Edited By ,Updated: 27 Feb, 2020 03:31 AM
अहमदाबाद में अपने आगमन के बाद अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का भारत में अभूतपूर्व स्वागत हुआ। उन्होंने मोदी की तारीफ के पुल बांधे और उन्हें भारत का ग्रेट चैम्पियन कहा। उन्होंने यह भी कहा कि यह व्यक्ति भारत के लिए दिन-रात काम करता है। मुझे यह कहते...
अहमदाबाद में अपने आगमन के बाद अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का भारत में अभूतपूर्व स्वागत हुआ। उन्होंने मोदी की तारीफ के पुल बांधे और उन्हें भारत का ग्रेट चैम्पियन कहा। उन्होंने यह भी कहा कि यह व्यक्ति भारत के लिए दिन-रात काम करता है। मुझे यह कहते गर्व महसूस होता है कि वह मेरा सच्चा दोस्त है। ट्रम्प ने कहा मोदी चाय वाला से प्रधानमंत्री बने हैं और मोदी के जीवन ने इस महान राष्ट्र के असीम वायदों को बल दिया है।
उन्होंने आगे कहा कि प्रत्येक आदमी मोदी से प्यार करता है मगर मैं बताना चाहूंगा कि वह बहुत दृढ़ हैं। इस दौरान लोगों ने मोदी-मोदी के नारे लगाए। ह्यूस्टन में हाऊडी मोदी के दौरान संयुक्त रैली के 6 माह बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी सरकारों की उपलब्धियों पर विस्तृत बयान दिए। उन्होंने एक-दूसरे की पीठ भी ठोंकी जब उन्होंने भारत के सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम में दर्शकों को सम्बोधित किया।
भारतीय जो चाहते हैं, करके दिखाते हैं
मोदी ने कहा कि यहां पर हमारे द्वारा बांटे गए विचारों से ज्यादा भी कुछ दिखाई देता है। हमने मूल्य तथा विचारों को बांटा, नयापन तथा उद्यम की आत्मा को बांटा, मौकों तथा चुनौतियों को बांटा, उम्मीदों तथा इच्छाओं को बांटा। मोदी ने आगे कहा कि मैं बेहद प्रसन्न हूं कि राष्ट्रपति ट्रम्प के नेतृत्व में भारत तथा अमरीका की दोस्ती और गहरी हुई है। यही कारण है कि यह यात्रा एक नया अध्याय और नई कहानी लिखेगी। भारत तथा अमरीका की खुशहाली तथा तरक्की का एक नया युग शुरू होगा। वहीं मोदी की प्रशंसा में राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा कि मुझे गर्व है कि मैं मोदी को अपना सच्चा दोस्त कह कर बुलाता हूं क्योंकि मोदी न केवल गुजरात का गौरव हैं बल्कि आप कठिन कार्य तथा निष्ठा की एक जीती-जागती मिसाल हो। भारतीय जो चाहते हैं वह करके दिखाते हैं। अमरीकी राष्ट्रपति के ऐसे शब्द कितने प्रतिष्ठित हैं, जिनके देश ने 2005 में धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे पर मोदी के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था। उस समय मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। उन पर यह आरोप लगाया था कि उन्होंने (मोदी) चतुराई से अपने गृह राज्य में 2002 के दौरान हिन्दू-मुस्लिम दंगों में हिन्दू आतंक को बढ़ावा दिया था।
मोदी का डिप्लोमैटिक वीजा नकार दिया गया था। वह 2005 में अमरीका में एक होटल मालिकों के संग तथा बिजनैस नेताओं को सम्बोधित करने के लिए यात्रा करने वाले थे। अमरीकी अधिकारियों ने यह तर्क दिया था कि मोदी को आप्रवास तथा राष्ट्रीयता एक्ट के एक प्रावधान के तहत बाहर रखा गया है। इस एक्ट के तहत धार्मिक स्वतंत्रता की अवहेलना करने वाले व्यक्ति को वीजा के लिए अयोग्य ठहराया जाता है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने अंत में यह व्यवस्था दी कि मोदी पर आरोप लगाने का कोई साक्ष्य नहीं मगर अमरीका ने अपनी इस कार्रवाई को लेकर कोई खेद प्रकट नहीं किया। वीजा नकारे जाने को लेकर मोदी ने गांधीनगर में एक प्रैस वार्ता में गुस्से वाली प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि अमरीका का यह निर्णय भारतीय संविधान का अपमान है तथा यह भारतीय स्वायत्तता पर एक चोट है। उन्होंने तत्कालीन केन्द्र सरकार से यह सवाल किया कि क्या वह इस पर भी गौर करेगी कि अमरीकियों ने ईराक में क्या किया? जब भारत आने वाले अमरीकियों के वीजा आवेदन की प्रक्रिया होगी तब सरकार क्या करेगी?
2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने तब उनको अमरीका में औपचारिक निमंत्रण दिया गया तथा तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। तब से लेकर मोदी ने 5 बार अमरीका की यात्रा की और दोनों देशों के बीच रिश्ते और मजबूत हुए। ट्रम्प जिनका ध्यान अपने दूसरे कार्यकाल के लिए आने वाले अमरीकी राष्ट्रपति चुनावों पर हैं, चाहते हैं कि अमरीकी भारतीय वोटर उनके हक में मतदान करें। अमरीका में करीब 40 प्रतिशत भारतीय गुजराती मूल के लोग हैं और सभी के सभी मोदी भक्त हैं। शायद ऐसी बातों ने ही ट्रम्प को मोदी को ‘फादर ऑफ द नेशन’ वर्णन करने के लिए प्रोत्साहित किया हो। मोदी के ऐसे वर्णन से उनको ट्रम्प ने ऊंचा उठा दिया जबकि भारत की ज्यादातर आबादी उनको महात्मा गांधी के कहीं भी निकट नहीं समझती।
अमरीका के लिए यह तिरस्कार वाली बात थी कि मोदी पर लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए वह बाध्य हुए तथा उनके लिए रैड कार्पेट बिछाया। अब अमरीकी राष्ट्रपति मोदी के लिए वहीं प्रशंसा के अम्बार लगा रहे हैं, जहां पर मोदी किसी समय मुख्यमंत्री थे। इस घटनाक्रम से अमरीका को एक सबक लेना होगा, वह यह कि उसे अपने आपको विश्व का पुलिसमैन बनने तथा आचार नीति के संरक्षक के तौर पर अपनी कार्रवाई बंद करनी होगी। इसने वियतनाम तथा ईराक में अपने सैनिकों की लागत पर दूसरों के मामले में दखलंदाजी की। अफगानिस्तान में अभी भी यह सक्रिय है तथा ईरान को भी यह धमका रहा है। वास्तव में इसे अपने ही मानवीय अधिकारों के रिकार्ड को फिर से देखना चाहिए।-विपिन पब्बी