सेना में घटता पंजाबी युवकों का ‘रुझान’

Edited By ,Updated: 19 Jun, 2020 02:49 AM

the trend of punjabi youth declining in the army

सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकंद नरवाणे ने 13 जून को इंडियन मिलिट्री अकैडमी (आई.एम.ए.) की पासिंग आऊट परेड का निरीक्षण करने के बाद जब 423 कैडेट्स में से (जिनमें 90 सहयोगी देशों के कैडेट्स भी शामिल थे) पंजाब के तरनतारन जिले से संबंधित आकाशदीप सिंह ढिल्लों...

सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकंद नरवाणे ने 13 जून को इंडियन मिलिट्री अकैडमी (आई.एम.ए.) की पासिंग आऊट परेड का निरीक्षण करने के बाद जब 423 कैडेट्स में से (जिनमें 90 सहयोगी देशों के कैडेट्स भी शामिल थे) पंजाब के तरनतारन जिले से संबंधित आकाशदीप सिंह ढिल्लों को सबसे बैस्ट कैडेट घोषित करने के उपरांत ‘सोर्ड ऑफ ऑनर’ से सम्मानित किया तो तालियों की गूंज देश-विदेश में सुनाई दी गई। 

सेना के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि सैरीमोनियल परेड के दौरान कैडेटों ने मास्क तथा दस्ताने पहने हुए थे। उन्होंने कतारों के बीच करीब 2 गज का फासला रख कर देशवासियों के लिए एक अनोखी मिसाल कायम की। उन्होंने सैन्य कानूनों तथा आदेशों की पालना की, फिर चाहे कोविड-19 से संबंधित महामारी से निपटना हो या फिर दुश्मन से लोहा लेना हो। कमिशन प्राप्त करने वाले जोशीले युवक तथा अधिकारी सभी प्रशंसा के पात्र हैं। 

आमतौर पर पासिंग आऊट परेड के समय कैडेटों के अभिभावकों को निमंत्रण दिया जाता है ताकि वह खुद अपने सपूतों के कंधों पर रैंक सजाएं। मगर कोरोना महामारी के कारण ऐसा संभव नहीं हो सका। लैफ्टिनैंट आकाशदीप के पिता गुरप्रीत सिंह तथा माता इंद्रजीत कौर ने परमेश्वर का धन्यवाद किया। इस दौरान मीडिया ने भी अपना पूरा योगदान दिया। इससे नई पीढ़ी को सेना में शामिल होने की प्रेरणा मिलती है। सेना में अधिकारियों की कमी को पूरा करने के लिए अभी बहुत कुछ होना बाकी है। 

आंकड़े और अध्ययन 
13 जून को पासिंग आऊट परेड के बाद कमिशन प्राप्त करने वालों की कुल संख्या 423 थी जिनमें 90 विदेशी कैडेट्स थे। भारतीय मूल के 333 खुशनसीब कैडेट्स जिनके कंधों पर अधिकारियों की ओर से 2-2 स्टार सजाकर उन्हें लैफ्टिनैंट का रैंक प्रदान किया, उनमें से सबसे ज्यादा यू.पी. के 66, हरियाणा के 39, पंजाब के 25, हिमाचल के 14 तथा अन्य दूसरे राज्यों से संबंधित थे। 

गत वर्ष 7 दिसम्बर को आई.एम.ए. से 427 कैडेटों ने कमिशन हासिल किया। मित्र देशों के 80 कैडेटों को छोड़ अन्यों में से सबसे ज्यादा 53 कैडेट्स उत्तर प्रदेश के, 51 हरियाणा, बिहार के 36, उत्तराखंड के 2, दिल्ली के 25, महाराष्ट्र के 20, 15 हिमाचल के तथा पंजाब से मात्र 14 ही थे। ऐसे ही जब 8 दिसम्बर 2012 को आई.एम.ए. से 615 कैडेट्स पास आऊट हुए, उनमें से विदेशियों को छोड़ कर अन्यों में मात्र 20 पंजाबी कैडेट्स थे जबकि हरियाणा के 50 तथा हिमाचल के 22 युवाओं ने कमिशन हासिल किया। बाकी बचे कैडेट्स अन्य राज्यों से संबंधित थे। 

उल्लेखनीय है कि जनवरी -2016 में जो 520 कैडेट्स पास आऊट हुए उनमें से उत्तर प्रदेश 98 की संख्या के साथ पहले स्थान पर था। हरियाणा  ने पंजाब से आगे होकर अपनी लीड बरकरार रखी।  उत्तराखंड के 52 तथा पंजाब के मात्र 29 ही युवक कमिशन हासिल कर सके। इस राज्य से 60 युवकों ने कमिशन हासिल किया। हमें इस बात की बेहद खुशी है कि हरियाणा तथा हिमाचल के अलावा यू.पी., बिहार तथा उत्तराखंड के नौजवान सेना में भर्ती होने के लिए आगे आ रहे हैं मगर पंजाब से सेना में भर्ती होने का रुझान कम हो रहा है जो चिंता का विषय है। 

तुलनात्मक विश्लेषण 
इन सब बातों का अध्ययन करने के उपरांत यह स्पष्ट हो जाता है कि यदि वर्ष 2012 में कमिशन हासिल करने वाले 615 कैडेटों में से 20 पंजाबी थे तो 7 सालों बाद 427 में से मात्र 14 पंजाबी कमिशन हासिल कर सके। आखिर पंजाबियों के लिए यहीं पर सूई क्यों अटकी रही। यदि पंजाब तथा हरियाणा का तुलनात्मक विश्लेषण किया जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि हरियाणा के युवकों की अधिकारी सिलैक्शन दर बढ़कर 9.69 प्रतिशत पहुंच गई तथा पंजाब का ग्राफ 3.26 प्रतिशत तक ही सीमित क्यों रह गया? हरियाणा की जनता, सेना, नेता, युवक तथा सरकार इस पक्ष से प्रशंसा के पात्र हैं। 

बाज वाली तीखी नजर 
इसमें कोई संदेह नहीं कि सेना में अधिकारियों को छोड़ निचले रैंक वालों की भर्ती ऑल इंडिया रिक्रूटेबल मेल पापुलेशन आप्रेशन के आधार पर होती है। यह अफसोस की बात है कि कई भारतीय युवक मादक पदार्थों का सेवन कर रहे हैं या फिर यह गैंगस्टर या दुश्मन की खुफिया एजैंसियों के हाथों में आकर अपने अनमोल जीवन को व्यर्थ ही तबाह कर रहे हैं, जिक्रयोग्य बात यह है कि अधिकारियों का चयन मैरिट पर निर्भर करता है न कि राज्यों की जनसंख्या के आधार पर। इसका धर्म, जात-पात, वर्ग, समाज या क्षेत्र से कोई संबंध नहीं है। ऐसा भी समय था जब भारतीय सेना में पंजाब की बहु गिनती थी तथा यह देश की सोर्ड आर्म के तौर पर जाना जाता था। विशेष तौर पर पंजाबी अधिकारियों का सेना में अनुपात बाकी राज्यों से कहीं अधिक था। हरियाणा, हिमाचल को छोड़ कर अब पंजाब का यह ग्राफ लगातार नीचे की ओर खिसकता जा रहा है। 

बीते वर्ष मुझे खडूर साहिब स्थित बाबा सेवा सिंह जी के निमंत्रण पर सिखलाई अधीन छात्रों को संबोधन करने का मौका प्राप्त हुआ। खालसा कालेज अमृतसर में भी छात्रों को सेना में भर्ती होने के लिए प्रेरित करने का मुझे मौका मिला। मैंने तब भी यह प्रयास किया कि पंजाब के युवकों को सेना के प्रति अपने योगदान के लिए प्रोत्साहित करूं। 

इस आलेख में अधिकारियों की कमी का जिक्र करना मैं उचित समझता हूं। करीब एक वर्ष पूर्व लोकसभा में जो अधिकारियों की कमी के बारे में आंकड़े प्रस्तुत किए गए थे उनके अनुसार सेना में 7298, नौसेना में 1606, वायुसेना में 192 अधिकारियों की कमी थी। यानी कि कुल 9096 अधिकारी कम थे। मुझे याद है कि वर्ष 1983 में जब मैं लाइन ऑफ कंट्रोल वाले पुंछ इलाके में यूनिट कमांड कर रहा था तो उस समय भी फौज में करीब 10,000 अधिकारियों की कमी थी तो आज भी ऐसे ही हालात कायम हैं। 

मैं अपने लम्बे समय की कमान तथा सैन्य अनुभव के तौर पर यह कह सकता हूं कि पलटन में अधिकारियों की कमी के कारण एक अधिकारी को 2-3 अधिकारियों के स्थान पर ड्यूटी निभानी पड़ती है जिसका असर विशेष तौर पर सीमावर्ती क्षेत्रों पर पड़ता है। यह भी एक कारण है कि अधिकारियों की शहादतें ज्यादा हो रही हैं। सरकार को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों      

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