बाघ : स्वस्थ ‘जैव विविधता’ का एक प्रतीक

Edited By ,Updated: 29 Jul, 2020 03:14 AM

tiger a symbol of healthy biodiversity

भारत एक प्रकृति प्रेमी राष्ट्र है जो बाघों का दुनिया भर में सबसे बड़ा प्राकृतिक निवास है। आज देश में दुनिया भर के बाघों की आबादी का 70 प्रतिशत हिस्सा रहता है। भारत में आज बाघों की संख्या 2,967 है। यह लोगों के लिए और बड़े स्तर पर देश के लिए बाघ...

भारत एक प्रकृति प्रेमी राष्ट्र है जो बाघों का दुनिया भर में सबसे बड़ा प्राकृतिक निवास है। आज देश में दुनिया भर के बाघों की आबादी का 70 प्रतिशत हिस्सा रहता है। भारत में आज बाघों की संख्या 2,967 है। यह लोगों के लिए और बड़े स्तर पर देश के लिए बाघ संरक्षण की बहुत बड़ी सफलता है। यह हमारे नेतृत्व की स्थिति मान लेने के लिए हमारे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध देश की अगुवाई कर रहा है। जबकि भारत में सबसे अच्छी जैव विविधता का प्रतीक भी है। 

हमारे पास दुनिया की पूरी धरती का महज 2.5 प्रतिशत और ताजा वर्षा जल के संसाधनों का केवल 4 प्रतिशत हिस्सा है जिसे एक बड़ी बाधा के रूप में माना जा सकता है। हमारे देश में विश्व की 16 प्रतिशत मानव और मवेशी आबादी रहती है। दोनों को भोजन, पानी और जमीन की जरूरत होती है। अब भी भारत के पास विश्व की जैव विविधता का आठ प्रतिशत हिस्सा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत में प्रकृति को जीवन का अंग मानने और इसे मानव अस्तित्व से जोडऩे का लोकाचार प्रचलित है। 

हमारे देश में लोग पेड़ों और जानवरों की पूजा करते हैं और प्रकृति को ब्रह्मांड के एक हिस्से के रूप में देखते हैं। हमारे देश के लोग जानवरों और पक्षियों के खाने के लिए भोजन और पानी भी रखते हैं और इसे एक पवित्र कत्र्तव्य माना जाता है। इसलिए सभी बाधाओं के बावजूद दुनिया का यह सबसे बड़ा लोकतंत्र जैव विविधता के मामले में समृद्ध है। 

बाघों के प्राकृतिक आवास में 25,000 से अधिक कैमरों का जाल बिछाने और इनसे 35 मिलियन से अधिक ली गई तस्वीरों के लिए हाल ही में भारत के नवीनतम बाघ गणना को गिनीज बुक ऑफ रिकार्डस में शामिल किया गया है। सभी तस्वीरों को कृत्रिम बुद्धिमता (ए.आई.) की सहायता से स्कैन किया गया। यह दुनिया के किसी भी देश द्वारा कराया गया अब तक का सबसे बड़ा गणना कार्य था। भारत ने 2010 में सेंट पीट्र्सबर्ग घोषणापत्र बाघों की संख्या दोगुनी करने का संकल्प लिया था लेकिन उसने इस लक्ष्य को निर्धारित समय से चार साल पहले ही हासिल कर लिया। 

बाघ परियोजना की शुरूआत 1973 में सिर्फ नौ बाघ अभ्यारण्य के साथ की गई थी। आज भारत में 72,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्रों में फैले 50 बाघ अभ्यारण्य हैं। इन सभी बाघ अभ्यारण्यों का स्वतंत्र प्रबंधन कार्यसाधकता के लिए आकलन किया जाता है। नवीनतम आकलन से पता चला है कि 50 में से 21 बाघ अभ्यारण्य को बहुत अच्छा, 17 को अच्छा और 12 को संतोषजनक के रूप में आंका गया है। जबकि किसी को भी खराब का दर्जा नहीं दिया गया है। 

यह सफलता बाघ संरक्षण के व्यवस्थित और वैज्ञानिक तरीकों की वजह से मिली है। इसके दूसरे महत्वपूर्ण कारण के रूप में इस काम में बढ़ाई गई चौकसी को श्रेय दिया जा सकता है। शिकार के लगभग सभी अवैध धंधे को खत्म कर दिया गया है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण मध्य भारतीय क्षेत्र है जहां पारम्परिक गिरोह द्वारा किए जा रहे अवैध शिकार को पिछले छह साल के दौरान काफी हद तक कम कर दिया गया है। अगर परिस्थितियां अनुकूल हों तो बाघ तेजी से प्रजनन करते हैं। मजबूत संरक्षण ने बाघों को प्रजनन करने के लिए प्रोत्साहित किया है। देश के कई हिस्सों में मुख्य क्षेत्रों के बाहर गांवों के स्वैच्छिक पुनर्वास से भी बाघों के लिए अधिक सुरक्षित जगह की उपलब्धता बढ़ी है। 

हमारे देश के जंगलों में पांच सौ से अधिक शेर, 3000 एकल सींग वाले गैंडे, 30,000 हाथी रहते हैं। हम वन्य जीवों को पालतू बनाने को बढ़ावा नहीं देते हैं। बाघों द्वारा मवेशियों के शिकार के संकट से निपटने के लिए एक एस.ओ.पी. जारी की गई है। हम नेतृत्व की स्थिति में होने की वजह से वैश्विक बाघ मंच के माध्यम से बाघ संरक्षण के सर्वोत्तम तरीके सांझा करते हैं। यहां यह ध्यान देेने की बात है कि भारत ने थाईलैंड, मलेशिया, बंगलादेश, भूटान और कंबोडिया के फील्ड अधिकारियों के लिए क्षमता निर्माण कार्यशालाएं भी आयोजित की हैं। बाघ संरक्षण के अनुभवों को कंबोडिया और रूस के साथ सांझा किया गया है। बाघ वाले बहुत देशों ने हमारे देश में विभिन्न बाघ अभ्यारण्यों का दौरा किया है। हमने बाघ वाले सभी 13 देशों के साथ कई एम.ओ.यू. और सहयोग समझौते किए हैं। सुंदरबन में बाघों की स्थिति के आकलन पर बंगलादेश और भारत की एक संयुक्त रिपोर्ट जारी की गई है। 

बाघों की एक बड़ी संख्या वास्तव में एक समृद्ध जैव विविधता और इसके वैज्ञानिक संरक्षण का प्रमाण है। जब हम जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों से निपट रहे हैं तब अपने कार्य करने के आधार स्वरूप हमारे पास ऐसी समृद्ध जैव विविधता होनी चाहिए। हम लोगों ने अगले दस साल में 2.5 बिलियन टन कार्बन सिंक बनाने का फैसला किया है। यह बहुत बड़ा लक्ष्य है और भारत कुछ ऐसे देशों में से एक है जहां जंगल में और जंगल के बाहर भी वृक्षों की संख्या तेजी से बढ़ी है।(लेखक केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन, सूचना एवं प्रसारण और भारी उद्योग एवं सार्वजनिक उद्यम मंत्री हैं)-प्रकाश जावड़ेकर (केन्द्रीय मंत्री)

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