किम को शांति के मार्ग पर लाना ट्रम्प की जीत

Edited By Pardeep,Updated: 02 May, 2018 02:37 AM

trump wins kim on the path of peace

शांति सिर्फ अहिंसा से ही नहीं आती है, शांति हिंसा से भी आती है। हिंसक विचार प्रतिहिंसा से भी जमींदोज होते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के हिंसक और प्रतिहिंसक विचार हैं। ट्रम्प ने उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग को...

शांति सिर्फ अहिंसा से ही नहीं आती है, शांति हिंसा से भी आती है। हिंसक विचार प्रतिहिंसा से भी जमींदोज होते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के हिंसक और प्रतिहिंसक विचार हैं। 

ट्रम्प ने उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग को उसकी भाषा में ही जवाब दिया था और कहा था कि उसका हाल भी ईराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन जैसा होगा। किम जोंग के परमाणु कार्यक्रम को नियंत्रित करने और उसे दुनिया की शांति की कसौटी पर कसने के लिए कई हथकंडे अपनाए गए। उत्तर कोरिया के आसमान पर अपने लड़ाकू विमान उड़वाए, समुद्र में अपने जंगी जहाज उतारेे, दक्षिण कोरियामें अपने सैनिक बेस पर लड़ाकू विमानों का जमावड़ा कर दिया था। युद्ध के लिए दक्षिण कोरिया और जापान को भी सक्रिय कर दिया था। 

डोनाल्ड ट्रम्प ने जब यह देखा कि इतनी तैयारियों के बाद भी किम जोंग की आंखें नहीं खुलीं तब उन्होंने प्रतिबंध का वार किया, जो बहुत ही मारक था। ट्रम्प ने चीन को भी धमकाया, चीन की उन कम्पनियों और बैंकों पर भी प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर डाली, जो उत्तर कोरिया से व्यापार करते थे। चीन को भी एहसास हो गया था कि प्रतिबंध से उसका भी सर्वनाश होगा। लाचार-हताश चीन ने उत्तर कोरिया के कान ऐंठे। इसके उपरांत उत्तर कोरिया के तानाशाह ने शांति का मार्ग अपना लिया। 

उत्तर कोरिया पर युद्ध का कोई खतरा नहीं था, उसके पड़ोसी दक्षिण कोरिया और जापान उसके लिए खतरा नहीं थे, उसकी संप्रभुता सुरक्षित थी। फिर भी किम जोंग अशांति के मार्ग पर चल निकला था, उसने कई परमाणु विस्फोट किए। उसके परमाणु परीक्षणों से दक्षिण कोरिया और जापान डरे हुए थे। उनकी संप्रभुता खतरे में पड़ गई थी। जापान ने दूसरे विश्वयुद्ध में पराजय के बाद परमाणु कार्यक्रम ही नहीं बल्कि घातक हथियारों के निर्माण के साथ ही साथ युद्ध से मुंह मोड़ लिया था। उसका सारा ध्यान आॢथक विकास पर केन्द्रित था। इसका लाभ भी जापान को मिला। जापान आज दुनिया का सबसे मजबूत आर्थिक तंत्र वाला देश है लेकिन जैसे ही उत्तर कोरिया ने हिंसक हथियारों के उन्नयन शुरू किए, परमाणु परीक्षणों की बाढ़ लगाई, वैसे ही जापान भयभीत हो गया। 

अमरीका ने जापान की दूसरे विश्व युद्ध में पराजय के बाद उसके सेना नहीं रखने के बदले उसकी सुरक्षा की गारंटी अपने ऊपर ली थी। अमरीका अपने दोस्त दक्षिण कोरिया और जापान की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार बैठा था। उत्तर कोरिया के तानाशाह ने अपने मिसाइल और परमाणु बम भी दक्षिण कोरिया और जापान की ओर मुंह कर तैनात कर दिए थे। किम जोंग अमरीका को जमींदोज करने की धमकी देता था। वह कहता था कि अगर अमरीका ने उसके ऊपर प्रतिबंध लगाए तो फिर वह उसे तबाह कर देगा। उसकी मिसाइलें अमरीका तक मार कर सकती हैं। हालांकि यह तय नहीं था कि उत्तर कोरिया के पास जो मिसाइलें हैं वे किस रेंज की हैं। बड़े रक्षा विशेषज्ञ यह जरूर कहते थे कि उत्तर कोरिया के परमाणु हथियार और मिसाइलें मध्यम दर्जे की हैं, इसलिए उसके परमाणु कार्यक्रम और मिसाइलों की तैनाती से अमरीका, यूरोप, दक्षिण कोरिया, जापान को डरने की आवश्यकता नहीं है। 

किम जोंग के सामने शांति के मार्ग पर चलने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। अतंर्राष्ट्रीय बिरादरी से वह पहले से ही अलग-थलग था। उत्तर कोरिया पर सिर्फ चीन का ही वरदहस्त था। रूस उत्तर कोरिया के प्रति सहानुभूति तो दिखाता था और उसके परमाणु कार्यक्रमों का समर्थन जरूर करता था, पर वह अमरीकी प्रतिबंधों से निजात नहीं दिला सकता था। चीन खुद डर गया था, उसकी अर्थव्यवस्था खुद संकट में खड़ी होने की स्थिति में आ गई थी। चीन ने अपने स्वार्थ में उत्तर कोरिया को चेताया। शांति पर चलने की घोषणा से पूर्व किम जोंग ने चीन जाकर चीनी नेताओं से मुलाकात की थी। चीन अगर उत्तर कोरिया के आयातक होने से बाहर हो जाता तो फिर उत्तर कोरिया का कितना बड़ा नुक्सान होता, यह भी जगजाहिर है। इसके अलावा उत्तर कोरिया के पास इतने संसाधन नहीं हैं कि वह अमरीका और यूरोप के सामने युद्ध की स्थिति को झेल सके। उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था खुद फटेहाल है, वहां भयानक गरीबी पसरी हुई है। 

सुखद परिणाम यह निकला कि उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया 65 वर्ष की अदावत और युद्ध जैसी विभीषिका को छोड़कर गले मिल गए। आज से 65 वर्ष पूर्व कोरिया का विभाजन हुआ था। उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच 3 वर्ष तक भयानक युद्ध चले थे। युद्ध में दोनों तरफ काफी नुक्सान हुआ था, लाखों लोग मारे गए थे। 3 वर्ष का युद्ध समाप्त तो हुआ, पर उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच तनातनी कभी समाप्त नहीं हुई, दोनों देशों के बीच अविश्वास और हथियारों की होड़ हमेशा बनी रही। कभी जर्मनी की दीवार ढह गई थी, पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी एक हो गए थे। इसी प्रकार दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया का एक होना तो निश्चित नहीं है, पर दोनों देश हिंसा और युद्ध की मानसिकता जरूर समाप्त कर सकते हैं जिसकी शुरूआत हो चुकी है। 

किम जोंग और डोनाल्ड ट्रम्प के बीच शिखर वार्ता अभी शेष है। दोनों नेताओं के बीच शिखर वार्ता का दुनिया बड़ी आशा के साथ इंतजार कर रही है। यह निश्चित तौर पर डोनाल्ड ट्रम्प की जीत है कि एक ऐसे खूंखार और रक्तपिपासु तानाशाह को वार्ता की मेज तक ला बैठाया और शांति के लिए बाध्य किया जो अपने विरोधियों को ही नहीं बल्कि अपने संगे-संबंधियों की भी खूंखार कुत्तों से हत्या करवा देता है, सरेआम गोलियों से उड़ा देता है। इस प्रसंग में डोनाल्ड ट्रम्प की जीवंतता और कूटनीतिक शक्ति विश्व-शांति के परिपे्रक्ष्य में महत्वपूर्ण साबित हुई है। अब डोनाल्ड ट्रम्प की पहचान एक सफल राजनेता के तौर पर बनी है। शांति का रास्ता उत्तर कोरिया के लिए लाभकारी है। दुनिया के साथ सहचर होकर उत्तर कोरिया अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकता है, अपने लोगों की गरीबी दूर कर सकता है।-विष्णु गुप्त

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