Edited By Jyoti,Updated: 18 Apr, 2018 02:22 AM
दुनिया को अब यह मान लेना चाहिए कि सीरिया में मिनी वल्र्ड वार चल रही है जिससे मानवता झुलस रही है, शर्मसार हो रही है। मिनी वल्र्ड वार से मुक्ति कब मिलेगी, इसकी कोई उम्मीद वर्तमान मेंं नहीं है। प्रश्न यहां यह उठता है कि सीरिया में जारी युद्ध को मिनी...
दुनिया को अब यह मान लेना चाहिए कि सीरिया में मिनी वल्र्ड वार चल रही है जिससे मानवता झुलस रही है, शर्मसार हो रही है। मिनी वल्र्ड वार से मुक्ति कब मिलेगी, इसकी कोई उम्मीद वर्तमान मेंं नहीं है। प्रश्न यहां यह उठता है कि सीरिया में जारी युद्ध को मिनी वल्र्ड वार क्यों कहा जाना चाहिए, क्यों स्वीकार किया जाना चाहिए कि दुनिया के लिए सीरिया एक विस्फोटक जगह बन गई है जहां पर हिंसा का ही प्रभुत्व है?
प्रश्न यह भी है कि सीरिया में मानवता किस प्रकार से झुलस रही है, किस प्रकार से शर्मसार हो रही है? सीरिया में जारी मिनी वल्र्ड वार का समाधान क्या है? क्या सभी पक्ष मिलकर सीरिया की राजनीतिक समस्या का हल नहीं कर सकते हैं? क्या मुस्लिम दुनिया के लिए सीरिया की यह हिंसक और मानवता को शर्मसार करने वाली समस्या कोई चिंता का विषय नहीं है? क्या मुस्लिम दुनिया के देश अपने-अपने मतभेद शिथिल कर सीरिया की मुस्लिम आबादी के चेहरे पर खुशी नहीं ला सकते हैं?
आखिर मुस्लिम दुनिया 2 भागों में विभाजित होकर, सीरिया में खून-खराबा और गृहयुद्ध में पैट्रोल डालने का काम क्यों कर रही है? क्या तानाशाह असद के पक्ष में मुस्लिम दुनिया के एक भाग और रूस-ईरान का खड़ा रहना नैतिक कदम माना जा सकता है? क्या तानाशाही जनप्रियता को सुनिश्चित करने के लिए सर्वोत्तम मार्ग है? अगर नहीं तो फिर तानाशाह असद के पक्ष में हिंसा का समर्थन करना और उनकी सरकार को बनाए रखने की प्रक्रिया को सीरिया की मुस्लिम आबादी के लिए दुखदायी और कष्टकारी क्यों नहीं माना जाना चाहिए? सीरिया की मुस्लिम आबादी अपने ही तानाशाह असद द्वारा रासायनिक हमले की शिकार हो रही है। जो तानाशाह रासायनिक हमले करने के लिए नहीं हिचकता उसका पतन क्यों नहीं होना चाहिए? कभी ईराक में कुर्द विद्रोहियों को हिंसक रूप से नियंत्रित करने के लिए सद्दाम हुसैन ने भी रासायनिक हमले कर हजारों कुर्द विद्रोहियों को मौत के घाट उतार दिया था।
अमरीका ने सद्दाम हुसैन को फांसी पर लटकवा दिया था। आज नहीं तो कल असद का भी हाल सद्दाम हुसैन की तरह ही होगा। यह मिनी वार कभी भी तीसरे विश्वयुद्ध में तबदील हो सकती है। अब इस प्रश्न पर गौर करते हैं कि सीरिया में जारी युद्ध को मिनी वर्ल्ड वार क्यों नहीं कहा जाना चाहिए। इसके पक्ष में सबसे बड़ा तर्क यह है कि सीरिया के युद्ध में कोई एक नहीं बल्कि 20 ऐसे देश हैं जो किसी न किसी प्रकार से युद्ध में शामिल हैं। दुनिया के सभी शक्तिशाली देश किसी न किसी प्रकार से सीरिया के मिनी विश्वयुद्ध में शामिल हैं। मुस्लिम दुनिया भी सीरिया के युद्ध में शामिल है। फिर बचा कौन? द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद यह पहली हिंसक लड़ाई है जिसमें इतने देश किसी न किसी प्रकार से शामिल हैं और उनके किसी न किसी स्वार्थ का दाव लगना भी लक्षित है।
जहां तक शीतयुद्ध की बात है तो वह सिर्फ हथियारों की होड़ तक सीमित था और अमरीका और सोवियत संघ ही पक्षकार थे। उस समय मिखाइल गोर्बाच्योव और रोनाल्ड रीगन के बीच हुई ऐतिहासिक संधि के बाद शीतयुद्ध पर विराम लगा था। सोवियत संघ के विघटन के बाद शीतयुद्ध पूरी तरह से समाप्त हो गया था। दुनिया के कई देशों में गृहयुद्ध तो जरूर चल रहे हैं, इस्लाम के नाम पर आतंकवाद और ङ्क्षहसा जरूर जारी है, राजनीतिक सत्ता को हड़पने और स्थापित करने के संघर्ष जरूर चल रहे हैं, पर सीरिया में जारी युद्ध सिर्फ गृहयुद्ध नहीं बल्कि इसमें दुनिया के बड़े और प्रहारक 20 देश शामिल हैं। गृहयुद्ध में तो सिर्फ देश के भू-भाग की आबादी ही शामिल होती है, पर सीरिया की हिंसा को बाहरी तत्व न केवल हवा दे रहे हैं बल्कि लोमहर्षक, संहारक और हिंसक लड़ाकू विमानों से हमला कर निर्दोष जिंदगियां भी तबाह कर रहे हैं। मिनी वल्र्ड वार की भयावहता को देख लीजिए, रूस के शासक व्लादिमीर पुतिन और अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की सीरिया में हिंसक भूमिका को देख लीजिए, फिर आपके संज्ञान में सीरिया के निर्दोष लोगों की बेचारगी और कठिनाइयां समझ में आ जाएंगी।
व्लादीमीर पुतिन और डोनाल्ड ट्रम्प सीरिया की जनता के हितैषी नहीं हैं। इनके अपने-अपने स्वार्थ हैं, इन्हें दुनिया में अपनी-अपनी दबंगई जमानी है। इसीलिए ये अपने खूंखार हथियारों का प्रयोग कर रहे हैं। पुतिन उस असद की सरकार को बचाने के लिए विद्रोहियों पर वार कर रहे हैं, मिसाइलें दाग रहे हैं जो तानाशाह है और जिसके खिलाफ विद्रोह हुआ था। विद्रोह पहले आम जनता ने नहीं किया था बल्कि असद की सेना ही 2 भागों में विभाजित हो गई थी। 2011 की बात है जब सीरिया ने बगावत देखी थी और असद सेना के कमांडरों ने मिलकर फ्री सीरियन आर्मी का गठन किया था। फ्री सीरियन आर्मी को असद की सरकार ने हल्के में लिया था। असद की तानाशाही सरकार को यह समझ में ही नहीं आया था कि फ्री सीरियन आर्मी एक न एक दिन सीरिया की तानाशाही सरकार विरोधी जनता का प्रतिनिधित्व कर लेगी और उनके लिए खतरनाक चुनौतियां खड़ी कर देगी। फ्री सीरियन आर्मी ने धीरे-धीरे अपनी शक्ति बढ़ाई है।
इसके बाद अलकायदा ने सीरिया में अपने पैर पसारे। उसके बाद सीरिया में दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन आई.एस. ने अपना वर्चस्व कायम किया था। हालांकि यह सही है ईराक में पराजय के बाद आई.एस. सीरिया में भी काफी कमजोर हुआ है। अमरीका ने ईराक में आई.एस. को कमजोर करने में सफलता पाई है। आज असद की तानाशाही इसीलिए जिंदा है कि उसे रूस का सैन्य समर्थन सक्रियता के साथ मिल रहा है। रूसी लड़ाकू विमान विद्रोहियों को सीरिया की राजधानी दमिश्क के नजदीक फटकने भी नहीं दे रहे हैं। ईरान भी सीरिया में सक्रिय तौर पर युद्धरत है। उत्तर कोरिया भी असद को मिसाइलें उपलब्ध करा रहा है। चीन तो ऐसे सक्रिय तौर पर सीरिया में उपस्थित नहीं है, पर उसकी कूटनीति असद की तानाशाही सरकार के पक्ष में खड़ी है। चीन नहीं चाहता कि सीरिया में असद की तानाशाही सरकार का पतन हो। इधर, सीरिया की हिंसा उस समय दुनिया के लिए चिंता का विषय हो गई, जब अमरीका ने हिंसा के जवाब में सीरिया पर मिसाइलें दागीं।
अमरीका के नेतृत्व में फ्रांस, ब्रिटेन ने 150 मिसाइलें दागी हैं, जो सीरिया की राजधानी दमिश्क सहित अन्य बड़े शहरों पर गिरीं। अमरीका, ब्रिटेन और फ्रांस का कहना है कि उन्होंने सीरिया के सैनिक ठिकानों को निशाना बनाया है, पर स्वतंत्र सूत्रों का कहना है कि मिसाइलें दमिश्क व अन्य शहरों की आबादी पर भी गिरी हैं। कहा जा रहा है कि इन हमलों मे 100 से भी अधिक लोगों की मौतें हो चुकी हैं। सीरिया में हिंसा के प्रसार के कारण स्वतंत्र जानकारियां एकत्रित करना मुश्किल है। डोनाल्ड ट्रम्प ने चेतावनी देते हुए कहा है कि अभी तो झांकी है, असली युद्ध तो शेष है। ट्रम्प ने दुनिया को सीरिया के लोगों पर असद की तानाशाही के अत्याचार, दमन और हिंसा के खिलाफ उठ खड़े होने के लिए कहा है। अमरीका की यह कार्रवाई हिंसा के खिलाफ प्रतिहिंसा के तौर पर देखी जा रही है।
कुछ दिन पूर्व सीरिया की तानाशाही समर्थक सेना ने सीरिया के शहर डोमा पर रासायनिक हमला किया था। इस रासायनिक हमले में 100 से अधिक लोग मारे गए थे और हजारों लोग घायल हो गए थे। जब इस रासायनिक हमले की सच्चाई सामने आई तब दुनिया दंग रह गई। डोनाल्ड ट्रम्प ने इस रासायनिक हमले के खिलाफ असद को चेताया था और कहा था कि इस गुनाह की सजा उन्हें जरूर मिलेगी। ट्रम्प ने रूस और ईरान को भी दंड भुगतने के लिए आगाह किया था। रूस और ईरान ने रासायनिक हमलों से अपना पल्ला झाड़ लिया था। जाहिर तौर पर एक तरफ रूस, ईरान, उत्तर कोरिया असद की तानाशाही सेना के साथ खड़े हैं तो फिर दूसरी तरफ अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस और सऊदी अरब हैं।
अब अगर यह मिनी वल्र्ड वार तीसरे विश्वयुद्ध में तबदील होती है, तो दुनिया के सामने कितनी विकट समस्या उत्पन्न होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है। समाधान क्या है, शांति की कितनी उम्मीद है? समाधान और शांति की उम्मीद वर्तमान में नहीं है। सीरिया में अगर असद की विदाई संभव हो सके, तो वहां शांति आ सकती है। सीरिया में स्थायी शांति के लिए राष्ट्रीय सरकार की जरूरत है।-विष्णु गुप्त