भाजपा की ‘कारगुजारी’ की कसौटी होगा वर्ष 2021

Edited By ,Updated: 22 Oct, 2019 02:08 AM

the year 2021 will be the test of bjp s  effectiveness

देश का दक्षिणी राज्य तमिलनाडु तेजी से एक स्वतंत्र गणराज्य जैसा बनता प्रतीत हो रहा है। वहां की राजनीतिक एवं सामाजिक बयार देश के शेष हिस्से के उलट बह रही है। कम से कम हाल के रुझानों से इस बात के संकेत जरूर मिल रहे हैं। इस साल देश में हुए आम चुनाव में...

देश का दक्षिणी राज्य तमिलनाडु तेजी से एक स्वतंत्र गणराज्य जैसा बनता प्रतीत हो रहा है। वहां की राजनीतिक एवं सामाजिक बयार देश के शेष हिस्से के उलट बह रही है। कम से कम हाल के रुझानों से इस बात के संकेत जरूर मिल रहे हैं। इस साल देश में हुए आम चुनाव में राज्य ने द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक)-कांग्रेस गठबंधन को समर्थन देकर देश के सियासी समीकरण को पूरी तरह बदल दिया। 

कांग्रेस अपने नेताओं को लेकर भले ही ङ्क्षचतित दिखाई दे सकती है या संविधान के अनुच्छेद 370 पर उसका रुख विरोधाभासी लग सकता है, लेकिन 5 अगस्त को द्रमुक के सांसद तिरुचि शिवा ने कश्मीर में लोकतंत्र और मानवता बहाल करने की वकालत कर इस मुद्दे पर द्रमुक की मंशा स्पष्ट करने से गुरेज नहीं किया। 

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के प्रस्ताव पर उन्होंने कहा, ‘‘महाशय, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि दुनिया की कोई शक्ति कश्मीर को मिला विशेष दर्जा नहीं छीन सकती है। अटल बिहारी वाजपेयी ने भी कश्मीर के लोगों से बातचीत शुरू की थी। बातचीत करना न केवल संविधान के अनुरूप तर्कसंगत है, बल्कि मानवता का तकाजा भी यही कहता है। कृपया इस मामले में बल प्रयोग नहीं किया जाए। हमें कश्मीर के लोगों का दिल जीतना होगा।’’ कश्मीर मसले पर सभी संबंधित पक्षों से बातचीत की विपक्ष की मांग के साथ उनके बयान ने भी सुर में सुर मिला दिया। 

‘मोदी वापस जाओ’
इस महीने के शुरू में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी लोकप्रियता के चरम पर थे तो एक नई बात देखने को मिली। पिछले दिनों जब तमिलनाडु के मामल्लापुरम या महाबलीपुरम में प्रधानमंत्री मोदी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ अनौपचारिक बातचीत कर रहे थे तो ट्विटर पर ‘मोदी वापस जाओ’ (मोदी गो बैक) ट्रैंड कर रहा था। शी से मुलाकात के समय मोदी ने तमिलनाडु की पारंपरिक पोशाक पहनी थी, फिर भी प्रधानमंत्री तमिल लोगों का रोष दूर करने में नाकाम रहे। देश के शेष भाग में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को हराना लगभग असंभव हो गया है लेकिन तमिलनाडु में उसके लिए हालात अलग हैं। हालांकि उसके पास ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्र्रमुक) के रूप में एक सहयोगी जरूर है लेकिन आने वाले महीनों में नई राजनीतिक चुनौती उभर सकती है और राज्य में कमल खिलाने में भाजपा को मशक्कत करनी पड़ सकती है। 

शशिकला की रिहाई 
अक्तूबर में जयललिता की सहयोगी शशिकला बेंगलूर के निकट परप्पाना अग्रहारा जेल में कारावास की अवधि का दो-तिहाई हिस्सा काट लेंगी। भ्रष्टाचार के मामले में वह जेल की सजा भुगत रही हैं। कर्नाटक पैरोल एवं फर्र्लो (गैर-हाजिरी की छुट्टी) नियमों के अनुसार जिस कैदी का व्यवहार अच्छा रहा है, वह अपनी सजा की अवधि का दो-तिहाई हिस्सा पूरा करने के बाद समय पूर्व रिहाई का पात्र हो जाता है। यह प्रावधान सांविधिक सलाहकार बोर्ड के निर्णय पर निर्भर करता है। ऐसा हुआ तो वह समय से पहले जेल से बाहर आ सकती हैं। जेल से रिहाई के बाद उन्हें अपनी पार्टी अम्मा मक्कल मुनेत्र काट्ची (ए.एम.एम.के.) को दोबारा संगठित करने का समय मिल जाएगा। इस समय उनके भतीजे टी.टी.वी. दिनाकरण पार्टी की कमान संभाल रहे हैं।

अपना-अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए ए.एम.एम.के. और अन्नाद्रमुक एक-दूसरे के खिलाफ  सियासी जंग लड़ रही हैं। जयललिता की विरासत, जो उनकी सबसे बड़ी मजबूती है, दाव पर लगी है। लोकसभा चुनाव में दिनाकरण की ए.एम.एम.के. महज पांच प्रतिशत मत हासिल कर पाई थी और एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। हालांकि अब काफी कुछ बदल चुका है। पार्टी को नया चुनाव चिन्ह भी मिल गया है और कई लोग इससे बाहर जा चुके हैं और पार्टी ने अपनी ऊर्जा बचाए रखने के लिए 21 अक्तूबर को विक्रावंडी और नांगुनेरी विधानसभा चुनाव नहीं लडऩे का फैसला किया है। 

चुनावों में अभी समय
तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में अभी कुछ वक्त है। राज्य में 2021 में चुनाव होंगे। यहां द्रमुक की लोकप्रियता 2019 के चुनाव जैसी ही बरकरार है या नहीं इसका पता 24 अक्तूबर को लगेगा जब विधानसभा उप-चुनाव के नतीजे आएंगे। हालांकि एक बात स्पष्ट है कि शशिकला की समय पूर्व रिहाई से राज्य की राजनीति कोई भी करवट ले सकती है। ऐसे में कई सवाल बरबस खड़े होते हैं। क्या वह जयललिता के वफादार लोगों को एक साथ लाने में सफल होंगी, जिससे अन्नाद्रमुक और ए.एम.एम.के. के बीच मतों का बंटवारा नहीं होगा? या फिर द्रमुक 2019 के लोकसभा चुनाव की तरह ही जीत का परचम लहराएगी? क्या भाजपा तमिलनाडु में अपना प्रदर्शन सुधार पाएगी? 

फिलहाल तो इन सवालों के स्पष्ट उत्तर नहीं दिए जा सकते हैं। 2021 में तमिलनाडु के साथ पश्चिम बंगाल में भी चुनाव हैं और इस वजह से भाजपा की कारगुजारी जरूर कसौटी पर कसी जाएगी। शुरूआती संकेत तो यही मिल रहे हैं कि पश्चिम बंगाल में भाजपा के लिए अच्छी संभावनाएं हैं, लेकिन तमिलनाडु में लोगों का दिल जीतने के लिए इसे स्वयं में बदलाव करने होंगे।-आदिति फडणीस 

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