नई करवट ले रही जम्मू-कश्मीर की ‘सियासत’

Edited By ,Updated: 21 Feb, 2020 06:23 AM

the politics of jammu and kashmir is taking a new turn

भारतीय संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद 370 के विवादित अंश एवं 35-ए को समाप्त करने और जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा मिलने से बदली परिस्थितियों में विपक्षी दलों के वरिष्ठ नेताओं की गिरफ्तारियों एवं प्रतिबंधों के चलते जम्मू-कश्मीर की...

भारतीय संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद 370 के विवादित अंश एवं 35-ए को समाप्त करने और जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा मिलने से बदली परिस्थितियों में विपक्षी दलों के वरिष्ठ नेताओं की गिरफ्तारियों एवं प्रतिबंधों के चलते जम्मू-कश्मीर की सियासत अब नई करवट लेने लगी है। विशेष तौर पर राज्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा पहले पंचायत उप-चुनाव करवाए जाने की घोषणा और बाद में सर्वदलीय बैठक के पश्चात सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए इसे स्थगित कर देने की कवायद ने राजनीतिक दलों की सरगर्मी को और तेज कर दिया है। 

दरअसल, 5 अगस्त 2019 को जैसे ही जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के विवादित अंश एवं 35-ए को समाप्त करने की प्रक्रिया शुरू हुई और पहले राज्यसभा एवं बाद में लोकसभा में इस संबंधी संशोधन विधेयक पेश किया गया तो राज्य में शांति भंग होने की आशंका के चलते प्रशासन द्वारा विपक्षी दलों के तमाम बड़े नेताओं को या तो हिरासत में ले लिया गया या उन्हें अपने घरों में नजरबंद कर दिया गया था। बाद में पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं नैशनल कांफ्रैंस (नैकां) के अध्यक्ष डा. फारूक अब्दुल्ला, पूर्व मुख्यमंत्री एवं नैकां उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला और पूर्व मुख्यमंत्री एवं पी.डी.पी. अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती समेत कई नेताओं पर जनसुरक्षा अधिनियम (पी.एस.ए.) के तहत कार्रवाई करते हुए उनकी हिरासत की अवधि बढ़ा दी गई। इसके विपरीत पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ मिलकर पी.डी.पी. की स्थापना करने वाले पूर्व उप-मुख्यमंत्री मुजफ्फर हुसैन बेग को पद्म भूषण जैसे देश के अति प्रतिष्ठित पुरस्कार से नवाजा गया। 

19 जून 2018 को भारतीय जनता पार्टी द्वारा समर्थन वापस लेने के चलते  महबूबा मुफ्ती सरकार के पतन के साथ ही पी.डी.पी. में बिखराव का दौर शुरू हो गया था। पार्टी के सह-संस्थापक पूर्व उप-मुख्यमंत्री मुजफ्फर हुसैन बेग तो पहले भी बगावती तेवर दिखाते रहे थे लेकिन बाद में कई पूर्व मंत्रियों, पूर्व विधायकों एवं अन्य वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी नेतृत्व पर तानाशाही बरतने के आरोप मढ़ते हुए पी.डी.पी. को अलविदा कह दिया। कभी स्व. मुफ्ती मोहम्मद सईद के करीबी रहे पूर्व मंत्री सईद अल्ताफ अहमद बुखारी ने पी.डी.पी. एवं नैकां के बागी नेताओं के साथ-साथ कुछ छोटी पाॢटयों के  नेताओं को लामबंद करने की मुहिम छेड़ी है। सियासी हलकों में इस लामबंदी को फिलहाल तीसरे मोर्चे का नाम दिया जा रहा है और अगले महीने बुखारी द्वारा अपनी राजनीतिक पार्टी की औपचारिक घोषणा किए जाने की संभावना है। 

इसके अलावा जम्मू-कश्मीर के विभिन्न जिलों के पंचों, सरपंचों एवं खंड विकास समिति अध्यक्षों के संगठन ऑल जम्मू-कश्मीर पंचायत कांफ्रैंस के चेयरमैन मोहम्मद शफीक मीर और जम्मू संभाग अध्यक्ष अरुण शर्मा सूदन भी अपनी राजनीतिक पार्टी का पंजीकरण करवाने के प्रयास में हैं। इन नेताओं ने यूरोपियन यूनियन के प्रतिनिधियों एवं विदेशी राजनयिकों के दल समेत केंद्र सरकार द्वारा कश्मीर भेजे गए तमाम प्रतिनिधिमंडलों के साथ विचार सांझे करके उनके समक्ष नए जम्मू-कश्मीर की तस्वीर रखी, जिससे अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर कश्मीर के हालात को लेकर भारत का पक्ष मजबूत हुआ। 

पिछले दिनों जब जम्मू-कश्मीर के मुख्य निर्वाचन कार्यालय ने 5-19 मार्च के बीच 8 चरणों में जम्मू-कश्मीर के 274 खंडों में रिक्त पड़े सरपंचों के 1011 और पंचों के 11639 पद भरने के लिए पार्टी चिन्ह पर पंचायत उपचुनाव करवाने की घोषणा की तो तमाम राजनीतिक दलों का सक्रिय हो जाना स्वाभाविक था। नैशनल कांफ्रैंस, कांग्रेस, पी.डी.पी. एवं नैशनल पैंथर्स पार्टी सरीखे प्रमुख विपक्षी दल अपने नेताओं की रिहाई अथवा उन पर लगे प्रतिबंधों को समाप्त करने के रूप में फायदा उठाना चाहते थे, वहीं इन विपक्षी दलों के चुनाव प्रक्रिया से किनारा करने की स्थिति में कुछ नेता अपनी नई पार्टियों बनाकर राजनीतिक पारी खेलने की फिराक में रहे। खास बात यह रही कि करीब डेढ़ वर्ष पूर्व पंचायत चुनाव बिना पार्टी चिन्ह के आयोजित किए गए थे, इसके बावजूद उस समय नैशनल कांफ्रैंस और पी.डी.पी. ने पंचायत चुनावों का बहिष्कार किया था। 

पिछली बार पंचायत एवं शहरी स्थानीय निकाय चुनावों का बहिष्कार करने वालों की झंडाबरदार बनी नैकां के महासचिव रतनलाल गुप्ता ने पार्टी चिन्ह पर पंचायत उप-चुनाव की घोषणा होते ही मुख्य निर्वाचन अधिकारी शैलेंद्र कुमार को पत्र लिखकर पार्टी अध्यक्ष डा. फारूक अब्दुल्ला, उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला एवं महासचिव अली मोहम्मद सागर समेत नैकां नेताओं पर से पी.एस.ए. हटाकर उनकी रिहाई समेत तमाम अड़चनें दूर करने का आग्रह किया है, ताकि पार्टी सुचारू ढंग से चुनाव प्रक्रिया में भाग ले सके। नैशनल कांफ्रैंस महासचिव ने तो यह तंज भी कसा कि यदि विभिन्न शर्तें लगाकर गैर-भाजपा पाॢटयों को चुनाव प्रक्रिया से बाहर रखना ही निर्वाचन कार्यालय का मकसद है तो ठीक है, और कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है लेकिन यदि जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करना चुनाव का मकसद है तो इस प्रक्रिया को दोषमुक्त करना चाहिए। 

इसके बाद जब मुख्य निर्वाचन अधिकारी शैलेंद्र कुमार ने सभी दलों के नेताओं की बैठक बुलाई तो नैकां और पी.डी.पी. महासचिवों क्रमश: रतनलाल गुप्ता व सुरेंद्र चौधरी ने जहां अपने वरिष्ठ नेताओं की रिहाई के बाद ही चुनाव में भाग लेने पर विचार करने की बात कही, वहीं कांग्रेस प्रवक्ता रविंद्र शर्मा ने कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गुलाम अहमद मीर के कश्मीर जाने पर प्रतिबंध का मुद्दा उठाया। 

नैशनल पैंथर्स पार्टी चेयरमैन हर्षदेव सिंह का कहना था कि विपक्षी नेताओं को उचित सुरक्षा दिए जाने और उनकी आवाजाही पर लगे प्रतिबंध हटाए जाने तक चुनाव प्रक्रिया में शामिल होना संभव ही नहीं है। इसके विपरीत भाजपा के चुनाव संबंधी मामलों के प्रभारी राजेंद्र शर्मा ने आरोप लगाया कि विपक्षी दल इसलिए पंचायत उप-चुनाव का विरोध कर रहे हैं ताकि आम जनता को लोकतांत्रिक अधिकारों का हस्तांतरण न हो सके। बेशक पंचायत उप-चुनाव फिलहाल टल गए हैं, लेकिन देखना दिलचस्प होगा कि निर्वाचन कार्यालय नई तारीखों की घोषणा कब करता है और उस समय भी चुनावों को लेकर विपक्षी नेताओं का क्या रुख रहने वाला है?-बलराम सैनी
 

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