सेना का ‘राजनीतिकरण’ न हो

Edited By ,Updated: 20 Mar, 2020 02:50 AM

there is no  politicization  of the army

सेना का राजनीतिक फायदा उठाने की खातिर एक राजनीतिक पार्टी ने कुछ वर्षों से एक नई प्रक्रिया शुरू कर रखी है, जिसका प्रभाव सेना के राजनीतिकरण पर पडऩा स्वाभाविक होगा। वर्णनीय है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने हरियाणा के मुख्यमंत्री...

सेना का राजनीतिक फायदा उठाने की खातिर एक राजनीतिक पार्टी ने कुछ वर्षों से एक नई प्रक्रिया शुरू कर रखी है, जिसका प्रभाव सेना के राजनीतिकरण पर पडऩा स्वाभाविक होगा।

वर्णनीय है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की उपस्थिति में सिरसा जिले के खरिया गांव में एक सार्वजनिक रैली के दौरान 8 मार्च को बड़े उत्साह से यह घोषणा की कि भाजपा से पूर्व किसी भी सरकार ने भारतीय सेना के बारे में कभी सोचा ही नहीं था। अब दुश्मन को कड़ी टक्कर देने की खातिर भाजपा के नेतृत्व वाली राजद सरकार ने सेनाओं को हर प्रकार के हथियारों से लैस किया है। नड्डा ने विशेष तौर पर 36 राफेल, 28 अपाचे हैलीकाप्टर, 5 लाख असाल्ट राइफलों इत्यादि का जिक्र किया। 

हम महसूस करते हैं कि देश की सुरक्षा से संबंधित युद्ध की तैयारी वाले अहम पहलुओं के बारे में लोगों द्वारा चुने हुए सांसदों की ओर से संसद में बहस करना तो शोभा देता है, जहां पर सवाल-जवाब भी होते हैं मगर सार्वजनिक तौर पर एक आधी-अधूरी जानकारी देना जायज नहीं। इस संबंध में रक्षा मामलों से संबंधित संसद की स्थायी कमेटी की ओर से हाल ही में संसद में पेश की गई रिपोर्ट बारे वास्तविकता पेश करना ही उचित होगा। 

कमेटी की रिपोर्ट
कमेटी की ओर से 13 मार्च को जो रिपोर्ट संसद के पटल पर रखी गई उसमें मुख्य तौर पर यह स्पष्ट किया गया कि जिस तरीके से पाकिस्तान तथा चीन  अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाने में लगे हुए हैं उसके मद्देनजर और अधिक कोष की आवश्यकता होगी। वर्ष 2020-21 के रक्षा बजट बारे बहस करते हुए कमेटी ने यह नोट किया कि सेना, नौसेना तथा वायुसेना को 2015-16 से लेकर वर्तमान समय तक पूंजीगत हैड अधीन प्रस्तुतिकरण अनुसार फंड तय नहीं किए गए तथा 35 फीसदी बजट की कमी है। जबकि यहां पूंजीगत हैड के अधीन ही हथियार इत्यादि खरीदे जाते हैं। 

उल्लेखनीय है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जो बजट एक फरवरी को संसद में पेश किया उसमें 3,37,553 करोड़ वाले रक्षा बजट की व्यवस्था की गई, जिसके अंतर्गत पूंजीगत हैड अधीन 1,13,734 करोड़ की राशि रखी गई। इसमें पैंशन बजट शामिल नहीं। तीनों सेनाओं के बीच कैपिटल फंड की मांग तथा आबंटन का जिक्र करते हुए कमेटी ने कहा कि वर्ष 2015-16 के बीच सेना के लिए मांग तथा आबंटन में 4596 करोड़ का अंतर था जोकि वर्ष 2020-21 में बढ़ कर 17,911.22 करोड़ हो गया यानी कि कमी 14 फीसदी से बढ़कर 36 फीसदी तक पहुंच गई।

नौसेना के लिए वर्ष 2014-15 में निर्माण पर जो फंड उपलब्ध करवाए गए उसमें 1264.89 करोड़ का अंतर था, जोकि आने वाले वित्तीय वर्ष तक 18580 करोड़ का हो जाएगा, जिसका मतलब यह है कि अंतर 5 फीसदी से बढ़कर 41 फीसदी तक हो जाएगा। ऐसे ही वायुसेना के लिए वर्ष 2015-16 में अंतर 12505.21 करोड़ का था वह भी बढ़ कर वर्ष 2020-21 में 22925.38 करोड़ हो गया यानी कि कमी 27 प्रतिशत से बढ़कर 35 प्रतिशत तक हो गई। 

कमेटी ने विशेष तौर पर नौसेना के लिए जंगी बेड़ों, लड़ाकू हैलीकाप्टरों, तेज रफ्तार वाले लड़ाकू जहाज, दुश्मन की नौसेना वाली ताकत को नष्ट करने वाली सबमरीन इत्यादि की कमी जोकि देश की सुरक्षा को प्रभावित करती है उसको प्राथमिकता के आधार पर पूरा करने की सिफारिश की गई। 

बाज वाली तीखी नजर
सुरक्षा जरूरतों के लिए हथियार, संयंत्र, संचार साधन, साजो-सामान के अलावा बुनियादी ढांचे का खर्चा भी कैपिटल फंड में से किया जाता है। यदि उक्त दर्शाई गई स्थिति के अनुसार, अगर बजट की मांग तथा आबंटन में अंतर बढ़ता गया तो उसका असर आधुनिक हथियारों की प्राप्ति तथा पहले से ही मंजूरशुदा परियोजनाओं की अदायगी के ऊपर भी पड़ेगा।

उल्लेखनीय है कि 36 राफेल लड़ाकू विमानों की शुरूआती कीमत करीब 60,000 करोड़, सबमरीन की परियोजनाओं हेतु 40,000 करोड़, एंटी टैंक मिसाइल हेतु 1200 करोड़, एम.400 एयर डिफैंस मिसाइल सिस्टम हेतु 4500 करोड़, आकाश मिसाइल के लिए 900 करोड़, नौसेना हेतु 111 यूटीलिटी हैलीकाप्टर के लिए 21736 करोड़, ब्रह्मोस मिसाइल के लिए 3000 करोड़, 72400 असाल्ट राइफलों के लिए 700 करोड़ से ज्यादा चाहिएं। हालांकि सेना को 6,50,000 राइफलों तथा 32500 हल्की कार्बाइनों की जरूरत है। 

कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में यह दर्ज किया कि फंडों की कमी के कारण सेना द्वारा मिलिट्री अकम्मोडेशन प्रोजैक्ट (एम.पी.ए.-3) अधीन जो 71102 क्वार्टर निर्मित किए जाने थे उनकी गिनती कम करके 24592 कर दी गई है। राजनेताओं को तो सैन्य भलाई के बारे में कोई ङ्क्षचता नहीं होती। उन्हें तब हो यदि उनके बच्चे सेना में भर्ती हों। हम देश की अर्थव्यवस्था की गिरावट को अच्छी तरह से समझते हैं, जोकि नोटबंदी तथा जी.एस.टी. जैसी गलत नीतियों का नतीजा है। अब कोरोना वायरस का प्रभाव भी देश के विकास पर पड़ेगा। महंगाई बढ़ेगी तथा रुपए की दर कम होगी। इस लेख की शुरूआत ही नड्डा की गुमराह करने वाली बयानबाजी से की गई। 

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गणतंत्र दिवस के मौके पर एन.सी.सी. कैडेटों को सम्बोधित करते हुए राजनीतिक उपलब्धियां गिनाते हुए यह दावा किया कि भारत पाकिस्तान को सात से दस दिनों के अंदर युद्ध में करारी हार दे सकता है। क्या यह सेना का राजनीतिकरण नहीं होगा? सी.डी.एस. को चाहिए कि राजनेताओं की तरह बढ़ा-चढ़ा कर बात करने की बजाय वह सरकार को बजट के बारे में नेक सलाह दें। 

संसदीय कमेटी महसूस करती है कि उसकी इच्छा है कि युद्ध समर्था वाले इस किस्म के अत्याधुनिक ‘स्टेट ऑफ द आर्ट’ का विस्तार किया जाए जोकि उत्तरी तथा पश्चिमी देशों का मुकाबला कर सके इसलिए जरूरी फंड तय किए जाएं। अब देखना होगा कि सरकार कमेटी की सिफारिशों को कैसे लागू करती है?-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों 
 

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