सभ्य राजनीति में दुर्भावनापूर्ण बयानों के लिए कोई स्थान नहीं

Edited By ,Updated: 15 Sep, 2021 05:21 AM

there is no place for malicious statements in civilized politics

तुष्टीकरण की राजनीति के इस मौसम में लोकतंत्र हितों का टकराव है और उसे सिद्धांतों की प्रतिस्पर्धा का मुखौटा ओढ़ा दिया गया है। यह इस बात को दर्शाता है कि राजनीतिक वक्तव्य आज केवल

तुष्टीकरण की राजनीति के इस मौसम में लोकतंत्र हितों का टकराव है और उसे सिद्धांतों की प्रतिस्पर्धा का मुखौटा ओढ़ा दिया गया है। यह इस बात को दर्शाता है कि राजनीतिक वक्तव्य आज केवल भड़काने के वक्तव्य बन गए हैं। वे घृणा फैलाने और अपने वोट बैंक को बढ़ाने के लिए धार्मिक आधार पर सांप्रदायिक मतभेद को बढ़ाते हैं। 

केरल के कोट्टायम जिले के कैथोलिक बिशप ने ईसाई युवकों को आगाह किया है कि वे नशीली दवाओं के जेहाद के विरुद्ध सजग रहें। पिछले कुछ वर्षों से राज्य में नशीली और मादक दवाओं के मामलों तथा उनकी जब्ती में तेजी से वृद्धि हुई है। वर्ष 2018 में पुलिस ने 650 करोड़ रुपए, 2019 में 720 करोड़ रुपए और 2020 में 800 करोड़ रुपए मूल्य की नशीली दवाएं जब्त कीं। 

यह वक्तव्य भाजपा के लिए कर्णप्रिय था क्योंकि विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ईस्टर्न कैथोलिक चर्च सीरो मालाबार चर्च ने मुसलमानों पर लव जेहाद का आरोप लगाते हुए इस्लामोफोबिक भावनाएं व्यक्त कीं और दावा किया कि कई ईसाई महिलाओं का इस्लाम में धर्मांतरण किया गया और इस्लामिक स्टेट की जेहादी कार्रवाइयों को आगे बढ़ाने के लिए 2018 से सीरिया भेजा गया और लव जेहाद तथा इस्लामिक स्टेट द्वारा नाइजीरिया में महिला ईसाई बंदियों को फांसी लगाने से इसकी तुलना की। चर्च द्वारा हिन्दुत्व की लाइन पकडऩा राज्य में भाजपा के राजनीतिक विस्तार का परिणाम है। 

केरल में तुष्टीकरण की राजनीति आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने का स्रोत बन गई है। कुछ लोग इसे केरल कैथोलिक समुदाय की जनसं या के लिए खतरा मान रहे हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की 3.30 करोड़ जनसं या में हिंदुओं की जनसं या 54.73 प्रतिशत, मुसलमानों की 26.56 प्रतिशत और ईसाइयों की 18.38 प्रतिशत थी जबकि 2001 में ईसाइयों की सं या 19.2 प्रतिशत थी।

दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में चुनाव नजदीक आते ही राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को एक सांप्रदायिक विवाद पैदा किया। उन्होंने पिछली राज्य सरकारों पर जातिवादी और वंशवादी मानसिकता का आरोप लगाया और कहा कि वे तुष्टीकरण की राजनीति करती थीं। उन्होंने कहा कि वर्ष 2017 से पूर्व जो अब्बा जान कहते थे वे गरीबों के लिए मिलने वाले राशन को हजम कर देते थे किंतु अब उनके शासन के दौरान हर किसी को विकास का लाभ मिल रहा है। उन्होंने कांग्रेस पर अरोप लगाया कि वह भारत में आतंकवाद की जननी है।

कांग्रेस ने यह कहते हुए उन पर हमला किया कि वह मुसलमानों के विरुद्ध खुल्लम-खुल्ला सांप्रदायिकता और घृणा फैलाते हैं और सभी चुनावों में अब्बा जान और कब्रिस्तान से सफलता नहीं मिलेगी। कांग्रेस 2019 में योगी के बयान का हवाला दे रही थी जब उन्होंने कहा था कि वह कब्रिस्तान के लिए पैसा देते हैं लेकिन श्मशान घाट के लिए नहीं देते। आज हम देश में घोर सांप्रदायिकता देख रहे हैं जहां पर हमारे नेताओं ने राष्ट्रवाद और हिन्दू-मुस्लिम वोट बैंक को राजनीति का मुख्य केन्द्र बना दिया है ताकि अपने हितों को साध सकें। 

वर्ष 2021 भी 2015 से अलग नहीं है जब भाजपा नेताओं और यहां तक कि मंत्रियों ने हिन्दू धर्म, आस्था, पूजा का प्रचार किया और दादरी में बीफ रखने पर एक मुस्लिम की लिंचिंग को उचित ठहराया। लव जेहाद से लेकर पाकिस्तान विरोधी सांस्कृतिक, खेल कूद विरोध, तर्कवादियों की हत्या, बीफ बैन से लेकर गोरक्षा और धार्मिक असहिष्णुता इत्यादि के खेल में भारत सांप्रदायिकता के जाल में फंसा हुआ है। हमारे नेतागण वोट बैंक की राजनीति के लिए खतरनाक खेल खेल रहे हैं।

हिन्दू-मुसलमानों को एक-दूसरे के विरुद्ध खड़ा कर सांप्रदायिक आधार पर विभाजनकारी प्रवृतियों को बढ़ावा दे रहे हैं। प्रतिस्पर्धी लोकतंत्र के वातावरण में यदि जातीय राजनीति चुनावी लाभ सुनिश्चित करती है तो धर्म के आधार पर राजनीति मतदाताआें का अधिक धु्रवीकरण करती है। इस बात की कोई परवाह नहीं करता कि यह देश के लिए नुक्सानदायक है। 

ऐसा कर क्या लोकतांत्रिक मूल्यों से निर्मित राष्ट्र की अवधारणा का उपहास नहीं होता? क्या राष्ट्रवाद की अवधारणा अन्य धर्मों के अनुयायियों को नजरअंदाज करना है और क्या यह किसी की देशभक्ति की परीक्षा की कसौटी होनी चाहिए? यह भारत में बढ़ते धार्मिक मतभेद को और बढ़ाएगा और इस तरह से एक दैत्य का जन्म होगा। 

भारत का दुर्भाग्य यह है कि यहां पर हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई कट्टरवादी बढ़ रहे हैं और इसका कारण राजनीतिक और बौद्धिक दोगलापन है, जहां पर धर्मनिरपेक्षता सभी धर्मों को समान आदर के उच्च आदर्शों से हटकर एक बंदी धार्मिक वोट बैंक बनाने की सस्ती रणनीति बन गई है। 140 करोड़ जनसं या वाले देश में इतने ही विचार होने चाहिएं और कोई भी देश की जनता के राजनीतिक विचारों और अधिकारों पर अंकुश नहीं लगा सकता। हर कोई दूसरे के विचारों को स्वीकार न करने के लिए स्वतंत्र है क्योंकि यह उनका व्यक्तिगत मामला है। किसी व्यक्ति के लिए आपत्तिजनक बयान दूसरे के लिए सामान्य हो सकता है तथापि किसी को भी किसी समुदाय के विरुद्ध दुर्भावना फैलाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। 

ऐसी राजनीति में, जहां पर सांप्रदायिक भाषा लोगों की भावनाआें को भड़काती है, वहां पर हमारे शासक वर्ग को वोट बैंक की राजनीति से परे देखना होगा और राजनेताओं के विभाजनकारी और समाज में जहर फैलाने वाले बयानों के खतरनाक प्रभावों पर विचार करना होगा। यह स्पष्ट संदेश दिया जाना चाहिए कि किसी भी समुदाय, जाति, समूह से जुड़ा नेता या पुजारी, मौलवी, पादरी किसी भी समुदाय के विरुद्ध जहर नहीं उगल सकता और यदि वे ऐसा करते हैं तो सुनवाई के अपने लोकतांत्रिक अधिकार को खो सकते हैं। ऐसे बयानों के लिए सभ्य राजनीति में कोई स्थान नहीं है।-पूनम आई. कोशिश

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