‘कोरोना : न हो कोई ढील, न दवाई से पहले, न दवाई के बाद’

Edited By ,Updated: 29 Dec, 2020 03:46 AM

there is no relaxation neither before the medicine nor after the medicine

इस सदी की वैश्विक महामारी कोरोना यानी कोविड-19 को दुनिया में दस्तक दिए पूरा एक साल बीत चुका है। हां, जागरूकता और संचार क्रांति के चलते इतना तो हुआ कि इलाज न होने के बावजूद इसका वह रौद्र रूप देखने को नहीं मिला जो अब तक

इस सदी की वैश्विक महामारी कोरोना यानी कोविड-19 को दुनिया में दस्तक दिए पूरा एक साल बीत चुका है। हां, जागरूकता और संचार क्रांति के चलते इतना तो हुआ कि इलाज न होने के बावजूद इसका वह रौद्र रूप देखने को नहीं मिला जो अब तक दूसरी महामारियों में दिखा। कोरोना को लेकर पहली बार नया और दुनिया भर में चॢचत सच भी सामने आया कि यह इंसान के दिमाग का फितूर है जो चीन की प्रयोगशाला की करतूत है। 

कोरोना से हुई मौतों और दुनिया की मौजूदा आबादी के अनुपात को देखें तो थोड़ी राहत की बात यह है कि यह सजगता ही थी जो महामारी को बिना दवाई के काफी हद तक फैलने से रोक लिया गया। लेकिन मैडीकल साइंस के लिए कोरोना अभी चुनौती बना हुआ है और लगता है कि जल्द इससे पूरी तरह से छुटकारा मिल पाने की सोचना भी बेमानी होगी। 

साल भर में ही कोरोना के नए-नए रूप और प्रकार भी सामने आने लगे हैं। लोगों के सामने कोविड के असर, नए आकार-प्रकार और प्रभाव को लेकर निश्चित रूप से हर रोज नई-नई और चौंकाने वाली जानकारियां भी सामने आएंगी। स्वाभाविक है कि कई तरह के भ्रम भी होंगे लेकिन सबसे अहम यह कि दुष्प्रभावों और सावधानी का जो असर दिखा उसे ही दवा मानकर बहुरूपिया कोरोना को अब तक मात दी गई और ऐसे ही आगे भी दी जा सकेगी। 

चिन्ता की बात बस यही है कि लोग जानते हुए भी सतर्कता नहीं बरत रहे हैं जो सबसे जरूरी है। यह तो मानना ही होगा कि कोरोना पूरी दुनिया के जीवन का फिलहाल तो हिस्सा बना ही हुआ है। आगे कब तक बना रहेगा, नहीं पता। पता है तो बस यही कि कोरोना जल्द जाने वाला नहीं। सबको यही समझना होगा और कोरोना के साथ रहकर ही जीना होगा। इससे जीतने के लिए दवाई के साथ ही पूरी सावधानी, दक्षता और बदलते तौर-तरीकों को सीखना होगा। 

कब तक लॉकडाऊन, नाइट कफ्र्यू  रहे? कब तक हवाई, रेल और सड़क यातायात को रोका जाए? जाहिर है देश, दुनिया की अर्थव्यवस्था की यही तो धुरी हैं। अगर यही बार-बार थमेंगी तो व्यापार-व्यवसाय पर भी तो बुरा असर पड़ेगा जिसका खामियाजा आम और खास सभी को भुगतना होगा। हां, यह इक्कीसवीं सदी है, बड़ी से बड़ी चुनौती, यहां तक कि चांद और मंगल को भी छू लेने की सफलता का सेहरा बांधे दुनिया अब इस संक्रामक महामारी पर भी जीत हासिल करने की राह पर निकल पड़ी है। यह भी सच है कि किसी बड़े लक्ष्य या चुनौती से निपटने के लिए तैयारियां भी काफी पहले से और बेहद लंबी-चौड़ी करनी पड़ती हैं लेकिन यह तो एकाएक आई आपदा है, जिससे निपटने में वक्त तो लगेगा।  बस इसी दौर को होशियारी से काटना होगा। समय के साथ सब ठीक हो जाएगा बशर्ते होशियारी और सतर्कता से कोई समझौता न हो। 

अब ब्रिटेन में कोरोना वायरस का नया स्ट्रेन बेकाबू हो गया है। दुनियाभर में फिर हड़कम्प और दहशत फैली है। भारत सहित 40 से ज्यादा देशों ने ब्रिटेन से किसी के आने-जाने पर रोक लगा दी है। यह नया कोरोना वायरस दिसम्बर 2020 में ब्रिटेन में मिला जिसे वैज्ञानिकों ने वी.यू.आई.-202012/01 नाम दिया। 

यह मॉडीफाइड वेरिएंट 70 प्रतिशत तेज फैलता है और वैज्ञानिक यह भी खोज कर रहे हैं कि क्या म्यूटेट यानी वायरस के जैनेटिक मैटीरियल में बदलाव हो रहा है? नया स्ट्रेन अपनी संरचना के चलते ज्यादा खतरनाक है। इसमें 8 रूप जीन में प्रोटीन बढ़ाने वाले हैं जिनमें से 2 सबसे ज्यादा ङ्क्षचता पैदा करने वाले हैं। पहला एन 501 वाय रूप जो खतरनाक है, इससे शरीर की कोशिकाओं पर तेजी से हमले की संभावना बनती है और दूसरा एच 69/वी70 वाला रूप जो शरीर की इम्यून यानी प्रतिरोधक क्षमता को जबरदस्त नुक्सान पहुंचाता है। अब लग रहा है कि कोरोना के बदलते स्वरूप से महामारी और संक्रमण तेजी से फैल सकता है। 

वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी निदेशक डा. माइकल रेयान भी मान चुके हैं कि भारत, चेचक और पोलियो जैसी बीमारियों से जंग जीतने की दुनिया में एक मिसाल है। चेचक से हुई मौतें विश्व इतिहास में लड़े गए सारे युद्धों से ज्यादा हैं। इसी लिहाज से दुनिया भर की निगाहें एक बार फिर हमारी ओर हैं। हालांकि कोविड-19 के टीके को लेकर दुनिया भर में परीक्षण चल रहे हैं लेकिन आबादी के लिहाज से एक बार फिर सभी भारत पर टकटकी लगाए हुए हैं। भारत में  एक ही समय में अलग-अलग इलाकों की तासीर भी अलग होती है। ऐसे में टीके की सफलता और खरे परीक्षण के लिए हर दृष्टि से भारत को ही लोग उपयुक्त मानते हैं। ऐसा हो भी रहा है।

देश में संभावित टीके को जनवरी में बाजार में उतारने की तैयारियां अंतिम चरण में हैं। भारतीय औषधि नियामक की नजर ब्रिटेन पर है जो ऑक्सफोर्ड निर्मित कोविड-19 के टीके को इसी हफ्ते मंजूरी दे सकता है। यदि ऐसा हुआ तो केन्द्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन यानी सी.डी.एस.सी.ओ. में कोविड-19 विशेषज्ञ समिति की बैठक होगी जिसमें देश-विदेश में क्लीनिकल ट्रायल से प्राप्त सुरक्षा एवं प्रतिरक्षा क्षमता के आंकड़ों की गहराई से समीक्षा होगी। उसके बाद ही भारत में टीके के आपात इस्तेमाल संबंधी मंजूरी मिल सकेगी। हालांकि वायरस के नए प्रकार के सामने आने से संभावित एवं विकसित होते टीकों पर किसी भी तरह के प्रभाव की संभावना से वैज्ञानिक फिलहाल इंकार कर रहे हैं। लेकिन सारा कुछ टीके के आने व उपयोग में लाने के बाद ही साफ हो पाएगा। 

फिलहाल दवा में सूअर की चर्बी के उपयोग की चर्चा के बीच नया विवाद भी उफान पर है। कुछ उपयोग के खिलाफ तो कुछ परिस्थितियों को देखते हुए उपयोग के पक्ष में। वहीं इतिहास बताता है कि कोई भी महामारी इतनी जल्दी कभी खत्म नहीं हुई है। हां, फैलाव सतर्कता से ही रोका गया। बस कोविड-19 के साथ भी ऐसा ही जरूरी है। वैक्सीन आने के बाद सब तक पहुंचने और किसे पहले किसे बाद की प्राथमिकताओं के चलते लंबा वक्त लगना सुनिश्चित है। 

साथ ही कई बदलाव, प्रभाव और दुष्प्रभावों का भी दौर चलेगा। कोरोना के नित नए रूप, वैक्सीन और उसके उपयोग की ऊहापोह के बीच बिना किसी साइड इफैक्ट के कोरोना से निपटने का कारगर मंत्र दो गज की दूरी मास्क जरूरी, ये तो सब को पता है, फिर नहीं लगाने का कैसा बड़ा खतरा है? बस यही समझना और समझकर जंग जीतना होगा।-ऋतुपर्ण दवे 
 

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