लोगों से ‘विश्वासघात’ करते ये बैंक

Edited By ,Updated: 17 Mar, 2020 03:56 AM

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मेरी अनपढ़ मां समझदार थी जो अपने सोने-चांदी के गहनों को जमीन में दबा देती थी। हमारे बुजुर्ग अच्छे थे कि साहूकार के पास अपनी जमीन गिरवी रख अपनी जरूरतें पूरी कर लेते थे। चाहे साहूकार ‘अधेली से उनकी हवेली’ पर कब्जा कर लेते थे। मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास...

मेरी अनपढ़ मां समझदार थी जो अपने सोने-चांदी के गहनों को जमीन में दबा देती थी। हमारे बुजुर्ग अच्छे थे कि साहूकार के पास अपनी जमीन गिरवी रख अपनी जरूरतें पूरी कर लेते थे। चाहे साहूकार ‘अधेली से उनकी हवेली’ पर कब्जा कर लेते थे। मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास ‘गोदान’ का नायक ‘होरी’ आज के बैंकों के विश्वासघात पर आंसू तो बहाता ही होगा? पाठकवृंद आप पूछोगे क्यों? चलो आज वर्तमान बैंकिंग सिस्टम पर चंद बातें कर लेते हैं। आई.सी.आई.सी.आई. बैंक की सी.ई.ओ. चंदा कोचर अपने ही पति की कम्पनी को 3000 करोड़ का कर्जा बांट आईं। जो बैंक 1994 में चंदा कोचर ने स्वयं शुरू किया, खाताधारकों ने जिस आई.सी.आई.सी.आई. बैंक में अपने खून-पसीने की कमाई जमा करवाई, उसी बैंक की संरक्षक चंदा कोचर उस बैंक का पैसा लुटा आईं। 

मुम्बई के महाराष्ट्र बैंक की एक शाखा के कई खाताधारक बैंक के फेल होने से आत्महत्या कर गए। येस बैंक के संस्थापक राणा कपूर गिरफ्तार कर लिए गए। येस बैंक का पैसा अपनी ही बनाई हुई कम्पनियों में बांट आए। कैसी विडम्बना है कि स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी की एक फोटो (पेंटिंग कह लीजिए) दो करोड़ रुपए में खरीद लाए। जानते हो क्यों? पैसा लोगों का था, लुटा आए। कुछ बेटियों को दे आए। इधर आइए पाठकवृंद मेरे शहर पठानकोट में, यहां एक बैंक है ‘हिंदू अर्बन को-आप्रेटिव बैंक’। इसके अधिकारी गायब हैं, जिन्होंने लोन दिया था। इस बैंक ने उनका पता ही नहीं लगाया और इस बैंक के 90,000 खाताधारक सड़कों पर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। उनमें से कई खाताधारक अवसाद की स्थिति में हैं।

मुम्बई के हीरे-जवाहरात के व्यापारी नीरव मोदी पंजाब नैशनल बैंक के अरबों रुपए डकार कर गायब, उन्हीं का रिश्तेदार चौकसी बैंकों का अरबों रुपया लेकर भाग गया। एक और राज्यसभा सदस्य और ‘किंग फिशर’ जहाजों का मालिक विजय माल्या अरबों के बैंक घोटाले कर विदेश भाग गया। बैंकों के खाताधारक आत्महत्या कर रहे हैं, अवसादग्रस्त हैं और जिन बैंकों पर विश्वास किया उन्हीं बैंकों ने अपने खाताधारकों के लिए अपने गेट बंद कर दिए। बेचारे लाखों खाताधारक कहां जाएं? 

व्यक्ति का स्वभाव है कि वह अपनी कमाई से कुछ बचा कर रखे। भविष्य कल कैसी करवट ले ले, इसका पता नहीं इसलिए आदमी सोचता है कि अनिश्चित भविष्य के लिए कुछ बचा ले। कड़ी मेहनत करता है, पैसे के लिए आदमी खून-पसीना बहाता है तब जाकर कुछ बचा पाता है और यदि इस बचाए हुए पैसे पर बैंक ही हाथ साफ करने लगें तो खाताधारकों को कौन बचाएगा? माझी जो नाव डुबोए, उसे कौन बचाए? 

अब आइए विचार करें कि आदमी पैसा क्यों बचाता है? बचाए पैसे को बैंकों में जमा क्यों करवाता है?
(क) भविष्य अनिश्चित है अत: कुछ बचा कर रख लो। बैंक में रख दो ताकि कल काम आए।
(ख) आदमी का परिवार है, बीवी-बच्चे हैं, बूढ़े मां-बाप हैं। शादी-विवाह, बीमारी, दुर्घटना कुछ भी तो हो सकता है। थोड़ा बचा लो, यदि बचता है।
(ग) आदमी को लालच भी है, चलो बैंक में पैसा बचा भी रहेगा और थोड़ा-बहुत ब्याज भी मिलता रहेगा, चलो यार बचा लेते हैं।
(घ) पैसा पल्ले होगा तो समाज में रुतबा बना रहेगा। थोड़ी शानो-शौकत बनी रहेगी। बचाए पैसे से थोड़ी सुख-सुविधा मिलेगी।
(ङ) बुढ़ापे या बुरे दिनों में यह बचाया हुआ पैसा काम आएगा।
(च) बचाए हुए पैसे से कोई व्यापार करेंगे, उद्योग-धंधा कर लेंगे।
(छ) स्वभाव में, मानव संस्कारों में, सामाजिक परम्पराओं में बचत करना ही मनुष्य की रक्षा का साधन है। 

इत्यादि-इत्यादि कारणों से मनुष्य बचाता है। मनुष्य की इस बचत करने की आदत ने बैंकिंग प्रणाली को जन्म दिया। भारत सरकार ने 1949 में एक एक्ट पास कर उसकी धारा 5-बी के तहत ‘बैंकिंग रैगुलेटिंग सिस्टम’ शुरू किया। इस बैंकिंग सिस्टम पर भारतीय रिजर्व बैंक (जिसे केंद्रीय बैंक भी कहते हैं) अपना नियंत्रण रखता है। इसी बैंकिंग सिस्टम ने नए-नए शब्द भी गढ़े। बैंकिंग, बैंकर, चैक, ड्राफ्ट, ए.टी.एम. वगैरह-वगैरह। परन्तु बैंक शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘विश्वास।’ जो आज के संदर्भ में टूट-सा गया है। लोगों के खून-पसीने की कमाई आज ये बैंक लूटते नजर आ रहे हैं। जैसा मैंने पहले बताया कि बैंक का अर्थ है ‘विश्वास।’ फिर भी अगर शाब्दिक अर्थ को देखें तो यह इतालवी भाषा के शब्द Banco या फ्रांसिसी भाषा के शब्द Banque से निकला है। 

बैंक का अर्थ है ‘बैंच।’ ऐसा बैंच जिसे ‘मनी एक्सचेंज टेबल’ भी कह सकते हैं। बैंक का मतलब हुआ पैसे का लेन-देन करने वाली संस्था-जिसका आधार विश्वास पर टिका है। बैंक लोगों का पैसा जमा करता है। दूसरा यह लोगों को पैसा उधार भी देता है। पैसा जमा करवाने वाले को बैंक चैक इश्यू करता है। चैक एक विश्वास है कि जमाकत्र्ता जब चाहे अपना पैसा निकाल ले। यानी चैक खाताधारक का हुक्म है कि बैंक लिखित राशि का तुरंत भुगतान करे या खाताधारक द्वारा निर्देशित उक्त राशि उक्त व्यक्ति या फर्म के खाते  में जमा करवाए। बैंक ड्राफ्ट भी अपने ग्राहक को इश्यू करता है। यदि बैंक चैक का भुगतान न करे तो बैंक पर खाताधारक कानूनी कार्रवाई कर सकता है। बैंक अपने खाताधारक को लॉकर भी अलाट करता है ताकि उसकी बहुमूल्य चीजें लॉकर में सुरक्षित रहें। चैक इश्यू करने का अधिकार सिर्फ बैंक को है किसी कम्पनी या संस्था को नहीं। 

मुझे तो अपने शहर के ङ्क्षहदू अर्बन को-आप्रेटिव बैंक के 90,000 खाताधारकों की किस्मत पर रोना आता है। इन खाताधारकों ने पली-पली कर अपना पैसा जोड़ा और हिंदू अर्बन को-आप्रेटिव बैंक में जमा करवा दिया। साल हो गया खाताधारक को अपना पैसा भी बैंक नहीं दे रहा। यही हाल बाकी फेल हो रहे बैंकों का है। अजब बात है कि गरीबों की खून-पसीने की कमाई पूंजीपति हड़प गए। दुख तो इस बात का है कि इन बैंकों को इन्हीं के संस्थापकों, मैनेजरों, सी.ई.ओज ने डुबो दिया। अपने पारिवारिक सदस्यों, बड़े-बड़े उद्योगपतियों, व्यापारियों और अपने चहेतों को घूस लेकर भारी मात्रा में कर्जे दे दिए। न गारंटी, न सिक्योरिटी, कर्ज दे दिया। ऊपर से तुर्रा यह कि इन कर्जाधारकों से कर्ज वसूल करने कोई नहीं गया।

गरीब ने कर्ज लेना हो तो सौ रफड़े, सौ एफिडेविट, अमीर इन बैंकों के पास आए तो बोरियां भर-भर कर कर्ज पर कर्ज देते जाएं। मैं पूछता हूं कि रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने ऐसा क्यों होने दिया? क्यों समय रहते कर्ज देने वाले बैंक अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं की गई? मेरा घर तो आज तक गिरवी है अलबत्ता मुझे तो और सम्पत्ति गिरवी रखने के फरमान आ रहे हैं। रिजर्व बैंक आफ इंडिया छोटे-छोटे गरीब खाताधारकों को शीघ्र उनकी बैंकों में जमा पूंजी वापस दिलवाने के कदम उठाए। गरीब की हार्ड अर्न मनी वापस न हुई तो वह आत्महत्या करने पर विवश होंगे। सरकार समय रहते ध्यान दे।-मा. मोहन लाल (पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

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