Edited By ,Updated: 09 Feb, 2017 11:35 PM
आए दिन समाचार पत्रों के माध्यम से भुखमरी से मरने वाले लोगों के बारे में
आए दिन समाचार पत्रों के माध्यम से भुखमरी से मरने वाले लोगों के बारे में जानकर मन-मस्तिष्क को एक गहरा आघात लगता है। मानवतावादी भावनाओं के वशीभूत मन इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होता कि संसार के सभी देशों में होने वाला आॢथक और भौतिक विकास आखिर किस काम का है जो अपने कुछ ऐसे नागरिकों की रक्षा भी नहीं कर पाता जो गरीबी के ऐसे अंतिम स्तर पर पहुंच जाते हैं कि उनकी मृत्यु भुखमरी से हुई सिद्ध हो जाती है।
सारे संसार में यदि कोई एक भी व्यक्ति या परिवार भुखमरी का शिकार होता है तो इसका सीधा अर्थ यह समझ आता है कि उस व्यक्ति या परिवार के पड़ोसी कितने अमानवीय हैं जो अनेक परिवारों से थोड़ी-थोड़ी सहायता एकत्रित करके एक परिवार का पालन नहीं कर पाते। जिस देश में भुखमरी की घटनाएं सामने आती हैं, वह देश अपने शेष विकास का दावा करते हुए कितना आडम्बरवादी दिखाई देता है जो अरबों-खरबों रुपए का विकास कर सकता है परन्तु मानवता का दायित्व निभाते हुए अपने एक नागरिक या उसके परिवार को जीने के योग्य न्यूनतम पौष्टिक भोजन नहीं उपलब्ध करवा पाता।
संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2030 को शून्य भुखमरी कालक्ष्य निर्धारित किया है। भुखमरी की समस्या वास्तव में गरीबी की समस्या का अंतिम परिणाम है। संयुक्त राष्ट्र विश्व की सभी सरकारों, अपने अलग-अलग विभागोंतथा गैर-सरकारी संस्थाओं और व्यापारिक कम्पनियों के साथ-साथ अनेक सामाजिक नेताओं को सम्मिलितकरके भोजन की सुरक्षा सुनिश्चित कराने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र के इस विभाग ने लगभग 1000 से अधिक गैर-सरकारी संगठनों को इस अभियान में जोड़ रखा है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के भोजन कार्यक्रम नामक इस अंग ने एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में कई गम्भीर प्रस्ताव पारित किए और अनेकों घोषणाएं की गर्ईं।
संयुक्त राष्ट्र का यह विभाग लगातार भुखमरी को समाप्त करने की दिशा में अग्रसर है। वर्ष 2015 में इस विभाग ने 81 देशों के लगभग 7 करोड़ से अधिक लोगों को भोजन सहायता उपलब्ध कराने का महान कार्य किया है। इसमें स्कूली बच्चों को नियमित रूप से उपलब्ध कराए जाने वाले भोजन का कार्यक्रम भी शामिल है।
यह विभाग सारे संसार के देशों में उन क्षेत्रों को अपने अभियान में शामिल करने के लिए रेखांकित करता है जहां बच्चों को पूर्ण पौष्टिकता के स्तर का भोजन नहीं मिल पाता। यह संगठन मुख्यत: सारे संसार से प्राप्त दान राशियों के आधार पर चलता है। इस संगठन में लगभग 14,000 से अधिक कार्यकत्र्ता जोड़े गए हैं। संयुक्त राष्ट्र के इस विभाग के पास 20 पानी के जहाज, 70 हवाई जहाज तथा 5 हजार ट्रक हैं।
इस विभाग का आकलन है कि भुखमरी की समस्या मुख्य रूप से विकासशील देशों में अधिक पाई जाती है, जहां लगभग 12 से 13 प्रतिशत जनता निर्धारित पौष्टिक स्तर से कम भोजन प्राप्त करती है। इसके अतिरिक्त यह समस्या उन क्षेत्रों में अधिक है जहां प्राकृतिक आपदाएं अधिक उत्पन्न होती हैं। एशिया के देशों में लगभग दो-तिहाई भुखमरी पाई जाती है। भुखमरी का शिकार होने वालों में बच्चों की संख्या सबसे अधिक होती है क्योंकि बच्चे भूख को या पौष्टिक भोजन की कमी को अधिक समय तक बर्दाश्त नहीं कर पाते। ऐसे बच्चे शीघ्र ही रोगों का शिकार होकर मृत्यु के मुख में प्रवेश करजाते हैं। संयुक्त राष्ट्र का आकलन है कि सारे संसार में प्रत्येक 9 में से एक व्यक्ति भुखमरी की तरफ अग्रसर है।
नि:संदेह संयुक्त राष्ट्र का यह एक महान मानवतावादी कार्य है परन्तु यदि इस लक्ष्य को मानवतावादी मनोविज्ञान के साथ जोड़कर यथाशीघ्र हासिल करने के लिए प्रयास किया जाए तो इस लक्ष्य के लिए वर्ष 2030 के निर्धारण की कोई आवश्यकता नहीं थी। यदि संयुक्त राष्ट्र के स्तर पर सभी देशों को एक मानवतावादी अभियान के साथ जोड़ दिया जाए तो भुखमरी की समस्या इस अभियान को लागू करने के तुरन्त बाद समाप्त की जा सकती है।
भारत में परोपकार, समाजसेवा, परकल्याण और यहां तक कि दूसरों के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले लोगों और भावनाओं की कमी नहीं है। हमारे देश में अनेक ऐसे महान व्यक्ति और संगठन हैं जो गरीबों और दुखियों को लगातार भोजन उपलब्ध कराने का कार्य कर रहे हैं। हमारे देश में मंदिरों और गुरुद्वारों में लंगरों और भंडारों की प्रथा भी इस बात का संकेत देती है कि हमें दूसरों को भोजन कराने में कितना आनन्द प्राप्त होता है।
घर आए अतिथि को तो हम ‘अतिथि देवो भव’ कहकर भगवान के समान दर्जा देते हैं और इस भावना के साथ ही हमारे मन में तत्काल यह विचार पैदा हो जाता है कि हमारा आतिथि हमारे घर से कुछ न कुछ मुंह जूठा करके अवश्य जाए। पंजाब के साथ-साथ मैं अनेक प्रांतों के ऐसे व्यक्तियों और संगठनों से परिचित हूं जो अस्पतालों में लगातार भोजन और दवाइयां नि:शुल्क उपलब्ध करवाते हैं।
हमारे देश के किसी भी कोने में बेशक छोटी-सी ही प्राकृतिक आपदा क्यों न दस्तक दे, देश के सुदूर प्रांतों से भी खाद्य सामग्री पहुंचनी प्रारम्भ हो जाती है। कई बार तो खाद्य सामग्री इतनी अधिक मात्रा में पहुंच जाती है कि वहां पड़ी-पड़ी सडऩे लगती है। ऐसी महान भावनाओं वाले देश का गहरा मनोविज्ञान है - परोपकार और किसी को भूखा न रहने देना।
इस मनोविज्ञान के सहारे यदि संयुक्त राष्ट्र सारे संसार के लोगों से ऐसी भावनाओं को अपनाने का आह्वान करे, सभी संसारवासियों को प्रतिदिन एक समय या सप्ताह में एक दिन के भोजन का त्याग करके उसके बराबर राशि को एक निर्धारित कोष में जमा करने का आह्वान करे तो मुझे पूरा विश्वास है कि सारा संसार मिलकर एक ही झटके में इस भुखमरी की समस्या के नामोनिशान को इस धरती से ही खत्म कर देगा। संयुक्त राष्ट्र को वर्ष 2030 जैसे सुदूर लक्ष्य का निर्धारण नहीं करना पड़ेगा, अपितु संयुक्त राष्ट्र को एक मानवतावादी नारा बुलन्द करना होगा कि प्रत्येक व्यक्ति सप्ताह में एक बार किसी भूखे के लिए भोजन राशि दान करे।
वैसे भी हमारा देश मूलत: एक धार्मिक परम्पराओं वाला देश है, जहां कहीं गौग्रास के नाम पर तो कहीं अन्य पशु-पक्षियों के नाम पर भोजन दान देने की पुरानी परम्परा है। हमारे धर्म स्थलों में लंगर-प्रसाद आदि का भी एक पुराना रिवाज चलता आ रहा है। इन परिस्थितियों में यदि भारत सरकार सभी देशवासियों को भोजन दान के नाम पर प्रति व्यक्ति एक न्यूनतम राशि दान करने का आह्वान करे तो भोजन कोष (फूड बैंक) के नाम से एक बहुत बड़ा धनकोष हमारे देश में जोड़ा जा सकता है। हमारी इस परम्परा का अनुसरण करते हुए संयुक्त राष्ट्र के लिए सारे संसार में ऐसा प्रयास करना सरल हो पाएगा।