ट्रम्प की जीत से बदलेगी पूर्वी एशिया की रणनीति

Edited By ,Updated: 10 Nov, 2016 01:51 AM

trump victory will change the strategy of the east asia

अमरीकी राष्ट्रपति पद पर डोनाल्ड ट्रम्प के जीतने से चीन और पूर्वी एशिया में रणनीतिक बदलाव आना तय है। चुनाव प्रचार के दौरान ही ट्रम्प ने कहीं...

(योगेन्द्र योगी): अमरीकी राष्ट्रपति पद पर डोनाल्ड ट्रम्प के जीतने से चीन और पूर्वी एशिया में रणनीतिक बदलाव आना तय है। चुनाव प्रचार के दौरान ही ट्रम्प ने कहीं खुलकर तो कहीं इशारों में इसके संकेत दे दिए थे। ट्रम्प का जीतना निश्चित तौर पर भारत के लिए अच्छी खबर साबित होगी, जबकि पड़ोसी देश पाकिस्तानऔर चीन के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी। इसकी वजह है विश्वमें फैला मुस्लिम आतंकवाद और चीन का अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं और बिरादरी का सम्मान नहीं करना। ट्रम्पने प्रचार के दौरान मुस्लिमों की तगड़ी खिलाफत कीथी।

दरअसल ट्रम्प और उनके चुनावी रणनीतिकारों को इस बात का एहसास था कि पूरी दुनिया मुस्लिम आतंकवाद से त्रस्त है। अमरीका को इनसे निपटने की भारी कीमत अदा करनी पड़ रही है। अमरीका में मुस्लिम मतदाताओं  की संख्या भी चुनाव पर असर डालने लायक नहीं है। मुस्लिमों की खिलाफत से भारतवंशी करीब 13 लाख से अधिक मतदाताओं के मत बटोरे जा सकते हैं। हालांकि शुरू में ट्रम्प भारत के विरोधी रहे। उन्होंने भारतीयों पर अमरीका में नौकरी हड़पने का आरोप लगाया।

आर्थिक और सामरिक महत्व के मद्देनजर पूर्वी एशिया के बाकी देशों के लिए भारत ‘बिग ब्रदर’ की भूमिका में रहा है। भारत उनके घरेलू मसलों में  हस्तक्षेप करने के खिलाफ रहा है। इसके विपरीत बंगलादेश और श्रीलंका जैसे देश पाकिस्तान को नापसंद करते रहे हैं। दरअसल ये देश भी किसी न किसी रूप में आतंकवाद से त्रस्त रहे हैं। ‘सार्क’  समिट में भारत के बहिष्कार का समर्थन करना इसी नापसंदगी को जाहिर करता है। भारत से अमरीका के अब तक रहे दोस्ताना रिश्ते और भारतीय मतदाताओं की ताकतवर मौजूदगी से ट्रम्प खेमे ने चुनावी रणनीति में बदलाव कर लिया। इस बदलाव का परिणाम यह रहा कि उन्होंने दोबारा भारत विरोधी बयान नहीं दिया, जबकि मुस्लिमों और आतंकवाद के मामले में कोई नरमी नहीं दिखाई। 

भारत के प्रति बदली सोच तो सदाशयता तक जा पहुंची।  ट्रम्प के परिवार ने मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना तक की, जबकि मुस्लिमों से दूरियां बनाए रखीं। ट्रम्प की जीत से चीन और पाकिस्तान में निश्चित तौर पर घबराहट फैलेगी। इन दोनों देशों में बुनियादी अंतर होने के बावजूद दोस्ती की वजह भारत और अमरीका विरोध रहा है। 

चीन को कभी यह पसंद नहीं आया कि अमरीका अकेला ही पाकिस्तान को अपने चंगुल में फंसाए रखे। चीन ने सैन्य और गैर-सैन्य सहयोग करके पाकिस्तान में अपनी तगड़ी उपस्थिति दर्ज करा रखी है। पाकिस्तान के लिए यह इसलिए मुफीद है कि चीन के सहयोग का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकी कार्रवाई में किया जा सके। इसके विपरीत अमरीका की पाकिस्तान को सहयोग करने के पीछे मंशा अफगानिस्तान के आतंकियों से लडऩा रही है। अमरीका ने यदि पाकिस्तान की मदद भी की है तो यही सोच कर कि उसका इस्तेमाल किया है तो बदले में कुछ न कुछ तो देना ही पड़ेगा। ट्रम्प पाकिस्तान की इस तरह की मदद करने के खिलाफ भी बयान दे चुके हैं। 

मुस्लिमों के प्रति सख्त नजरिए से अब पाकिस्तान के लिए भारत के खिलाफ आतंकवादी संगठनों को पालना-पोसना आसान नहीं रह जाएगा। आतंकवादियों को जड़-मूल से उखाडऩे के ट्रम्प के नजरिए से अब पाकिस्तान को अमरीका से मिलने वाली आर्थिक और सैन्य मदद मिलना आसान नहीं होगा। यह सर्वविदित है कि पाकिस्तान का अर्थतंत्र अमरीका और चीन की बैसाखियों पर टिका हुआ है। एक काभी पाया खिसकते ही इसका लडखड़़ाना तय है। पाकिस्तान को अपने बलबूते खड़ा होने में सदियों लगेंगी। 

अमरीका का नया प्रशासन आतंकवादियों को किसी भी तरह की मदद के खिलाफ होगा। किसी भी देश के मुस्लिमों का अब अमरीका में प्रवेश भी आसान नहीं रह जाएगा।  ऐसे में पाकिस्तान जैसे बदनाम देश के लोगों की दुश्वारियां तो और ज्यादा बढ़ेंगी। पाकिस्तान से सांझेदारी भले ही रणनीतिक महत्व का हिस्सा रही हो पर अमरीका के चीन से ताल्लुकात खटास भरे रहे हैं। दक्षिण चीन सागर विवाद में अंतर्राष्ट्रीय पंचाट के फैसले को नहीं मानने से यह खटास और बढ़ गई। इसके अलावा भी तिब्बत की स्वायत्तता और दूसरे मसलों पर अमरीका की चीन से दूरियां बनी हुई हैं। ट्रम्प का रूस की तरफ झुकाव भी चीन की परेशानियों में बढ़ौतरी करेगा। ट्रम्प ने खुलकर रूस से सहयोग की वकालत की है। अंतर्राष्ट्रीय इतिहास में अब अमरीका और रूस का नया अध्याय लिखा जाएगा। इससे भी चीन की परेशानी बढ़ेगी।

ओबामा  प्रशासन के दौरान सीमा संबंधी और दूसरे विवादों के बावजूद रूस ने चीन की तरफ दोस्ताना पहल की है। अब इसके सिमटने का वक्त आ गया है। अमरीका यह कभी नहीं चाहेगा कि रूस के रिश्ते भी चीन से मजबूत रहें। इससे भी पाकिस्तान को नुक्सान उठाना पड़ेगा। भारत की अमरीका से बढ़ती नजदीकियों को लेकर रूस खुश नहीं था। यही वजह रही कि उड़ी सैक्टर में हमले के बावजूद रूस ने पाकिस्तान के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास तक को नहीं टाला। अब अंतर्राष्ट्रीय समीकरणों में आए बदलाव से पाकिस्तान को रूस से मिलने वाले सहयोग की उम्मीदें भी हवाई साबित होंगी। चूंकि रूस और अमरीका के नजदीक आने की पूरी संभावना है, इसलिए भारत को अब रूस से होने वाली मुश्किलों से निजात मिलेगी।         

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