यह फिल्म शूटिंग नहीं, लोकसभा चुनाव हैं जनाब

Edited By ,Updated: 03 May, 2019 02:34 AM

this movie is not shot lok sabha elections are popular

विभिन्न राज्यों में मतदान के कुछ चरण पूर्ण होने के साथ ही आजकल दिलचस्प समय चल रहा है। प्रत्येक चैनल, प्रत्येक अखबार के पास अपनी-अपनी खबरें हैं लेकिन सबसे ज्यादा हास्यास्पद चुनाव प्रचार वह है जो विभिन्न राज्यों में फिल्म स्टार्स द्वारा किया जा रहा...

विभिन्न राज्यों में मतदान के कुछ चरण पूर्ण होने के साथ ही आजकल दिलचस्प समय चल रहा है। प्रत्येक चैनल, प्रत्येक अखबार के पास अपनी-अपनी खबरें हैं लेकिन सबसे ज्यादा हास्यास्पद चुनाव प्रचार वह है जो विभिन्न राज्यों में फिल्म स्टार्स द्वारा किया जा रहा है। मुझे बहुत हैरानी होगी यदि हमारी जनता इन लोगों को वोट देगी। 

सबसे दिलचस्प बयान टी.एम.सी. की पश्चिम बंगाल से उम्मीदवार मुनमुन सेन की तरफ से मतदान वाले दिन आया। उनके मतदान केन्द्र पर कुछ ङ्क्षहसा हो रही थी और इस बारे में एक पत्रकार ने उनसे सवाल पूछा। इस पर मुनमुन का जवाब था, ‘‘अरे, मुझे खेद है मैं यह सब नहीं देख सकी, मेरी बैड-टी देर से आई, इसलिए मैं देर से उठी।’’ और फिर वह कहती हैं, ‘‘थोड़ा-बहुत वायलैंस तो चलता है इलैक्शन में।’’ कहां से आ जाते हैं ये लोग? क्यों आप फिल्म स्टार्स को पैराशूट से उतारते हैं? क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दलों को क्या हो गया है? 

सन्नी देओल कहते हैं, ‘‘अढ़ाई किलो का हाथ’’ राजनीति में इसकी जरूरत नहीं है। हमें एक अच्छे दिल वाले व्यक्ति की जरूरत है, एक ऐसा दिल जो अपने क्षेत्र के लोगों के लिए धड़कता हो। हमें ऐसे समर्पण और कड़ी मेहनत की जरूरत है जिसमें आप अपने मतदाता के क्षेत्र को एक बेहतर स्थान बना सकते हैं। पहले भी देश भर में कई ऐसे फिल्म स्टार आए जिन्होंने यह वायदा किया कि वे अपने लोकसभा क्षेत्रों को पैरिस की तरह बना देंगे। राजनीति में प्रवेश करने पर अपने पहले चुनाव में गुरदासपुर में इस तरह का वायदा करने वाला पहला व्यक्ति विनोद खन्ना था। मुझे गुरदासपुर में कोई पैरिस नजर नहीं आता। मुझे उस समय भी पैरिस नजर नहीं आया जब धर्मेंद्र ने अपना चुनाव लड़ा। मैंने वहां भी ऐसी कोई चीज नहीं देखी जहां से शत्रुघ्न सिन्हा अथवा हेमामालिनी अथवा अन्य किसी फिल्म स्टार ने चुनाव लड़ा। 

‘सन्नी फिल्मी फौजी, मैं असली फौजी’ 
यह केवल ग्लैमर का आकर्षण होता है और वे जाने-माने चेहरे होते हैं इसलिए लोग इनसे प्रभावित हो जाते हैं। हमने राज्यसभा और लोकसभा में इन फिल्म स्टार्स को देखा है लेकिन वे उन मेहनती राजनेताओं के मुकाबले कहीं नहीं ठहरते जो अपने क्षेत्र के लिए किए गए वायदों को पूरा करते हैं। गोविंदा राजनीति में पूरी तरह फ्लॉप रहे, धर्मेंद्र, रेखा और सचिन तेंदुलकर उच्च सदन में रहे। मेरा ख्याल है कि ये लोग 6 वर्ष में 2-3 बार संसद में आए होंगे। यह कैसी बर्बादी है। यदि हमने बुद्धिजीवियों को संसद में भेजा होता तो हम इस देश के लोगों को बहुत कुछ दे पाते। हमने संसद में कई फिल्म स्टार्स और खिलाडिय़ों को भेजा है लेकिन वे बिना कुछ लौटाए वापस चले गए। मुझे अमरेन्द्र का वह बयान अच्छा लगा जब उन्होंने कहा, ‘‘सन्नी फिल्मी फौजी है, मैं असली फौजी हूं।’’ 

मैं व्यक्तिगत तौर पर इन फिल्म स्टार्स के खिलाफ नहीं हूं, मैं सिर्फ यह चाहती हूं कि वे उन लोगों के लिए कुछ काम करें जिन्होंने उन्हें वोट दिया है। यह कोई फिल्म की शूटिंग नहीं है जहां आप चुनाव प्रचार के दौरान 30 दिन तक शूटिंग करें और फिर 5 साल तक आराम करें। इन 30 दिनों में लोग आप में अपना विश्वास और भरोसा जताते हैं और अपने भाग्य को आपके हाथों में सौंपते हैं। लाखों लोग आप के ऊपर भरोसा करके अपने बच्चों का भविष्य, उनकी स्कूङ्क्षलग, स्वास्थ्य और आजीविका को आपके हाथों में सौंपते हैं और  आप उनका भरोसा तोड़ते हैं? क्या आपकी अंतर्रात्मा नहीं है? मुझे नहीं लगता कि एक भी फिल्म स्टार खड़ा होकर यह कह सकता है कि उसने अपने लोकसभा क्षेत्र के लोगों के लिए काम किया है। यह बात सभी पार्टियों पर लागू होती है। मेरा ख्याल है कि जो व्यक्ति जिस काम को बेहतर कर सकता है उसे वही करना चाहिए। पिछले चुनावों में परेश रावल था। इन लोगों में एक मात्र अपवाद सुनील दत्त थे, जिन्होंने मुम्बई में अपने लोगों के लिए काम किया। 

मतदाताओं को भूल जाते हैं स्टार सांसद
मैं निराश हूं, एक समय था जब  लोग संसद में वैजयंती माला को देखने के लिए उत्सुक रहते थे लेकिन उन लोगों ने अपने समुदाय के लिए भी कुछ नहीं किया। संसद में आने वाले बॉलीवुड के लोग फिल्मी दुनिया के लिए भी कुछ नहीं करते। बॉलीवुड में वर्षों से काम कर रहे लोग इस बात को लेकर निराश हैं कि संसद तक पहुंचे उनके लोगों ने उनके लिए कुछ नहीं किया। वे फिल्म इंडस्ट्री के लिए भी कुछ नहीं करते। सांसद का पासपोर्ट हासिल करना अच्छा लगता है। दिल्ली में घर मिलना अच्छा लगता है। 

दिल्ली में ताकतवर राजनीतिक सर्कल के लोगों से मिलना-जुलना  और लुटियंस दिल्ली का हिस्सा बनना भी सबको अच्छा लगता है लेकिन आप अपने लोकसभा क्षेत्र के लोगों से किए गए अपने ही वायदों को क्यों भूल जाते हो? आप कभी इन गांवों में वापस नहीं जाते, आप किसानों के पास नहीं जाते, आप इन लोगों को बिजली, पानी, स्वास्थ्य कुछ भी नहीं देते। यह बहुत खराब स्थिति है। किसी राजनीतिक दल की लहर पर सवार होकर सांसद बनना एक उपलब्धि होती है लेकिन यह बहुत शर्मनाक है कि ये लोग उन्हें मतदान करने वालों के लिए कुछ नहीं करते। यहां तक कि अमिताभ बच्चन ने भी बहुगुणा के खिलाफ चुनाव लड़ा और जीत हासिल की लेकिन 5 साल में कुछ नहीं किया। राजेश खन्ना ने भी कुछ नहीं किया। मतदान वाले दिन अक्षय कुमार मुम्बई में कहीं नजर नहीं आए। 

आम आदमी की मुश्किलें नहीं समझते नेता
ये लोग तो आम आदमी की कठिनाइयों को भी नहीं समझते। वे पूरी तरह यह भी नहीं समझते कि उन्हें क्यों चुना गया? वे इसी बात में खुश रहते हैं कि उन्हें पार्टी द्वारा इसलिए चुना गया क्योंकि वे एक समुदाय विशेष का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसकी उस क्षेत्र में बड़ी संख्या है। इसलिए ऐसे व्यक्ति को वोट दें जो आपके लिए काम करे, जो अपने लोगों के साथ रहे और जब भी जरूरत हो तो आपको मिल सके। वह ऐसा व्यक्ति न हो जो वापस मुम्बई या दिल्ली चला जाए और फिर वहीं रहे।

यदि ये सैलीब्रिटीज काम करना चाहें तो उनके लिए यह आसान होगा क्योंकि वे किसी भी कार्यालय, किसी संस्था या एन.जी.ओ. में आसानी से प्रवेश कर सकते हैं। यदि ये लोग अपने लोकसभा क्षेत्र के कल्याण के लिए 5 वर्ष का समय भी दे दें तो यह उनके लिए काफी आसान काम होगा, स्थानीय सांसद या विधायक से भी ज्यादा आसान। मैं उम्मीद करती हूं कि एक नेता के तौर पर वे अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। मैं फिर दोहरा रही हूं कि यह फिल्म की शूटिंग नहीं है, यह लोगों के जीवन और उनके भविष्य से खेलना है क्योंकि आपकी बैड-टी समय पर नहीं आई इसलिए आप नहीं जानते कि आपके पोङ्क्षलग क्षेत्र में क्या हुआ। यह आहत करने वाला, शर्मनाक और निराशाजनक है।-देवी चेरियन
 

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