इंदिरा गांधी की सार्वजनिक छवि उनके निजी जीवन से काफी भिन्न थी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Aug, 2017 01:11 AM

the public image of indira gandhi was quite different from her personal life

यह एक सुखद संयोग ही है कि भारत की स्वतंत्रता की 70वीं वर्षगांठ के साथ-साथ इंदिरा गांधी की जन्म शताब्दी भी चालू वर्ष ...

यह एक सुखद संयोग ही है कि भारत की स्वतंत्रता की 70वीं वर्षगांठ के साथ-साथ इंदिरा गांधी की जन्म शताब्दी भी चालू वर्ष में ही आ रही है। सर्वेक्षणों के अनुसार इंदिरा गांधी को अधिकतर भारतीय सबसे बेहतरीन प्रधानमंत्री के रूप में देखते हैं। निश्चय ही स्वतंत्रता के बाद के 7 दशकों में से इंदिरा के कार्यकाल के 16 वर्षों में भारत ने अपनी उपलब्धियों की बुलंदी (बंगलादेश विजय) तथा पतन की नारकीय गहराइयों (आपातकाल) को छुआ। इन दोनों में ही इंदिरा गांधी की भूमिका निर्णायक थी। 

आज बहुत से लोग जब यह मानते हैं कि नरेन्द्र मोदी की खूबियां और कमजोरियां इंदिरा गांधी से मिलती-जुलती हैं तो यह स्मरण कराना असंगत नहीं होगा कि इंदिरा गांधी की सार्वजनिक छवि उनके निजी जीवन से कितनी भिन्न थी। यही एक कारण है कि जिसके चलते हम बिल्कुल न्यायपूर्ण ढंग से राजनीतिक पिशाच तथा एक खूबसूरत व्यक्तित्व दोनों के रूप में उनकी कल्पना कर सकते हैं। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी  के बारे में भी यह बात सत्य हो सकती है। 

इंदिरा गांधी को अधिकतर लोग ऐसी राजनीतिक रणचंडी के रूप में याद करते हैं जिसने पुरानी कांग्रेस (यानी सिंडीकेट) को मिट्टी में मिला दिया, पाकिस्तान को बुरी तरह पराजित किया, अमरीका को ठेंगा दिखाने तक की हिम्मत की, अपनी मर्जी से मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति की, संस्थानों को लहूलुहान किया और आपातकाल लगाया। यह उनके व्यक्तित्व का दिलेराना पहलू था और इन्हीं गुणों के कारण अटल बिहारी वाजपेयी ने बंगलादेश युद्ध के बाद उन्हें ‘दुर्गा’ तक कह दिया था जबकि पश्चिमी मीडिया ने भारत की महारानी करार दिया था। 

इंदिरा गांधी का निजी जीवन आश्चर्यजनक हद तक अलग तरह का था। वह बहुत नाजुक बदन और लगभग कमजोर से हाथों वाली महिला थीं। डोरोथी नार्मन को लिखे उनके पत्र एक आहत व्यक्तित्व की तस्वीर पेश करते हैं जो राजनीतिक जीवन की अपेक्षाओं और उनकी आंतरिक शांति तलाश करने की अभिलाषा के बीच संघर्षरत है। हाल ही में लिखी अपनी आकर्षक पुस्तक में जयराम रमेश खुलासा करते हैं कि इंदिरा गांधी को प्रकृति से कितना प्रेम था, वह जानवरों से स्नेह करती थीं और पेड़-पौधों के बारे में उन्हें अथाह ज्ञान था तथा प्राकृतिक स्थलों पर छुट्टियां मनाते समय वह सबसे अधिक सहज महसूस करती थीं। भरतपुर का पंछी अभ्यारण्य तथा भारतीय बब्बर शेरों का संरक्षण शायद उनके बिना कभी हो ही नहीं पाता। 

इंदिरा गांधी में मौज-मस्ती करने की शरारती बच्चों जैसी प्रवृत्ति भी थी। जब हमारा जीवन औपचारिकताओं तथा आज्ञापालन के बंधनों में जकड़़ा होता तब भी वह बाल पार्टियों का आयोजन करना नहीं भूलती थीं। इन पार्टियों में छुपाई हुई वस्तुओं को ढूंढने का खेल खेला जाता था। तब किसी ने इस बात की कल्पना भी नहीं की थी कि इन पाॢटयों में बच्चों की शरारतों की सारी कोरियोग्राफी खुद इंदिरा गांधी ने ही की होती थी। 1976 में जब आपातकाल अपने चरम पर था और इंदिरा गांधी की शक्ति को किसी भी प्रकार की चुनौती नहीं थी, मुझे याद है कि वह राष्ट्रपति भवन में आयोजित फिल्म शो में मुझे और मेरी बहनों को ले जाने से पूर्व हमें सफदरजंग रोड पर नाश्ता करवाने के लिए लेकर गई थीं। 

जब राष्ट्रपति भवन के सिनेमा घर में से निकलने से पूर्व लघुशंका की आपाधापी दौरान मेरी बहन प्रेरणा ने उन्हें पूछा कि यात्राओं और दौरे के दौरान जब उन्हें ऐसी समस्या में से गुजरना पड़ता है तो वह क्या करती हैं? इंदिरा गांधी ने बिल्कुल सहज भाव से उत्तर दिया, ‘‘यह प्रत्येक महिला राजनीतिज्ञ के लिए एक भयावह समस्या होती है। आखिर हम पुरुषों की तरह न तो किसी पेड़ की आड़ में खड़ी हो सकती हैं और न ही किसी दीवार से सट कर लघुशंका कर सकती हैं। यही कारण है कि मैं दिन की सभी जरूरतें पूरी करने के लिए पानी रात को सोने से पूर्व ही पी लेती हूं। तब मुझे यह उम्मीद होती है कि यह पानी प्रात: उठते ही शरीर में से खारिज हो जाएगा और पूरा दिन दोबारा इस समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा।’’ जैसा कि होना ही था, इंदिरा गांधी के अंदरुनी इंसान को या तो भुला दिया गया है या इसे जानने का प्रयास ही नहीं किया गया। 

दूसरी ओर उनके बारे में बने हुए मिथक लगातार फल-फूल रहे हैं। मुझे तो यह डर है कि कहीं नरेंद्र मोदी के मामले में भी ऐसा ही न हो। वैसे निजी जीवन में व्यक्ति चाहे कैसा भी हो, यह उसके सार्वजनिक राजनीतिक जीवन के लिए किसी बहाने का आधार नहीं बन सकता और इतिहास इंदिरा तथा नरेंद्र मोदी दोनों को ही उनकी कारगुजारियों के आधार पर ही आंकेगा। फिर भी महान राजनीतिज्ञों के जीवन का दूसरा पहलू हमेशा ही मौजूद होता है, बेशक इसको केवल मित्र और रिश्तेदार ही याद रखते हैं लेकिन इस स्थिति में भी आप कह सकते हैं कि रोमन सम्राट कैलीगूला भी घोड़ों से बहुत प्रेम करता था और नीरो संगीत का बहुत शौकीन था। 

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