Edited By , Updated: 28 Jan, 2022 05:43 AM

सोने की चिडिय़ा’ कहलाने वाला देश बेरोजगारी के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। इस बार छात्र और सरकार आमने-सामने नजर आ रहे हैं। वर्तमान सरकार आए दिन सभी सरकारी नौकरियों में पदों की सं या कम
आज ‘सोने की चिडिय़ा’ कहलाने वाला देश बेरोजगारी के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। इस बार छात्र और सरकार आमने-सामने नजर आ रहे हैं। वर्तमान सरकार आए दिन सभी सरकारी नौकरियों में पदों की सं या कम करती जा रही है। अगर कोई बहाली भी आती है तो उसकी परीक्षा होने और अंतिम रूप से चयन की प्रक्रिया में 3-4 वर्षों से अधिक लग रहे हैं। पुलिस और छात्रों के बीच हिंसा तक देखने को मिल रही है। सरकार भले ही रोजगार नहीं दे रही हो, लेकिन पुलिस का डंडा चलवाने में सरकार पीछे नहीं हटती।
सी.एम.आई.ई. (सैंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी) की 31 दिसंबर तक के आंकड़ों के आधार पर जारी रिपोर्ट के मुताबिक बेरोजगारी की राष्ट्रीय दर नवंबर में 7.1 प्रतिशत थी, जो बढ़ कर दिसंबर में 7.91 हो गई है। जहां तक शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की बेरोजगारी का सवाल है, दिसंबर में दोनों क्षेत्रों में वृद्धि दर्ज की गई। पूरे साल की तुलना करें तो बिहार में दिसंबर में सर्वाधिक बेरोजगारी दर दर्ज की गई। नव बर में राज्य में बेरोजगारी दर 14.8 प्रतिशत थी। दिस बर में यह 16 प्रतिशत हो गई।
देश के 6 राज्यों में बेरोजगारी दर इस समय 2 अंकों में है। बिहार का चौथा स्थान है। बेरोजगारी के मामले में हरियाणा शीर्ष पर है। दिसंबर में इस राज्य में बेरोजगारी 34.1 प्रतिशत पर पहुंच गई। 27.1 प्रतिशत बेरोजगारी दर के साथ राजस्थान दूसरे नंबर पर, 17.3 प्रतिशत के साथ झारखंड तीसरे नंबर पर पहुंच गया है। इनके अलावा त्रिपुरा और जम्मू-कश्मीर की बेरोजगारी दर 2 अंकों में है। ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में बेरोजगारों की फौज इकट्टा हो रही है, जो एक गंभीर समस्या है।
देश में शिक्षा की कमी, रोजगार के अवसरों की कमी, कौशल की कमी, प्रदर्शन संबंधी मुद्दे और बढ़ती आबादी सहित कई कारक भारत में इस समस्या को बढ़ाने में अपना योगदान देते हैं। इस कारण भारत की जी.डी.पी. पर भी असर साफ दिख रहा है। बेरोजगारी के गंभीर सामाजिक-आॢथक परिणाम होते हैं। बेरोजगारी समाज में विभिन्न समस्याओं का मूल कारण है, जिसे दूर करने के लिए हालांकि सरकार ने कुछ हद तक कदम भी उठाए हैं, लेकिन ये उपाय पर्याप्त रूप से प्रभावी नहीं हैं। सरकार योजनाओं के माध्यम से निजी नौकरियों में वृद्धि करना चाहती है लेकिन कोरोना के बाद निजी क्षेत्र खुद ही घुटन महसूस कर रहा है।
उच्च डिग्री प्राप्त छात्र सरकारी नौकरी के इंतजार में हैं, लेकिन सरकार नोटिफिकेशन निकालने के लिए तैयार नहीं है। अगर नोटिफिकेशन निकल भी गया तो परीक्षा समय पर नहीं हो पाती है। इसका उदाहरण हमारे सामने है। एन.टी.पी.सी. द्वारा 2019 में निकाले गए नोटिफिकेशन के बाद भी अब तक पूर्ण नहीं हो पाया है। हद तो यह है कि बिहार में बी.एस.एस.सी. द्वारा 2014 में निकाले गए नोटिफिकेशन की भर्ती अब तक पूर्ण नहीं हो पाई है।
शिक्षा और बेरोजगारी का भी गहरा संबंध है। आज भी भारत की जनसं या का एक बड़ा अनुपात अशिक्षित है। भारत में कौशल का अभाव है, परंतु अशिक्षा के साथ-साथ शिक्षित बेरोजगारी भी बहुत बड़ी समस्या है। कारण, हर छात्र के द्वारा एक ही तरह की शिक्षा को चुना जाना। जैसे आज कल हम बहुत-से इंजीनियर्स को बेरोजगार भटकते देखते हैं, जिसका कारण इनकी सं या की अधिकता है। आज कल हर छात्र दूसरे को फॉलो करना चाहता है, उसकी अपनी स्वयं की कोई सोच नहीं बची। आज कल यह आम बात है कि छोटी-छोटी नौकरी के लिए भी अच्छे पढ़े-लिखे लोग आवेदन करते हैं, इसका कारण बेरोजगारी के चलते उनकी मजबूरी है।
सरकार को बेरोजगारी के समाधान करने के लिए दूरगामी उपाय करने होंगे। इसके लिए सरकार को चाहिए कि सरकारी नोटिफिकेशन में अनियमितता को खत्म करे और संबंधित बोर्ड एक कैलेंडर जारी कर के समय पर परीक्षा आयोजित करे। इसके अलावा परीक्षाओं में हो रही धांधली भी रोकनी होगी। इसके लिए पारदर्शिता अपनानी जरूरी है। छात्रों को भी समझना चाहिए कि सिर्फ सरकारी नौकरी को ही रोजगार न मानें और निजी नौकरी और स्वरोजगार भी अपनाएं।
इसके अलावा जनसं या वृद्धि पर अंकुश लगाने पर ध्यानाकर्षण करना होगा। तात्कालिक उपाय के रूप में लोगों को निजी व्यवसायों में लगने के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था करके उन्हें धन उपलब्ध कराना होगा, ताकि नौकरियों की तलाश कम हो सके और लोग स्वरोजगार अपना कर भरण-पोषण कर सकें। बैंक से ऋण लेने में लोगों को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसका त्वरित समाधान जरूरी है।
गांवों में बेरोजगारी की समस्या दूर करने के लिए कुटीर उद्योग-धंधों को बढ़ावा देना होगा। इसके लिए पर्याप्त प्रशिक्षण सुविधाओं की व्यवस्था की जानी चाहिए तथा समय पर कच्चा माल उपलब्ध कराना होगा। सरकार को उचित मूल्य पर तैयार माल खरीदने की गारंटी देनी होगी। यह काम सहकारी संस्थाओं द्वारा आसानी से करवाया जा सकता है। बेरोजगारी दूर करने के दीर्घगामी उपाय के रूप में हमें अपनी शिक्षा-व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन लाना पड़ेगा। नई शिक्षा नीति में होने वाले परिवर्तन से कुछ समाधान हो सकता है, लेकिन उसका प्रभाव दूरगामी ही होगा त्वरित नहीं। इसके अलावा नीति-निर्माताओं और नागरिकों को अधिक नौकरियों के निर्माण के साथ ही रोजगार के लिए सही कौशल प्राप्त करने के लिए सामूहिक प्रयास करने चाहिएं।-नृपेन्द्र अभिषेक