टी.वी. पर बहस कानून को ‘भ्रम तथा उलझन’ में डालती है

Edited By ,Updated: 24 Jan, 2020 03:06 AM

tv but the debate confuses the law with confusion and confusion

हाल ही के वर्षों में मैंने यह ध्यान दिया है कि ज्यादातर लोग टैलीविजन नहीं देखते और न ही समाचार पत्र पढ़ते हैं। यह एक नई बात दिखाई पड़ती है। कुछ का मानना है कि सभी खबरें नकारात्मक होती हैं, कुछ कहते हैं कि सभी समाचारपत्र सरकार के दिशा-निर्देशों पर...

हाल ही के वर्षों में मैंने यह ध्यान दिया है कि ज्यादातर लोग टैलीविजन नहीं देखते और न ही समाचार पत्र पढ़ते हैं। यह एक नई बात दिखाई पड़ती है। कुछ का मानना है कि सभी खबरें नकारात्मक होती हैं, कुछ कहते हैं कि सभी समाचारपत्र सरकार के दिशा-निर्देशों पर चलते हैं और कुछ का मानना है कि मीडिया में एक डर की भावना है तथा कुछेक कहते हैं कि प्रत्येक चैनल का अपना ही एक नजरिया होता है। मेरा खुद का मानना है कि लोकतंत्र में मीडिया का एक अहम रोल है। मीडिया लोगों को यह बताता है कि देश या विदेश में क्या घट रहा है। वहीं मीडिया यह भी संदेश देता है कि संविधान क्या है तथा लोकतंत्र के असली मायने क्या हैं। यह लोगों को इस बारे शिक्षित करता है कि हमारे समक्ष क्या है और भविष्य में क्या होगा। मीडिया हमारे राष्ट्र को बनाता भी है और तोड़ने वाला भी है। यह लोगों के विचारों का निर्माण भी करता है तथा आने वाली पीढ़ी को हमारे संस्कारों, हमारी विरासत तथा हमारी छवि को पूरे विश्व भर में दर्शाता है। आखिरकार हमें सम्मान प्राप्त है कि विश्व में हम सबसे बड़े लोकतंत्र में रहते हैं। 

हाल ही में निर्भया के दुष्कर्मियों को दी गई मौत की सजा के विवाद को लेकर बहुत शोर-शराबा हुआ। मैं हमेशा से सभी दुष्कर्मियों तथा हत्यारों के लिए सख्त सजा देने के हक में हूं। मेरा यह मानना है कि ऐसे मामलों का लम्बा खींचा जाना पीड़ित परिवारों को यातना देने जैसा है। दोषियों को तत्काल रूप से सजा मिलनी चाहिए तथा इस पर बहस के ऊपर बहस एक असमंजस को जन्म देती है। इन मुद्दों को लेकर कुछ लोग सस्ती लोकप्रियता पाने की एवज में असमंजस से भरे बयान देते हैं तथा यह सोचते हैं कि वे बहुत ज्यादा शिक्षित तथा अनुभवी हैं। मैं निर्भया की मां आशा देवी से पूरी तरह सहमत हूं। अपनी बेटी से क्रूरता वाले दुष्कर्म तथा उसकी हत्या के बाद उसने हर क्षण दुख झेला। ऐसे दुष्कर्मियों को जितनी जल्दी हो सके, फांसी के तख्ते पर झूलना चाहिए। 

टी.वी. पर चल रही बहस कानून को भ्रम तथा उलझन में डालती है। पैनेलिस्ट को अपनी सीमा में रहना चाहिए। जब हम मीडिया की बात कर रहे हैं तो फिर हमें एंटरटेनमैंट शो की भी बात करनी होगी। यदि हम नागिन शो के बारे में बात करें तो यह शो अविश्वसनीय है। फैमिली ड्रामे इतने सालों से चल रहे हैं कि उसमें पीढ़ी दर पीढ़ी दिखाई देती है। ड्रामों में पारिवारिक झगड़े, भाइयों का कत्ल इन सब में अश्लीलता और पागलपन दिखाई देता है। 

बिग बॉस’ ने शालीनता की सारी हदें पार कर लीं
अब ‘बिग बॉस’ की बात करें। मैं हमेशा से सलमान खान की बहुत बड़ी फैन हूं और मैं सालों से यह शो देखती आई हूं। इस वर्ष तो ‘बिग बॉस’ ने शालीनता की सारी हदें पार कर लीं। इसे एक ‘एडल्ट’ शो करार देना चाहिए। गाली-गलौच, लड़ाई, प्रेम-प्रसंग, अश्लील व्यवहार इसमें प्रतिभागियों का दिखता है। इन अभिनेताओं ने एक्शन तथा टी.वी. सीरियलों में अपने-अपने फील्ड में अच्छा काम किया होगा मगर इन लोगों ने जिंदगी भर के लिए अपनी छवि को खराब कर लिया। ‘बिग बॉस’ में महिलाओं के लिए मर्दों के पास कोई सम्मान नहीं। महिलाएं भी कम नहीं, वे भी सारी हदें पार कर लेती हैं। महिलाओं ने अपना स्तर नीचे गिरा दिया है। रश्मि देसाई तथा आरती का आदर है। हालांकि ‘बिग बॉस’ के पास अपने पसंदीदा प्रतिभागी हैं। ‘बिग बॉस’ को अपने प्रतिभागियों को यह सिखाना होगा कि कैसे एक-दूसरे का सम्मान किया जाता है। प्रतिभागी बहुत शोर-गुल करते हैं और उनका व्यवहार होस्ट तथा दर्शकों के प्रति आदरणीय नहीं है। यह सब देख निराशा होती है कि आखिर उनका परिवार क्या सोचता होगा। यह केवल शॄमदगी है। 

दूरदर्शन के जैसी कोई भी खबर नहीं
‘बिग बॉस’ में एक ऐसा प्रतिभागी भी है जो अपने आपको एंटरटेनर समझता है। मगर मेरा मानना है कि जहां तक उसके व्यवहार का संबंध है उसने अभद्रता की सभी सीमाएं लांघ दी हैं। मारपीट करना, चिल्लाना, रोना-पीटना, बाल नोचना और हर पल अपना स्टैंड बदलना दिखाई देता है। आखिर इन सब को देखते हुए हम अपने बच्चों को क्या सिखा रहे हैं? मुझे ऐसे लोगों के लिए तथा ऐसे शोज देखने वालों से क्षमा मांगनी होगी। हमारे पास सी.एन.एन., रशिया टी.वी. तथा बी.बी.सी. जैसे विभिन्न अंग्रेजी चैनल भी हैं। प्रत्येक दिन सी.एन.एन. अमरीकी राष्ट्रपति को कुरेदता है। वह अपना पक्ष रखने में कभी भी नहीं डरता। यहां पर कई ऐसे चैनल हैं जिनका अपना एक महत्व है। नैशनल ज्योग्राफिक तथा डिस्कवरी चैनल लोगों को ज्ञान परोसते हैं। ये चैनल जैसे दिखते हैं वैसे ही हैं।

पब्लिक ने अपना ध्यान सोशल मीडिया पर खबरों तथा मनोरंजन के लिए शिफ्ट कर दिया है। यहां तक कि अनपढ़ और गरीब भी सोशल मीडिया विशेषज्ञ बन कर ट्विटर तथा फेसबुक पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। यह सबसे ज्यादा मनोरंजक है और तेजतर्रार भी। एक ट्विटर पर कितनी ही प्रतिक्रियाएं आती हैं और आपको वास्तविक कहानी के बारे में पता चलता है। फोर्थ स्टेट हमारे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है। यह देश के लिए अपनी जिम्मेदारी समझता है तथा कई विषयों पर अपना मत बदलता है। मनोरंजन चैनलों ने अपना आकर्षण खो दिया है। दूरदर्शन के जैसी कोई भी खबर नहीं। खबर है तो इनके पास, नहीं तो कोई खबर ही नहीं।-देवी चेरियन
 

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