...तब तक बापू को हमारी श्रद्धांजलि निरर्थक है

Edited By ,Updated: 04 Oct, 2019 01:05 AM

till then our tribute to bapu is meaningless

विगत 2 अक्तूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाई गई। इसी दिन से वर्तमान भारतीय नेतृत्व ने स्वच्छ भारत अभियान का विस्तार करते हुए पर्यावरण विरोधी एकल-उपयोगी प्लास्टिक के इस्तेमाल को देश से खत्म करने का आंदोलन और तेज कर दिया। इस बार...

विगत 2 अक्तूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाई गई। इसी दिन से वर्तमान भारतीय नेतृत्व ने स्वच्छ भारत अभियान का विस्तार करते हुए पर्यावरण विरोधी एकल-उपयोगी प्लास्टिक के इस्तेमाल को देश से खत्म करने का आंदोलन और तेज कर दिया। इस बार गांधी जयंती इसलिए भी महत्वपूर्ण रही क्योंकि सप्ताह भर पहले 23 सितम्बर को अमरीका में न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र में जलवायु परिवर्तन पर एक वैश्विक सम्मेलन भी हुआ था, जिसमें पर्यावरण को लेकर चिंता व्यक्त की गई थी। विश्वभर के देशों से आए प्रतिनिधियों का जलवायु परिवर्तन पर आत्मचिंतन करना और उसके प्रति लोगों/समाज का क्या कत्र्तव्य हो, इस पर विस्तार से मंथन करना महत्वपूर्ण है। 

यह निर्विवाद है कि आतंकवाद के बाद सम्पूर्ण विश्व को यदि किसी चीज से सर्वाधिक खतरा है  तो वह हमारी जलवायु में नकारात्मक परिवर्तन, दूषित वातावरण और प्रदूषण है। सच तो यह है कि जिस तीव्रता के साथ समाज विकास (कई मायनों में विनाश) की ओर अग्रसर है, उससे कहीं अधिक तेजी से प्रदूषण और उससे जनित समस्याएं बढ़ गई हैं। कई वैश्विक शोध इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि वर्तमान पर्यावरणीय संकट का मुख्य कारण 19वीं शताब्दी का औद्योगिकीकरण है, जो अब विकराल रूप ले चुका है। 

‘गांधी का चरखा’
इस पृष्ठभूमि में गांधीजी ने 20वीं शताब्दी में वैश्विक औपनिवेशिक शक्तियों के खिलाफ सदियों पुराना भारतीय आविष्कार चरखा सामने रखा था, तो वह न केवल उपहास के पात्र बने, अपितु इसे औद्योगिकीकरण के विरोध का प्रतीक भी माना गया। यह हास्यास्पद ही है कि आज वही समाज जलवायु परिवर्तन से ङ्क्षचतित होकर मनुष्य और जैव प्रणाली के बीच दीर्घजीविता हेतु सौहार्दात्मक संबंध होने की वकालत और औद्योगिकीकरण के कारण पर्यावरण को पहुंची अपूर्णीय क्षति का गंभीर संज्ञान ले रहा है, जिसकी कल्पना गांधीजी दशकों पहले कर चुके थे।

एक भविष्यवक्ता की भांति 20वीं सदी के प्रारम्भ में आने वाले पर्यावरण संबंधी संकट से गांधी जी का शेष विश्व को सचेत करना किसी चमत्कार से कम नहीं है। इसका कारण यह है कि उनका प्रेरणास्रोत वैदिक हिंदू दर्शन था, जो प्रकृति से मित्रवत व्यवहार, प्रेम और सभी जीवों को जीने का समान अधिकार देने का शाश्वत संदेश देता है। इसी से ही गांधीजी को अहिंसा की प्रेरणा मिली। 

गांधीजी की पंथनिरपेक्षता की जड़ें भी ‘‘एकं सद् विप्रा: बहुदा वदंति’’ अर्थात सत्य एक है, उसे पाने के रास्ते अलग हो सकते हैं, के बहुलतावादी हिंदू चिंतन से ही सिंचित हैं। उनका सत्याग्रह मुण्डक-उपनिषद के मंत्र- ‘‘सत्यमेव जयते नानृतम सत्येन पंथा विततो देवयान:। येनाक्रमत्यृषयो हयाप्तकामो यत्र तत् सत्यस्य परमम् निधानम्’’ अर्थात अंतत: सत्य की ही जय होती है न कि असत्य की। इसी मार्ग से मानव जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है, से ही अनुप्राणित है। उसी सत्य को उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम में देखा और उनके वनवास को धर्मपालन मानते हुए रामराज्य की परिकल्पना की। उसी अनाधिकालीन सनातन चिंतन के कारण गांधीजी ने अपने जीवनकाल में स्वच्छता को प्राथमिकता दी थी, जिसका अनुसरण वर्तमान मोदी सरकार गत 65 माह से कर रही है। नि:संदेह, राजग-2 सरकार द्वारा एकल उपयोग प्लास्टिक को खत्म करने का अभियान स्वागत योग्य है। किंतु क्या यह पर्याप्त होगा? 

प्लास्टिक का इस्तेमाल
औद्योगिकीकरण के गर्भ से जनित प्लास्टिक का भारत में 1960 के दशक में पदार्पण हुआ था। उस समय दुनिया में 50 लाख टन प्लास्टिक बनाया जाता था, जो आज 300 करोड़ टन को पार कर गया है। अर्थात आज विश्व के हर व्यक्ति के लिए लगभग आधा किलो प्लास्टिक प्रतिवर्ष बन रहा है। इसे लेकर दो स्वर सुने जाते हैं। पहला, प्लास्टिक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरनाक है, तो दूसरा, यह लकड़ी और कागज का उत्तम विकल्प है। सभी अवस्थाओं में उपयोग होने वाला प्लास्टिक, पैट्रोलियम से प्राप्त रसायनों और कार्बनिक पदार्थों जैसे सैल्युलोज, कोयला, प्राकृतिक गैस के मिश्रण से बनता है, जिसका जलवायु या पर्यावरण से सीधा सम्पर्क निर्वाद रूप से पारिस्थितिकी-तंत्र और उसमें सांस ले रहे सभी जीवों (मनुष्य सहित) के लिए हानिकारक है। 

क्या प्लास्टिक-विहीन समाज की कल्पना संभव है? आधुनिक युग में सबसे सस्ता, तुलनात्मक रूप से टिकाऊ और जलरोधक आदि होने के कारण प्लास्टिक का उपयोग दशकों से हर तरह के उत्पादों में किया जा रहा है। अंततोगत्वा, जब तक विभिन्न स्तरों पर प्लास्टिक के बेहतर, उपयोगी और भरोसेमंद विकल्प की खोज नहीं होती, तब तक दुनिया में प्लास्टिक-विहीन समाज की कल्पना निरर्थक है। 

मैं अमरीका सहित अधिकांश यूरोपीय देशों का भ्रमण कर चुका हूं। मैंने अनुभव किया है कि वहां भारत से कहीं अधिक प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है। मेरे इस दावे को औद्योगिक संस्था भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) के एक आंकड़े से भी बल मिलता है। उनके अनुसार, ‘‘अमरीका में हर व्यक्ति प्रतिवर्ष औसतन 109 किलोग्राम प्लास्टिक का उपयोग करता है। यूरोप में यह दर 65 किलोग्राम है, तो चीन 38 किलोग्राम के साथ तीसरे स्थान पर है। इस मामले में भारत का आंकड़ा केवल 11 किलोग्राम मात्र है।’’ 

क्या अमरीका, यूरोपीय देशों सहित अधिकतर पश्चिमी देशों में प्लास्टिक के कचरे सहित अन्य कूड़ा सड़कों, नालियों, नदियों में फैंकने की शिकायत सुनने को मिलती है? बिल्कुल नहीं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वहां के नागरिक स्वच्छता के प्रति न केवल पूर्णतया जागरूक हैं, साथ ही राष्ट्र के प्रति अपने कत्र्तव्य को भली-भांति समझते भी हैं। यही नहीं, इन देशों में वर्षों से सरकारी स्तर पर प्लास्टिक के कचरे को अलग से इकट्ठा करने, उसके पुनर्चक्रण और निस्तारण की ठोस व्यवस्था है, जिसमें स्थानीय लोगों का भी सहयोग मिलता है। 

भारत की स्थिति
इस पृष्ठभूमि में भारत की स्थिति क्या है? भले ही हमारा देश प्रतिव्यक्ति प्लास्टिक की औसतन खपत के मामले में अमरीका, ब्रिटेन आदि पश्चिमी देशों से पीछे हो, किंतु विश्व की दूसरी सर्वाधिक जनसंख्या, 133 करोड़ से अधिक लोगों के बसने से यहां की स्थिति विकराल है। एक आंकड़े के अनुसार, हमारा देश प्रतिवर्ष 94.6 लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा करता है, जिसमें 40 प्रतिशत कभी एकत्रित ही नहीं होता तो 43 प्रतिशत का उपयोग पैकेजिंग के लिए किया जाता हैै। इस स्थिति को स्थानीय नगर निगम में बैठे अधिकांश अधिकारी और कर्मचारी अपनी अकर्मण्यता व भ्रष्ट आचरण से त्रासदीपूर्ण बना देते हैं। 

क्या यह सत्य नहीं कि सभी प्रकार का कचरा (निचले स्तर की पॉलिथिन सहित) देश की सड़कों, नालियों, नदियों, सार्वजनिक उद्यानों और पर्यटक स्थलों पर खुला पड़ा रहता है, जिसके लिए हम लोग ही जिम्मेदार हैं। दुख इस बात का भी है कि भोजन की तलाश में आवारा पशुओं के साथ गाय भी सड़कों पर उसी कचरे का सेवन करती पाई जाती हैं, जिससे सड़क दुर्घटना का खतरा भी बना रहता है। गत वर्ष बिहार की राजधानी पटना में गाय के पेट से ऑप्रेशन के बाद 80 किलो पॉलिथीन निकाली गई थी। यह स्थिति तब है, जब देश के करोड़ों लोगों के लिए गाय आराध्य है, साथ ही स्वयं गांधीजी भी अपने जीवनकाल में गौरक्षा का आह्वान कर चुके थे। 

नि:संदेह, वर्तमान भारतीय नेतृत्व, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उनसे प्रेरित संगठन अपने व्यवहार में बापू के चिंतन से कहीं अधिक जुड़े नजर आते हैं। यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को स्वच्छता के संदर्भ में मिले ‘‘चैम्पियन्स आफ द अर्थ’’ और ‘‘ग्लोबल गोलकीपर’’ जैसे अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से प्रमाणित भी होता है। सच तो यह है कि जब तक हम स्वच्छता और पर्यावरण के प्रति सचेत नहीं होंगे, अपने व्यवहार में परिवर्तन नहीं लाएंगे और जनता के प्रति स्थानीय प्रशासन अपनी जवाबदेही व राष्ट्र के प्रति नागरिक अपने कत्र्तव्य को नहीं समझेंगे, तब तक बापू को हमारी श्रद्धांजलि निरर्थक है।-बलबीर पुंज    

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!