पैसा फैंको तमाशा देखो

Edited By ,Updated: 31 Mar, 2021 02:42 AM

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पैसा फैंको तमाशा देखो’, यह गीत 4 राज्यों और एक केन्द्र शासित प्रदेश के चुनावों के बीच सभी पार्टियां गुनगुना रही हैं। अपने खोखले वादों को पूरा करने के लिए धन बटोरने की चाह में सभी पार्टियां लगी हैं। मुख्य रूप से चुनावों को एक किराएदार वाले पेशे के...

‘पैसा फैंको तमाशा देखो’, यह गीत 4 राज्यों और एक केन्द्र शासित प्रदेश के चुनावों के बीच सभी पार्टियां गुनगुना रही हैं। अपने खोखले वादों को पूरा करने के लिए धन बटोरने की चाह में सभी पार्टियां लगी हैं। मुख्य रूप से चुनावों को एक किराएदार वाले पेशे के रूप में माना जाता है। चुनावों के बाद बड़े पुरस्कार मिलते हैं जिसे धन को अपने लिए, भविष्य के चुनावों के लिए तथा अपनी पार्टियों के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। क्या हम एक भ्रष्ट तथा गैर-जवाबदेह वाली राजनीति के आदी नहीं हो चुके जो पैसा और गद्दी के लिए कुछ भी करने के लिए मजबूर होती है। कोई आश्चर्य नहीं कि चुनाव चलाने का अर्थशास्त्र एक बड़ा मामला है। 

वह ऐसा करना जारी रखते हैं क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने ‘एसोसिएशन ऑफ डैमोक्रेटिक रिफाम्र्स’ (ए.डी.आर.) के उस आवेदन को इंकार कर दिया है जिसमें आगामी मतदान के दौरान चुनावी बांड की बिक्री पर रोक लगाने की मांग की थी। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे अस्वीकार करके पारदर्शिता को गंभीर झटका दिया है। भ्रष्टाचार को खत्म करने तथा चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने के लिए राजग सरकार ने 2018 में एस.बी.आई. द्वारा बेचे गए चुनावी बांडों पर विचार किया जिसने बेनामी दान की अनुमति दी (व्यक्तियों, कम्पनियों, गैर-सरकारी संगठनों, ट्रस्टों)। ये बांड एक पार्टी के लिए हजार रुपए से लेकर एक करोड़ रुपए तक है जो उन्हें नकदी के लिए विनिमय कर सकता था। 

मार्च 2018 से लेकर आज तक 6534.78 करोड़ रुपए के मूल्य वाले 12,924 बांड बेचे गए हैं। ए.डी.आर. के अनुसार विभिन्न पार्टियों की आधी से अधिक आय इन्हीं से हुई। दिलचस्प बात यह है कि 2019 में 2760.20 करोड़ रुपए में से भाजपा ने 1660.89 करोड़ रुपए या फिर यूं कहें कि 60.17 प्रतिशत हासिल किए। अन्य पार्टियों द्वारा बाकी की रकम हासिल की गई। मुख्य रूप से चुनाव आयोग ने एक प्रतिगामी कदम के रूप में बांडों का विरोध किया क्योंकि उसके अनुसार इसके गंभीर परिणाम होंगे तथा राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता को यह कम करेगा। पार्टियां अज्ञात योगदान को वैध कर लेंगी और बांड के माध्यम से दान का खुलासा करने से बच जाएंगी। 

इसके अलावा इन बांडों से पहले पार्टियों को दान देने वालों के नाम का खुलासा करना था जिन्होंने 20 हजार से ज्यादा रुपए दिए थे। इसके अलावा बांड अपारदर्शी हैं क्योंकि सरकार नागरिकों को कोई विवरण प्रदान नहीं करती। हालांकि सरकार के पास सभी विवरण होते हैं।सरकार का स्पष्टीकरण यह है कि  एस.बी.आई. से खरीदे गए बांड ‘सफेद’ होंगे। गुमनामी के रूप में अच्छी पकड़ रखने से इस पर निगरानी रखना असंभव हो जाता है कि एक पार्टी को कौन फंडिंग कर रहा है। इसके अलावा जिन कारणों को सरकार अच्छी तरह जानती है वह यह है कि केवल लाभदायक कम्पनियां जो 3 वर्षों से अस्तित्व में थीं, दान कर सकती थीं। इसने छिपी हुई कम्पनियों को स्थापित होने से रोका जो पार्टियों को धन देकर अपना पैसा सफेद करना चाहती थीं। 

चुनावी बांड अपने उद्देश्य को पूरा करने में विफल रहे। इससे भी बुरी बात यह है कि इससे न तो भ्रष्टाचार कम हुआ और न पार्टियां नियमित रूप से अपने लेखा परीक्षा खातों को प्रस्तुत कर सकीं। पूर्व चुनाव आयुक्त ने जोर देकर कहा कि ‘‘बांडों तथा दान का स्वागत है मगर वे काले को वैध बनाने के लिए एक आसान तरीका हो सकता है यदि स्रोत का खुलासा अनिवार्य नहीं किया गया है।’’ राजनीतिक फंडिंग पर पारदर्शिता जैसे कि पश्चिम के देशों में है, छूट से पहले आवश्यक है। 

बंगाल के एक उम्मीदवार ने 30 लाख रुपए के बदले 10 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए। अनुमानित 294 विधानसभा सीटों के लिए प्रत्येक पार्टी को पैसों की न्यूनतम जरूरत 2490 करोड़ रुपए की होगी। यदि प्रति निर्वाचन क्षेत्र के 10 उम्मीदवारों के साथ गुणा किया जाए तो यह 29400 करोड़ रुपए की राशि बनती है। क्या हम मान सकते हैं कि पैसा बांड द्वारा एकत्रित किया गया। पैसा उम्मीदवारों को जारी करना चाहिए न कि पार्टियों को और 50 प्रतिशत पिछले चुनावों की कारगुजारी के तौर पर एडवांस के रूप में दिया जाए। सरकार को खर्च करने वाले अभ्यर्थी हेतु 5 वर्षों  से ज्यादा के लिए 5 हजार करोड़ रुपए के कोष का गठन करना चाहिए। 

उम्मीदवारों और पार्टियों का चुनावी खाता नागरिकों के लिए स्पष्ट होना चाहिए। चुनाव आयोग के पास यह शक्ति होनी चाहिए कि वह राजनीतिक इकाइयां जो उम्मीदवारों का समर्थन या उनकी हार के लिए पैसा खर्च करती हैं, के सभी वित्तीय लेखा-जोखा की यह फैडरल इलैक्शन कैम्पेन एक्ट 1974 के तहत गठित अमरीकी फैडरल इलैक्शन कमीशन के बराबर होगा। भले कोई पार्टी सत्ता में हो, दान या बांड को सार्वजनिक किया जाना चाहिए क्योंकि लोगों के पास यह जानने का अधिकार है कि क्या इसकी फंडिंग के स्रोत द्वारा एक पार्टी की नीति प्रभावित होती है। भ्रष्टाचार को समाप्त करने का समय है।-पूनम आई. कौशिश
 

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