विकास दर बढ़ाने के लिए सरकार को कुम्भकर्णी नींद से जगाना जरूरी

Edited By ,Updated: 08 Nov, 2019 12:57 AM

to increase the growth rate the government needs to wake up from sleep

भारतीय निर्यात में 2013 से बहुत कम बढ़ौतरी हुई है। विश्व में किसी भी अर्थव्यवस्था की जी.डी.पी. ग्रोथ लम्बे समय तक 7 प्रतिशत की नहीं रही। कभी भी यह दोहरे अंकों की विकास दर नहीं पा सकी। अप्रैल-जून तिमाही में भारत की जी.डी.पी. विकास दर मात्र 5 प्रतिशत...

भारतीय निर्यात में 2013 से बहुत कम बढ़ौतरी हुई है। विश्व में किसी भी अर्थव्यवस्था की जी.डी.पी. ग्रोथ लम्बे समय तक 7 प्रतिशत की नहीं रही। कभी भी यह दोहरे अंकों की विकास दर नहीं पा सकी। अप्रैल-जून तिमाही में भारत की जी.डी.पी. विकास दर मात्र 5 प्रतिशत रही। यह साधारण रह सकती है जब तक कि नाटकीय ढंग से निर्यात में वृद्धि न हो।

वाणिज्य मंत्रालय ने निर्यात को गति प्रदान करने के लिए एक हाई लैवल एडवाइजरी ग्रुप (एच.एल.ए.जी.) का गठन किया। इसकी हाल ही में जारी रिपोर्ट क्या कार्य कर पाएगी। शायद नहीं। इसके चलते ही रिजनल कम्प्रीहैंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आर.सी.ई.पी.) से भारत ने अपने आपको अलग रखा। अर्थशास्त्री अजीत रानाडे के शब्दों में यह समझें कि भारत पूर्व की ओर देखता है, पूर्व की तरह कार्य करता है मगर पूर्व को आलिंगन नहीं करता।

भारत का निर्यात मंत्रालय के बिना है
सच्चाई यह है कि भारत का निर्यात कमेटी तथा मंत्रालय के बिना है। पूर्व में निर्यात में नाटकीय ढंग से बढ़त बनाई जोकि मंत्रालय तथा कमेटियों द्वारा अप्रत्याशित थी। वित्त आयोग के चेयरमैन एन.के. सिंह ने तो एक बार यहां तक कह दिया कि भारत की साफ्टवेयर में सफलता इसलिए हुई क्योंकि इसका कोई मंत्रालय ही नहीं था। इसी तर्क को देखते हुए हमें वाणिज्य मंत्रालय को समाप्त कर देना चाहिए।

मंत्रालय का दर्जनों भर कारकों पर कोई नियंत्रण नहीं, जो निर्यात में प्रतिस्पर्धा बनाते हैं। भारत को मूलभूत ढांचों तथा प्रक्रियाओं जैसे शिक्षा, कौशल तथा खोज एवं विकास के लिए भूमि, श्रम, पूंजी, विद्युत, कर तथा भाड़ा दरों जैसी इनपुट लागतों में प्रतिस्पर्धा लानी चाहिए। ये मुद्दे वाणिज्य मंत्रालय के भुगतान के बाहर पड़े हुए हैं।

एच.एल.ए.जी. ने दर्शाया है कि भारत का निर्यात वैश्विक निर्यात से जुड़ा है। वर्ष 2003-11 में भारत का वस्तुओं का निर्यात 19.19 प्रतिशत तथा सर्विसिज का 21.8 प्रतिशत रहा। उसके बाद 2012-17 में वस्तुओं में निर्यात बढ़ौतरी घट कर -0.2 प्रतिशत रह गई तथा सॢवसिज 4.8 प्रतिशत एक साल में रही। विश्व व्यापार में 10.5 प्रतिशत का विस्तार हुआ और 2003-11 में इसमें उछाल आया।

एच.एल.ए.जी. का कहना है कि भारत की विनिमय दर मंदी तथा व्यापारिक बढ़ौतरी के दौरान यथास्थिति में रही। भारतीय कार्पोरेट टैक्स रेट भी काफी ऊंचा है और इस मुश्किल का हल हाल ही में कार्पोरेट टैक्स दरों में कमी लाकर निकाला गया है। भारत में श्रम कानून भी काफी जटिल हैं। हाल ही में आयात ड्यूटी में बढ़ौतरी  दुर्भाग्यपूर्ण रही और इसे वापस लेना होगा।

वर्ष 2000 में भारत ने तीन विश्व श्रेणी के निर्यातकों को बनाया जिनमें साफ्टवेयर, फार्मा तथा आटो शामिल है। 1990 के दशक में भारतीय आटो उद्योग पूर्णतया प्रतिस्पर्धा के बिना था। विदेशी निवेशकों ने आटो कलपुर्जा उद्योग के साथ मेल-मिलाप कर छोटी कारों तथा दोपहिया वाहनों को विश्व श्रेणी का बना डाला। यह सब 2000 में उदारीकरण के चलते सम्भव हो पाया। भारत का विश्व व्यापार का हिस्सा बहुत ही अदना-सा है। इसलिए इसे  वैश्विक बाजार में और भी सम्भव कर बढ़ाना चाहिए जैसा कि वियतनाम तथा बंगलादेश जैसे देश कर रहे हैं मगर भारत अभी पीछे है।

भारत के वैश्विक व्यापार का भविष्य बेरंग
भारत के वैश्विक व्यापार का भविष्य बेरंग दिखाई दे रहा है। अमरीकी-चीन व्यापार में झगड़ा व्याप्त है तथा ब्रैग्जिट ने विश्व व्यापार तथा जी.डी.पी. विकास दर को झकझोर कर रख दिया है। इसलिए भारत की जी.डी.पी. तथा निर्यात दर का भविष्य भी धूमिल है। 2002-11 में विश्व स्तर पर हुआ विकास 2012-17 में दिखाई नहीं दिया। कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत का रियल इफैक्टिव एक्सचेंज रेट (आर.ई.ई.आर.) बिना बदलाव के पूर्व में चलता रहा। मगर 2012-17 में इसकी सराहना हुई। वहीं एच.एल.ए.जी. ने बैंक ऑफ इंटरनैशनल सैटलमैंट्स द्वारा जुटाए गए आंकड़ों में यह पाया कि आर.ई.ई.आर. वास्तव में स्थिर रहा और इसकी सराहना नहीं हुई।

एच.एल.ए.जी. ने एक प्रमुख उपाय बताया है, वह यह कि विदेशी संसाधनों को आकर्षित करने के लिए एलिफैंट बांड्स की स्थापना की जाए। सशक्त बांड मार्कीट की कमी के चलते लम्बी अवधि के मूलभूत ढांचे की फंडिंग पर असर पड़ा है।
2010 में कोई एक भी नए चैम्पियन नहीं बन पाए। एच.एल.ए.जी. के पास कोई स्पष्टीकरण नहीं है। मेरा मानना है कि खराब शिक्षा प्रणाली मात्र छोटे विश्व श्रेणी के स्नातक ही पैदा कर सकती है।

मगर आज की मुश्किल परिस्थितियों में यह और चैम्पियन नहीं बना सकी। एच.एल.ए.जी. सहित कोई भी शिक्षा, कौशल, शोध एवं विकास का स्तर उठाने के लिए प्रयासरत नहीं है। यह सब राजनीतिक उदासीनता के कारण है। हमें निर्यात पर मंडरा रहे बादलों को हटाना है और कुम्भकर्णी निद्रा में सो रही सरकार को जगाना है। - स्वामीनाथन एस. अय्यर    (ईटी)

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