देश के ‘असली दुश्मन’ की पहचान करना जरूरी

Edited By ,Updated: 23 Sep, 2016 01:38 AM

the real enemy must be identified

जम्मू-कश्मीर में उड़ी के ब्रिगेड मुख्यालय में विगत रविवार तड़के एक बार फिर फिदायीन हमला हुआ। क्या पाकिस्तान से प्रायोजित इस तरह के हमलों की शृंखला कभी टूटेगी ...

(बलबीर पुंज): जम्मू-कश्मीर में उड़ी के ब्रिगेड मुख्यालय में विगत रविवार तड़के एक बार फिर फिदायीन हमला हुआ। क्या पाकिस्तान से प्रायोजित इस तरह के हमलों की शृंखला कभी टूटेगी ? पाकिस्तान का जन्म 14 अगस्त 1947 को हुआ और लगभग इसके 2 माह पश्चात 20 अक्तूबर को पाकिस्तान की ओर से कश्मीर पर पहला आक्रमण हुआ, तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है। क्यों अपार शक्ति और बहादुर सेना के होते हुए भी हम इस चक्रव्यूह को नहीं तोड़ पाए ? संभवत: हमने आज तक न तो असली शत्रुओं की पहचान की है और न ही उनके उद्देश्यों को समझा है। 

पाकिस्तान केवल एक संज्ञा मात्र है। वास्तव में समस्या की असली जड़ वह विषाक्त मानसिकता है, जिसने स्वतंत्रता से पूर्व भारत के मुसलमानों को अपना देश तोड़कर एक अलग इस्लामी राष्ट्र स्थापित करने के लिए प्रेरित किया। आजादी के 70 वर्ष बाद भी वह जहरीला चिंतन न केवल पाकिस्तान के रूप में जीवित है, बल्कि भारत में भी उसकी जड़ें निरंतर फैलती और बढ़ती जा रही हैं। पाकिस्तान से वित्त-पोषित और प्रायोजित इन आतंकी हमलों को रोकने में भारत तभी सफलता प्राप्त कर सकता है जब वह इस मानसिकता को अपनी भूमि से सबसे पहले समाप्त करे। 

क्या यह सत्य नहीं है कि देश में कई लोग ऐसे हैं, जो वैधानिक रूप से भारतीय तो हैं, किंतु उनके मन में केवल पाकिस्तान बसता है, जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कार्बनिक रसायन शास्त्र का छात्र मुदस्सर यूसुफ है, जिसने उड़ी हमले के बाद  शहीद हुए 18 जवानों को लेकर फेसबुक पर अभद्र टिप्पणी की थी। उसकी इस टिप्पणी के समर्थन में हसन मेमन, कैसर वानी, मोहम्मद फरीद की भी टिप्पणियां सामने आई थीं। अलीगढ़ से भाजपा सांसद सतीश कुमार गौतम की शिकायत के बाद विश्वविद्यालय से मुदस्सर को निष्कासित कर दियागया और आरोपी के खिलाफ मामला भी दर्ज हो गया है।  

कश्मीर में अलगाववाद की शुरूआत वर्ष 1931 में हुई थी जब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त युवा शेख अब्दुल्ला, मुस्लिम लीग के एजैंडे को लेकर घाटी पहुंचे थे। शेख अ.मु.वि. के उस वातावरण से आए थे जो अलगाववाद और सांप्रदायिकता से विषाक्त था, जिसने अंततोगत्वा पाकिस्तान के निर्माण में अहम भूमिका निभाई। शेख के घृणा से भरे इस एजैंडे को जहां एक ओर अंग्रेजों का समर्थन प्राप्त था, तो वहीं दूसरी तरफ देशभक्त महाराजा हरि सिंह से व्यक्तिगत खुन्नस के कारण पंडित जवाहर लाल नेहरूभी घोर सांप्रदायिक शेख के साथ खड़े थे। तब से यहविषबेल निरंतर घाटी में बढ़ती जा रही है। आज स्थितियह है कि कश्मीर की मूल संस्कृति के ध्वजावाहक पंडितघाटी से गायब हैं और यहां पाकिस्तान व आई.एस. केसमर्थकों का बोल-बाला है। खुले रूप से वे घोषणा कर चुके हैं कि कश्मीर में गैर-मुस्लिमों और इस्लाम के आगमन से पूर्व के सांस्कृतिक चिन्हों का कोई स्थान नहीं है, वह भी तब जब घाटी में सभी नागरिक भारतीय हैं और केंद्र सरकार के फंड का सबसे बड़ा हिस्सा जम्मू-कश्मीर को दिया जाता है। 

आज एक राष्ट्र के रूप में हम इन चुनौतियों को किस तरह देखते हैं? देश के वामपंथी और तथाकथित सैकुलर दल अलगाववादियों से वार्ता पर बल देते हैं। क्या उन लोगों से बातचीत का कोई अर्थ है जिनका एकमात्र उद्देश्य कश्मीर के पूर्ण इस्लामीकरण के साथ-साथ वहां निजाम-ए-मुस्तफा स्थापित करना है? स्वाभाविक है जब तक कश्मीर का मानस अलगाववादियों के महत्ती रंग में रंगा है,तब तक सीमापार से आतंकवाद का खात्मा संभव नहीं है। 

पाकिस्तान के जन्म के लिए दो विचार मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। स्वतंत्रता से पूर्व कट्टरपंथी मुसलमानों को अंदेशा था कि अंग्रेजों के भारत से चले जाने के बाद देश की बागडोर हिंदुओं के हाथ में चली जाएगी। ऐसा होने पर वे  उन लोगों के अधीन हो जाएंगे जिन पर उन्होंने सैंकड़ों वर्षों तक राज किया और गुलामों से भी बदतर सलूक किया। दूसरी सोच मुसलमानों को हिजरत के लिए प्रेरित कर रही थी, यानी दारूल-हरब से दारूल-इस्लाम की ओर कूच करना उनका मजहबी दायित्व है। यही मानसिकता आज भी पाकिस्तान की शासन व्यवस्था में काबिज है, जो उसे भारत के खिलाफ प्रत्यक्ष और परोक्ष युद्ध के लिए निरंतर प्रेरित करती है। 

उड़ी के ब्रिगेड मुख्यालय में हुए फिदायीन हमले को सीमापार से आए चार आतंकियों ने अंजाम दिया। मुठभेड़ के बाद सुरक्षाबलों को भारी मात्रा में असलहा बरामद हुआ। प्रश्न है कि क्या गिनती भर के आतंकी इतनी मात्रा में आयुध और खाने-पीने का सामान लेकर सीमा पार कर सकते थे ? जिस तरह अक्तूबर 1947 में कश्मीर पर हमले के समय रियासती सेना की अधिकांश मुस्लिम टुकडिय़ों ने विषाक्त मानसिकता और मजहबी जनून से प्रेरित होकर अपने हिंदू अधिकारियों की हत्या कर पाकिस्तान का साथ दिया था, क्या उड़ी में हुआ हालिया आतंकी हमला घाटी में पाकिस्तान-परस्त तत्वों के सहयोग के बिना संभव था? 

क्या यह सत्य नहीं कि कश्मीर की मस्जिदों से अलगाववादियों द्वारा भारत के खिलाफ जेहाद छेड़ा जाता है और देश की मौत की दुआएं मांगी जाती हैं? गैर-मुस्लिमों को ‘कुफ्र’ और ‘काफिर’ संबोधित कर मौलवियों द्वारा उनके खिलाफ जहरीले भाषण दिए जाते हैं ? पाकिस्तान और आई.एस. के समर्थन में नारे लगाए जाते हैं? हिजबुल आतंकवादी बुरहान वानी की मौत के बाद से घाटी की अधिकांश मस्जिदों से निरंतर पाकिस्तान के समर्थन में नारे लग रहे हैं, ‘पाकिस्तान से रिश्ता क्या- ला इलाहा इल्लल्लाह...हम सब्ज़ परचम वादी-ए-कश्मीर में लहराएंगे’। 2 अगस्त 2016 को सूबे की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी माना था कि घाटी में अलगाववादी मस्जिदों का दुरुपयोग कर रहे हैं। सर्वप्रथम आवश्यकता इस बात की है कि घाटी में भारत के नागरिक होते हुए जो भी दिल से पाकिस्तानी हैं, उन्हें चिन्हित कर उनसे निपटा जाए। 

लंबे समय से कश्मीर में अलगाववादी तत्वों को पाकिस्तान पोषित कर रहा है, जिन्हें देश में वामपंथियों सहित अधिकांश तथाकथित सैकुलरिस्टों का समर्थन प्राप्त है। 4 सितम्बर को श्रीनगर में अलगाववादियों द्वारा अपमान किए जाने के बाद भी सैकुलरिस्टों की उनके प्रति सहानुभूति, इसका जीवंत प्रमाण है। इतिहास साक्षी है कि वामपंथियों के समर्थन के कारण ही वह राष्ट्र (पाकिस्तान) विश्व के मानचित्र में है, जो भारत को हजारों घाव देकर उसकी मौत की कामना करताहै। देश का दुर्भाग्य है कि आज भी भारत को बर्बाद करने, उसके टुकड़े करने या उसके दुश्मनों का महिमामंडनकरने वालों के साथ छद्म-पंथनिरपेक्षक कदमताल कर रहे हैं। 

कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी, उड़ी में हुए आतंकी हमले को लेकर केंद्र सरकार पर तंज कसते हुए कहते हैं, ‘इवैंट मैनेजमैंट से लड़ाइयां नहीं जीती जाती हैं।’ क्या यह सच नहीं कि कश्मीर की वर्तमान स्थिति के लिए कांग्रेस की नीतियां जिम्मेदार हैं? महाराजा हरि सिंह जैसे देशभक्त को घाटी से बाहर करना और घोर सांप्रदायिक शेख अब्दुल्ला को सत्ता सौंपना, बढ़ती सेना को बिना पूरे कश्मीर को मुक्त कराए युद्धविराम की घोषणा करना, मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाना, अनुच्छेद 370 लागू करना- उक्त सभी निर्णय पंडित जवाहर लाल नेहरू की वे हिमालयी भूलें थीं, जिन्होंने कश्मीर में अलगाववादी मानसिकता की जड़ें मजबूत कीं। 
नि:संदेह, जहरीली और मजहबी नींव पर खड़ा पाकिस्तान, बहुलतावादी सनातन भारत का शत्रु राष्ट्र है। इससे पहले कि हम आतंक की फैक्टरी पाकिस्तान से निपटें, भारत को अपनी कोख में पल रहे ‘पाकिस्तानियों’ को ठिकाने लगाना होगा। 
 

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