थोर्पे और उनके समलैंगिक ‘महबूब’ की त्रासद कथा

Edited By Pardeep,Updated: 03 Jun, 2018 04:07 AM

thorpe and the tragedy of his gay mahboob

केवल ब्रिटिश लोग ही ऐसा सोच सकते हैं कि दिग्गज ब्रिटिश राजनीतिज्ञ समलंैगिक महबूब की हत्या के प्रयास पर तीन किस्तों वाला सीरियल बनाएं और प्राइम टाइम पर उसे प्रसारित करें। कमाल की बात तो यह है कि यह कोई कहानी मात्र नहीं बल्कि सच्ची घटना है। यह सीरियल...

केवल ब्रिटिश लोग ही ऐसा सोच सकते हैं कि दिग्गज ब्रिटिश राजनीतिज्ञ समलंैगिक महबूब की हत्या के प्रयास पर तीन किस्तों वाला सीरियल बनाएं और प्राइम टाइम पर उसे प्रसारित करें। कमाल की बात तो यह है कि यह कोई कहानी मात्र नहीं बल्कि सच्ची घटना है। यह सीरियल दर्शक को कील लेने वाला है और यही कारण है कि पूरा ब्रिटेन मंत्रमुग्ध हुआ पड़ा है। 

‘ए वैरी इंगलिश स्कैंडल’ नामक यह सीरियल 1960-70 के वर्षों में सबसे आकर्षक और सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिज्ञों में शुमार लिबरल पार्टी नेता जैरमी थोर्पे की कहानी है। 70 के वर्षों के अंत में इस कहानी ने उत्कर्ष को तब छुआ जब यह मुकद्दमा अदालत में पहुंचा और पूरे देश के अखबारों ने इसे प्रथम पृष्ठ पर प्रमुखता से छापा एवं टैलीविजन स्क्रीनों पर कई सप्ताह तक यह कहानी दिखाई गई। पूरे मुकद्दमे ने ब्रिटिश जनता को खींच रखा था लेकिन इसने थोर्पे का करियर तार-तार कर दिया और ब्रिटेन के सबसे हाजिर जवाब तथा जिंदादिल राजनीतिज्ञ में से एक को उदासी और तन्हाई के अंधेरों में धकेल दिया। 

थोर्पे की अपने महबूब नार्मन स्काट से मुलाकात तब हुई थी जब साप्ताहांत पर वह अपने दोस्त की देहाती जागीर पर तफरीह के लिए गए हुए थे। स्काट तबेले में काम करता था। उसकी जंगलियों जैसी बेपरवाही भरी नजरों पर वह फिदा हो गए। थोर्पे ने स्काट को कहा कि लंदन आकर उनसे मिले। जैसे ही वह उनसे मुलाकात करने पहुंचा, उसके बाद उनका लव अफेयर शुरू हो गया। यह अफेयर लुक-छिप कर और आमतौर पर बहुत सस्ती जगहों पर चलाया जाता था तथा डेढ़ दशक तक जारी रहा। 

थोर्पे जानते थे कि वह आग से खेल रहे हैं लेकिन फिर भी स्काट के हुस्न के जादू से वह बच नहीं पाए। वह यह सोचते थे कि वह अपने महबूब के साथ रंगरलियां भी मनाते रहेंगे और इस रहस्य को दुनिया से भी छिपाए रखेंगे। यहां तक कि वह स्काट को अपनी मां के घर भी लेकर गए और सीरियल में यह बात भी दिखाई गई है। उस घर की छत के नीचे ही पहली बार स्काट और थोर्पे के बीच सैक्स संबंध बने। कई वर्ष बाद जब यह स्कैंडल जगजाहिर हो गया तो समाचार पत्रों में वैसलीन और तौलियों की चर्चा होने लगी। सीरियल की स्क्रीन पर भी ये दोनों चीजें प्रचुर मात्रा में देखने को मिलती हैं। बाद में पर्दापोशी करने के इरादे से थोर्पे ने शादी करवा ली और एक बच्चे का बाप बना। 

उसके लिए सबसे बड़ी समस्या की बात यह थी कि स्काट संतुलित व्यक्तित्व का मालिक नहीं था और नशीली दवाइयों का आदी था। उसकी सुरक्षा थोर्पे के लिए एक चुनौती थी, फिर भी वह समझते थे कि वह इससे निपट सकते हैं। लेकिन जब स्काट ने इस रिश्ते के बारे में उल्टी-सीधी बातें करनी शुरू कर दीं और थोर्पे को ब्लैकमेल करने लग पड़ा तब जाकर उन्हें एहसास हुआ कि बात तो हद से बहुत आगे बढ़ चुकी है। उन्हें लगा कि जब तक स्काट जिंदा है उनका अपना राजनीतिक करियर दाव पर लगा रहेगा। लेकिन यदि स्काट को रास्ते से हटा दिया जाता है तो उनका सितारा काफी चमकेगा। यही सोच कर उन्होंने उसका काम तमाम करने की योजना बनार्ई। उनके एक दोस्त डेविड होल्म्ज ने एक पेशेवर कातिल एड्रयू न्यूटन को किराए पर किया और उसे 10 हजार पौंड अदा किए। 

दुर्भाग्यवश न्यूटन ने सब गुड़ गोबर कर दिया। उसने स्काट के ग्रेट डेन (कुत्ते) रिंका को मार गिराया और तब स्काट पर निशाना साधा लेकिन पिस्तौल जाम हो गया। जिस कत्ल के बारे में थोर्पे ने यह उम्मीद लगाई थी कि यह चुपचाप अंजाम दिया जाएगा, पर वह एक भारी-भरकम पुलिस मामले  और एक अविस्मरणीय मुकद्दमे में बदल गया। इस मुकद्दमे ने पूरे ब्रिटेन को चकाचौंध कर दिया। अंत में बेशक थोर्पे बरी हो गया था लेकिन उसका राजनीतिक करियर बर्बाद हो गया था। वह कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रह गया था और गरिमापूर्ण ब्रिटिश व्यवस्था तंत्र में से उसे निकाल बाहर कर दिया गया। यदि आप यह सोचें कि ये सब कुछ किसी कहानी जैसा लगता है तो आपको क्षमा किया जा सकता है लेकिन रौंगटे खड़े कर देने वाली लेकिन अनेक उतार-चढ़ावों, परेशानियों और व्यथाओं में से गुजरती इस रोचक लेकिन रौंगटे खड़े कर देने वाली कहानी का एक-एक अक्षर सत्य है। 

थोर्पे ने अपनी शेष आयु लंदन के नाइटिंग हिल गेट के समीप ओर्मे स्क्वेयर में बिताई। मैं अक्सर उन्हें शाम के समय कराकुल टोपी के साथ अस्त्राखान कालरों और कफों वाला कोट पहने देखा करता था। वह राह गुजरते लोगों से बेखबर अपने घर के सामने वाली सड़क पर चुपचाप टहला करते थे। यदि कोई उन्हें पहचान लेता और हैलो कहने के लिए रुकता तो वह बस मुस्कुरा देते लेकिन कभी-कभार ही दूसरे व्यक्ति की आंखों में झांकते। यह आत्म विनाश की एक त्रासद कथा है। इसी कारण तो यह दर्शकों को कील लेती है। विनाश का बीज महत्वाकांक्षा की अभिलाषा का अभिन्न अंग है। मैं सोच कर हैरान होता हूं कि भारत के लोगों की चेतना को ऐसी ही कोई कहानी कब अपने नागपाश में बांधेगी?-करण थापर

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