जबरदस्त जीत के साथ बोरिस जॉनसन के पास अपने विचारों के मुताबिक यू.के. को नए सिरे से बनाने का मौका है। ब्रिटिश चुनावों के नतीजे एक भूचाल से कम नहीं। यह स्पष्ट संकेत है कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर आने वाले महीनों तथा सालों में यूनाइटिड किंगडम राजनीतिक, आॢथक तथा क्षेत्रीय तौर पर एक अलग देश दिखाई देगा। लगभग...
जबरदस्त जीत के साथ बोरिस जॉनसन के पास अपने विचारों के मुताबिक यू.के. को नए सिरे से बनाने का मौका है। ब्रिटिश चुनावों के नतीजे एक भूचाल से कम नहीं। यह स्पष्ट संकेत है कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर आने वाले महीनों तथा सालों में यूनाइटिड किंगडम राजनीतिक, आॢथक तथा क्षेत्रीय तौर पर एक अलग देश दिखाई देगा। लगभग एक दशक या फिर कमजोर गठबंधन प्रधानमंत्री के बाद बोरिस जॉनसन सरकार के शक्तिशाली प्रमुख होंगे। उन्होंने 364 सीटें लेकर अपनी पार्टी को बहुमत दिला मजबूती प्रदान की, वहीं 1935 के बाद सबसे कमजोर विपक्ष लेबर पार्टी दिखाई दी।
सबसे पहला बदलाव ब्रेग्जिट होगा। ब्रिटेन 31 जनवरी को यूरोपियन यूनियन को छोड़ देगा। यह सबसे बड़ी चुनौती होगी। जॉनसन के पास यूरोपियन यूनियन के साथ ही नहीं बल्कि ब्रिटेन के अन्य महत्वपूर्ण व्यापारिक सहयोगियों जैसे अमरीका, आस्ट्रेलिया, चीन तथा भारत के साथ व्यापारिक समझौते प्राप्त करने के लिए 11 माह का समय है। क्या इतनी छोटी अवधि में ये सब कुछ हो पाएगा। यह इतना आसान नहीं होगा।
जॉनसन की जीत के बाद राजनीतिक तथा आर्थिक बदलावों के नए मोड़ आएंगे। 1987 में मार्गरेट थैचर की जीत के बाद जॉनसन की कंजर्वेटिव पार्टी ने 45 प्रतिशत मत प्राप्त किए हैं। वास्तव में 1970 के बाद मतों की हिस्सेदारी सबसे बेहतर दिखाई दी। लेबर पार्टी के कई क्षेत्रों जैसे मिडलैंड्स, नार्थ-वैस्ट तथा नार्थ ईस्ट पर कंजर्वेटिव पार्टी ने फायदा उठाया। टोनी ब्लेयर का सैजफील्ड भी हथिया लिया गया। स्टाक-आन-ट्रैंट तथा गे्रट ग्रिम्सबाय जैसे इलाकों जिन्हें टोरी पार्टी ने कभी भी नहीं जीता था अब ये बोरिस जॉनसन के कब्जे में हैं। यहां तक कि लंदन का केङ्क्षनग्सटन जैसा चुनावी क्षेत्र भी बोरिस जॉनसन की पार्टी ने छीन लिया। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि कंजर्वेटिव ने अपनी पार्टी को प्रांतों से निकालकर लंदन तथा वर्किंग क्लास का प्रतिनिधित्व किया है।
लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कार्बिन पार्टी छोड़ सकते हैं
इसके मुकाबले में लेबर पार्टी घटी है। 1935 से लेकर यह पार्टी की सबसे शर्मनाक हार है। 1983 में माइकल फुट द्वारा जीती गई 209 सीटों के मुकाबले इस बार पार्टी ने 203 सीटें ही जीतीं। पार्टी के घोषणा पत्र को इतिहास की ‘सबसे लम्बी आत्महत्या टिप्पणी’ कहा जा रहा है। लेबर पार्टी के नेता जेरेमी काॢबन पार्टी छोड़ सकते हैं जिन्होंने कि पार्टी को दफन ही कर दिया। यह हैरानी वाली बात होगी कि जेरेमी कॉॢबन ने घोषणा की है कि अगले चुनावों मेंं वे लेबर पार्टी का नेतृत्व नहीं करेंगे। ऐसा नहीं लगता कि उनकी पार्टी उन्हें छोड़ेगी। सच्चाई यह है कि लेबर पार्टी बे्रग्जिट के चलते ही नहीं हारी बल्कि वह तो इसलिए भी हारी है क्योंकि ब्रिटेन जेरेमी कार्बिन की सामाजिक नीतियों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था। वह इस पराजय से अपना पल्ला नहीं झाड़सकते।
स्कॉटलैंड की सीमा के आसपास निकोला स्ट्रजन की स्कॉटिश नैशनल पार्टी के लिए नतीजे अच्छे रहे। इनकी पार्टी ने 48 सीटें जीतीं और वोट हिस्सेदारी भी 45 प्रतिशत रही। बोरिस जॉनसन के साथ-साथ इस चुनाव में वह अन्य विजेता रहीं। किसी भी शंका के बगैर स्कॉटिश नैशनल पार्टी अब स्कॉटलैंड के लिए आजादी को लेकर दूसरे जनमत संग्रह की मांग करेंगे। उनका मानना है कि उनके पास इसके लिए अब जनादेश है। दूसरी तरफ जॉनसन पहले ही कह चुके हैं कि वह उनसे सहमत नहीं होंगे। इन बातों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि दोनों में आगे जाकर टकराव होने की प्रबल सम्भावना है।
वह जो करना चाहेंगे वही करके दिखाएंगे
ऐसे हालातों में प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को क्या करना होगा। पहला यह कि जॉनसन पार्टी के निॢवरोध नेता हैं और उनकी संसद पर पूरी पकड़ है। वह जो करना चाहेंगे वही करके दिखाएंगे। राजनीतिक स्थिति के तौर पर जीतने के बाद जॉनसन का संदेश यह दर्शाता है कि अब वह दाईं ओर से केन्द्र की ओर बढ़ेंगे। उन्होंने अपनी पार्टी को ‘एक राष्ट्र’ वाली पार्टी करार दिया है और कहा है कि हम बदलाव अवश्य लाएंगे। वह टोरी के जैकेब रीस मॉग से भी दूरी रखना चाहेंगे और यदि जॉनसन लेबर पार्टी के गढ़ उत्तरी तथा मध्य क्षेत्रों में जीती गई अपनी सीटों पर पकड़ बनाना चाहते हैं तब उनके लिए यह जरूरी भी होगा कि वह रीस से दूरी बनाएं। लेबर पार्टी से भी कुछ ऐसा ही मिलता-जुलता होगा। पार्टी को किसी युवा चेहरे की तलाश है। जोटोनी ब्लेयर का स्टाइल तथा बोलने की उनकी शैली रखता हो।
2016 में ब्रेक्जिट आंदोलन के नेता के तौर पर उन्होंने स्पष्ट किया था कि उन्होंने कभी भी कई ब्रेग्जिट समर्थकों के संरक्षणवाद, वैश्वीकरण विरोधी तथा कठोर आप्रवासी विरोधी वाले स्टैंड को नहीं अपनाया। अब बतौर प्रधानमंत्री मार्च के महीने में अपने पहले बजट भाषण में वह मौलिक कर सुधार, उद्यमियों के लिए और विकल्प लाने वाली बातों को पेश करेंगे। अन्य कल्याणकारी सुधारों के साथ-साथ जॉनसन विशेष तौर पर स्वास्थ्य तथा मूलभूत सुविधाओं जैसे पब्लिक खर्चों को बढ़ाएंगे। विदेश नीति में भी जॉनसन अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से संबंध बेहतर करेंगे। उनको वह अपना दोस्त मानते हैं। इसके साथ-साथ वह यूरोप से भी प्रभावशाली रिश्ते रखना चाहेंगे। वह पहले ही कह चुके हैं कि मैं यूरोप विरोधी नहीं हूं। उनकी सोच छोटा इंगलैंड अथवा ब्रिटिश अलगाववाद वाली नहीं है।
भारत में हम आशा करते हैं कि वह हमारे देश के साथ अच्छे संबंध रखेंगे। हालांकि वह अपनी पत्नी मैरीना जो कि आधी भारतीय हैं, से अलग हो चुके हैं। उनके चार बच्चों की नसों में भारतीय खून बहता है। पिछले वर्ष उन्होंने रणथम्भौर की गैर प्रचारित यात्रा की थी। मोदी की नैशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस, नागरिकता संशोधन विधेयक तथा हिंदुत्व वाली नीतियों पर वह चिंतित हो सकते हैं। वह सार्वजनिक तौर पर इसकी आलोचना तो नहीं करेंगे मगर बंद दरवाजे के पीछे रहकर वह ऐसी नीतियों के प्रति अस्वीकृति जरूर प्रकट करेंगे।
अंतिम व्यंग्य यह होगा कि ब्रिटेन जबकि यूरोपियन यूनियन से अपनी दूरी बढ़ा रहा है तो पूरा विश्व यह देखना चाहेगा कि बोरिस जॉनसन कौन से बदलावलाएंगे और किस दिशा में जाएंगे। 1945 तथा 1979 के चुनाव एक टॄनग प्वाइंट थे। अब की स्थिति भी वैसी ही है। जॉनसन जिन्हें कि एक गैर गम्भीर राजनेता समझाजाता है, की एक दिन क्लीमैंट एटली तथा मार्गरेट थैचर से तुलना की जाएगी।-करण थापर
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