आतंकवाद की परिभाषा को लेकर विश्व ‘एकमत’ नहीं

Edited By ,Updated: 30 Sep, 2019 12:55 AM

the world is not  unanimous  about the definition of terrorism

चेगेवारा सीमापार आतंकवादी था। वह एक डॉक्टर था जिसे आज दुनिया के लोग आदर्श क्रांतिकारी मानते है। 1959 में 31 वर्ष की आयु में चे भारत आया और उसने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के साथ दिल्ली स्थित उनके घर में रात्रि भोज किया। उसने 2 किताबें लिखीं जो...

चेगेवारा सीमापार आतंकवादी था। वह एक डॉक्टर था जिसे आज दुनिया के लोग आदर्श क्रांतिकारी मानते है। 1959 में 31 वर्ष की आयु में चे भारत आया और उसने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के साथ दिल्ली स्थित उनके घर में रात्रि भोज किया। उसने 2 किताबें लिखीं जो काफी मशहूर हैं जिनमें से एक का नाम ‘बोलिवियन डायरी’ तथा दूसरी का नाम ‘मोटरसाइकिल डायरीज’ (जिस पर 2004 में अवार्ड विनर फिल्म बनी है) है। 

चे की प्रसिद्धि उनकी इस इच्छा के कारण हुई कि वह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हिंसक माध्यमों का इस्तेमाल करना चाहते थे। चे अर्जेंटीना का निवासी था लेकिन बतिस्ता की सरकार की खिलाफ फिदेल कास्त्रो का गृह युद्ध लडऩे के लिए वह क्यूबा गया। उसके बाद बैरिंंटोस की सरकार के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध लडऩे के लिए वह बोलिविया गया। चे की अपनी किताब में लिखी घटना के अनुसार यहां उसने और उसके लोगों ने कई सैनिकों पर हमला करके मार डाला। 1967 में 39 साल की आयु में सेना द्वारा चे गेवारा को गिरफ्तार कर मार दिया गया। 

जार्ज ऑरवैल सीमापार आतंकवादी था। उसका जन्म बिहार के मोतिहारी में हुआ था और वह एक पुलिस अधिकारी था। सरकारी सेवा के बाद उसने कई किताबें लिखीं जिस कारण वह इतिहास के सबसे प्रभावशाली लेेखकों में से एक बन गया। उसकी किताबों में ‘1984’ और ‘एनीमल फार्म’ शामिल हैं। ‘एनीमल फार्म’ नामक किताब का जिक्र कारगिल युद्ध के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने किया था जब उसने पाकिस्तान द्वारा ‘ऑरविलियन लॉजिक’ का इस्तेमाल करने के बारे में बात की थी। बहुत से आधुनिक लेखक समय के साथ अप्रासंगिक हो जाते हैं लेकिन ऑरवैल उन लेखकों में से हैं जिन्हें आज भी सराहा जाता है। 

ऑरवैल को हिंसा का इस्तेमाल करने में कोई आपत्ति नहीं थी। वह एक ब्रिटिश नागरिक था लेकिन 1937 में स्पेन गया और जनरल फ्रैंको के खिलाफ गृह युद्ध में भाग लिया। ऑरवैल ने अपने अनुभवों के बारे में एक किताब लिखी जिसका नाम ‘होमेज टू कैटालोनिया’ था जिसमें वह लिखता है कि उसने एक आदमी को बम से मारा और वह खुद भी एक धमाके में घायल हो गया था। अब मैं इस बात पर आता हूं कि मैं इन बातों का जिक्र क्यों कर रहा हूं। शुक्रवार को भारत के प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में निम्नलिखित बात कही, ‘‘संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के मिशन के तहत सबसे ज्यादा कुर्बानियां भारतीय सैनिकों ने दी हैं। हम उस देश से संबंध रखते हैं जिसने दुनिया को युद्ध नहीं बल्कि बुद्ध का शांति का संदेश दिया है। 

और इसी कारण से, आतंकवाद के खिलाफ हमारी आवाज, दुनिया को इस बुराई के बारे में चेताने के लिए, गंभीरता और गुस्से से भरी हुई है। हमारा मानना है कि यह न केवल किसी एक देश के लिए बल्कि पूरे विश्व और मानवता के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। आतंकवाद के मसले पर हम लोगों में सर्वसम्मति का अभाव उन सिद्धांतों को नुक्सान पहुंचाता है जो संयुक्त राष्ट्र की स्थापना का आधार है और इसलिए, मानवता की भलाई के लिए, मैं यह विश्वास करता हूं कि यह बहुत जरूरी है कि पूरा विश्व आतंकवाद के खिलाफ एकजुट हो और विश्व आतंकवाद के खिलाफ खड़ा हो।’’ प्रधानमंत्री सही कह रहे हैं : दुनिया में आतंकवाद के मुद्दे पर सर्वसम्मति का अभाव है। प्रश्न यह है कि ऐसा क्यों है? इसका उत्तर यह है कि इस बात की कोई स्वीकार्य परिभाषा नहीं है कि आतंकवाद क्या है और आतंकवादी कौन है? 

भारत का पहला आतंकरोधी कानून ‘टाडा’ जो कांग्रेस की देन था में कहा गया था : ‘‘जो कोई भी कानून द्वारा स्थापित सरकार को डराने की मंशा से अथवा जनता या जनता के किसी वर्ग में भय पैदा करने अथवा लोगों के किसी वर्ग को अलग करने अथवा जनता के विभिन्न वर्गों में सौहार्द को खराब करने के लिए बम, डायनामाइट अथवा अन्य विस्फोटक सामग्री या ज्वलनशील सामग्री अथवा पटाखों अथवा अन्य घातक हथियारों या जहरीली गैसों अथवा अन्य कैमिकल्स या अन्य खतरनाक प्रकृति की चीजों का प्रयोग करके इस तरह से कार्रवाई करता है जिससे कि किसी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों की मौत हो सकती है अथवा वे घायल हो सकते हैं या सम्पत्ति को नुक्सान पहुंच सकता है अथवा समुदाय के जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में विघ्न पैदा करता है, वह आतंकी कार्रवाई को अंजाम देता है।’’ 

इस प्रकार भारत यह महसूस करता था कि बम और रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति भी वही अपराध करता है जो सम्पत्ति को नुक्सान पहुंचाने वाला या आपूर्ति को बाधित करने वाला करता है। हमारा  दूसरा आतंकरोधी कानून ‘पोटा’ जो भाजपा की देन है, आतंकवाद को ऐसी कार्रवाई के तौर पर परिभाषित करता है जो ‘‘भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा और सम्प्रुभता को चुनौती देता है अथवा जनता या जनता के किसी वर्ग में भय पैदा करता हो।’’ 

आतंकवाद के बारे में इस तरह की अस्पष्ट परिभाषा के कारण असमंजस की स्थिति पैदा हुई जिससे आतंकवाद से जुड़े मामलों में दुनियाभर में दोषसिद्धि की दर बहुत कम है। ‘टाडा’ की दोषसिद्धि दर 1 प्रतिशत थी तथा ‘पोटा’ की 1 प्रतिशत से कम। इस परिभाषा को तेज करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए था लेकिन भारत में अच्छा कानून बनाना कानूनी निर्माताओं का प्राथमिक कार्य नहीं है। भारत में हथियारबंद लोगों द्वारा निहत्थे लोगों पर हमला आतंकवाद है। हथियारबंद लोगों पर अन्य हथियारबंद लोगों द्वारा हमला भी आतंकवाद है। आतंकवादियों द्वारा सैन्य कैम्प पर हमला भी आतंकवाद है। लेकिन तब यह बात मायने रखती है कि आक्रमणकारी कौन है। लोगों को डराने के लिए अल्पसंख्यकों पर हमला करने वाले किसी समूह को दंगाई या लिचर्स कहा जाता है। एक ही प्रकार से किए गए एक ही प्रकार के अपराध को अलग-अलग नाम दिया जाता है और भारत इस मामले में औरों से अलग नहीं है। 

दो उदाहरणों में, जिन दोनों में एक व्यक्ति गन द्वारा दर्जनों निहत्थे नागरिकों की हत्या करता है, अमरीका के राष्ट्रपति एक को आतंकवादी बताते हैं और दूसरे को अकेला गनमैन अथवा मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति बताते हैं। वह ऐसा इस आधार पर करते हैं कि गनमैन किस धर्म से संबंध रखता है। यदि दुनिया आतंकवाद और आतंकवादी की परिभाषा को लेकर एकमत नहीं है तो उसका कारण इन दोनों की अस्पष्ट परिभाषा ही है।-आकार पटेल                      

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