कांग्रेस में उठ रहे असंतोष के स्वर जितनी जल्दी इन्हें शांत किया जाए उतना ही अच्छा

Edited By ,Updated: 30 Aug, 2020 01:10 AM

the sooner the tone of dissatisfaction arises in congress the better

केंद्र और राज्यों के चुनावों में लगातार हार रही कांग्रेस पार्टी अपने शीर्ष नेतृत्व की कथित निर्णयहीनता और जमीनी स्तर के कार्यकत्र्ताओं की उपेक्षा के कारण उपहास

केंद्र और राज्यों के चुनावों में लगातार हार रही कांग्रेस पार्टी अपने शीर्ष नेतृत्व की कथित निर्णयहीनता और जमीनी स्तर के कार्यकत्र्ताओं की उपेक्षा के कारण उपहास का पात्र बनती जा रही है। 

* 17 अगस्त को भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने राहुल गांधी को ‘प्रिंस आफ इनकम्पीटैंस’ (अक्षम राजकुमार) करार दिया।
* 17 अगस्त को ही केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कांग्रेस को ‘सिरविहीन  पार्टी’ बताते हुए कहा, ‘‘असंतोष, अभिव्यक्ति की आजादी और आंतरिक लोकतंत्र का ‘डैथ चैम्बर’ बनी कांग्रेस पार्टी में गृह युद्ध जैसे हालात हैं।’’ 
* 23 अगस्त को हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने कहा, ‘‘राहुल गांधी भटक गए हैं। उनकी कोई भी नहीं सुनता। वह सभी जगह हार चुके हैं और हारा हुआ जुआरी हमेशा बहकी-बहकी बातें करता है।’’
* 25 अगस्त को उत्तर प्रदेश भाजपा के नेता साक्षी महाराज के अनुसार, ‘‘सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी को खत्म करने के लिए काफी हैं। कांग्रेस अपने कृत्यों के कारण डूब रही है, हमें कुछ करने की जरूरत ही नहीं है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में विपक्ष नहीं है।’’ 

* 25 अगस्त को वरिष्ठ भाजपा नेता शांता कुमार बोले, ‘‘गांधी परिवार से ही बंधी रह कर आत्महत्या करने का कांग्रेस पार्टी का निर्णय मेरे लिए एक बहुत बड़ी खुशखबरी भी है और दुख खबरी भी है।’’ ‘‘सिर्फ कांग्रेस ही विकल्प की क्षमता रखती है परंतु वह गांधी परिवार की गुलामी से बाहर निकलेगी नहीं और कोई दूसरा दल राष्ट्रीय दल बन नहीं सकता।’’

विरोधी दलों के नेता ही नहीं अब तो पार्टी के अपने नेता भी इसकी आलोचना करने लगे हैं। कुछ ऐसे ही हालात में 23 अगस्त को गुलाम नबी आजाद, जितिन प्रसाद, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी आदि सहित 23 वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया गांधी को भेजे पत्र में पार्टी में सामूहिक नेतृत्व की आवश्यकता पर जोर देते हुए पूर्णकालिक सक्रिय अध्यक्ष नियुक्त करने एवं संगठन में आमूल-चूल बदलाव की मांग की थी। उक्त पत्र से पार्टी में मचा बवंडर भले ही 24 अगस्त को हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के बाद शांत हो गया है जिसमें सोनिया ने अगले 6 महीने तक पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बने रहने का पार्टी नेताओं के एक वर्ग का अनुरोध स्वीकार करके उन्हें इस दौरान नया अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया शुरू करने को कहा है परंतु पार्टी में जारी सुगबुगाहट अभी समाप्त नहीं हुई है। 

उक्त पत्र के बाद पार्टी दो खेमों में बंटी दिखाई दे रही है। जहां पार्टी के नेतृत्व पर प्रश्र उठाने वाले नेता अपने सुझावों को उचित बता रहे हैं वहीं कांग्रेस नेतृत्व ने असंतुष्टों के पर कतरने की कवायद भी शुरू कर दी है। लोकसभा में पार्टी की मुखर आवाज रहे सांसद शशि थरूर और मनीष तिवारी की अनदेखी करते हुए युवा गौरव गोगोई को लोकसभा में उपनेता बनाया गया है। राज्यसभा में पार्टी के नेता गुलाम नबी आजाद और उपनेता आनंद शर्मा को तो नहीं छेड़ा है परंतु उनका प्रभाव कम करने के लिए सोनिया के करीबी जय राम रमेश को मुख्य सचेतक बना दिया गया है। इसी प्रकार लखीमपुर जिले की पार्टी इकाई ने पत्र लिखने वालों में शामिल पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद के विरुद्ध कार्रवाई की मांग करते हुए प्रस्ताव पारित किया है जिसके बाद कांग्रेस के बड़े नेता जितिन प्रसाद के समर्थन में आ गए हैं। 

इसी परिप्रेक्ष्य में कपिल सिब्बल ने कांग्रेस नेतृत्व को अपने लोगों पर नहीं भाजपा पर सॢजकल स्ट्राइक करने की सलाह देते हुए दोहराया है कि ‘‘इस समय सबसे खराब दौर से गुजर रही कांग्रेस पार्टी को चौबीस घंटे काम करने वाले नेतृत्व की आवश्यकता है।’’ गुलाम नबी आजाद ने भी पार्टी में शीर्ष पदों के लिए चुनावों की पुन: वकालत करते हुए 28 अगस्त को चेतावनी दी है कि ‘‘चुनाव न करवाने पर पार्टी अगले 50 वर्षों तक विपक्ष में ही बैठेगी।’’ ‘‘यदि हम 10-15 वर्ष पहले ही पार्टी में चुनावों का सिलसिला शुरू कर देते तो हम हारते नहीं और आज पार्टी का यह हाल नहीं होता। जो लोग पार्टी में बदलाव का विरोध कर रहे हैं उन्हें अपना पद खोने का डर है।’’ पत्र लिखने वालों में शामिल मनीष तिवारी भी पार्टी नेतृत्व में बदलाव की मांग को लेकर काफी मुखर हैं और कहा जाता है कि कुछ अन्य नेताओं को भी शीर्ष पार्टी नेतृत्व (राहुल गांधी) से समस्याएं हैं। 

कुल मिलाकर किसी समय ‘द ओल्ड ग्रैंड पार्टी’ कहलाने वाली कांग्रेस आज गैरों के साथ-साथ अपनों के भी निशाने पर आई हुई है जिससे स्पष्ट है कि पार्टी में कुछ न कुछ तो कहीं न कहीं गड़बड़ अवश्य है। लिहाजा पार्टी नेतृत्व स्थिति की गंभीरता समझते हुए और अपनी पार्टी तथा विरोधी दलों के नेताओं की टिप्पणियों का संज्ञान लेकर उनके द्वारा सुझाई गई त्रुटियों को जितनी जल्दी दूर करेगा कांग्रेस के अस्तित्व के लिए उतना ही अच्छा होगा और यह देश में एक मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाने के योग्य हो सकेगी।—विजय कुमार

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