Edited By ,Updated: 31 Jan, 2021 05:15 AM
कल वित्त मंत्री बजट पेश करेंगी जब तक वह बैठती हैं तब तक हमें स्पष्ट अंदाजा होना चाहिए कि अर्थव्यवस्था की समस्याओं का सामना करने के लिए वह क्या प्रस्ताव रखती हैं। केवल एक ही चीज हम में से बहुतों को स्पष्ट रूप से पता नहीं है कि
कल वित्त मंत्री बजट पेश करेंगी जब तक वह बैठती हैं तब तक हमें स्पष्ट अंदाजा होना चाहिए कि अर्थव्यवस्था की समस्याओं का सामना करने के लिए वह क्या प्रस्ताव रखती हैं। केवल एक ही चीज हम में से बहुतों को स्पष्ट रूप से पता नहीं है कि आखिर वह समस्याएं कौन-सी हैं? कई सूझवान अधिकारियों द्वारा बहुत कुछ लिखा जा चुका है मगर अर्थशास्त्री नहीं होने के कारण इसका पालन करना आसान नहीं है। इसलिए मुझे अर्थव्यवस्था की स्थिति का एक सरल सा खाता बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए।
प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के एक सदस्य नीलेश शाह कहते हैं, ‘‘हमारे पीछे सबसे बुरा है।’’ इसका कारण यह है कि जी.एस.टी. संग्रह, विदेशी मुद्रा भंडार और बिजली की खपत, यात्री वाहन की बिक्री, रेलवे भाड़ा और पी.एम.आई. सूचकांक मजबूत रिकवरी का संकेत देते हैं। यह भी बताया जाता है कि क्यों वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का मानना है कि अर्थव्यवस्था ‘वी’ आकार की रिकवरी का अनुभव कर रही है।
योजना आयोग के पूर्व अध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया इस बात से असहमत हैं। उनका कहना है कि औपचारिक सैक्टर ‘वी’ शेप में रिकवरी कर रहा होगा मगर पूरी अर्थव्यवस्था नहीं। कुछ क्षेत्र तेजी से पुनर्जीवित हो रहे हैं तथा अन्य गम्भीर रूप से प्रभावित हैं।
हालांकि दोनों चिंता के क्षेत्र पर सहमत हैं। पहला है बेरोजगारी। भारतीय अर्थव्यवस्था की निगरानी के केन्द्र का कहना है कि दिसम्बर में रोजगार में 14.7 मिलियन की कमी आई थी तथा बेरोजगारी दर 9.1 प्रतिशत थी। जबकि नरेगा के आंकड़ों से पता चलता है कि 10 जनवरी तक इस योजना का लाभ 10 करोड़ लोगों ने उठाया जो पिछले वर्ष की तुलना में 21 प्रतिशत अधिक है। इसलिए ग्रामीण तथा शहरी भारत में रोजगार की स्थिति जो गर्मी के महीने में बेहतर हुई, वह खराब हो गई।
दूसरा चिंता की बात वित्तीय क्षेत्र को लेकर है। रिजर्व बैंक की नवीनतम स्थिरता रिपोर्ट कहती है कि गैर-निष्पादित परिसम्पत्तियां एक साल पहले के 7.5 प्रतिशत की तुलना में सितम्बर 2021 तक 13.5 प्रतिशत तक बढ़ सकती हैं। अधिक चिंता की बात यह है कि सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों का एन.पी.ए. 9.7 प्रतिशत से बढ़कर 16.2 प्रतिशत हो सकता है। आहलूवालिया ने रिजर्व बैंक को ईमानदारी के लिए बधाई दी है। वहीं शाह का कहना है कि एन.पी.ए. प्रस्ताव आसान नहीं होगा।
आइए अब उन क्षेत्रों में आते हैं जो लॉकडाऊन का खामियाजा भुगत चुके हैं और इस पर खास ध्यान देने की आवश्यकता है। एम.एस.एम.ईज जो जी.डी.पी. का 30 प्रतिशत तथा विनिर्माण, निर्माण का 45 प्रतिशत को निर्मित करता है यह दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता है और व्यावहारिक रूप से पर्यटन और आतिथ्य के साथ सब कुछ करना है। यह अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा है। हालांकि हमें एम.एस.एम.ईज के साथ बहुत कम करना है और होटल और रेस्तरां में जाना बंद कर दिया है। हम उनके दुख को नहीं समझते। मगर आहलूवालिया तथा शाह दोनों ही कहते हैं कि कुछ एम.एस.एम.ईज पुनर्जीवित नहीं हो सकते। ऐसा करने का कोई भी प्रयास बुरे के बाद अच्छा पैसा फैंकने जैसा है।
क्योंकि हम कल के बजट की प्रतीक्षा में हैं तो एक मुद्दा और है। वित्त मंत्री को जान-बूझकर इस बात से परहेज करना चाहिए कि वह कैसे उन घोषणाओं के उपाय के लिए धन जुटाएंगी जिनकी घोषणा उन्होंने की। कुछ लोगों को डर है कि वैल्थ टैक्स की वापसी हो सकती है। हालांकि नीलेश शाह ने दोनों से बचने के तरीके सुझाए हैं जो अभी भी पर्याप्त रकम जुटा सकते हैं। उन्होंने एक स्वर्ण माफी योजना, सरकारी नियंत्रित परिसम्पत्तियों का विमुद्रीकरण, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों का रणनीतिक विनिवेश और सट्टेबाजी और जुए को वैध बनाने का प्रस्ताव दिया। इनमें से दो विशेष ध्यान देने योग्य हैं।
शाह का कहना है कि पिछले 20 वर्षों के दौरान 373 बिलियन डॉलर का गोल्ड आयात किया गया। यदि आप इसमें गैर-कानूनी गोल्ड भी शामिल कर दें तो शायद अधिक ट्रिलियन हो सकता है। वल्र्ड गोल्ड कौंसिल का अनुमान है कि घरेलू सोना दो ट्रिलियन डॉलर मूल्य का 25 हजार टन हो सकता है। इसमें से अधिकांश अघोषित है। इसलिए अगर सरकार एक सोने की माफी की घोषणा करती है तो यह सैंकड़ों-अरबों डॉलर का दोहन कर सकती है।
दूसरा अभिरक्षक के तौर पर सरकार शत्रु सम्पत्ति को नियंत्रित करती है। यह ऐसे लोगों की सम्पत्ति है जो पाकिस्तान चले गए। 49 साल पूर्व पाकिस्तान ने अपनी शत्रु सम्पत्ति बेच डाली थी। शाह कहते हैं कि ऐसा करने का यही उचित समय है। आपको अभी भी यह निर्धारित करने के लिए विशेषज्ञों की आवश्यकता होगी कि क्या निर्मला सीतारमण ने सही किया है या वे बहुत दूर चली गई हैं।-करण थापर