चीन के ‘आक्रामक रवैये’ से परेशान है पूरी दुनिया

Edited By ,Updated: 16 Sep, 2020 05:00 AM

the whole world is troubled by china s aggressive attitude

इन दिनों चीन अपने पड़ोसियों के लिए खासी आक्रामकता दिखा रहा है, पिछले कुछ महीनों से चीन का सीमाई विवाद अपने हर पड़ोसी के साथ तेज हुआ है फिर चाहे वे रूस, जापान, भारत हों या फिर चीन से दूर-दराज बसे देश वियतनाम, इंडोनेशिया, ब्रुनेई या फिर फिलीपींस हो।...

इन दिनों चीन अपने पड़ोसियों के लिए खासी आक्रामकता दिखा रहा है, पिछले कुछ महीनों से चीन का सीमाई विवाद अपने हर पड़ोसी के साथ तेज हुआ है फिर चाहे वे रूस, जापान, भारत हों या फिर चीन से दूर-दराज बसे देश वियतनाम, इंडोनेशिया, ब्रुनेई या फिर फिलीपींस हो। भारत से तो चीन ने जून के महीने में हिंसक झड़प भी की जबकि पिछले ही वर्ष भारत के मामल्लपुरम में दोनों देशों के नेताओं ने अनौपचारिक वार्ता भी की थी। उससे पिछले वर्ष प्रधानमंत्री मोदी चीन के वुहान भी गए थे। 

शी जिनपिंग ने इस अनौपचारिक वार्ता के लिए वुहान में प्रधानमंत्री मोदी से इसलिए मुलाकात की क्योंकि वह भारत को यह दिखाना चाहते थे कि भारत उनका सबसे करीबी और अच्छा पड़ोसी देश है, अन्यथा शी सारे विदेशी मेहमानों से बीजिंग में ही मुलाकात करते हैं। इन मुलाकातों के बाद लगने लगा था कि डोकलाम में जो एक मिसएडवैंचर हुआ था वह गाड़ी अब पटरी पर आ जाएगी लेकिन हुआ उसके ठीक उलट, भारत ने गलवान देखा और उसके बाद से भारत के अथक प्रयासों के बावजूद दोनों देशों के रिश्ते सिर्फ और सिर्फ खराब होते गए।

अब सवाल यह उठता है कि अचानक चीन में इतनी आक्रामकता कहां से आई और इससे भी बड़ा सवाल यह है कि यह आक्रामकता आई क्यों, इसकी परिणति क्या होगी? हालांकि चीन का इतिहास देखा जाए तो यह बात साफ हो जाती है कि सीमा को लेकर चीन के रिश्ते कभी भी अपने पड़ोसियों से मधुर नहीं रहे। एक तरफ चीन का सीमांत विवाद रूस के साथ सखालिन द्वीपों को लेकर चला, वहीं हाल ही में चीन ने रूस के पूर्वी तटीय शहर व्लादिवोस्तोख पर भी अपना दावा ठोक दिया। जापान के साथ चीन का विवाद शेंनकाकू द्वीप शृंखला को लेकर चल रहा है जिसे चीन त्याओ यू द्वीप बोलता है, वहीं चीन ने अपने मित्रवत पड़ोसी देश नेपाल की तिब्बत से लगने वाली जमीन पर भी अपना कब्जा जमा लिया है और वहां पर अपनी चैकपोस्ट बनाने के साथ-साथ स्थानीय नेपालियों को उनके इलाकों से भगा दिया। 

अपनी जमीन पर चीन द्वारा जबरन कब्जा करने से नेपाल में अंदरूनी तौर पर गुस्सा तो है लेकिन नेपाली साम्यवादी ओली सरकार इस मुद्दे को नजरअंदाज करने में जुटी हुई है।  इसके अलावा दक्षिणी चीन सागर में भी चीन की गलत दावेदारी है, दरअसल दक्षिणी चीन सागर के तट वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, ब्रुनेई, थाईलैंड से भी मिलते हैं। समय-समय पर चीन की गीदड़-भभकियां इन देशों को झेलनी पड़ती हैं। 

चीन पूरे दक्षिणी चीन सागर पर अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए हमेशा कोई न कोई चाल चलता रहता है, वहीं अंडेमान-निकोबार  द्वीप समूह के उत्तरी छोर ( जो पहले म्यांमार के पास था) को म्यांमार से चीन ने प्रलोभन देकर ले लिया और यहां पर वह अपना नौ-सेना बेस बना रहा है, साथ ही उसने एक हवाई पट्टी और सैन्य छावनी का निर्माण भी कर लिया है। चीन की इन हरकतों की वजह से उसके विवाद आसियान देशों के साथ होते रहते हैं। दरअसल, चीन दक्षिणी चीन सागर के किसी भी द्वीप पर जो कि दूसरे देश की संपत्ति है, यह कहकर कब्जा जमा लेता है कि ये द्वीप छिंग, मिंग, हान, तांग और युवान साम्राज्य के दौरान चीन का हिस्सा थे।

चीन की घिनौनी साजिश को देखते हुए ही हाल ही में भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमरीका ने सांझा सैन्य अभ्यास दक्षिणी चीन सागर में किया था, जिसके बदले में चीन मालदीव, श्रीलंका समेत बंगलादेश और नेपाल पर पैसे का जोर डालकर उन्हें अपने प्रभुत्व में लेने लगा।नेपाल में चीनी राजदूत ने जिस तरह से राजनीतिक हस्तक्षेप किया उसे लेकर वहां की जनता में चीन के खिलाफ रोष देखा जा सकता है। हाल ही में होउ यांगछी जो कि नेपाल में चीन की राजदूत हैं, ने प्रधानमंत्री ओली के साथ मिलकर नेपाल के विदेश संबंधों और आंतरिक मामलों में दखल देना शुरू किया है जिसकी नेपाली विपक्षी दलों ने पुरजोर आलोचना की। 

दुनिया अब चीन की साजिशों को समझ चुकी है और वह अपने खर्च पर चीन को फायदा पहुंचाने के मूड में नहीं है, दुनिया की लगभग सारी बड़ी ताकतें अब चीन से कोई भी व्यापारिक समझौता करने से पहले फूंक-फूंक कर कदम रखना चाहती हैं। जर्मनी, फ्रांस, इंगलैंड, ऑस्ट्रेलिया, जापान, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, अमरीका के साथ-साथ कई अफ्रीकी और लातिन अमरीकी देश चीन की साजिश को समझ चुके हैं और जी-8 देश भविष्य के लिए ऐसी नीतियां बनाना चाहते हैं जिससे कि विनिर्माण क्षेत्र के लिए किसी एक देश पर निर्भरता को खत्म किया जाए, जिससे कोई भी देश नाजायज फायदा न उठा सके। 

आने वाले दिन चीन के लिए मुश्किल भरे होने वाले हैं क्योंकि कई देश चीन से अपना व्यापार धीरे-धीरे कम करते हुए खत्म करना चाहते हैं। चीन ने दुनिया की नजरों में जो इज्जत 1980 से सन् 2000 तक बनाई थी उसे चीनी राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने एक झटके में खत्म कर दिया और रही-सही कसर कोरोना के फैलाव ने पूरी कर दी।

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