‘नोटबंदी’ ने कई देशों को ‘दर्द’ भी दिए

Edited By ,Updated: 20 Nov, 2016 01:52 AM

the prisoners many countries pain given

नोटबंदी से उपजे खटराग में भगवा सियासत बेसुर-बेताल हुए जा रही है, संसद नए रण की जमीन तैयार...

(त्रिदीब रमण ): नोटबंदी से उपजे खटराग में भगवा सियासत बेसुर-बेताल हुए जा रही है, संसद नए रण की जमीन तैयार कर रही है और विपक्षी पलटवार के लिए मुस्तैद लड़ाकों के मानिंद कमर कस चुके हैं। वाम व कांग्रेस से ताल्लुक रखने वाले अर्थशास्त्रियों को आशंका है कि मोदी का यह दाव उलटा भी पड़ सकता है क्योंकि सोवियत संघ, घाना, नाइजीरिया, उत्तर कोरिया जैसे कई देशों में नोटबंदी के फैसलों से पहले ही बड़े भूचाल आ चुके हैं। 

घाना जैसे गरीब अफ्रीकी देश में वहां फैले व्यापक भ्रष्टाचार और टैक्स चोरी को रोकने के लिए 1982 में वहां की सरकार ने बड़े नोटों (सेडी) के चलन पर पाबंदी लगा दी, तो घाना के मुठ्ठी भर अमीरों ने रातों-रात अपने काले धन को विदेशी मुद्राओं में कन्वर्ट करा लिया। वहीं सुदूर इलाकों में रहने वाली गरीब जनता मीलों का सफर तय करके बैंकों तक पहुंची तो लाइनों में खड़े होकर भी उनका श्रम बेकार साबित होता रहा। कई तो रास्तों में ही लुट गए। डैड लाइन खत्म होने के बाद वहां बंडलों के बंडल बेकार नोट नजर आए। वहां की पूरी इकोनॉमी तहस-नहस हो गई।

ऐसा ही कुछ हाल नाइजीरिया व जायरे जैसे देशों का भी हुआ। उत्तरी कोरिया में भी वहां के तानाशाह शासक किम जांग-इल ने काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से वहां बड़े नोटों पर पाबंदी लगा दी। इसका असर वहां की खेती-किसानी पर देखने को मिला, देश भुखमरी का शिकार हो गया। तानाशाह किम को अपने देश की जनता से माफी मांगनी पड़ी। 

किम ने नोटबंदी का ठीकरा अपने वित्त मंत्री पर फोड़ दिया और उन्हें मौत की सजा दे दी। 1991 में सोवियत राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव ने देश में फैले काले धन पर लगाम लगाने के लिए बड़े रूबल पर एकाएक पाबंदी लगा दी। सनद रहे कि उस वक्त सोवियत संघ में एक-तिहाई प्रचलन इन्हीं बड़े नोटों का था। गोर्बाचेव के इस फैसले से वहां मुद्रास्फीति की दर इस कदर बढ़ी कि वहां की अर्थव्यवस्था ढह गई और भयंकर राजनीतिक अस्थिरता तथा उथल-पुथल के बाद सोवियत संघ भी कई भागों में टूट गया। 

देश के अंदर नोट छापने वाली सभी प्रिंटिंग प्रैस यानी मिंट प्रैस से कहा गया था कि जो नए नोट छप रहे हैं वे दिसम्बर से प्रचलन में लाए जाएंगे, पर इन मिंट प्रैस को इस बात का तनिक भी इल्म नहीं था कि नए नोटों के प्रचलन में आने से पूर्व 500 व 1000 के पुराने नोटों की दुकानें बंद हो जाएंगी। 

अचानक 8 तारीख की रात 8 बजे पी.एम. का राष्ट्र के नाम संदेश आता है और नोटबंदी का फैसला सुना दिया जाता है। यह पूरा आप्रेशन इतने गुपचुप तरीकों से अंजाम दिया गया कि पी.एम. के संग कैबिनेट मीटिंग के लिए आए मोदी सरकार के कैबिनेट मंत्रियों को भी इस बात की कोई भनक नहीं थी। सूत्र बताते हैं कि पहली बार था कि इनके मोबाइल फोन भी बाहर रखवा लिए गए थे। अब सवाल उठता है कि नोटबंदी का जो फैसला दिसम्बर में लिया जाना था उसे नवम्बर में ही क्यों अमलीजामा पहना दिया गया? सूत्रों की मानें तो 2000 के नए नोट की फोटो हैदराबाद से कहीं 6 नवम्बर को ही सोशल साइट पर वायरल हो गई, सो सरकार को आनन-फानन में यह फैसला लेना पड़ा।

दाऊद हुए आऊट
भाजपा यू.पी. चुनाव में इस बात का भी श्रेय लेना चाहेगी कि नोटबंदी के फैसले से दाऊद  इब्राहिम और हाफिज सईद जैसे सरगनाओं के पिछवाड़ों पर भी जोर की लात पड़ी है। खुफिया विभाग से जुड़े सूत्र खुलासा करते हैं कि अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर भारत में भी खूब सट्टा लगा था और सट्टे पर लगी रकम कई क्रिकेट मैचों के सट्टे की संयुक्त रकम से भी कहीं बड़ी थी। जाहिर तौर पर सट्टे का यह सारा नैटवर्क दाऊद की शह पर उनके गुर्गे ऑप्रेट कर रहे थे। कहते हैं ज्यादातर भारतीयों ने हिलेरी के पक्ष में पैसा लगाया था, सो ट्रम्प की जीत के बाद एक बड़ी रकम नकदी के तौर पर दाऊद की जेब में जाने वाली थी, ऐन वक्त मोदी के इस कालजयी फैसले से कई माफिया सरगनाओं के होश फाख्ता हो गए।

शाह के फरमान से परेशान
नोटबंदी  को लेकर भाजपा में ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है, कई भाजपा नेता ही इस फैसले से असहज जान पड़ते हैं। शायद इसीलिए जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अपनी पार्टी के सभी सांसदों, विधायकों व मंत्रियों को यह फरमान जारी किया कि ये नेतागण अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में जाकर प्रधानमंत्री के नोटबंदी के कदम का जम कर प्रचार करें और लोगों को यह समझाएं कि पी.एम. की यह पहल काले धन और आतंकवाद के खात्मे के लिए उठाया गया एक ऐतिहासिक कदम है। 

सो,शाह चाहते थे कि ये भगवा नेता अपने-अपने क्षेत्रों में जाकर बड़े होॄडग्स, बैनर, पोस्टर आदि लगवाएं, पर फरमान जारी होने के इतने दिन गुजर जाने के बाद भी जब ये नेतागण हरकत में नहीं आए तो पार्टी हाईकमान ने एक-एक नेता को बुला कर इनकी क्लास लेनी शुरू कर दी है, बचाव में ये नेता जो तर्क दे रहे हैं वह वाकई दिलचस्प है।

सूत्र बताते हैं कि इनमें से अधिकांश पैसों का रोना रो रहे हैं और कह रहे हैं कि बैनर-होॄडग्स का 90 प्रतिशत कार्य कैश में होता है और अब कोई भी प्रचार एजैंसी पुराने नोट लेने को तैयार नहीं, सो ये चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। शायद यही वजह थी कि पी.एम. की रविवार की आगरा रैली के लिए पार्टी के केंद्रीय कोष से भरपूर धन उपलब्ध करवाया गया और पूरे शहर को नोटबंदी की उपलब्धियां गिनाने वाले बैनर, पोस्टर, होॄडग्स व परचमों से बेतरह रंग दिया गया, नोटबंदी को लेकर नए नारे गढ़े गए, मसलन ‘काले धन पर कड़ा प्रहार, नोट बंद किया पांच सौ, हजार, मोदी जी का अभिनंदन बारंबार।’

व्यापारी नए मुसलमान
पी.एम. की आगरा रैली में भाजपा ने इतना जम कर प्रचार-प्रसार किया है कि पूरा शहर मोदी व उनकी नोटबंदी के पोस्टरों से रंग गया है। चुनांचे अब कांग्रेस व ‘आप’ रैली के खर्चे को लेकर सवाल उठा रही हैं। इस बाबत भाजपा का दो टूक कहना है कि यह सारा खर्च पार्टी के कार्यकत्र्ताओं ने उठाया है पर स्थानीय भाजपा से जुड़े सूत्र स्पष्ट करते हैं कि नोटबंदी के बाद लोगों से चंदा उगाहना टेढ़ी खीर साबित हो रहा था। यहां तक कि भाजपा के कोर वोटर भी अपने हाथ खड़े कर रहे हैं, भाजपा के परंपरागत वोट बैंक में शुमार होने वाले वैश्य समुदाय की नाराजगी तो देखते ही बनती है।

भाजपा से जुड़े एक विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि जब रैली के लिए पैसे जुटाने के क्रम में शहर के व्यापारियों से संपर्क साधा गया तो उन्होंने एक नए जुमले को धार दी कि ‘वे भाजपा के लिए अब मुसलमान हो गए हैं, जो भी पार्टी राज्य में भाजपा को हराती हुई दिखेगी उनका वोट उसी दल के लिए होगा।’ इस जुमले का दम भगवा पार्टी को बेदम करने के लिए काफी है।

घर पहुंचती करंसी
नोट बदलने के चक्कर में जहां आम आदमी की जान सांसत में है, वहीं बड़े-बड़ों का बाल बांका नहीं हुआ है। 10 नवम्बर को देश के एक बड़े हिंदी अखबार समूह के मालिक की बेटी की शादी इंदौर के एक रिसॉर्ट में बेहद शाही तरीके से संपन्न हुई। जबकि 8 तारीख की रात को ही नोटबंदी का फरमान सुना दिया गया था। 7-8 एकड़ के आलीशान फार्म हाऊस में यह शाही शादी संपन्न हुई और नई करंसी का संकट इन्हें छू भी नहीं पाया। सूत्र बताते हैं कि कई बैंक वालों ने स्वयं नई करंसी में कैश निकासी करके इस अखबार मालिक के घर पहुंचवा दी। सनद रहे कि इस अखबार मालिक के छोटे भाई प्रदेश के एक बड़े भाजपा नेता के बिजनैस पार्टनर भी हैं।             
 

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