‘अब हमारे देश में विपक्ष का कोई आकार ही नहीं’

Edited By ,Updated: 14 Jan, 2021 05:12 AM

there is no size of opposition in our country now

प्रत्येक लोकतांत्रिक प्रक्रिया को एक सशक्त विपक्ष की जरूरत होती है। यह त्रासदी है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मुकाबला करने के लिए हमारे देश में ऐसे विपक्ष का कोई आकार ही नहीं है। सिविल सोसाइटी में अपना आधार रखने वाला संवैधानिक

प्रत्येक लोकतांत्रिक प्रक्रिया को एक सशक्त विपक्ष की जरूरत होती है। यह त्रासदी है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मुकाबला करने के लिए हमारे देश में ऐसे विपक्ष का कोई आकार ही नहीं है। सिविल सोसाइटी में अपना आधार रखने वाला संवैधानिक आचरण समूह (सी.सी.जी.) कुछ समय से अपना कार्य कर रहा है तथा हाल ही में इसका प्रतिद्वंद्वी सामने आया है। 

मैं यहां पर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव के नेतृत्व वाले एक समूह की बात भी कर रहा हूं जो 200 आई.ए.एस., आई.एफ.एस., आई.पी.एस. तथा कुछ सैंट्रल सर्विस अधिकारियों वाले सी.सी.जी. को ग्रहण करने की कोशिश कर रहा है। सी.सी.जी. के सदस्य पिछले 3 वर्षों से क्रियाशील हैं। सी.सी.जी. का गठन देश प्रेम से भरे कुछ आई.ए.एस. अधिकारियों ने किया था जिसमें से मेरे गृह प्रदेश महाराष्ट्र से संबंधित कुछ लोग भी हैं। 

इस समूह से संबंधित एक व्यक्ति ने मुझ तक पहुंच बनाई और मैंने बिना देरी किए इस समूह को ज्वाइन कर लिया। यह समूह ऐसे मुद्दों को लेता है जो सरकार की नीतियों को दर्शाते हैं। मिसाल के तौर पर तीन कृषि कानून, यू.पी. तथा अन्य भाजपा शासित राज्यों द्वारा परिवर्तित लव-जेहाद कानून ने अपनी ओर इस समूह का ध्यान खींचा। ऐसे कानून जो अन्याय से भरे या फिर जिन पर कोई शोध या संसद में चर्चा नहीं हुई वे इस समूह द्वारा लिए जाते हैं। इन कानूनों के बारे में विचारों को प्रशासन को एक खुले पत्र के माध्यम से भेजा जाता है। इसके साथ-साथ प्रैस तथा लोगों की जानकारी के लिए भी इन्हें जारी किया जाता है। 

इसको भेजने से पूर्व समूह के सदस्यों को मामलों की तारीख तथा समय की भी घोषणा की जाती है ताकि प्रत्येक पत्र की विषय वस्तु पर शोध किया जाए और फिर उसकी पुष्टि की जाए। प्रत्येक सदस्य को इसकी पुष्टि करने या फिर इस पर हस्ताक्षरित करने के लिए नहीं कहा जाता। निर्णय उनका अपना होता है। वह चाहें इस पर हस्ताक्षर करें या फिर न करें। यह सब एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत किया जाता है। हाल ही में सी.सी.जी. ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक पत्र लिखा जिसमें राज्य में विधेयक द्वारा लाए गए लव-जेहाद कानून के बारे में ङ्क्षचता व्यक्त की गई। इस पत्र को कई अंग्रेजी भाषाओं तथा स्थानीय मातृ भाषाओं के समाचार पत्रों में प्रकाशित किया गया। 

नवगठित समूह जो एक विपक्ष की भूमिका में है, को कोई सेवानिवृत्त न्यायाधीशों तथा बुद्धिजीवियों का समर्थन भी प्राप्त है। एक लोकतंत्र में सभी विचारों तथा अपने नजरिए के लिए स्थान होता है। मैं ऐसे प्रत्येक समूह का स्वागत करता हूं और उनके नजरिए का समर्थन करता हूं। एक समूह दूसरे को राष्ट्रविरोधी कह देता है। आजकल एक समझ वाले राजनीतिज्ञ स्वतंत्र तौर पर दूसरे पर हाथ बढ़ाते हैं।

अगर एक किसी के विचारों के साथ सहमत नहीं होता तो उसे ‘राष्ट्र विरोधी’ नाम दे दिया जाता है। यह राजनीति में चलता है मगर हमारे अधिकारियों के बीच नहीं। मैं यू.पी. के पूर्व मुख्य सचिव योगेन्द्र नारायण को निजी तौर पर नहीं जानता। मगर सी.सी.जी. में कुछ मेरे दोस्त जो उन्हें जानते हैं, उनके बारे में कहते हैं कि वे एक अधिकारी के तौर पर भद्र पुरुष हैं। मैं निजी तौर पर महाराष्ट्र के पूर्व डी.जी.पी. प्रवीण दीक्षित जोकि हस्ताक्षर करने वालों में से एक हैं, को जानता हूं। 

भ्रष्टाचार से लडऩे के लिए उनकी कड़ी प्रतिबद्धता के लिए मैं उनका सम्मान करता हूं। जब स्टेट पुलिस के वह एंटी क्रप्शन ब्यूरो के प्रमुख थे तो जूनियर रैंक के अधिकारियों में  अपराधियों को दंडित करने तथा उन्हें उजागर करने में उनकी दृढ़ पकड़ के लिए खौफ था। मगर मैं मानता हूं कि ङ्क्षहदू लड़कियों के साथ मुस्लिम युवकों के प्रेम में पडऩे के बारे में उनके संदिग्धचित्त होने के बारे में मैं नहीं जानता। महाराष्ट्र में एक आई.पी.एस. कैडर के दो अधिकारियों को मैं जानता हूं। दोनों ही ङ्क्षहदू हैं तथा दोनों ने मुस्लिम युवतियों से शादी रचाई है। वे एक खुशहाल विवाहित जीवन जी रहे हैं। इस दौरान मैंने समूह के पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले दो लोगों के बयान पढ़े। दोनों ही केरल हाईकोर्ट के जज रहे हैं। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर इंकार किया कि उन्होंने पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। एक अन्य केरल के पूर्व जज ने कहा कि उन्होंने पत्र की सामग्री को ध्यानपूर्वक पढ़े बगैर ही हस्ताक्षर कर दिए। 

आज जो सत्ता में हैं वे ङ्क्षचतित नहीं कि सी.सी.जी. जैसा समूह क्या सोचता है मगर उन्हें सभी नजरियों तथा बहसों को टेबल पर रखना चाहिए, इसी का नाम लोकतंत्र है। ‘राष्ट्र विरोधी’, ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’, ‘शहरी नक्सल’ और ‘माओवादी’ सहानुभूति रखने वाले इत्यादि का लेबल लगाकर लोगों की आवाजें दबाई नहीं जानी चाहिएं। नागरिकों पर विधेयकों को थोपने से पहले उन्हें सुनना चाहिए। सब कुछ जानने वाले तथा सर्वज्ञानी के तौर पर अपने आपको बढ़ावा देने  से आप पंजाब तथा हरियाणा के किसानों के आंदोलनों को निमंत्रण दे रहे हैं। यह आम जनता के लिए असुविधा तो पैदा कर ही रहे हैं इसके साथ-साथ सरकार के लिए भी सिरदर्दी बने हुए हैं।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)

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