अगली संसद में पंजाब से लोकसभा और राज्यसभा सदस्यों का अनुपात घट जाएगा

Edited By ,Updated: 23 Aug, 2024 05:50 AM

the ratio of ls and rs members from punjab will decrease in next parliament

जैसे -जैसे भारत की लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधानसभाओं में निर्वाचित सदस्यों की संख्या बढ़ाने पर लगी 50 साल की रोक खत्म होने वाली है वैसे ही केंद्र और राज्य के राजनीतिक गलियारों में इसके प्रभाव पर बहस शुरू हो गई है क्योंकि इससे यू.पी., बिहार,...

जैसे -जैसे भारत की लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधानसभाओं में निर्वाचित सदस्यों की संख्या बढ़ाने पर लगी 50 साल की रोक खत्म होने वाली है वैसे ही केंद्र और राज्य के राजनीतिक गलियारों में इसके प्रभाव पर बहस शुरू हो गई है क्योंकि इससे यू.पी., बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे कई राज्यों के सदस्यों की संख्या बढऩे की संभावना है। एक अनुमान के मुताबिक, लोकसभा की कुल सीटों में इन 4 राज्यों की हिस्सेदारी एक तिहाई से ज्यादा बढ़ जाएगी और केरल और हिमाचल उन राज्यों में से एक होंगे जहां सीटों में कोई वृद्धि नहीं होगी और पंजाब व तमिलनाडु में सीटों में मामूली वृद्धि होने की संभावना है क्योंकि परिसीमन आयोग को जनसंख्या के आधार पर सीटों की संख्या बढ़ानी है। 

जिन राज्यों ने परिवार नियोजन प्रक्रिया को ईमानदारी से लागू किया वहां जनसंख्या वृद्धि दर बहुत कम रही और जिन राज्यों ने इस योजना के क्रियान्वयन पर ध्यान नहीं दिया वहां जनसंख्या तेजी से बढ़ी। इसके चलते परिवार नियोजन योजना को ईमानदारी से लागू करने वाले राज्यों के राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि इस फॉर्मूले से उन्हें केंद्रीय योजना को ईमानदारी से लागू करने की सजा मिलेगी, जो सही नहीं है। देश में हर 10 साल में जनगणना के बाद जनसंख्या के आधार पर लोकसभा और विधानसभाओं में सीटों की संख्या बढ़ाई जाती थी। इस कार्य के लिए केंद्र सरकार द्वारा परिसीमन आयोग की स्थापना की गई। भारत सरकार ने अब तक 4 ऐसे आयोगों की स्थापना की है। पहली बार 1952 में किसी आयोग की स्थापना की गई थी, तब लोकसभा में सीटों की संख्या 494 थी। परिसीमन आयोग अधिनियम, 1962 के तहत 1963 में दूसरे परिसीमन आयोग की स्थापना की गई और लोकसभा में सीटों की संख्या बढ़ाकर 522 कर दी गई। 1972 के परिसीमन आयोग अधिनियम के तहत 1973 में इस आयोग की स्थापना की गई और लोकसभा में सीटों की संख्या बढ़ाकर 543 कर दी गई। 

चौथी बार इस आयोग की स्थापना वर्ष 2002 में की गई थी। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश कुलदीप सिंह को इस आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था। इस आयोग की रिपोर्ट राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद 2008 में लागू हुई और उसके बाद से सभी चुनाव इसी रिपोर्ट के आधार पर हो रहे हैं। हालांकि इस रिपोर्ट से लोकसभा या विधानसभा के निर्वाचन क्षेत्रों में कोई बढ़ौतरी नहीं हुई, लेकिन इस आयोग ने निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन फिर से किया और सामान्य तथा आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में काफी उथल-पुथल हुई क्योंकि इस आयोग की रिपोर्ट एक चुनौती थी इसलिए इस रिपोर्ट को बिना किसी रुकावट के पूरी तरह से लागू किया गया। 

सरकार ने अभी तक जनगणना कराने का निर्णय नहीं लिया है और न ही नए आयोग के गठन को लेकर कोई कार्रवाई शुरू की है। लेकिन जिस तरह से केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा के नए भवन का निर्माण कराया गया है और इसमें लोकसभा के सदस्यों के लिए 888 सीटें और राज्यसभा के लिए 384 सीटों की व्यवस्था की गई है उससे लगता है कि सरकार समय पर परिसीमन आयोग द्वारा गणना कराकर नए सिरे से सीमांकन करेगी। इस सीमा के बाद, लोकसभा सीटों की संख्या 543 से बढ़कर 846 और राज्यसभा के लिए संख्या 250 से बढ़कर 384 होने की उम्मीद है। राज्यों के हिसाब से देखें तो यू.पी. में 80 से बढ़कर 143, बिहार में 40 से बढ़कर 79, राजस्थान में 25 से बढ़कर 50 और मध्य प्रदेश में 29 से बढ़कर 52 हो जाएंगी। केरल में 20 सीटें, तमिलनाडु में 49 सीटें, पंजाब में 18 सीटें और हिमाचल में 4 सीटें होंगी और इन 4 राज्यों के प्रतिनिधित्व का अनुपात लोकसभा और राज्यसभा में काफी कम हो जाएगा।

इन 8 राज्यों के अलावा लद्दाख की 1, जम्मू-कश्मीर की 8, चंडीगढ़ की 1, उत्तराखंड की 7, दिल्ली की 12, सिक्किम की 1, असम की 21, अरुणाचल की 2,  नागालैंड की 1, मणिपुर की 2, मेघालय की 2 , त्रिपुरा 2, मिजोरम 1, बंगाल 60, झारखंड 24, ओडिशा 28, छत्तीसगढ़ 19, हरियाणा 18, गुजरात 43, महाराष्ट्र 76, कर्नाटक 41, आंध्र और तेलंगाना 54, पुड्डुचेरी 1, दमन दीव की 2, गोवा की 2, 1 सीट अंडेमान-निकोबार की  और लक्षद्वीप की एक सीट परिसीमन के बाद होने की संभावना है। 

विपक्षी दलों के कई नेता कई बार जनसंख्या आधारित परिसीमन का विरोध कर चुके हैं।  केरल, पंजाब, तमिलनाडु और हिमाचल जैसे गैर-भाजपा शासित राज्यों से संसद में लोकसभा और राज्यसभा सदस्यों की संख्या  का  अनुपात बहुत कम हो जाएगा। जनसंख्या आधारित परिसीमन का दक्षिणी राज्यों ने कड़ा विरोध किया है, यहां तक कि तमिलनाडु विधानसभा ने भी परिसीमन के विरोध में प्रस्ताव पारित कर दिया है। लेकिन आश्चर्य की बात है कि पंजाब के राजनीतिक नेता इस मुद्दे पर लापरवाह नजर आ रहे हैं। उन्होंने अभी तक इस बारे में कोई चर्चा शुरू नहीं की है और न ही उन्होंने केंद्र सरकार से इस बारे में संपर्क किया है। परिसीमन के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार की सफाई देते हुए भारत के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आश्वासन दिया है कि परिसीमन के मुद्दे पर उत्तर-दक्षिण राज्यों के साथ कोई अन्याय नहीं किया जाएगा। इस मुद्दे पर सभी दलों के साथ बैठेंगे और विचार करेंगे। लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस मुद्दे को सुलझाना कोई आसान काम नहीं है। इस वजह से यह डर बना हुआ है।-इकबाल सिंह चन्नी(भाजपा प्रवक्ता पंजाब)
 

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