‘यह देश का वह भविष्य नहीं जिसकी परिकल्पना गांधी ने की थी’

Edited By ,Updated: 07 Mar, 2021 04:44 AM

this is not the future of the country that gandhi envisaged

मैंने गणना नहीं की है लेकिन उपलब्ध तथ्यों से पता चलता है कि  राजद्रोह के मामलों में खतरनाक वृद्धि हुई है। वैबसाइट आर्टीकल-14 का दावा है कि 10938 व्यक्तियों के खिलाफ राजद्रोह के आरोपों का 65 प्रतिशत 2014 के बाद आया है। उस श्रेणी के

मैंने गणना नहीं की है लेकिन उपलब्ध तथ्यों से पता चलता है कि  राजद्रोह के मामलों में खतरनाक वृद्धि हुई है। वैबसाइट आर्टीकल-14 का दावा है कि 10938 व्यक्तियों के खिलाफ राजद्रोह के आरोपों का 65 प्रतिशत 2014 के बाद आया है। उस श्रेणी के भीतर राजनेताओं और सरकारों की आलोचना करने के लिए 96 प्रतिशत राजद्रोह के मामले 2014 के बाद दर्ज किए गए। 

आर्टीकल-14 के अनुसार, इसका अर्थ है कि 2010 और 2014 के बीच दर्ज किए गए राजद्रोह के मामलों में 28 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अंत में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो इन आंकड़ों की खुद के साथ पुष्टि करता है जो 2016 और 2019 के बीच राजद्रोह के मामलों में 165 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाते हैं। 

महात्मा गांधी को याद किया जाएगा। उन्होंने भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए का जिक्र करते हुए कहा कि इस धारा जोकि राजद्रोह कानून है, से नागरिकों की स्वतंत्रता को दबाने के लिए इसे डिजाइन किया गया। सरकार के खिलाफ मतभेदों को उत्तेजित करने का प्रयास, जिसे कानून दंडित करता है, के बारे में उन्होंने कहा, ‘‘मैं इसे सरकार के प्रति मतभेद करने के लिए एक गुण के रूप में रखता हूं। एक व्यक्ति को अपनी अभिव्यक्ति प्रकट करने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए और ऐसा तब तक हो जब तक कि वह ङ्क्षहसा पर विचार नहीं करता, उसे बढ़ावा नहीं देता या फिर उसे उकसाता नहीं है।’’ 

यह तथ्य है कि हाल के वर्षों में कार्टूनिस्टों, छात्रों, पत्रकारों, इतिहासकारों, लेखकों, अभिनेताओं, निर्देशकों तथा अन्यों के खिलाफ देशद्रोह का इस्तेमाल किया गया है। यहां तक कि छोटे-छोटे बच्चों को धमकाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया गया  है और ऐसी बातों से महात्मा गांधी के आंसू कम नहीं हुए होंगे। यह बात गुस्से की नहीं बल्कि शर्म की है। यह वह भविष्य नहीं है जिसकी उन्होंने अपने देश के लिए परिकल्पना की थी। फिर भी वास्तव में चिंताजनक बात यह नहीं कि हमारे शासकों ने महात्मा गांधी को नजरअंदाज किया है और यह तब से कर रहे हैं जब से उनकी मृत्यु हुई है। इसके अलावा उन्होंने सुप्रीमकोर्ट की तरफ ध्यान देने से भी मना कर दिया है और इससे भी अधिक विचित्र तथ्य यह है कि न्यायालय ने शिकायत नहीं की है। 1962 में केदारनाथ सिंह के फैसले में न्यायालय ने धारा 124ए के उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया। 

कोर्ट के अनुसार इस तरह की गतिविधि जिसका इरादा या प्रवृत्ति अव्यवस्था या गड़बड़ी पैदा करने की हो उसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में यह अब  वह नहीं जो भाषा सुझाती है। आज इसका बहुत ही सीमित अनुपयोग हो रहा है। समान रूप से महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पक्ष को न्यायालय ने 1995 के बलवंत सिंह , बिलाल अहमद कालू और कॉमनकाज मामले में दोहराया था और हाल ही में सितम्बर 2016 में इसकी फिर से पुष्टि की गई थी। 

संक्षेप में देशद्रोह केवल तभी लागू हो सकता है जब हिंसा के लिए स्पष्ट और निरंतर उकसाव हो अन्यथा न हो। क्या हमारी पुलिस या विभिन्न सरकारों ने इसे मान्यता दी है? स्पष्ट तौर पर इसका जवाब न है। वे देशद्रोह का आरोप उन पर लगाते हैं जो बिजली कटों, भीड़ द्वारा मारे जाने वाले लोगों के बारे या फिर मारे गए प्रदर्शनकारियों के बारे में, ट्वीट करने वाले पत्रकारों के बारे में प्रधानमंत्री को लिखते हैं फिर भी इनमें से किसी भी मामले में ङ्क्षहसा भड़काने का कोई संकेत नहीं था। 

हम उस बिंदू पर पहुंच गए हैं जहां एक जूनियर जज ने कहा है कि सरकार के घायल घमंड के लिए राजद्रोह का अपराध मंत्री को नहीं सौंपा जा सकता। धारा 124ए के स्पष्ट और लगातार दुरुपयोग के लिए यह एकमात्र विश्वसनीय स्पष्टीकरण है। यह उन लोगों के खिलाफ सरकारी प्रतिशोध का पसंदीदा हथियार बन गया है जो इससे असहमत होते हैं या फिर उसके अनुसार कार्य नहीं करते हैं।-करण थापर 
 

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