं। बजट भाषण के शुरू में ही एक-दो नहीं, 16 घोषणाएं सुनकर सबको लगा कि हो न हो, वित्त मंत्री ने अपना खजाना खेती-किसान के लिए खोल दिया है। लेकिन सच यह है कि यह बजट गांव खेती और किसान के लिए पिछले कुछ सालों में सबसे बड़ा धक्का साबित हुआ है।

किसान की जेब से पैसा निकाल लिया
बजट भाषण में एक-दो आना झूठ मिला देने की परंपरा पुरानी है। जब श्री प्रणव मुखर्जी और श्री पी. चिदंबरम वित्त मंत्री थे तब भी उन्होंने बजट के घाटे को छुपाने का काम किया था। अरुण जेतली के जमाने में बजट में किसानों को ब्याज में छूट की मद एक खाते से दूसरे खाते में डालकर कृषि का बजट बढ़ाने का झूठा वादा हुआ था। लेकिन इस बार तो वित्त मंत्री ने जो किया वह बेमिसाल था। भाषण में बात की खेती किसानी को बढ़ावा देने की, लेकिन वास्तव में किसान को मिलने वाले पैसे में कटौती कर दी। किसान के कान में सुंदर डायलॉग दिए लेकिन उसकी जेब से पैसा निकाल लिया। 

कुछ घोषणाओं का बजट से कोई लेना-देना नहीं
वित्त मंत्री की 16 घोषणाओं पर एक नजर डालने पर ही स्पष्ट हो जाता है कि इनमें से कुछ घोषणाओं का केंद्र सरकार के बजट से कोई लेना-देना नहीं है। मसलन राज्यों में कृषि और भूमि संबंधी कानूनों में सुधार की घोषणा दरअसल राज्य सरकारों को सुझाव मात्र है। इसी तरह किसानों को दिए जाने वाले ऋण के लक्ष्य में बढ़ौतरी दरअसल बैंकों का काम है। इसका श्रेय सरकार को नहीं मिल सकता। गांव में कृषि उत्पाद के संरक्षण का काम सैल्फ हैल्प ग्रुप को दिया गया है। कुछ घोषणाएं तो कर दी गईं लेकिन वित्त मंत्री बजट में एक पैसा भेज देना भूल गईं। बड़े गाजे-बाजे के साथ घोषित किसान उड़ान योजना और कृषि उत्पाद के वेयरहाऊस को सहयोग देने की योजना के लिए बजट में कोई मद नहीं रखी गई है। बागवानी और मत्स्य उत्पादन की चर्चा ऐसे हुई मानो सरकार इस दिशा में कोई अभूतपूर्व कदम उठा रही है। 

लेकिन सच यह है कि बागवानी में बजट को 2225 करोड़ रुपए से बढ़ाकर केवल 2300 करोड़ रुपए किया गया और मत्स्य उत्पादन की नीली क्रांति में बजट पिछले साल के 560 करोड़ रुपए से मामूली सा बढ़ाकर इस बार 570 करोड़ रुपए किया। जाहिर है अपने बजट भाषण में हर घोषणा के लिए कितनी राशि आबंटित की गई, इसके बारे में चुप्पी रखने के पीछे एक गहरा राज था। बात यहां तक रहती तो गनीमत थी लेकिन हकीकत इससे भी कड़वी है। सच यह है कि सरकार ने किसान को कुछ देने की बजाय उससे कुछ छीन लिया है। यह बजट गांव खेती और किसान पर तीन तरफा हमला है। 

किसानों को आढ़ती की दया पर छोड़ दिया गया
सबसे पहला हमला किसान की फसल की खरीद पर है। भारतीय खाद्य निगम को फसल की खरीद के लिए जो फंड दिए जाते हैं वह राशि पिछले साल 1 लाख 51 हजार करोड़ रुपए थी। इस बजट में उस मद में 76 हजार करोड़ की भारी कटौती हुई है। पूरे बजट की इस सबसे बड़ी कटौती पर वित्त मंत्री ने अपने भाषण में एक शब्द भी नहीं बोला। जाहिर है अचानक ऐसी कटौती से सरकारी खरीद पर असर पड़ेगा। किसानों को आढ़ती की दया पर छोड़ दिया जाएगा। किसान की फसल की खरीद में मदद करने वाली बाकी दोनों योजनाओं में भी कटौती की गई है। प्रधानमंत्री आशा योजना फसल की सरकारी खरीद को मजबूत करने के लिए बनी थी, उसमें पिछले साल के 1500 करोड़ रुपए को घटाकर 500 करोड़ किया गया है। किसी फ सल के दाम गिरने पर बाजार में दखल देकर किसान की मदद करने वाली योजना और मूल्य समर्थन योजना का बजट भी 3 हजार करोड़ से घटाकर 2 हजार करोड़ कर दिया गया है। जाहिर है इसकी मार किसान को ही पड़ेगी। 

किसान के लिए कंगाली में आटा गीला वाली स्थिति हो जाएगी
किसानों पर जो दूसरा हमला हुआ वह उर्वरक (फर्टिलाइजर) सबसिडी में कटौती के माध्यम से चला है। अपने भाषण में वित्त मंत्री ने रासायनिक खाद में असंतुलन को समाप्त करने और उसकी जगह जैविक खाद को प्रोत्साहित करने की बात कही। लेकिन व्यवहार में इसका अर्थ यह निकाला कि यूरिया की सबसिडी को 9 हजार करोड़ रु. काट दिया गया। पहले इसके लिए सरकार खाद पर 79,996 करोड़ रुपए का अनुदान देती थी लेकिन इस बार यह घटाकर 70,139 करोड़ तक कर दिया गया। यह भी ऐसे समय में आया है जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उर्वरक (फर्टिलाइजर) का दाम बढ़ चुका है। किसान के लिए कंगाली में आटा गीला वाली स्थिति हो जाएगी। 

तीसरा हमला कृषि श्रमिक के लिए जीविका के प्राथमिक स्त्रोत मनरेगा के लिए आबंटित धन में कटौती है। इस वित्तीय वर्ष में सरकार ने मनरेगा के लिए अनुमानित खर्च 71,000 करोड़ रुपए बताया है। इस साल और ज्यादा धन की जरूरत थी। लेकिन वित्त मंत्री ने मनरेगा के लिए केवल 61,500 करोड़ रुपए आबंटित किए हैं। इससे काम की मांग दबाई जाएगी और ग्रामीण लोगों, खासतौर पर खेतिहर मजदूर का एक महत्वपूर्ण आजीविका स्रोत प्रभावित होगा। मजबूरी में किसान को दूध की बिक्री का सहारा है, इसमें भी वित्त मंत्री ने दावे तो बहुत बड़े किए लेकिन वास्तव में श्वेत क्रांति का बजट 2240 करोड़ रुपए से घटाकर 1863 करोड़ रुपए कर दिया। 

यह सब उस वर्ष में हुआ है जबकि सभी अर्थशास्त्री इस बात से सहमत थे कि सरकार को सरकार के लिए सबसे समझदारी का काम ग्रामीण लोगों के हाथों में पैसा देना होगा, क्योंकि अर्थव्यवस्था पर इसका तीन गुना प्रभाव पड़ता है, फिर भी सरकार द्वारा ग्रामीण भारत को पैसा लेने के लिए चुना गया। सरकार का यह रवैया ग्रामीण भारत में आय और रोजग़ार की समस्या को और बढ़ाएगा। इसलिए किसानों के संगठन अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने 13 फरवरी को इस बजट के राष्ट्रव्यापी विरोध का आह्वान किया है।-योगेंद्र यादव

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!