ट्रम्प की भारत यात्रा : भारत शक्ति की ‘नई ऊर्जा’

Edited By ,Updated: 25 Feb, 2020 03:59 AM

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जहां तक स्मृति पीछे जाती है किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष ने अपनी भारत यात्रा के समय भारत और मेजबान प्रधानमंत्री की प्रशंसा में इस सीमा तक भाव भरे और प्रशंसा की सीमा पार करते हुए शब्दों का सेहरा नहीं बांधा था, जैसा राष्ट्रपति ट्रम्प ने अहमदाबाद में...

जहां तक स्मृति पीछे जाती है किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष ने अपनी भारत यात्रा के समय भारत और मेजबान प्रधानमंत्री की प्रशंसा में इस सीमा तक भाव भरे और प्रशंसा की सीमा पार करते हुए शब्दों का सेहरा नहीं बांधा था, जैसा राष्ट्रपति ट्रम्प ने अहमदाबाद में अपने लम्बे भाषण में किया। किसी भी पैमाने और दृष्टि से यह एक असाधारण और अभूतपूर्व भाषण था जिसके कारण ट्रम्प की यह यात्रा हमेशा अविस्मरणीय रहेगी। 

लेन-देन और क्या मिला क्या नहीं मिला, कितना व्यापार तथा सैन्य क्षेत्र में विनिमय हुआ, इसका खाता-बही जिन पंडितों को संभालना है वे संभालते रहें और जिन मरघट के मरसिया गायकों को इस यात्रा में भी न्यूनताएं और पाकिस्तानी कोण देखना है वे अपने मरसिए के चौबारे पर जी भर रुदन करते रहें। अगले दो दिनों में ट्रम्प क्या कहेंगे और लिखेंगे, वह सब आज अहमदाबाद में तय हो गया और इसके साथ ही भारत-अमरीकी संबंधों का अगला उछाल भी पता चल गया। यह यात्रा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बढ़ती वैश्विक शक्ति, धाक और भारत की एक बड़ी ताकत के रूप में स्वीकार्यता के रूप में बहुत बड़ा ध्वज चिन्ह मानी जाएगी। 

खैरात मांगने वाले देश सुरक्षा के लिए भी खैरात मांगते रह जाते हैं
कूटनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंध खाते-बही से बढ़कर आपसी विश्वास और मित्रता के रसायन शास्त्र पर निभते हैं। चीन और जापान में वह रासायनिक समीकरण नहीं है लेकिन व्यापार ज्यादा है, अमरीका और चीन के बीच भी ऐसा ही है संबंध ठीक नहीं हैं लेकिन व्यापार है। लेकिन अमरीका और भारत के बीच व्यापार और मित्रता का रासायनिक समीकरण दोनों हैं। इसका लाभ खाते-बही से बढ़कर भारत को अपनी ताकत और ऊर्जा के बल पर विश्व में अपनी धाक और प्रभविष्णुता स्थापित करने में मिलेगा। यह ध्यान रखना चाहिए कि कोई भी दूसरा देश किसी अन्य देश को अपने से आग बढऩे में कभी मदद नहीं कर सकता, न ही करना चाहेगा। अगर कोई देश आगे बढ़ता है तो अपनी भुजाओं, अपने कंधों और अपनी इच्छाशक्ति के बल पर। खैरात मांगने वाले देश सुरक्षा के लिए भी खैरात मांगते रह जाते हैं लेकिन न अपनी प्रतिष्ठा बचा पाते हैं और न अपनी सीमा। 

राष्ट्रपति ट्रम्प का भारत आना और इस्लामी आतंकवाद पर चोट से लेकर स्वामी विवेकानंद और भारतीय स्वाभिमान तथा विजयशाली खेल परम्परा के प्रतीकों सचिन तेंदुलकर और विराट कोहली का जिक्र करना भारत का मनोबल विश्वव्यापी स्तर पर बढ़ाने वाला ही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जिन शब्दों में राष्ट्रपति ट्रम्प ने प्रशंसा की है और जिस व्यक्तिगत स्तर पर जाकर की है और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा ट्रम्प परिवार के सदस्यों के स्वागत में अतिशय विनम्र और गर्मजोशी भरे आत्मीय शब्द इस्तेमाल किए गए वे आज तक किसी भी विदेशी मेहमान ने न तो हमारे लिए प्रयोग किए थे और न हमारे नेता ने उस मेहमान के लिए। बात यहां तक सीमित नहीं है। 

भारत को आज सबसे ज्यादा चुनौती पाक और चीन से
विश्व का नक्शा उठाकर देख लीजिए। भारत को आज जिन दो देशों से सबसे ज्यादा चुनौती है वह पाकिस्तान और चीन हैं। भारत की प्रगति के लिए जिस सर्वाधिक प्रभावशाली लोकतांत्रिक सामरिक गठबंधन से अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कुछ सहायता मिल सकती है उसमें अमरीका की नेतृत्वशाली भूमिका है तथा अन्य देशों में जापान, आस्ट्रेलिया, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और इसराईल शामिल हैं। इन सब देशों के साथ भारत के सैन्य सामग्री, नागरिक आणविक सहायता, ढांचागत सुविधाओं तथा भारत में निर्मित सामग्री के बाजार हेतु गहरे संबंध हैं। इसके अलावा विज्ञान, टैक्नोलॉजी, साफ्टवेयर, आई.टी. के क्षेत्र में इन देशों के साथ भारत के गहरे तालमेल हैं और ये देश भारत का रेल, सड़क तथा ऊर्जा क्षेत्र का नक्शा क्रांतिकारी ढंग से बदलने हेतु अरबों डॉलर का निवेश कर रहे हैं। 

रेलगाडिय़ों, मोटर वाहनों, आणविक केन्द्र, ऊर्जा और तेल शोधन, विज्ञान तथा अन्य क्षेत्रीय उच्च शिक्षा में यही पांच देश भारत में सबसे ज्यादा निवेश कर रहे हैं। इन देशों के साथ भारत का सहयोगात्मक समीकरण हमारी संतुलित विदेश नीति का एक बहुत बड़ा विजय चिन्ह है क्योंकि जहां हम घोर ईरान विरोधी अमरीका और इसराईल से अपने सर्वश्रेष्ठ संबंध बनाए हुए हैं, वहीं ईरान से भी तेल खरीदने तथा अन्य व्यापारिक संबंध कायम रखने की हमने स्वदेशी, स्वाभिमानी, स्वतंत्र नीति अपनाने का साहस दिखाया है। चीन अवश्य इन सब देशों के साथ हमारी नजदीकियों को देखकर परेशान होता है लेकिन हमारे देश ने पहली बार ‘भारत प्रथम’ को दृढ़ता से अपनाकर चीन से अपने संबंधों को इन सब देशों के साथ अपने समीकरणों से पृथक स्वतंत्र ग्रह में स्थापित कर दिया है जहां चीन के संकट काल में हम उसकी सहायता भी करते हैं, उसके साथ व्यापार भी बढ़ाते हैं लेकिन अपनी सामरिक नीति को उस स्तर तक ले जाते हैं कि चीन और पाकिस्तान से होने वाले खतरों को हम अपनी ताकत की अभेद्य ढाल पर रोक सकें।

राष्ट्रपति ट्रम्प की यह यात्रा उस ढाल को मजबूती देती है और अंतर्राष्ट्रीय फलक पर भारत के समर्थक देशों की संख्या का एक अत्यंत प्रभावशाली परिदृश्य उपस्थित करती है जो हमारे कामकाज को, हमारी नीतियों को ताकत देने वाला है। यह समय आर्थिक और आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से चुनौतीपूर्ण है। इसमें कोई शक नहीं कि यह समय आर्थिक और आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से चुनौतीपूर्ण है।

जिस दिन ट्रम्प भारत आए उसी दिन दिल्ली में जिस प्रकार का हिंसक उपद्रव प्रारम्भ किया गया वह इस बात को बताता है कि पाकिस्तानी तत्व अमरीकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा को शाहीन बाग के उस आयाम के साथ टैग करके मीडिया में प्रस्तुत करना चाहते थे कि मोदी के भारत में सब कुछ ठीक नहीं है। यह घटना हमारे इंटैलीजैंस तथा सुरक्षा व्यवस्था के लिए भी एक धक्का और चुनौती बनकर आई है जिसमें स्पष्ट हुआ है कि भारत विद्रोही तत्व चाहते थे कि मीडिया में जिस दिन ट्रम्प की भारत यात्रा का पहला समाचार छपे उसी दिन भारत की राजधानी दिल्ली में हिंसक उपद्रवों, हैड कांस्टेबल की मौत, पैट्रोल पम्प में आग का भी समाचार छपे ताकि लगे भारत भीतर ही भीतर युद्धरत है। निश्चित रूप से मोदी और अमित शाह इसे हल्के ढंग से नहीं लेंगे।-तरुण विजय
 

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